Tere ishq mi ho jau fana - 38 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 38

The Author
Featured Books
Categories
Share

तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 38

बरसी का दिन और घर में हवन

बरसी का दिन आ चुका था। सानियाल हवेली के आंगन में हवन की तैयारी जोरों पर थी। बड़ी सी चौकी पर पीले और लाल कपड़े बिछाए गए थे, जिस पर चांदी के बड़े-बड़े थालों में पूजा का सामान रखा था। हल्दी, चंदन, फूल, अक्षत, और घी से भरे दीपों की सुगंध पूरे वातावरण में फैल चुकी थी। एक ओर पंडित जी मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे, तो दूसरी ओर नौकर-चाकर व्यवस्था संभालने में व्यस्त थे।

दानिश, सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, पूरे आयोजन की देखरेख कर रहा था। उसके चेहरे पर गंभीरता और भावुकता दोनों झलक रही थीं। पिताजी की बरसी उसके लिए सिर्फ एक रस्म नहीं थी, बल्कि एक श्रद्धांजलि थी, एक ऐसा दिन जब वह अपने पिता की यादों को और अधिक महसूस करता था।

त्रिशा और सोनिया की नाराजगी

सोनिया और त्रिशा अभी भी बीती रात की बातों से थोड़ा नाराज थीं। वे चाहती थीं कि पूजा का तरीका आधुनिक हो, लेकिन दानिश ने पारंपरिक पंडित जी को बुलाने का फैसला सुना दिया था।

"क्या हमें इस पूजा में हिस्सा लेना चाहिए?" सोनिया ने त्रिशा से पूछा।

क्या हमारा इस पूजा में बैठना ज़रूरी है, " सोनिया ने कहा |

बैठना ही पडेगा, " त्रिशा ने कहा |

"तो फिर चलो, पूजा में बैठते हैं, लेकिन इस बार हम भी कुछ नया करेंगे।" सोनिया ने आँखों में शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा।

हवन की शुरुआत

हवन कुण्ड के चारों ओर परिवार के सभी सदस्य बैठ चुके थे। दादी, जो इस परिवार की सबसे अनुभवी सदस्य थीं, मंत्रों के उच्चारण के साथ पूरी श्रद्धा से पूजा कर रही थीं। दानिश, उसकी माँ, भाग , और अन्य सभी लोग पूरे सम्मान और भक्ति के साथ आहुति दे रहे थे।

पंडित जी ने जैसे ही पहला मंत्र पढ़ना शुरू किया, माहौल पूरी तरह आध्यात्मिक हो गया। आहुति की सुगंध हवा में फैल गई और हल्की-हल्की हवा के झोंकों से घी की लौ उठने लगी।

तभी, सोनिया ने धीरे से अपना फोन निकाला और लाइव स्ट्रीमिंग शुरू कर दी।

"लो, अब विदेश में बैठे रिश्तेदार भी इस पूजा में शामिल हो सकते हैं!" सोनिया ने धीरे से फुसफुसाया।

दानिश की प्रतिक्रिया

दानिश ने जब देखा कि पूजा की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है, तो पहले उसे गुस्सा आया। लेकिन जब उसने देखा कि परिवार के लोग जो दूर थे, वे भी ऑनलाइन जुड़ रहे थे और भावुक हो रहे थे, तो उसका गुस्सा धीरे-धीरे ठंडा हो गया।

पंडित जी ने आहुतियाँ देने के लिए सबको आमंत्रित किया। सोनिया और त्रिशा ने भी आहुति देने के लिए आगे आईं। 

दादी का निष्कर्ष

पूजा समाप्त होने के बाद दादी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—

"देखा, असली पूजा मन से की जाए तो सबकुछ अच्छा लगता है। चाहे वह पारंपरिक तरीके से हो या थोड़ा आधुनिक अंदाज में!"

सोनिया और त्रिशा ने सहमति में सिर हिला दिया।

दानिश ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां, और सबसे जरूरी यह है कि परिवार एक साथ हो, बस यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होती है।"

पूरे परिवार ने मिलकर पिताजी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। पूजा खत्म होते ही सबने तिलक लगाकर प्रसाद ग्रहण किया, और हवेली में एक बार फिर शांति और संतोष का माहौल छा गया।

 

माथूर हाऊस, 

समीरा अपने कमरे में अकेली बैठी थी। बाहर हल्की बारिश अभी भी हो रही थी, और उसकी खिड़की के शीशों पर छोटी-छोटी बूंदें धीरे-धीरे लुढ़क रही थीं। वह अपने बिस्तर पर बैठी थी, पैरों को मोड़कर, तकिए को हल्के से बाँहों में दबाए हुए। कमरे की मद्धम रोशनी में उसका चेहरा कुछ उलझन भरा लग रहा था, जैसे उसके मन में कोई ख्याल बार-बार दस्तक दे रहा हो, जिसे वह अनसुना करने की कोशिश कर रही थी।

"मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि दानिश के करीब जाने में कोई खतरा है? और फिर भी, क्यों... क्यों उसकी आँखों में देखने पर एक अजीब-सा सुकून मिलता है?"

उसने लंबी सांस ली और अपनी आँखें बंद कर लीं।

कॉफी कैफे में हुई मुलाकात उसकी आँखों के सामने घूम गई—दानिश की गहरी, ठहरी हुई निगाहें, उसके सवालों में छिपा हल्का-सा अधिकार, और वो मुस्कान... जो न जाने क्यों, उसके मन के किसी कोने में घर कर रही थी।

"नहीं, समीरा!" उसने खुद से कहा। "यह बस एक इत्तेफाक था। यह कोई मायने नहीं रखता। दानिश... वो बस एक अनजान ही है। कुछ ज्यादा नहीं!"

मगर क्या वह सच में सिर्फ अनजान था?

उसका दिल धड़क उठा। उसने अपनी हथेलियाँ आपस में भींच लीं, जैसे इस अजीब-से एहसास को अपने भीतर से निकाल देना चाहती हो।

वह उठी और कमरे में चहल-कदमी करने लगी।

"क्यों बार-बार उसकी बातें मेरे दिमाग में घूम रही हैं? उसकी आँखों में जो गहराई थी, वो इतनी जानी-पहचानी क्यों लगी?"

वह खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। हल्की ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी। उसने अपनी जैकेट को कसकर लपेट लिया, मगर उसके भीतर जो बेचैनी थी, वो इस ठंड से भी ज्यादा सिहरन पैदा कर रही थी।

वह खुद को रोकना चाहती थी। इस एहसास को दबा देना चाहती थी। मगर जितना वह इसे नजरअंदाज करने की कोशिश करती, उतना ही यह उसके भीतर और गहरा होता जा रहा था।

"शायद यह बस मेरी गलतफहमी है। शायद मैं सिर्फ ओवरथिंक कर रही हूँ।"

मगर कहीं न कहीं, उसके मन के सबसे गहरे कोने में एक हल्की-सी उम्मीद भी थी। एक अनकही इच्छा, जिसे वह खुद से भी छिपाने की कोशिश कर रही थी।

वह बिस्तर पर जाकर बैठ गई और अपने फोन को उठाया। उसकी उंगलियाँ अनजाने में ही व्हाट्सएप खोलने लगीं। स्क्रीन पर सबसे ऊपर दानिश का चैट था।

"क्या मैं उसे मैसेज करूँ?"

यह सोचते ही उसका दिल और तेजी से धड़कने लगा। उसने तुरंत फोन नीचे रख दिया।

"नहीं! यह सही नहीं होगा। अगर मैंने उसे कोई गलत संकेत दे दिया तो? अगर यह सिर्फ मेरा भ्रम है?"

वह अपने बालों को हल्के से पीछे ले गई और आँखें बंद कर लीं।

"मैं दानिश के लिए ऐसा क्यों महसूस कर रही हूँ?"

और ठीक उसी पल, जैसे उसकी उलझनों ने किसी को बुला लिया हो, उसके फोन की स्क्रीन चमकी।

दानिश का मैसेज था।

"बारिश बहुत सुहानी है, है ना? काश, हम फिर से एक साथ होते।"

उसका दिल एक पल के लिए रुक गया।

"एक साथ...? क्या वह भी वही सोच रहा था, जो मैं सोच रही थी?"

उसने झटके से फोन नीचे रखा और अपनी साँसें सँभालने की कोशिश करने लगी।

"यह... यह क्या हो रहा है? मैं क्यों..."