मृत्यु अंत नहीं है | ये सच्चाई की एक शुरुआत है |
जहाँ मनुष्यों का न्यायालय तुम्हारे गुनाहों को साबित करने में नाकाम हो जाते हैं, वहीं यहाँ पर… सबसे बडा कलाकार भी अपना असली चेहरा दिखाता है |
सच की आवाज़ गूँजती है, और झूठ चुप रहता है |
कई कहानियाँ सुनी हैं इस दरबार ने। कुछ बड़ी। कुछ छोटी। कुछ कविताएँ-सी मीठी तो वहीं कुछ नफरत से भरी हुई |
इन अनगिनत कहानियों में से सिर्फ़ कुछ ही हैं जो मेरे दिल को छू सकीं | और उनमें से भी सिर्फ़ कुछ ही ऐसी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि- न्याय क्या है जब आत्मा ही मजबूर हो, बुरी नहीं ? |
अगर इस सिंहासन पर बैठने वाले तुम होते… तो क्या फ़ैसला सुनाते? |
=|=
एक नदी धुंध में ढकी हुई, उसमें एक छोटी-सी नौका तैरती हुई, और उस नौका में दो चेहरे |
एक नौका चला रहा है, और एक गहरी नींद में है |
जो नौका चला रहा है उसने एक बड़ा और लंबा-सा काला कपड़ा ओढ़ रखा है |
उसके कपड़े फटे हुए हैं मगर इसके बावजूद बाहर से उसके शरीर का एक भी अंग दिखाई नहीं दे रहा |
सिर्फ यही नहीं, वह जितनी बार पतवार को पानी में डुबाता, नौका को आगे बढ़ाता, उसमें से एक बार भी कोई आवाज़ नहीं गूँजी |
उसके हाथों की हर एक हरकत सिर्फ़ एकांत को पुकारती |
लेकिन तभी, जो नींद में था, वह जाग उठा। एक आदमी शर्ट और पैंट में |
विकास नाम है उसका |
शुरू में विकास को लगा कि शायद वो ठीक से उठा नहीं क्योंकि उसे सब कुछ धुँधला दिखाई दे रहा है मगर बाद में उसे पता चला कि सब कुछ एक गहरे धुंध में ही ढका हुआ है |
न तो आकाश दिख रहा है और न ही इस नदी का कोई अंत।
"माफ़ कीजिएगा भाई साहब, क्या आप बता सकते हैं मैं कहाँ हूँ?" - विकास, अपने आगे खड़े, नौका चालक से पूछता है।
"देखिए क्या है कि मैं बाप बनने वाला हूँ ना… तो मुझे इस वक़्त अपनी बीवी के पास होना चाहिए।"
उसकी बातों से साफ़ पता लग रहा है कि वह अपनी हकीकत से अंजान है।
विकास के कई बार पूछने पर भी नौका चालक कोई जवाब नहीं देता।
इससे वह थोड़ा-सा गुस्साया और चालक की तरफ़ बढ़ा। और जैसे ही उसने चालक के कंधे को छुआ- तभी!
अचानक से एक तस्वीर उसकी आँखों के सामने झलकती है।
~गाड़ी की सीटी~
~दुर्घटना~
"ओए!!!"
विकास चीखते हुए नौका पर ही गिर जाता है जिसके कारण नौका डगमगाने लगती है मगर फिर भी चालक ने कोई हलचल नहीं की सिवाय पतवार चलाने के।
वहीं दूसरी ओर, विकास का चेहरा पूरा सफ़ेद पड़ चुका है। अपनी काँपती हुई आवाज़ में वह कहने लगा-
"मैं... मैं अपने घर की ओर जा रहा था।
एक मोड़ आया और मैं... आह-"
अचानक से उसकी छाती में एक दर्द उठा और इसी के साथ विकास को अपना आखिरी पल याद आता है।
“नहीं...”
वह जान चुका है… मगर वह इस हकीकत को नकारता है।
"नहीं!... नहीं! मैं ज़िंदा हूँ, ये सब कुछ एक बुरा सपना है।
तुम! तुम सिर्फ़ एक सपना हो!
ये पूरी जगह एक सपना है!
मुझे बस इस सपने से उठना है, कविता मेरा इंतज़ार कर रही होगी।
एक बार मैं जाग जाऊँ, तो कविता मेरे बगल में होगी हमेशा की तरह।
उठ!
विकास उठ!
उठ!"
विकास अपने आप को मारने लगता है, इस उम्मीद में कि वह इस बुरे सपने से उठ जाएगा मगर… कुछ नहीं हुआ।
तभी, नदी को देख विकास को कुछ याद आता है कि उसे तो तैरना नहीं आता।
और इसी से उसे एक ख्याल आता है कि क्यों न वह इस नदी में कूद जाए? शायद वह जाग जाए?।
और बस, विकास तैयार हो जाता है नदी में छलाँग लगाने के लिए।
मगर जैसे ही वह छलाँग लगाने वाला होता है, उसे वक्त उसे पीछे से एक आवाज़ पुकारती है।
एक ऐसी आवाज़ जिसे सुनते ही विकास का पूरा शरीर अकड़ जाता है और उसकी घबराहट गायब हो जाता है।
एक ऐसी आवाज़ जिसे वह कभी न भूला।
~मेरा प्यारा बच्चा, मम्मी के पास आओ~
धीरे-धीरे विकास उस आवाज़ की ओर मुड़ता है।
वह देखता है कि जो धुंध उसके चारों ओर है, वह सब आपस में मिलने लगे हैं और फिर एक औरत के आकार उसके सामने आता है।
वह औरत अपनी बाँहें फैलाकर विकास को पुकार रही है।
"म... माँ?"
विकास की आँखों में आँसू आने लगे जैसे ही उसने अपनी माँ की छवि को देखा।
ये बेटे अपनी माँ को नहीं भूला।
कई ख्याल उसके मन में आते हैं, कई सवाल, मगर उसके जज़्बात उन सब पर भारी पड़ जाते हैं।
वह अपनी बाँहें फैलाता है, अपनी माँ की ममता को महसूस करने के लिए, मगर तभी… उसी वक़्त, एक बच्चे के आकार का धुंध विकास के शरीर से आर-पार गुज़रता है और उसकी माँ को गले लगा लेता है |
~मम्मी!~
~आजा मेरा राजकुमार!~
वह बच्चा कोई और नहीं, विकास ही है।
कुछ पल बाद उसके पिता भी दिखाई देने लगते हैं।
और फिर... शुरुआत होती है विकास की ज़िंदगी की, वो हर एक लम्हे जो वह भूल चुका था।
उसके स्कूल के दिनों में अव्वल आने से लेकर उसके नए शहर के संघर्ष तक। कविता से मिलने से लेकर… उसकी ज़िंदगी के आखिरी पल तक।
और फिर… सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।
अन्सुये रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, फिर भी एक आखिरी बार विकास कुछ कहता है।
"मुझे… मुझे अभी बहुत कुछ करना है।
एक गलती है जिसे मुझे अभी सुधारना है… क्या ये वाकई में मेरा अंत है?
क्या वाकई में मुझे एक मौक़ा नहीं मिल सकता? या फिर कुछ दिन?"
चालक कुछ न बोला, वह बस नौका को आगे बढ़ाता रहा।
"अबे सुनना!!!
मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूँ!!!
कुछ तो बोल!
कुछ तो बोल बे!
कुछ तो बोल…"
विकास चीखता रहा मगर उसे कोई जवाब न मिला |
एक पल बीता… या पूरा दिन? कोई नहीं जानता इस शाश्वत दुनिया में।
न अब चीखें हैं, और न ही ख्वाहिश ज़िंदगी की।
विकास जान चुका है अपनी सच्चाई को और उसे न चाहते हुए भी मान चुका है।
अब बस रह गया है तो सिर्फ़ इंतज़ार…
वक़्त बीतने लगा और आख़िरकार नौका रुकती है एक टापू के सामने जो अशोक और बरगद के पेड़ों से ढकी हुई है।
आख़िरकार चालक एक नई हलचल करता है। वह अपनी पतवार उठाता है और ज़ोर से नाव पर मारता है, जिससे कि विकास उसकी ओर देखने लगता है।
"हाँ?"- विकास पूछता है अपनी बेजान आवाज़ में।
उसके इस सवाल को सुन चालक अपने एक हाथ को उस टापू की ओर इशारा करता है।
और जब विकास उसके हाथों की दिशा की ओर देखता है तब उसे एक पत्थरों से बना रास्ता दिखाई देता है जो कि पेड़ों के बीच से होती हुई कहीं जा रही है।
उसकी आँखें उस रास्ते का पीछा करती हैं कि वह किस ओर जा रही है।
उसे कुछ साफ़ तो दिखाई नहीं दे रहा मगर फिर भी… जब उसकी नज़रें ऊपर की ओर उठीं, तब उसने कुछ देखा।
कुछ ऐसा जो उसने कभी न देखा।
काले रंग में लिपटा, एक विशालकाय, एक भव्य महल।
सिर्फ़ एक नज़र और विकास अपने आप को उस महल की ओर खींचने लगा।
ये कुछ नया था, और इससे विकास डरा भी मगर सफ़र ख़त्म हो चुका है… अब उसे आगे बढ़ना ही होगा।
और वह बढ़ा।
इस नए रास्ते में चलते हुए विकास अपने चारों ओर देखता है।
पहली बार उसे इस नई दुनिया में आकाश दिखाई दे रहा है मगर… न सूरज है, न ही चाँद।
न दिन का समय है, न रात का... और न ही कोई हवा चल रही है।
ऐसा लगता है जैसे कि पूरी दुनिया ठहर चुकी है।
कुछ वक़्त बाद विकास महल के विशाल द्वार पर पहुँचता है।
उसे कोई द्वारपाल तो नहीं दिखता मगर महल के द्वार हल्के से खुले पड़े हैं।
विकास अंदर की ओर झाँकता है मगर उसे कुछ नहीं दिखता।
वह फिर एक बार आगे बढ़ता है।
अंदर घुसते ही विकास की आँखों में तेज़ रोशनी पड़ती है जिस कारण वह थोड़ी देर के लिए अंधा-सा हो गया मगर जब वह अपनी आँखें वापिस खोलता है, तब उसे दिखाई देता है कि वह महल के अंदर नहीं…
बल्कि एक सीढ़ी पर खड़ा है, और ये सीढ़ी सीधे बादलों की ओर जा रही है।
न महल है और न ही कोई नदी... है तो सिर्फ़ एक अनंत जंगल और ये सीढ़ी जिस पर वह खड़ा है।
कई सवाल उठे विकास के मन में, मगर उन सबका जवाब उसे इस सीढ़ी के अंत में ही मिलेगा।
विकास फिर एक बार आगे बढ़ा।
सीढ़ियाँ ख़त्म हुईं और अब उसके सामने एक दरबार है। और फिर आती है एक आवाज़, अंदर से-
"आपका स्वागत है विकास, इस कर्मों के न्यायालय में।"
=|=
एक नया चेहरा आया है इस दरबार में, एक नई कहानी लेके।
क्या फ़ैसला लोगे तुम उसकी कहानी सुनने के बाद?