भाग 1: अनजाने रास्तों की मुलाकात
वो जुलाई की बारिश थी। कोहरा हल्का-सा था, लेकिन हवा में एक अजीब-सी गर्माहट भी थी।अविरल, एक शांत-सा लड़का, जो किताबों और खामोशी से प्यार करता था, पहली बार किसी नए शहर में आया था – देहरादून।
उसकी जिंदगी में सब कुछ व्यवस्थित था – टाइम टेबल की तरह। लेकिन उस दिन उसकी ट्रेन लेट हो गई थी। बारिश से बचने के लिए वो स्टेशन के पुराने शेड के नीचे खड़ा हुआ था। तभी एक आवाज़ आई—
"Excuse me, क्या आपके पास टिशू है?"
वो मुड़ा और देखा — एक लड़की, नीली डेनिम जैकेट, भीगे बाल और आंखों में जादू...
"नहीं, सॉरी..." उसने धीमे से कहा, लेकिन उसकी आंखें कुछ कह रही थीं जो लफ्ज़ों में नहीं था।
भाग 2: वो आंखें
उसका नाम था "कायरा"। वो अकेली सफर कर रही थी, और दिल्ली से देहरादून सिर्फ इसलिए आई थी कि कुछ दिन अपने आप के साथ बिता सके।अविरल और कायरा, दोनों अजनबी... लेकिन बारिश ने जैसे उनका कोई पुराना रिश्ता जगा दिया हो।
वो दोनों स्टेशन के उस कोने में बैठकर बातें करने लगे। किताबें, बारिश, अकेलापन और ज़िंदगी के वो सवाल जिनका जवाब किसी किताब में नहीं होता।
अविरल को उसकी हँसी पसंद थी — थोड़ी टूटी, थोड़ी खुली।
कायरा को उसकी खामोशी भा गई — एकदम सच्ची और बिना किसी नकाब के।
भाग 3: प्यार जो कहा नहीं गया
दो दिन बाद, जब वो दोबारा स्टेशन पर मिले, तो दोनों की आंखों में वही सवाल था —"क्या ये बस एक इत्तेफाक था?"
अविरल ने धीरे से कहा,"अगर मेरी जिंदगी एक किताब होती... तो तुम उस पहले पन्ने की तरह होतीं, जिसे मैं बार-बार पढ़ना चाहूं।"
कायरा मुस्कुरा दी, लेकिन उसकी आंखें नम हो गईं।"तो फिर लिखो न मुझे... अपनी कहानी में..."
भाग 4: आंखों का शहर
उन्होंने साथ कुछ नहीं मांगा, ना वादे, ना कसमें।बस देहरादून की उन गलियों में, जहां वो हर शाम टहलते थे, उनके कदमों ने अपनी कहानी छोड़ दी।
कायरा वापस चली गई, लेकिन अविरल ने उसकी आंखों का एक स्केच बनाया — एक ऐसा चेहरा, जो उसकी हर किताब के पहले पन्ने में छप चुका था।
और कायरा?वो हर शाम अपनी खिड़की से आसमान को देखती और सोचती —"शायद कोई अब भी मेरी आंखों में अपना शहर ढूंढ रहा है..."
"तुम्हारी आंखों का शहर" का अगला भाग — एक ऐसा मोड़ जहां भावनाएं और फासले दोनों गहराते हैं...
भाग 5: जुदाई की खामोश गहराई
अविरल अब वापस दिल्ली लौट चुका था। वो फिर अपने रूटीन में था — कॉलेज, लाइब्रेरी, किताबें और वही पुराना अकेलापन।पर अब अकेलापन थोड़ा नया लगने लगा था — क्योंकि उसमें कायरा की यादें जुड़ चुकी थीं।
हर दिन, जब भी बारिश होती… उसकी उंगलियाँ खुद-ब-खुद उस स्केच पर जा टिकतीं — कायरा की आंखों वाला वो पन्ना।कायरा की दुनिया में...
वो एक आर्टिस्ट थी — लेकिन खुद की फीलिंग्स को कभी पेंट नहीं कर पाई थी।पर अब वो हर कैनवास पर बस एक ही चेहरा उतार रही थी — अविरल का चेहरा, उसकी खामोश मुस्कान।
कायरा को डर था — कहीं वो सब एक खूबसूरत भ्रम तो नहीं था?
लेकिन जब उसने अपने नोटबुक का पहला पन्ना खोला —उसे वहां एक चिट्ठी मिली…अविरल ने लिखा था:
"अगर तुम कभी मेरी आंखों में लौटना चाहो, तो मैं आज भी वहीं खड़ा हूं — उसी पुराने स्टेशन के कोने में, जहां पहली बार तुमने टिशू मांगा था…"
भाग 6: बारिश का दूसरा वादा
एक महीने बाद...
देहरादून फिर भीग रहा था। स्टेशन की वो पुरानी जगह अब भी वैसी ही थी — थोड़ी टूटी, थोड़ी नई।
और वहीं...अविरल खड़ा था — हाथ में वही स्केचबुक।उसे नहीं पता था कि कायरा आएगी या नहीं... लेकिन वो आया था, हर हफ्ते आता था।
और फिर, आज… कायरा आई।
भीगे बाल, वही नीली जैकेट… और आंखों में वही सवाल।
वो कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप आकर खड़ी हो गई।
अविरल ने कहा:"इस बार अगर भीग जाओ, तो मत जाना..."
कायरा की आंखों से दो बूंदें गिरीं — बारिश की नहीं थीं, पर सबसे सच्ची थीं।भाग 7: शहर जो आंखों में बस गया
वो दोनों फिर से मिले, लेकिन अब इत्तेफाक नहीं रहा।अब हर मुलाकात उनकी कहानी का हिस्सा बन गई थी।अब देहरादून सिर्फ एक शहर नहीं था — अब वो तुम्हारी आंखों का शहर था…
जहां हर गली एक एहसास बन गई थी, और हर बारिश एक नया वादा।
क्या अगला भाग भी चाहोगी? इसमें हम दिखाएंगे कि कैसे उनका प्यार दूरियों और हालातों से लड़ता है — और क्या वो हमेशा के लिए एक-दूजे के हो पाते हैं या नहीं...