Chandrvanshi - 5 - 5.2 in Hindi Mythological Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.2

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चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.2

दूसरे दिन  

“राजा पागल हो गया है क्या?” एक वृद्ध बोला।  
“क्यों, क्या किया राजा ने?” वह वृद्ध की पत्नी बोली।  
“क्या नहीं, सब कुछ ही खो दिया हमने।” वृद्ध की आशा टूट चुकी थी। वह अपनी छोटी सी कोठरी में रखे ढोलिये पर बैठ गया।  
अब तक उसकी पत्नी को वृद्ध की बात समझ में नहीं आई थी। इसलिए वह उससे पूछने जाने लगी, लेकिन उससे पहले ही एक युवक दौड़ता हुआ वहाँ आया।  
“मुखिया ओ रमणलालमुखी, पांडुआ गाँव में सिपाही आ गए हैं। चलो, अभी राजा भी आता ही होगा।” वह युवक मुखिया के भाई का बेटा था। रमणभाई पिछले ही दिन राज्य के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उन्हें सिपाही लेकर आ गए थे। गाँव में आज शोक का माहौल छा गया था। गाँव का वीर सपूत शहीद हुआ था। लोग उसे देखने के लिए भीड़ में इकट्ठे हो गए थे और कुछ लोग जो वहाँ पहुँच नहीं सकते थे, वे चर्चा कर रहे थे।  
“कौन वो रमा मुखी का सगा भाई था?”  
भीड़ में से एक आवाज़ उठी। जो उस गाँव के मुखिया की ओर थी।  
“हां तो उसी का भाई था। लेकिन क्या ये बात सही है कि अंग्रेजों ने ही उसे मारा होगा?” भीड़ में एक और आवाज़ अलग अंदाज़ में निकली।  
“(काँपती आवाज़ में) अंग्रेजों ने!!!” निकली हुई आवाज़ में थोड़ा डर और किसी बड़ी हानि की आशंका नजर आई। अब भीड़ में खड़े सभी का ध्यान उसकी ओर खिंच गया। उनमें से एक नवयुवक बोला: “क्यों, आप इतने डर रहे हैं?”  
“अंग्रेज़ आधुनिक राक्षस हैं। जिन्होंने अभी लगभग पूरे भारत को निगल लिया है। उनका साम्राज्य पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैला है। कहा जाता है कि, कई वर्ष पहले अंग्रेज़ व्यापार करने के बहाने भारत आए थे। जो अब राज कर रहे हैं। मेरे जीवन के सत्तर वर्षों में मैंने कई साम्राज्यों का सफर किया है लेकिन आज तक अंग्रेजों के राज्य में प्रवेश करने का साहस मैंने नहीं किया।” वृद्ध बोलते-बोलते खाँसने लगा। जिससे उसके जभीने की बाई से एक नक्शा सरककर नीचे गिर गया। वृद्ध की बात को रुचि से सुन रहा वह युवक वह नक्शा अपने हाथ में लेता है।  
वृद्ध की आँखें बाहर निकल पड़ीं। अधेड़ शरीर में जैसे गर्म खून की लहर दौड़ गई हो, वृद्ध ने झट से हाथ बढ़ाया और कोई अभी समझ पाए या सोच पाए, उससे पहले ही वह नक्शा लेकर वृद्ध भीड़ को चीरता हुआ गायब हो गया। देखने लायक बात यह भी थी कि उस वृद्ध के साथ वह युवक भी गायब हो गया।  
लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ कि बूढ़ा दिखने वाला आदमी अचानक कैसे गायब हो गया? भीड़ में वह नवयुवक भी नहीं था।  
लोग चर्चा में पड़ गए। इतने में ढोल, नगाड़ा और शहनाई की आवाज़ गूंज उठी। लेकिन वह आवाज़ किसी शुभ अवसर की नहीं थी, और न ही राजा के स्वागत की। वह आवाज़ मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले उस महान सिपाही की अंतिम यात्रा में हिस्सा लेने वाली थी।  
लोगों की आँखों में आँसू भर आए – एक महान सिपाही आज उनकी आँखों के सामने धरती की गोद में सो गया था। लोगों की आँखों में आँसू सिर्फ इसलिए नहीं थे कि वह एक महान सिपाही था, बल्कि इसलिए थे कि वह उनका आत्मीय जन था। किसी का काका था, किसी का दादा, किसी का भाई, किसी का पिता था। उसके घर के संबंधी से भी बढ़कर वह किसी का गुरु था।  
जो अभी भीड़ में खड़े वृद्ध के साथ गायब हो गया और वह नवयुवक पूरे गाँव का चहेता था। वह नवयुवक और कोई नहीं बल्कि सुर्यांश था।  
रमणलाल मुखी और उनके घर के सदस्य वहाँ आ रहे थे। “(रोते हुए) वैभवराज, मेरे भाई, तुम्हें क्या हो गया?” रमणलाल बोले। अभी रमणलाल अपने भाई के मृत शरीर को देखने जा ही रहे थे कि उन्होंने राजा ग्रहरीपु को देखा। रमणलाल रुक गए, राजा की ओर देख कर नमस्कार किया। फिर अपने भाई के शव की ओर हाथ जोड़कर बोले: “महाराज, अब और कितने मरेंगे?”  
ग्रहरीपु को गाँव के मुखिया की बात कड़वी लगी। लेकिन पहले से ही अच्छे स्वभाव के राजा ने उसकी बात सह ली और अपने सिपाहियों के साथ फिर महल की ओर चल पड़े। रास्ते में प्रधान से चर्चा शुरू की।  
“कल रात सुर्यांश मेरे पास क्यों आया था?”  
“महाराज! सुनने में आया है कि, यह वैभवराज सुर्यांश के गुरु हैं और शायद कल रात उसी की बात लेकर सुर्यांश आया होगा।”  
प्रधान अपने घोड़े से ही महाराज से चर्चा कर रहा था।  
“तो नए राजा के आने की चर्चा से राज्य में कोई षड्यंत्र चल रहा है!” राजा ग्रहरीपु ने बात को कुछ हद तक समझा। थोड़ी देर में वे महल पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही राजा ने सुर्यांश को उनके समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया। राजा का आदेश मानकर सिपाही सुर्यांश को लेने रवाना हुए। महल के बीच में ही राजकुमारी संध्या उनके सामने आ रही थी।  
“सिपाहियों, तुम सब एक साथ कहाँ जा रहे हो? क्या राज्य में कोई संकट आ पड़ा है?”  
“प्रणाम राजकुमारीजी! मैं पांडुआ गाँव का सिपाही हूँ। महाराज ने सुर्यांश को उनके समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया है।”  
“महाराज ने! क्यों?” राजकुमारी ने सुर्यांश का नाम अपने मुँह से लिए बिना ही बात की।  
“क्षमा करें राजकुमारी, इस बात की जानकारी महाराज ने हमें भी नहीं दी। लेकिन वे क्रोधित थे।”  
राजकुमारी संध्या अपने पिता के पास जाने निकल पड़ी। मन ही मन सुर्यांश के बारे में सोच रही थी। इतने में ही उसे मदनपाल भी मिला और संध्या ने उसे यह बात बताई। इसलिए दोनों भाई-बहन महाराज के पास गए और ग्रहरीपु के क्रोध का कारण जाना।  
दूसरी ओर सुर्यांश अपने घर से बहुत दूर एक दूसरे राज्य में पहुँच गया था। वह राज्य चंद्रहाट्टी राज्य के विरोध में था। उसका राजा ग्रहरीपु को हराकर अपना पुराना बदला लेना चाहता था। लेकिन सुर्यांश तो पांडुआ से भागे उस वृद्ध के पीछे यहाँ तक पहुँच गया था। उस राज्य के लोग बहुत ही गरीब और कंगाल थे। गिने-चुने ही घर ऐसे लगते थे जो अमीरों के हों।  
सुर्यांश की नजरों के सामने अब एक भव्य महल आया। जहाँ हजारों की संख्या में सैनिक थे। वह महल बहुत विशाल था। उस महल के सामने ग्रहरीपु का महल एक छोटा-सा झोपड़ा लगता। लोग जितने दुखी थे, राजा उतना ही सुखी था। लेकिन उन सैनिकों की वेशभूषा अलग थी। मतलब उन्हें देखकर ही सुर्यांश समझ गया था कि यह राज्य अंग्रेजों ने जीत लिया है और राजा को अपनी ओर आकर्षित कर जनता को दुखी कर रहे हैं।  
एक पूरा दिन घूमने के बाद सुर्यांश समझ गया था कि अगर अंग्रेजों ने चंद्रहाट्टी जीत लिया, तो अंत निकट है।  
अचानक सुर्यांश की पीठ पर हाथ रखकर पीछे से एक व्यक्ति की आवाज़ आई: “तेरे गुरु वैभवराज को धोखे से मारा गया है।”  
सुर्यांश पीछे मुड़ा, तो वह और कोई नहीं बल्कि वही वृद्ध था, जिसके पीछे-पीछे सुर्यांश आया था।  
“कौन हो तुम?” घबराया हुआ सुर्यांश बोला।  
“मैं चंद्रवंशियों का गुप्तचर हूँ। हमारा चंद्रहाट्टी संकट में है।”  
“तो भागकर दूसरे राज्य में नपुंसक बनकर रहने का क्या मतलब?”  
“मतलब है।” गुप्तचर की आवाज़ में जोर आया।  
“मतलब कि राज्य को संकट से बचा सकते हैं?”  
“हाँ! लेकिन उससे पहले तुम्हें पांडुआ के पीछे स्थित उस जंगल में जाना होगा।”  
“उस जंगल में तो चंद्रवंशी मंदिर स्थित है। वहाँ जाकर क्या पूजा करूँ?”  
जल्दी से जवाब पाने के लिए सुर्यांश गुप्तचर को उकसाने का प्रयास करने लगा।  
“वह मंदिर भी रहस्यमयी है।” गुप्तचर की वृद्ध आँखों में चमक दौड़ गई।  

***