भाग 4: "कहानी जिसमें रूह बसती है" 🌸
रात ढल चुकी थी, पर हवेली की दीवारों पर वक़्त ठहर गया था।
हमने अपने नाम उस अधूरे पन्ने पर लिख दिए थे...
जैसे किसी रुकी हुई दुआ को अपनी मंज़िल मिल गई हो।
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सुबह की किरणें हवेली की पुरानी खिड़कियों से छनकर भीतर आ रही थीं।
बगीचे में चमेली की खुशबू और धूप की कोमलता से हवेली एक नई ऊर्जा से भर गई थी।
हम दोनों उसी बाग़ में बैठे थे — जहाँ कल रात वो अनमोल क्षण बीते थे।
राज ने अचानक पूछा,
"क्या तुम्हें लगता है ये सब कोई कहानी थी?"
मैंने उसका हाथ थामते हुए कहा,
"कहानी थी… लेकिन अब याद बन चुकी है। और कुछ यादें दिल में नहीं, रूह में बस जाती हैं।"
वो चुप रहा, पर उसकी नज़रें मेरी बात से सहमत थीं — जैसे वो भी उसी गहराई में उतर चुका हो।
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हवेली की आत्मा जागी थी…
शाम को हवेली में कुछ अलग-सा प्रकाश था — न अधिक तेज़, न मंद।
राज की बहन ने धीमे स्वर में कहा,
"दादी कहती थीं, जब कोई रिश्ता सच्चे मन से स्वीकार हो जाए, तो हवेली का दीपक स्वयं जल उठता है।"
मैं मुस्कराई और बोली,
"तो फिर आज रात दीपक अवश्य जलेगा।"
और जैसे ही हमने मंदिर में दीपक जलाया, हवेली के पुराने दरबार कक्ष में रखा पीतल का दीपक बिना किसी स्पर्श के स्वयं जल उठा।
परदे हल्के से हिले, हवा शांत थी…
पर वो कंपन कुछ कह रहा था — जैसे रुख़सार और अर्मान की रूहें वहाँ हमारे साथ हों।
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पुराने संदूक से निकला बीता वक़्त
राज मुझे उस पुस्तकालय में ले गया जहाँ से डायरी मिली थी।
वहाँ एक पुराना संदूक मिला, जिसमें कुछ तस्वीरें, चिट्ठियाँ और एक पत्र रखा था।
पत्र के ऊपर लिखा था:
"यदि तुम ये पढ़ रहे हो, तो समय ने एक नई दास्तान रच दी है।"
वो पत्र रुख़सार ने अर्मान के लिए लिखा था — जो शायद कभी उन्हें दिया ही नहीं गया।
राज ने वो पत्र पढ़ते हुए धीमी आवाज़ में कहा,
"शायद प्रेम केवल जीवन भर का नहीं होता… बल्कि समय के पार तक चलता है।"
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हवेली को सौंपा एक नया उद्देश्य
हमने निश्चय किया कि अब यह हवेली केवल अतीत की याद नहीं रहेगी, बल्कि एक नई परंपरा का स्थल बनेगी।
राज ने कहा,
"प्रत्येक वर्ष हम यहाँ एक ऐसा जोड़ा आमंत्रित करेंगे जिनके प्रेम में सच्चाई हो — जहाँ शब्दों से अधिक भावना हो।"
हम दोनों ने मिलकर हवेली के द्वार पर एक शिलापट लगवाया, जिस पर उकेरा गया:
> "यहाँ केवल प्रेम नहीं, एक जीवित कहानी बसती है।"
— राज और डिम्पल
(रुख़सार और अर्मान की स्मृति में)
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एक नई सुबह की ओर
झील के पुल पर हम दोनों फिर से खड़े थे, जैसे हर बार यही जगह हमारा मिलन बिंदु बनती रही हो।
राज ने मेरा हाथ थामा और कहा,
"जहाँ कहानियाँ समाप्त होती हैं, वहीं से असली जीवन आरंभ होता है।"
मैंने उसकी आँखों में झाँकते हुए उत्तर दिया,
"और हर कहानी के पीछे एक रूह होती है… जो अपनी शांति ढूंढ रही होती है।"
"और जब वह रूह अपनी मंज़िल पा ले?"
उसने हल्के स्वर में पूछा।
"तब... दीपक स्वयं जल उठता है," मैंने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा।
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🌙 (अंत नहीं… आरंभ है) 🌙
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पढ़ने के लिए दिल से शुक्रिया!
आप जैसे पाठक ही इस सफ़र को ख़ास बनाते हैं। 🌸
-डिम्पल लिम्बाचिया 🌸