🌺 महाशक्ति – एपिसोड 43
"छाया का प्रकट होना और अतीत का अंधकार"
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🌌 प्रस्तावना – अब अंधकार स्वयं बोलेगा…
भ्रमलोक की चेतना पार करने के बाद
अर्जुन, अनाया, ओजस और शल्या
पहली बार एकजुट, एक ही दिशा में आगे बढ़े।
पर इस बार उनके सामने कोई द्वार नहीं था…
कोई कुंजी नहीं… कोई संकेत नहीं…
बस एक काली आंधी चली —
और उसके भीतर से एक काँपता स्वर उभरा:
> "अब मैं प्रतीक्षा नहीं करूँगी…"
"अब मैं स्वयं आऊँगी…"
ये थी — छाया।
पहली बार… स्वयं प्रकट रूप में।
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🌫️ छाया का अवतरण – रौद्र और मोहक दोनों
अचानक आकाश लाल हो गया।
धरती काँपने लगी।
वातावरण में बिजली की चमक और शवों की दुर्गंध एक साथ फैल गई।
छाया की आकृति आकार लेने लगी —
ना वह पूरी स्त्री थी, ना पूरी देवी…
उसकी आँखें नीली, पर दर्प से भरी थीं।
उसके वस्त्र धुएँ से बने थे —
और उसके केश… मानो सैकड़ों सर्पों से लिपटे हों।
> "अर्जुन…"
"तू वही है जो सत्य की बात करता है,
लेकिन अपने गुस्से को कभी देख पाया है क्या?"
> "अनाया…"
"तेरा प्रेम पवित्र है, पर तू वासनाओं से डरती है।"
> "ओजस…"
"तू शक्ति है, पर तुझमें धैर्य नहीं।
और शल्या…
तू मेरी हूँ। तू मुझसे भाग नहीं सकती।"
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🛡️ अर्जुन और अनाया – पहली बार एक साथ युद्ध मुद्रा में
अर्जुन ने त्रिशूल मंत्र साधा।
अनाया ने ‘शांति वाणी’ का उच्चारण किया।
दोनों ने पहली बार बिना शब्दों के,
सिर्फ दृष्टि से युद्ध की रणनीति तय की।
छाया बोली:
> "दो प्रेमी जब एकजुट होकर मुझसे टकराएँ,
तो वो मुझे कमज़ोर नहीं,
और भी क्रूर बना देते हैं।"
छाया ने अपनी हथेलियों से
‘मृत स्मृतियाँ’ का काला भंवर छोड़ा —
जो अनाया को उसकी माँ की मृत्यु और अर्जुन को अपने पूर्व जीवन की हार दिखाने लगा।
पर इस बार,
दोनों चुप नहीं रहे।
उन्होंने अपने प्रेम की ऊर्जा से उस भंवर को रोक दिया।
"तू अतीत को हथियार बनाती है…" अर्जुन गरजा,
"और हम भविष्य की आहट हैं!"
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🖤 शल्या का अतीत – वो पहली बार टूटी… और जुड़ी भी
शल्या अब तक शांत थी।
पर अब छाया उसकी ओर मुड़ी।
> "क्यों नहीं बताती तू ओजस को,
कि तू ही वो बच्ची है
जिसे यक्षकुल से चुराया गया था?"
ओजस चौंक गया:
"क्या…?"
शल्या की आँखें नम हो गईं।
"हाँ…" उसने काँपती आवाज़ में कहा,
"मैं… यक्षकुल की कन्या हूँ।
मुझे बचपन में छाया ने अपहरण कर लिया था।
मुझे सिखाया गया कि प्रेम एक भ्रम है…
और ओजस — तुझे मारना, मेरा धर्म।"
"पर तेरे स्पर्श ने मुझे सब कुछ भुला दिया।
और… मैं टूट गई।
क्योंकि जो सत्य मैं जानती थी,
वो तूने प्रेम से झूठा कर दिया।"
ओजस की आँखों में आंसू थे।
"तू मेरे शत्रु की पुत्री हो सकती है…
पर तेरे आंसुओं में माँ का अपनापन है।
और मैं तुझे स्वीकार करता हूँ।"
छाया चीख उठी:
"नहीं! नहीं! ये प्रेम नहीं हो सकता!"
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🔥 ओजस का प्रहार – अब क्रोध से नहीं, करुणा से
ओजस पहली बार अपने शांत रूप से बाहर आया।
उसकी आँखें चमकीं।
उसकी हथेलियाँ जल उठीं —
पर वो छाया की ओर वार करने नहीं गया।
वह उसकी आँखों में देखता रहा —
और बोला:
> "तू भी किसी समय… प्रेम में टूटी होगी।
तू भी किसी के अधूरे साथ की पीड़ा से बनी है।
इसीलिए तू सबको तोड़ती है।"
"मैं तुझसे नहीं डरता…
मैं तुझसे दया करता हूँ।"
छाया काँप गई।
उसकी आँखें पलभर को मानो नरम हुईं।
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💫 छाया का डगमगाना – पहली बार एक दोष का आभास
छाया पीछे हटने लगी।
"तुम सब… क्या सच में…?"
उसने अनाया की ओर देखा,
जिसने बिना एक शब्द कहे
अपनी हथेली छाया की ओर बढ़ाई।
"तेरा संहार नहीं चाहते हम…
तेरा शुद्धिकरण चाहते हैं।"
छाया काँपती है —
फिर अचानक एक राक्षसी गरज के साथ
अंधकार में विलीन हो जाती है।
गुरुजी प्रकट होते हैं:
> "आज तुमने एक राक्षसी से युद्ध नहीं किया…
एक पीड़ित चेतना को स्पर्श किया है।
यही धर्म है —
जहाँ युद्ध से नहीं, प्रेम से जीत होती है।"
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🛤️ अब अंतिम यात्रा – यक्षकुल की ओर
गुरुजी बोले:
> "अब केवल दो कुल शेष हैं —
यक्षकुल और मानवकुल।
यक्षकुल, जहाँ से शल्या आई है —
और मानवकुल, जहाँ से अर्जुन और अनाया।"
"दोनों कुल तुम्हारे निर्णय से जुड़ेंगे —
तुम्हें चुनना होगा कि
क्या तुम्हारा प्रेम व्यक्तिगत रहेगा,
या समष्टि के लिए बलिदान बन जाएगा।"
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✨ एपिसोड 43 समाप्त