माही आज पहले दिन जब ऑफिस पहुँची तो सबसे पहले उसकी मुलाकात उस लड़के से हुई जिसकी तस्वीर कुछ दिन पहले ही उसके घर आई थी। उनके रिश्ते की बातें भी दोनों के माता-पिता के बीच चल रही थीं। अचानक रीतेश को अपने सामने देखकर माही दंग रह गई। उसके दिमाग़ ने तुरंत ही यादों के बक्से से वह तस्वीर निकाल कर माही को दिखा दी कि यही तो है वह जिससे तेरी शादी की बात चल रही है।
रीतेश भी माही को देखकर एकदम से आश्चर्यचकित हो गया। उसने भी उस तस्वीर को याद कर लिया जिसे देखकर उसने अपनी मम्मी से कहा था, "मम्मी तस्वीर में तो लड़की बहुत अच्छी लग रही है। हम उसे देखने कब चलेंगे?"
तब उसकी मम्मी शोभा ने कहा था, "रीतेश, अभी हम लोग उसके परिवार वालों से बात कर रहे हैं। एक बार सब तय हो जाए तो लड़की देखने भी चलेंगे।"
लेकिन आज अचानक वे दोनों इस तरह मिल जाएंगे; उन्होंने कभी नहीं सोचा था।
एक दूसरे को कुछ पलों तक देखने के बाद रीतेश ने पूछा, "आप माही हो ना?"
"जी हाँ, आज इस ऑफिस में मेरा यह पहला दिन है। नौकरी भी पहली ही है, थोड़ा डर लग रहा है।"
"अरे, डरने की कोई बात नहीं है। यहाँ सब लोग बहुत अच्छे हैं। एक दूसरे की मदद भी करते हैं।"
"जी, आप यहाँ कब से काम कर रहे हैं?"
"माही, मेरा नाम रीतेश है, शायद आपको मालूम नहीं। मुझे यहाँ लगभग दो साल हो गए हैं। आप मुझे मेरे नाम से बुला सकती हैं। माही, मुझे लगता है हमें कैंटीन चलकर साथ बैठकर चाय या कॉफी ज़रूर पीना चाहिए, यदि आप हाँ कहें तो?"
माही ने मुस्कुरा कर कहा, "क्यों नहीं, चलिए रीतेश जी।"
उसके बाद वे चाय पीने के लिए कैंटीन गए। वहाँ बातों ही बातों में रीतेश ने कहा, "माही, आप मुझे तस्वीर में ही पसंद आ गई थीं। मैंने मेरी मम्मी से कहा भी था। आप बताइए, आपकी क्या राय है? आपने भी मेरी तस्वीर तो देखी ही है और आज तो रूबरू भी देख लिया है।"
"रीतेश जी, मैंने मेरे रिश्ते की जिम्मेदारी माँ-पापा के ऊपर छोड़ दी है। वे जो भी करेंगे, अच्छा ही होगा।"
"लेकिन माही, आपको नहीं लगता कि भगवान ने हमें अचानक इस तरह मिलाया है तो उसकी इच्छा यही है कि हम विवाह के गठबंधन में बंध जाएँ?"
माही शरमा गई, उसने अपनी पलकों को नीचे झुका कर कहा, "पता नहीं," लेकिन उसका अंदाज़ साफ-साफ यह बता रहा था कि रीतेश उसे पसंद आ गया है।
उसके बाद जब वे काम करने के लिए अपने टेबल पर जाने लगे, तब रीतेश ने कहा, "आपको किसी भी तरह की मदद चाहिए तो कहिएगा और प्लीज, आप यह रीतेश के पीछे जी लगाना छोड़ दीजिए।"
माही ने हँस कर कहा, "थैंक यू, रीतेश।"
वे दोनों ऑफिस में काम करते समय भी बीच-बीच में एक दूसरे की तरफ़ देख लेते और फिर मुस्कुरा देते। इस तरह अब तो रोज़ ही मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। दोनों परिवारों में बातचीत का दौर भी पूरा हो गया। अब मिलने-मिलाने की बारी थी। रीतेश का पूरा परिवार माही के परिवार से मिलना चाहता था।
रीतेश ने माही से एक दिन पहले ही पूछ लिया, "माही, क्या तुमने हमारे बारे में घर पर बता दिया है कि हम लोग ऑफिस में मिल चुके हैं?"
"नहीं, अब तक किसी का इस ओर ध्यान ही नहीं गया कि हमारा ऑफिस एक ही है। शायद माँ-पापा को तुम्हारे ऑफिस का नाम याद नहीं है।"
रीतेश ने कहा, "मैंने भी अब तक घर पर कुछ नहीं बताया है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः