एक अनकही मोहब्बत की दास्तान
किरदार:
नायरा: एक introvert, किताबों से मोहब्बत करने वाली लड़की, जो ज़िंदगी को चुपचाप समझने की कोशिश करती है।
विवान: एक photographer, जो खामोश लम्हों में खूबसूरती तलाशता है। उसे भीड़ में रहकर भी अकेले रहना पसंद
कहानी का आरंभ:
दिल्ली की एक पुरानी किताबों की लाइब्रेरी में, जहां ज़्यादातर लोग बस शांति पाने आते हैं, वहीं नायरा हर रविवार को आकर एक ही कोना चुनती थी— "सीढ़ियों के पास वाली खिड़की"। वहीं से धूप सीधी उसकी किताब पर पड़ती थी, और उसे शांति मिलती थी।
उसी लाइब्रेरी में, एक अजनबी हर रविवार बिना किताब लिए आता और कैमरे में कुछ न कुछ कैद करता। वो खामोश था, लेकिन उसकी आँखें बहुत कुछ कहती थीं। नायरा ने कई बार उसे देखा, लेकिन कभी कुछ कहा नहीं।
एक दिन उस अजनबी ने नायरा के पास एक नोट छोड़ा—
"तुम्हारी चुप्पी, सबसे प्यारी कविता है जो मैंने कभी सुनी। क्या मैं इसे तस्वीर में ढाल सकता हूँ?"
नायरा ने मुस्कुराकर सर हिलाया।
धीरे-धीरे नज़दीकियाँ:
अब हर रविवार वो दोनों साथ बैठते— नायरा पढ़ती, विवान खामोशी में उसकी तस्वीरें खींचता। ना इज़हार, ना सवाल। बस मौन में मोहब्बत।
एक दिन बारिश होने लगी, और बिजली चली गई। लाइब्रेरी की रोशनी बुझ गई। नायरा डर गई...
विवान ने उसका हाथ थामा और बोला,
"डरो मत, ये अंधेरा सिर्फ बाहर का है... हमारे बीच अब रौशनी है।"
टूटता लम्हा:
फिर अचानक एक रविवार, नायरा नहीं आई। एक हफ्ता बीता, फिर दूसरा... विवान को चैन नहीं आया।
वो उसी खिड़की के पास रोज़ इंतज़ार करता रहा।
फिर एक दिन, एक लिफाफा मिला, उसी जगह...
उसमें लिखा था—
"शायद मैं अब दोबारा वहाँ ना लौट सकूं। मगर तुमने मुझे मेरी खामोशी से बाहर लाया...
तुमसे बिना कुछ कहे, मैं तुमसे मोहब्बत कर बैठी थी।"
– नायरा
अंत:
विवान ने उस खिड़की के पास एक तस्वीर टाँग दी – नायरा की।
और नीचे लिखा था –
"जहाँ खामोशी बोलती है, वहाँ इश्क़ अमर हो जाता है।"
"खामोशी में छुपा इश्क़ – भाग 2"
"नई पहचान, वही एहसास"
2 साल बाद – शिमला
ठंडी हवाओं वाला शहर, हर मोड़ पर धुंध और हर खिड़की से झांकती यादें।
विवान अब वहाँ रहता है—एक छोटी सी कैफे गैलरी चलाता है, जिसमें वो तस्वीरें बेचता है। हर दीवार पर उसकी खींची तस्वीरें होती हैं, मगर एक फोटो कभी नहीं बिकती — वो खिड़की वाली नायरा की तस्वीर।
हर कोई पूछता है—
"ये लड़की कौन है?"
वो मुस्कुराकर कहता—
"खामोशी की सबसे प्यारी कहानी।"
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एक दिन...
कैफे में एक लड़की आई — हल्की सी सूती साड़ी में, कानों में छोटे झुमके, हाथ में एक डायरी।
वो आई, उसने दीवारें देखीं... और अचानक वो तस्वीर देखकर रुक गई।
वो तस्वीर देखकर उसकी आँखें नम हो गईं, और धीरे से उसने कहा —
"आपने इसे कैसे खींचा?"
विवान ने बिना देखे जवाब दिया —
"मैंने नहीं... इसने खुद को मुझे सौंपा था।"
वो लड़की थी – नायरा।
"पर नायरा तो..."
विवान की सांसें अटक गईं जब उसने ध्यान से देखा—
वो नायरा ही थी, मगर अब उसका नाम था – 'अन्वी'।
नायरा ने अपना शहर, नाम, ज़िंदगी सब बदल लिया था।
वो बोली –
"मैं उस खिड़की से दूर तो आ गई थी, पर तुमसे नहीं।
मैंने तुम्हारे साथ बिताए खामोश लम्हों को फिर से जीने के लिए खुद को नया नाम दे दिया।
पर अफ़सोस... तुमसे दूर होकर कुछ भी नया नहीं लगा।"
फिर...
विवान ने उसकी डायरी धीरे से खोली—
हर पन्ने पर उसकी तस्वीर थी, उसके खींचे पलों की लकीरें थीं।
वो बोला—
"तुम चली गई थीं, लेकिन मैं तुम्हारी तस्वीरों में जीता रहा। अब जब तुम सामने हो... क्या फिर से उस खामोश खिड़की पर चलोगी?"
नायरा ने सिर झुकाया, मुस्कुराई... और बोली—
"अब हर रविवार तुम्हारे साथ बिताने की नहीं, हर **दिन तुम्हारे साथ जीने की तमन्ना है।"
अंत नहीं... ये तो शुरुआत है ❤️
जहाँ खामोशी में इश्क़ पनपता है, वहाँ हर मुलाक़ात फिर से पहली सी लगती है।