The power of punches: Dhiru is back in Hindi Short Stories by Dhiru singh books and stories PDF | घूंसे की ताकत: धीरु की वापसी

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घूंसे की ताकत: धीरु की वापसी

धीरु का स्वभाव बचपन से ही अलग था। गुस्से से भरा, मगर अन्याय के खिलाफ हमेशा खड़ा। कोई किसी कमज़ोर को सताए, तो धीरु सबसे पहले सामने आता। उसकी आँखों में आक्रोश जलता था और दिल में न्याय की आग। गाँव के लोग उसे प्यार से "छोटा सिंह" कहते थे। स्कूल में भी वो अक्सर अपने साथियों को बचाने के लिए लड़ाइयाँ करता, लेकिन उसमें कभी स्वार्थ नहीं होता।

एक दिन गाँव में कुछ बाहरी बदमाश आए, जो एक गरीब किसान की बेटी को उठाने की कोशिश कर रहे थे। धीरु ने बिना सोचे समझे दौड़ लगा दी और अकेले ही उन सबको धूल चटा दी। लेकिन उनमें से एक बदमाश, जो पहले से ही कई केस में वांछित था, धीरु के एक जोरदार घूंसे से गिरकर मर गया। पुलिस आई, हालात देखे बिना धीरु को पकड़ लिया गया। गाँव के लोग गवाही नहीं दे पाए, डर के मारे। और इस तरह, एक न्यायप्रिय नौजवान पर हत्या का मुकदमा चला और उसे 10 साल की जेल की सज़ा मिली।

धीरु को ट्रेनिंग देने वाला बॉक्सिंग का कोच – अर्जुन सर – जिसने उसे गाँव का सबसे तेज़ घूंसेबाज़ बनाया था, उसने भी धीरु से नाता तोड़ लिया। अर्जुन सर ने कहा, “धीरु, तुमने मेरी उम्मीदों को मार डाला है। एक खिलाड़ी हाथ नहीं उठाता, वो संयम से जीतता है।”

धीरु को बहुत गहरा धक्का लगा। माँ-बाप पहले ही इस सदमे से टूट चुके थे। और अब गुरु ने भी साथ छोड़ दिया। जेल में पहले-पहले दिन बहुत कठिन थे, लेकिन वहीं उसकी मुलाकात एक पुराने बॉक्सिंग कोच से हुई – कैदी नंबर 247। नाम था – राघव सिंह। वो कभी राज्यस्तरीय चैंपियन रह चुका था लेकिन किसी साजिश में जेल पहुँच गया। उसने धीरु की आँखों में वो ज्वाला देखी जो एक असली फाइटर में होती है। उसने कहा – “ये जेल तुझे तोड़ने नहीं, गढ़ने आई है। खुद को बनाना सीख।”

वहीं से शुरू हुआ असली सफर। दिन-रात की ट्रेनिंग, punching bag से लेकर shadow boxing तक, हर दिन धीरु खुद को निखारता गया। जेल में बॉक्सिंग टूर्नामेंट होते थे – और हर बार धीरु जीतता रहा। कुछ ही सालों में, धीरु का नाम ‘चैंपियन’ पड़ गया।

इधर बाहर, धीरु का छोटा भाई, आरव, जिसने हमेशा अपने भाई को आदर्श माना था, उसे गुमनामी में खो चुका था। अर्जुन सर ने साफ मना कर दिया कि वो अब किसी को नहीं सिखाएँगे, खासकर धीरु के घर से। लेकिन आरव ने हार नहीं मानी। उसने पहाड़ों में जाकर, अकेले में खुद को ट्रेन करना शुरू किया। इंटरनेट से वीडियो देखता, पेड़ों के तनों को punching bag बनाता, ठंडे झरनों में दौड़ता और अकेले sparring करता। सालों बाद, उसने अपनी एक अलग स्टाइल बना ली – तेज़, घातक और सटीक।

समय बीत गया। धीरु जेल में रहकर ही बड़ा नाम बन गया। लेकिन एक ही सपना था – बाहर जाकर अपने भाई को गले लगाना, माँ-बाप की कब्र पर माफ़ी माँगना, और वो सब बदल देना जो कभी उसके गुस्से ने तोड़ा था।

बाहर, आरव ने अपने पहले बॉक्सिंग टूर्नामेंट में भाग लिया। सबको चौंका दिया उसने। धीरु के नाम से नफरत करने वाले लोग आरव के सामने झुक गए। "ये तो धीरु का भाई है", सबने कहा। फाइनल में, उसने उस बॉक्सर को हराया जो कभी उसके भाई को जेल भेजने की साजिश में शामिल था – वही बदमाश के रिश्तेदार का लड़का। आरव का नाम गूंजा – “द माउंटेन फाइटर”।

लेकिन इसी जीत से कुछ पुराने दुश्मन फिर से जाग गए। एक गैंग – जिसने पहले धीरु को फंसाया था – अब आरव और उसकी प्रेमिका, काव्या, को खत्म करने का प्लान बना रहा था। उन्होंने दोनों को झांसे में फंसाकर जंगल की तरफ बुलाया और मारने की तैयारी की।

जंगल में चारों तरफ गूंज रही थी बंदूकों की आवाज़। आरव बुरी तरह घायल हो गया। काव्या चीख रही थी, “कोई तो बचाओ।” तभी एक आवाज़ आई – “जिसने भाई को मारा, अब वो उसके बड़े भाई से मिलेगा।” धीरु की एंट्री हुई – बर्फ जैसी ठंडी आँखें, लेकिन सीने में ज्वाला।

एक-एक करके सभी गुंडों को धीरु ने ढेर कर दिया। उसके पंच बिजली जैसे गिर रहे थे। कुछ ही मिनटों में मैदान साफ। आरव की हालत गंभीर थी। धीरु ने उसे अपनी गोद में उठाया – “भाई, मैंने तुझे बचाने की कसम खाई थी।”

अस्पताल में इलाज चला, और धीरे-धीरे आरव ठीक हो गया। जब धीरु को मीडिया ने घेरा, तो उसने कहा – “मैंने कभी हीरो बनने का सपना नहीं देखा था, लेकिन आज अगर मेरा भाई जिंदा है, तो वो मेरी असली जीत है।”

अर्जुन सर भी आए, झुके हुए। बोले – “माफ कर देना शिष्य। गुरु ने तुझे नहीं पहचाना।”

सरकार ने धीरु के जेल रिकॉर्ड की दोबारा जांच कराई, और पाया गया कि वह आत्मरक्षा में किया गया खून था। केस खत्म हुआ, और धीरु को सम्मानित किया गया।

धीरु ने फिर से बॉक्सिंग अकादमी खोली, जहां वो उन बच्चों को सिखाता है जिन्हें दुनिया ने खारिज कर दिया हो – गुस्सैल, अकेले, पर सच्चे।

कहानी का अंत उसी वाक्य से होता है, जो धीरु अपने शिष्यों को सिखाता है –
“घूंसा चलाने से पहले सोचो, मगर जब चलाओ – तो सच और इंसाफ के लिए चलाओ।”