तो हेलो दोस्तों तो आज हम फिर मिलते है एक नई कहानी oo sorry मेरा मतलब एक नई जीवन या जिंदगी से ।
तो आज के जीवन के कुछ खास पल होंगे एक नए सदस्य के साथ क्योंकि मेरी लिखी धारावाहिक केवल एक जीवन पर नहीं बल्कि अनेकों पर है यह पल कभी मेरे जीवन कभी आपके जीवन से भी हो सकते हैं और अगर आप भी चाहते है सदस्य बना मेरी कहानियों का तो प्लीज मुझे फॉलो करें और है अपना फीडबैक देना ना भूलें और सदस्य बने के लिए आप भी बाट सकते हैं अपने जीवन के छोटे, बड़े कुछ खास पल/
तो चलिए शुरू करते है ।
🌸(""आज की शाम तारा के नाम"")
💮/"तारा और वो साइकिल वाला लड़का"/
/तारा की कहानी और उसकी अपने प्यार को पाने की जिद /
तारा उम्र लगभग 5 गर्ल्स स्कूल मैं नया एडमिशन हुआ था उसका
सुबह के 7 बज रहे थे
हमेशा की तरह हमारी बदमाश और जिद्दी तारा सुबह सुबह ही अपने दादू से लड़ने लगी ।
( एक छोटी बच्ची स्कूल ड्रेस पहने दो छोटी किए मासूम सी गुड़िया।
"दादू मुझे स्कूल नहीं जाना, दादू अरे मेरी बच्ची आगर तुम स्कूल नहीं जाओगी तो बड़ा आदमी कैसे बनोगी तभी तारा मुंह बनकर बड़ा औरत यह सुनकर दादू मुस्कुराकर hmm मेरी मां बड़ी और कैसे बनोगी इस केलिए तो पहले तुम्हे बहुत मेहनत करनी होगी इस लिए चलो स्कूल तारा हर मानकर उनके साथ स्कूल के लिए निकल गई।
आज मौसम काफी ठंड थी हल्का कोहरा।
वो अपने दादू के साथ उनकी पुरानी स्कूटर पर स्कूल के लिए निकली वो पीछे बैठी थी उसका स्कूल वहां से काफी दूर था इस लिए उसे घर से जल्दी निकलना पड़ता था
स्कूटर ठंडी हवा को चीरता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। रास्ते में पेड़ों की टहनियों पर ओस की बूंदें लटक रही थीं, जैसे किसी ने चुपचाप मोती सजा दिए हों।
अचानक तारा की नज़र फुटपाथ पर बैठी एक छोटी बच्ची पर पड़ी। वो तारा से भी छोटी थी — शायद चार साल की। वो फटे पुराने कपड़े पहने, एक पुरानी किताब को बड़े ध्यान से देख रही थी, लेकिन उसके पास पेंसिल तक नहीं थी।
पास ही उसकी मां कूड़े के ढेर में कुछ तलाश रही थी।
तारा ने दादू की कमर पकड़ ली, "दादू, वो बच्ची स्कूल क्यों नहीं जा रही?"
दादू ने स्कूटर थोड़ी देर के लिए धीमा किया और बोले,
"क्योंकि उसके पास वो सब नहीं है जो तुम्हारे पास है — स्कूल, बस्ता, और कोई जो उसे वहां तक छोड़ने आए।"
तारा कुछ देर चुप रही।
फिर धीमे से बोली, "तो क्या वो कभी बड़ी औरत नहीं बन पाएगी दादू?"
दादू ने गहरी साँस ली, "अगर कोई उसके साथ हो, जो उसे सपने देखना सिखाए, तो शायद बन जाए। लेकिन हर किसी को ये मौका नहीं मिलता, बिटिया। और इसलिए... तुम्हें अपना मौका नहीं गँवाना चाहिए।"
तारा ने पीछे मुड़कर उस बच्ची को फिर देखा — उसकी आँखों में अब जिज्ञासा नहीं, जिम्मेदारी थी।
"दादू," तारा बोली, "एक दिन मैं बड़ी होकर ऐसी बच्चियों के लिए स्कूल खोलूंगी।"
दादू मुस्कुराए — "मेरी मां आज सच में बड़ी बात कह गई।"
तारा ऐसे ही हस्ती मुस्कुराती अपनी बातों में लगी थी कि तभी उनका स्कूटर रोका तारा ने पूछा क्या हुआ दादू तभी दादू बोलो सिग्नल रेड हो गया है यह सुनकर तारा मुस्कुराकर वेरी गुड दादू आप ऐसे ही मेरा नाम रोशन करो यह सुनकर उसके दादू बोले क्या तभी तारा हा आप जानते हो मेरी क्लास टीचर कहती है कि हम सबको सड़कों के नियमों का पालन करना चाहिए और जो लोग इन नियमों का पालन करते है वो वेरी गुड लोग होते है यह सुनकर उसके दादू के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई वो बोले सही कहती है मैडम जो लोग अच्छे होते है वो कभी नियम नहीं तोड़ते।
ऐसे ही तारा हस्ते खिलखिलाता अपने दादू से बातें कर रही थी कि सिग्नल ग्रीन हो गया कि तभी उसके सामने से एक लड़का गुजरा उस लड़के के लहराते
बाल वो अपनी साइकिल से हवाओं को चीरता हुआ गुजरा तारा बस उसे देखती रह गई ।
उसके दादू ने भी स्कूटर चालू की और आगे बढ़ने लगे कुछ समय बाद वो स्कूल पहुंची
कुछ समय बाद वो स्कूल पहुँच गई।
स्कूल की बड़ी-सी बिल्डिंग के आगे तारा की आँखें थोड़ी सहम गईं, पर फिर उसने अपने दादू का हाथ और ज़ोर से पकड़ा।
गेट पर पहुँचकर दादू ने स्कूटर रोकी।
"चलो बिटिया, अब जाओ, स्कूल की घंटी बजने ही वाली है,"
दादू ने प्यार से कहा।
तारा एक पल को खड़ी रही, फिर धीरे-धीरे स्कूटर से उतरी।
फिर वो मुड़ी, दोनों हाथों से अपने दादू की टोप वाली टोपी को थोड़ा सीधा किया और बोली —
"दादू, टोपी टेढ़ी हो गई थी!"
दादू हँस दिए — "अरे मेरी नन्ही स्टाइल गुरु!"
तारा ने अपने छोटे-छोटे हाथों से दादू को कसकर गले लगाया और धीरे से उनके कान में बोली —
आप यहीं रहना, मैं जल्दी आ जाऊँगी, ओके?
ठीक है मेरी जान,दादू ने उसकी पीठ थपथपाई।
फिर तारा दो कदम पीछे हटी, मुस्कराई और दोनों हाथों से ऐसे "बाय" किया जैसे कोई रानी सलामी दे रही हो।
बाय,बाय दादू! बाय मेरी रानी!" दादू ने कहा और तब तक हाथ हिलाते रहे जब तक तारा स्कूल के गेट के अंदर नहीं चली गई।
दादू वहीं रुके रहे — मन ही मन सोचते हुए कि ये नन्ही मुस्कान ही उनकी सुबह की सबसे बड़ी रोशनी है।
तारा स्कूल में दाख़िल हुई तो सामने से उसकी सबसे प्यारी दोस्त नीमा भागती हुई आई।
तारा! नीमा ने उछलते हुए कहा, "तू आज देर से आई!"
नहीं, मैं तो टाइम से आई! बस रास्ते में एक... एक... हवा वाला लड़का दिखा!" तारा ने धीरे से कहा।
"हवा वाला?" नीमा की आँखें गोल हो गईं, "मतलब जिन्न?!"
नहीं बेवकूफ!तारा खिलखिलाई, "साइकिल वाला! उसके बाल ऐसे उड़ रहे थे जैसे वो उड़ने वाला हो! दोनों जोर से हँस पड़ीं।
तारा ने अपना छोटा सा बैग बेंच पर रखा, और जैसे ही बैठी, उसने धीरे से पूछा —
नीमा, तू बड़ी होकर क्या बनेगी?"
"मैं तो डॉक्टर!" नीमा बोली, "क्योंकि मेरी मम्मी कहती हैं कि सबको ठीक करना चाहिए।"मैं भी कुछ बनूंगी..." तारा सोच में डूबी हुई बोली, "शायद... उड़ने वाली मैडम!"
वो क्या होती है?" नीमा हँसी।जो साइकिल वालों से भी तेज़ उड़ती है!" तारा ने मुस्कराकर कहाऔर फिर घंटी बज गई।दोनों अपनी कुर्सियों पर बैठ गईं, लेकिन तारा का मन अब भी हवा में था...
वो सोच रही थी —
/क्या वो लड़का भी किसी नीमा से बातें कर रहा होगा?/
"तो क्या लगता है कौन है ? वो तारा का साइकल वाला ? तो आज के लिए बस इतना ही आज का जीवन तारा के नाम था और कल शायद आपके नाम हो सकता है
"आज की छोटी-सी दुनिया तारा के नाम थी...
लेकिन कौन जाने, कल की कहानी शायद आपके नाम हो"।
✨ मिलते हैं अगली शाम — एक नई कहानी, एक नए एहसास के साथ कुछ और बातों के साथ।"
कभी आपकी तो कभी मेरी.....
💮तारा की कहानी यहीं नहीं रुकती...
अगर आप भी जानना चाहते हैं कि आगे क्या हुआ,
और अगर आप चाहते हैं कि मैं तारा की इस कहानी को आगे लिखूं,
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आपका एक छोटा सा संदेश मुझे और लिखने की ताक़त देता है।"
तो ठीक फिर ✨ "आज की कहानी उसके नाम थी...
कल की शायद आपके नाम हो।
मिलते हैं अगली शाम, कुछ नई बातों के साथ।"
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और हा मेरी कहानी को अपना फीडबैक देना मत भूलियेगा कमेंट करे।❤️
🌸 लेखिका
शिवांगी
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❤️ पढ़ने के लिए शुक्रिया।