एक कलाकार कच्ची पगडंडी पर अपने हाथ में एक पन्ना और पेन लिए झूलता हुआ जा रहा था की अचानक एक सुन्दर लड़की उसे पास आती दिखी I वह उसे देखकर बिलकुल सममोहित हों उठा और लम्बी लम्बी साँसे लेते हुए उसके करीब जा पहुँच.. वह सांसे इस कद्र लें रहा था जैसे जेस्मिन फूल की पंखुड़ी को सूंघ रहा हों.. वह एक और सांस भीतर खिंचते हुए उसके बिलकुल करीब जा पहुँचा...
"ये कागज़, क़लम क्या, अगर मेरे पास केनवास ब्रश भी होते तो मैं आपकी सुंदरता को नहीं दर्शा पाता। आपके मनमोहक चेहरे ने मेरे हृदय को मोह लिया है, लेकिन ये केवल आकर्षण है, प्रेम नहीं। मैं आपके साथ चलना चाहता हूँ कुछ दूर। मुझे बाईं ओर जाना है, परन्तु आप दाईं ओर जा रही हैं। मैं आपके साथ विपरीत दिशा की ओर चलने के लिए भी तैयार हूँ, परन्तु वहाँ से मेरा गंतव्य दूर हो जाएगा। लेकिन आप फ़िक्र न कीजिए,मुझे यहाँ के शॉर्टकट पता हैं, सो जल्दी पहुँच जाऊँगा।
आप चलेंगी मेरे साथ? मेरी दोस्त बनकर? मेरी प्रिय कल्पना? सुप्रिय दर्शी? आपको बताता चलूँ कि मेरी कल्पनाएँ काफ़ी स्पष्ट हैं, यहाँ तक कि मेरी दृष्टि से भी उच्च दर्जे की। मैं आपको भूल नहीं सकता... आपका मनमोहक चेहरा मुझे सदैव याद रहेगा..."
कलाकार ने बहुत देर बाद बोलना बंद किया और लम्बी साँस ली।
"इतनी तारीफ़... हृदय की अथाह गहराइयों से शुक्रिया । आप मेरे लिए अपनी दिशा न बदलें। आप अपने गंतव्य की ओर ही चलें। शॉर्टकट हमेशा सही नहीं होते, ये भटका देते हैं। मैं यहाँ प्रत्येक रास्ते से गुज़री हूँ, परिचित हूँ। यहाँ शॉर्टकट हमेशा गहरी खाइयों की ओर जाते हैं। पगडंडियों में नुकीले काँटे हैं। और आप तो पूर्व में हमें देख के भटक चुके हैं। आप बेवजह मौत के साथ क्यों चलना चाहते?
प्रिय राजकुमार, प्रिय अनंत खोजी, आपके पास अपनी चित्रकारी में, अपने लेखन में बहुत सी काल्पनिक, सुंदर स्त्रियाँ मिलती होंगी, मिलेंगी। ज़रा उन पर अपना ध्यान केंद्रित करें, उनमें मुझे न खोजें।
आकर्षण प्रेम का पहला रूप अथवा चरण है, और इस युग में हृदय कम ही देखे जाते हैं। और आप तो कब से मेरे इर्द-गिर्द अर्द्ध व्रत में झूल रहे हैं। मेरे हृदय के निलयों और आलिंद में हमेशा मेरे टूटे हुए घर के टुकड़े हैं, जो हमेशा गहरी साँस के साथ और बिखर जाते हैं।
मेरे मस्तिष्क में हमेशा भूख, ग़रीबी, ज़िम्मेदारियों का बोझ आदि से तनाव बना रहता है। ये सब मेरा पीछा न छोड़ेंगे, और न मैं छोड़ना चाहती हूँ। इनमें मैं किसी और को शामिल नहीं कर पाऊँगी — कभी नहीं।
मैं आपके क़तई लायक नहीं हूँ, या किसी के भी लायक नहीं। मैं अपने घर का इकलौता सहारा हूँ।
प्रिय राजकुमार, प्रिय दर्शी, ऐसे प्रस्ताव मुझे अक्सर आते हैं — ये सुंदर वाक्य, ये मनमोहक शब्द — ये मेरे हृदय को नहीं छूते।
मुझे छूती है मेरे पिता की छाती चीर कर आने वाली खाँसी, मेरे छोटे भाइयों के भूख से बिलखने की चीख। ये छुअन हमेशा मुझे भीतर तक हिला देती है।
और रात गुज़रती है — 'कल कहाँ भटकना है' — इस असमंजस में।
आप समझ रहे हैं ना मेरी हालत?
मेरे घर के हालात नहीं हैं प्रेम करने के लिए..."
सुन्दर लड़की ने बहुत भारी मन से चलना शुरू किया...
"हे भगवान! आपने तो मुझे ग़लत ही समझ लिया... मैं केवल आपकी सुंदरता का दीवाना हूँ..."
कलाकार ने लड़की की ओर चिल्लाते हुए कहा। लड़की कुछ देर के लिए रुक जाती है पर फिर वापस चलना शुरू करती है, लेकिन धीमी चाल से...
कलाकार उसके पीछे-पीछे चलते हुए बोलना शुरू करता है —
"क्या ये ठीक था? क्या ये ठीक था जो आपने कहा? कितना ज़्यादा सोचती हैं आप! मैंने पूर्व ही कह दिया था ना — ये सिर्फ आकर्षण है, प्रेम नहीं। और आपको भी बात में अपनी तूलिका और क़लम में बाँध लेता हूँ कि आकर्षण प्रेम का पहला रूप है, परन्तु ये पूर्णतः प्रेम तो नहीं है ना?
मैंने आपका साथ चाहा है — केवल आपके गंतव्य तक या मेरे गंतव्य तक। इस बीच मैं कुछ शब्द, कुछ रंग लेना चाहता हूँ आपसे... तो क्या ये ग़लत है? क्या मैं ग़लत कह रहा था? पता है, आप मुझे ग़लत समझ रही हैं। अक्सर मेरे साथ ऐसा ही होता है।
परन्तु आपके सुंदर रूप ने हृदय को छू लिया है। ऐसा लगता है हृदय के प्रत्येक हिस्से के खाँचे भर आए हों। इसे आप प्रेम न समझना — ये प्रेम नहीं है। मैं काफ़ी खुले मस्तिष्क का व्यक्ति हूँ। अपने हृदय में कोई बात न छुपा सकता, जो दिल में आया कह देने वाला हूँ।
सच्चे और अच्छे लोगों में यही सबसे बड़ी कमी होती है। आप मेरी भावनाएँ समझ रही हैं ना? समझ रही हैं ना कि मैं कहना क्या चाहता हूँ? समझ रही हैं ना कि ये प्रेम नहीं है?"
लड़की रुक जाती है और सोच में पड़ जाती है।
कुछ देर की चुप्पी के बाद वह बोलना शुरू करती है —
"अरे! आप तो पीछे ही पड़ गए...आप जैसे लोग ख़तरनाक होते हैं।
पहले कहते हैं कि ये प्रेम नहीं — और फिर धीरे-धीरे मन के चारों कोनों में बस जाते हैं।
बताओ, अगर ऐसा हो गया तो मैं क्या करूँगी? मेरा घर कौन संभालेगा? मेरे पिता को, मेरे भाइयों को?
मैं आपकी कविता नहीं बन सकती।मेरा जीवन ही असमाप्त, दुखभरा गद्य है — जिसे मैं बदल नहीं सकती। ना मैं अपने जीवन के बेरंग रंगों से आपकी तूलिका में केनवास पर छप सकती हूँ।
ठीक है आप केवल कुछ दूर ही साथ चलेंगे ना?
तो चलिए — मेरे गंतव्य की ओर। मगर देख लेना — कोई अन्य मार्ग से वापस नहीं आना।आपको इसी मार्ग से आना होगा,अन्यथा आप भटक जाएँगे...वैसे आप हमे देख कर पहले ही भटक चुके हैँ "वह यह वाक्य दोहराकर हंसने लगती है ।"
(Next part soon...)