कहानी: “ऋषिकेश की वो यादगार सुबह…”
भाग 1: पहली झलक
सुबह के चार बजे थे, जब ट्रेन हरिद्वार स्टेशन पर रुकी। ठंडी हवा के झोंकों ने मुझे जगा दिया। मैं riya , पहली बार अकेले सफर पर निकली थी… मंज़िल थी – ऋषिकेश।
ऑटो वाले से कुछ मोलभाव के बाद मैं गंगा किनारे लक्ष्मण झूला के पास पहुंची। सूरज की किरणें धीरे-धीरे गंगा के पानी में उतर रही थीं, और हवा में एक अजीब-सी शांति थी। ऐसा लग रहा था जैसे सारी थकान गंगा के एक छींटे से मिट जाएगी।
भाग 2: गंगा आरती और एक अजनबी मुसाफिर
शाम को त्रिवेणी घाट पर गंगा आरती देखने गई। दीपों की रौशनी, मंत्रों की आवाज़ और पानी में तैरते फूल… सब कुछ जैसे किसी सपने जैसा था।
वहीं मेरी मुलाकात हुई आरव से – एक शांत, मुस्कुराता हुआ लड़का जो कैमरे में वो पल कैद कर रहा था। हमारी बातचीत वहीं से शुरू हुई… कुछ तस्वीरों से, कुछ मुस्कानों से।
भाग 3: पहाड़, बारिश और दोस्ती
अगले दिन हम साथ में नीर गाडू वाटरफॉल और नीलकंठ महादेव मंदिर घूमने निकले। बारिश की हल्की बूंदें हमारे चेहरे को छू रही थीं और रास्तों में मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू भर चुकी थी।
आरव कहता,"riya कुछ जगहें अकेले घूमने के लिए नहीं होती… वहाँ साथ चाहिए।"और उस दिन मुझे उसकी बात में कुछ सच्चाई सी लगी।
भाग 4: अलविदा ऋषिकेश… लेकिन यादें साथ
तीसरे दिन विदा का वक्त आ गया। आरव मुझे स्टेशन तक छोड़ने आया। हम दोनों चुप थे… सिर्फ नज़रें बोल रही थीं।
"फिर मिलेंगे?" मैंने पूछा।उसने हल्की मुस्कान दी – "ऋषिकेश फिर बुलाएगा तो ज़रूर।"
ट्रेन चल पड़ी… लेकिन मेरा दिल वहीं रह गया – गंगा के किनारे, ऋषिकेश की वादियों में, और उस मुसाफिर की आंखों में जिसे मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी।
इस अधूरी कहानी को आगे…शीर्षक रहेगा: "ऋषिकेश की वो यादगार सुबह..."
भाग 5: एक अनजाना मैसेज
सफर को एक महीना हो चुका था। मैं वापस अपनी पढ़ाई और ज़िंदगी में व्यस्त हो चुकी थी… लेकिन हर शाम गंगा आरती की घंटियों की गूंज कानों में गूंजती थी।
फिर एक दिन, अचानक एक मैसेज आया –
"ऋषिकेश आ रही हो क्या इस बार भी? मैंने फिर से वही कॉफी शॉप बुक कर रखी है, जहाँ तुमने पहली बार जिंजर टी पी थी…" — आरव
दिल धड़क गया… कुछ पल के लिए सब रुक गया।
भाग 6: दोबारा वही सफर, पर इस बार दिल के साथ
मैंने टिकट बुक की और फिर से निकल पड़ी… इस बार दिल में एक अजीब सा एहसास लेकर। जब ऋषिकेश पहुँची, आरव पहले से वहां खड़ा था। उसके हाथ में वही पुरानी डायरी थी, जिसमें उसने मेरी पहली फोटो चिपकाई थी – त्रिवेणी घाट वाली।
"क्या तुम जानती हो, ये जगह अब पहले जैसी नहीं रही... क्योंकि अब इसमें तुम्हारी यादें जुड़ गई हैं," उसने कहा।
भाग 7: पहला प्यार… पहाड़ों के बीच
उस दिन हमने साथ में बीटल्स आश्रम, राम झूला, और फिर एक साइलेंट सनसेट पॉइंट देखा। चुपचाप बैठकर सूरज डूबता देखा… और उस चुप्पी में एक इकरार था।
आरव ने मेरा हाथ थामा,"riya मुझे नहीं पता प्यार कैसे होता है… पर अगर किसी की याद में सांसें गहरी हो जाएं, तो शायद वही प्यार होता है। क्या तुम मेरी मुसाफिर बनोगी… हमेशा के लिए?"
मेरे होंठ हिले नहीं… पर मेरी आंखों में जो चमक थी, वही जवाब थी।भाग 8: आज भी वो ऋषिकेश वहीं है...
अब जब भी कोई मुझसे पूछता है –"तुम्हारा फेवरिट ट्रिप कौन-सा रहा?"तो मैं बस मुस्कुरा कर कहती हूं –"जहाँ एक सफर ने मुझे मेरा हमसफ़र दिया – ऋषिकेश।"
अगर तुम चाहो, तो इसका अगला भाग शादी के बाद ऋषिकेश लौटने पर लिख सकते हैं, या फिर कोई बड़ा मोड़ भी डाल सकते हैं – जैसे आरव का बाहर चला जाना या फिर एक खत जो उसे कभी मिला ही नहीं…
Kajal Thakur 😊