Mahashakti - 44 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 44

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महाशक्ति - 44


🌺 महाशक्ति – एपिसोड 44

"यक्षकुल की पुकार और आत्मा का सत्य"


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🌌 प्रस्तावना – वंश की आवाज़, आत्मा की पुकार

रात्रि गहरी थी,
लेकिन आकाश में तारे असामान्य रूप से चमक रहे थे।

गुरुजी ने कहा:

> "अब तुम प्रवेश करने जा रहे हो यक्षकुल में…
एक ऐसा कुल जो ज्ञान, संगीत, और अदृश्यता का प्रतीक है।
पर यही कुल… अब भ्रम और छल से संक्रमित हो चुका है।"



शल्या काँप रही थी।
उसकी आँखों में पहली बार डर नहीं,
बल्कि गिल्ट था।

"क्या वे मुझे अपनाएँगे?"
उसने ओजस से पूछा।

"तू खुद को स्वीकार कर ले,
बाक़ी दुनिया खुद-ब-खुद झुक जाएगी।"


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🚪 यक्षकुल का प्रवेश – दृश्य अदृश्य की चौखट

एक रहस्यमयी द्वार खुला —
जिस पर कोई आकृति नहीं थी।

गुरुजी बोले:

> "यक्ष कभी सीधे प्रकट नहीं होते…
वे तब प्रकट होते हैं जब तुम सत्य के बिना खड़े हो।"



जैसे ही अर्जुन, अनाया, ओजस और शल्या ने कदम रखा,
उनके चारों ओर का दृश्य बदल गया।

वे अब किसी प्राचीन गुफा के भीतर थे —
जहाँ शब्द नहीं, मौन की गूँज थी।


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🧿 शल्या का सामना – अपने ही वंश के साथ

गुफा के भीतर एक सभा चल रही थी —
यक्षगण ध्यान मुद्रा में बैठे थे।

तभी एक वृद्ध यक्ष ने आँखें खोलीं।

"शल्या…"
"तू वापस आई है?
या तू अब भी छाया की छाया है?"

शल्या झुक गई।

"मैं… अब भ्रम से बाहर हूँ।
पर मैं जानती हूँ —
आपकी आँखों में मेरा नाम अभी भी कलंक है।"

एक यक्ष स्त्री उठी —
"कलंक वही होता है
जिसे छिपाया जाए।
तू तो यहाँ सत्य लेकर आई है।"

सभा मौन हो गई।

तभी ओजस ने आगे आकर कहा:

"आपकी कन्या अब सिर्फ बेटी नहीं —
बल्कि प्रेम की प्रतिनिधि बन चुकी है।
उसे अपनाना… केवल रक्त नहीं,
रुह की ज़िम्मेदारी है।"


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🔆 ओजस और यक्षगुरु – आत्मा का रहस्य

सभा के बीच से एक प्रकाश पुरुष प्रकट हुआ।

उसका स्वर धीमा, पर प्रभावशाली था।

"ओजस… तू जानता है तू कौन है?"

"मैं अर्जुन और अनाया का पुत्र हूँ…"

"नहीं।
तू केवल उनका पुत्र नहीं —
तू सात आत्माओं का समावेश है।
तेरी आत्मा में वो चेतना है
जिसे छाया भी समझ नहीं पाई।"

ओजस चौंका।

"मैं…?"

"तू वो है
जो हर कुल का उत्तर है।
तू वो है
जिसके भीतर राक्षसी करुणा,
यक्षों की संगीतात्मक शांति,
मानवों का जिज्ञासु मस्तिष्क,
और देवों की दृष्टि एक साथ हैं।"

"पर… मैं इसे सिद्ध कैसे करूँ?"

गुरु बोले:

> "जब तू बिना युद्ध के विजयी होगा —
तभी तू पूर्ण कहलाएगा।"




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🔮 भविष्यवाणी – अर्जुन और अनाया के प्रेम पर प्रश्न

सभा के अंत में,
यक्षगुरु ने अर्जुन और अनाया को पास बुलाया।

"तुम दोनों ने इस संसार को प्रेम सिखाया है।
पर क्या तुम एक-दूसरे के बिना भी उतने ही पूर्ण हो?"

दोनों स्तब्ध।

"कभी प्रेम बंधन बन जाता है।
पर सच्चा प्रेम… मुक्ति देता है।"

अर्जुन ने अनाया की ओर देखा,
उसकी आँखों में आशंका नहीं थी —
केवल विश्वास था।

"अगर अनाया मेरे साथ नहीं भी रहे…
तो भी मेरी आत्मा उसके नाम की मौन जप करेगी।"

अनाया मुस्कराई:
"और मेरा हृदय… सदा अर्जुन की दृष्टि से जाग्रत रहेगा।"

गुरु मुस्कराए।

"शायद तुम तैयार हो…
छलावरण को चीरने के लिए।"


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🕸️ छलावरण – एक यक्ष ही निकला छाया का दूत

सभा के समाप्त होते ही
एक युवा यक्ष — जिसका नाम था विहान —
आगे आया।

"मैं तुम्हारे साथ मानवकुल तक जाऊँगा।"

पर उसकी आँखों में जो तेज़ था,
वो अत्यधिक चमकदार था —
जैसे अंधकार को छुपा रहा हो।

शल्या को कुछ अजीब-सा लगा।

"तुम पहले कभी यक्षसभा में नहीं देखे गए…"
"तुम्हारा स्पर्श ठंडा नहीं, गर्म है…
जैसे राक्षसी अग्नि।"

तभी शल्या ने ओजस को चेताया —
"वह यक्ष नहीं…
छाया का दूत है।"

विहान ने राक्षसी हँसी हँसी —
"अब तुम सब कुछ जान गए।
पर अब देर हो चुकी है।
मैं तुम्हारे साथ मानवकुल में घुस चुका हूँ।"

वह गायब हो गया —
लेकिन उसके पीछे एक काला चिह्न रह गया।

गुरुजी बोले:

> "मानवकुल की यात्रा अब सरल नहीं।
अब छाया तुम्हारे भीतर से वार करेगी —
तुम्हारे विश्वास, प्रेम और आत्मा के माध्यम से।"




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🌠 समापन – अब अंतिम द्वार: मानवकुल

गुरुजी ने आशीर्वाद दिया।

"तुमने अब तक राक्षस, यक्ष, नाग, वनवासी सभी कुलों को पार किया…
अब अंतिम द्वार शेष है —
मानवकुल।"

"पर वहाँ तुम किसी राजा, योद्धा या ज्ञानी से नहीं,
बल्कि स्वयं के प्रतिबिंब से मिलोगे।"

शल्या ने ओजस का हाथ थामा:
"अब मैं साथ हूँ, हर द्वंद्व में।"

ओजस ने कहा:
"अब मैं रुकने वाला नहीं…
अब मैं खुद को जानने निकला हूँ।"


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✨ एपिसोड 44 समाप्त