ishq, pagalpan yah hai junoon - 2 in Hindi Love Stories by Shivangi Vishwakarma books and stories PDF | इश्क, पागलपन, यह है जूनून... - 2

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इश्क, पागलपन, यह है जूनून... - 2

सुबह के सात बज रहे थे। एक लड़का घाट किनारे बैठे पानी देख रहा था। उसे देखकर लग रहा था कि वह किसी मुश्किल में है।
वो एक गहरी सोच में डूबा था कि तभी एक आदमी पीछे से आया, बोले — "और विक्रम बाबू, कैसे हैं आप?"
यह सुनकर विक्रम, जो कि बहुत गहरी सोच में डूबा था, वो पीछे मुड़कर देखता है और बोला — "अरे ठाकुर साहब, कैसे हैं आप?"
यह सुनकर ठाकुर — "मैं तो ठीक हूँ, पर आप कुछ ठीक नहीं लग रहे। क्या बात है? सब ठीक तो होना..."

यह बोलते हुए ठाकुर विक्रम के पास बैठ गए।
"विक्रम जी, सब ठीक है?"
"ठीक है..."
"पर आपको देखकर लगता नहीं... वैसे क्या प्लान है आगे का? ग्रेजुएशन कंप्लीट हो गई है, अब आगे क्या सोचा है आपने?"
विक्रम — "जी बस यही सोच रहा था। सोचा है कि मुंबई जाऊँ काम के लिए।"
"अरे वाह, अच्छा इरादा है आपका। क्योंकि मुंबई सपनों का शहर कहलाता है। देखिएगा, आपका भी सपना वहाँ जरूर पूरा होगा।"
विक्रम मुस्कुराता हुआ — "जी..."
ठाकुर — "तो कब जा रहे हैं मुंबई?"
"जी एक दोस्त है, उससे बात की है। बोला है शाम तक बताएगा। उसका भी इस दुनिया में कोई नहीं है, मेरी तरह। जॉब करता है वहाँ पर, खुद का घर भी है। उसे बात की थी मैंने, बोला है शाम को बताएगा टिकट के बारे में। हो सकता है परसों की टिकट निकल जाए। बस एक बार टिकट निकल जाए तो निकलने का सोचा है। कुछ दिन उसके साथ रहूँगा, उसके बाद जॉब लगने के बाद कोई घर देख लूँगा।"
ठाकुर — "अच्छा, बहुत अच्छे। मैं भगवान से प्रार्थना करूँगा कि आपका काम सफल हो..."
विक्रम — "जिसके आप जैसे दोस्त हो, उनका काम कभी नहीं बिगड़ता ठाकुर साहब। बहुत मदद की है आपने मुझ अनाथ की। दुकान पे काम दिलवाकर, जिसकी वजह से कॉलेज–स्कूल का खर्च निकल गया।"
ठाकुर — "विक्रम, तुम एक मेहनती इंसान हो। मुझे पूरा विश्वास है तुम एक दिन सफलता की सीढ़ियाँ जरूर चढ़ोगे और एक बड़े आदमी बनोगे।"
विक्रम — "जी, शुक्रिया।"
तभी ठाकुर — "अच्छा चलिए, चलता हूँ। दो हफ्ते के लिए मेरठ जा रहा हूँ। दोपहर में निकलना है।"
विक्रम — "अच्छा, चलिए अलविदा... अब पता नहीं कब मुलाकात हो।"
ठाकुर — "सही कह रहे हो, क्योंकि जब आप जाओगे, मैं मेरठ पहुँच चुका होऊँगा।"
विक्रम मुस्कुराकर — "जी सही कह रहे हैं, बहुत याद आएगी यहाँ की। पता नहीं दुबारा कब आओं।"
ठाकुर — "ऐसा क्यों बोल रहे हो? आते रहना।"
विक्रम — "जी, यह रहने की जो वजह थी वो सालों पहले खत्म हो चुकी। मेरी माँ, जिनका इस दुनिया में मेरे अलावा कोई नहीं था, पर भगवान ने वो जीने की वजह भी छीन ली। मैं मुंबई भी अपने जीने की वजह के लिए जा रहा हूँ — यानी पैसा और सफलता... अपना नाम और पहचान बनाने।"
ठाकुर — "हम ठीक विक्रम बाबू, अब हम भी चलते हैं, वरना ट्रेन के लिए देर हो जाएगी।"
विक्रम — "जी, अलविदा। अपना ख्याल रखिएगा ठाकुर साहब।"
ठाकुर — "आप भी अपना ख्याल रखिएगा, और हो सके तो अपने इस दोस्त को याद रखिएगा।"
विक्रम मुस्कुराकर — "मैं आपको कभी नहीं भूल सकता। बहुत कुछ किया है आपने ठाकुर साहब।"
ठाकुर वहाँ से चले गए।

तभी विक्रम का फोन बजा। विक्रम ने देखा, उस पर श्लोक नाम शो हो रहा था। उसने फोन उठाया —
"Hello..."
श्लोक — "विक्रम, तुम्हारी टिकट निकल गई कल शाम की।"
विक्रम मुस्कुराया — "थैंक्यू यार, तू सोच भी नहीं सकता तूने क्या किया है मेरे लिए।"
श्लोक — "अरे यार प्लीज़ ये फ़िल्मी डायलॉग्स बाद में, अभी बस तू मुंबई आ जा।"
विक्रम — "मजाक नहीं कर रहा, मैं तुझे जितना शुक्रिया कहूँ कम है।"
श्लोक — "अच्छा बाबा, मुझे शुक्रिया तो यहाँ आकर कर देना तेरी नौकरी लगने के बाद।"
विक्रम — "हम्म ठीक।"
श्लोक — "अच्छा चल, तो अब कल मिलते हैं। चल, बाय।"
विक्रम — "बाय।"


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कैसा होगा विक्रम का सफर मुंबई में? कैसे मिलेगी चाहत और विक्रम की जोड़ी? जानने के लिए पढ़िए —
❤️ इश्क पागलपन — यह है जुनून

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🌸 लेखिका — शिवांगी