O Mere Humsafar - 9 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 9

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ओ मेरे हमसफर - 9

(रात के सन्नाटे में कुमुद और वैभव अपने भाई की बेटी रिया के निर्णय पर चिंतन करते हैं। कुमुद को लगता है कि रिया ने आदित्य के रिश्ते के लिए 'हाँ' कहकर उनसे दूरी बना ली है, जबकि वैभव का मानना है कि रिया ने यह फैसला परिवार को दुःख से बचाने के लिए लिया होगा। दोनों महसूस करते हैं कि उनके और रिया के रिश्ते में कहीं कोई दरार आ गई है — प्यार में नहीं, पर भरोसे में।उधर, रिया अकेले में अपने आँसुओं के साथ है, लेकिन उसे अपनी बहन प्रिया की खुशी के लिए त्याग करने का सुकून है। वह जानती है कि कुणाल राठौड़ वही है जिसे प्रिया दिल से चाहती है।प्रिया मृणालिनी के घर बेपरवाह हँसी-ठिठोली में डूबी हुई है, और अनजाने में एक ऐसी सुबह की ओर बढ़ रही है जो उसके जीवन को बदल देगी। रास्ते में कुणाल की एक झलक उसे रोमांचित कर देती है।घर लौटने पर, जब प्रिया को कुणाल राठौड़ के रिश्ते की बात बताई जाती है, वह हर्षित हो जाती है। पर जैसे ही उसे पता चलता है कि रिया ने आदित्य के लिए 'हाँ' कह दी है, वो चौंकती है, क्योंकि उसे याद आता है कि रिया तो IAS बनना चाहती है। प्रिया को रिया के इस फैसले के पीछे कोई गहरी बात महसूस होती है, और वह व्याकुल होकर उससे जवाब मांगने के लिए रिया के कमरे की ओर बढ़ती है।)

प्रिया धीमे कदमों से दीदी के कमरे में दाख़िल होती है। उसके चेहरे पर घबराहट है, आंखें जवाब तलाश रही हैं।

रिया खिड़की के पास खड़ी है — ठंडी हवा से उड़ते बाल, पर चेहरा सख़्त शांत। भीतर गूंजती उथल-पुथल बस आंखों से ज़ाहिर होती है।

प्रिया (संयमित पर धड़कते स्वर में): दीदी… आपसे कुछ पूछना है।

रिया (हल्की मुस्कान, पर आवाज़ भारी): पूछो प्रिया… क्या बात है जो मेरी बहन की आवाज़ काँप रही है?

प्रिया (संकोच से, धीमे): आप… आदित्य राठौड़ को चाहती हैं?

रिया की पलकें थमती हैं। उसकी नज़र खिड़की से हटकर सीधे प्रिया की आँखों में टिक जाती है। एक पल चुप्पी… फिर वह धीमे-धीमे प्रिया के करीब आती है।

रिया (धीरे और साफ़ स्वर में):जब पहली बार देखा था उसे…ऐसा लगा था — यह वो है, जो मुझे देखे बिना भी समझ सकेगा। बस नज़रों से… बिना कहे।

प्रिया (हल्की हँसी में उलझन छुपाते हुए): पर आपने तो कभी कुछ बताया ही नहीं…

रिया (नरमी से): सबकुछ बताया नहीं जाता, प्रिया। कुछ ख्वाब बस… आँखों में पलते हैं। और तू तो मेरी आँखें भी नहीं पढ़ सकी।

प्रिया शर्म से नजरें चुरा लेती है। कुछ क्षण चुप्पी में बीतते हैं।

प्रिया (धीरे से): मुझे लगा… आप तो IAS बनना चाहती हैं।

रिया (थोड़ी देर रुककर, निगलती हुई): हां… चाहा था। पर कभी-कभी किसी और की खुशी में ही अपने अधूरे ख्वाब पूरे होते हैं।

प्रिया (संशय से): और अगर वो खुशी… झूठी निकली तो?

रिया (उसके हाथ पकड़ते हुए): तो क्या? अगर तू मुस्कराएगी… तो मेरे हर त्याग की कीमत वसूल हो जाएगी।

प्रिया दीदी के गले लग जाती है। उसकी आंखों में आँसू हैं, पर दिल में राहत नहीं।

प्रिया (धीरे से): कुछ ठीक लग नही रहा है दी… कुछ टूटा नहीं है, फिर भी सब बिखरा-बिखरा सा है।

रिया (हँसते हुए हल्का माहौल बनाती है): अरे! देवरानी बनी नहीं, और नखरे शुरू?

प्रिया (हँसते हुए तकिया उछालती है): दीदी…!

कमरे में बहनों की हँसी गूंजती है। बाहर खड़े वैभव और कुमुद एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा उठते हैं।

वैभव (मोबाइल मिलाते हुए): बिन्नी बहन, ललिता जी से कह देना… हमें ये रिश्ता मंज़ूर है।

फोन रखते ही कुमुद वैभव को गले लगा लेती है। कमरे के भीतर रिया की मुस्कान अब भी गूंज रही है — लेकिन उसकी पीठ कैमरे की ओर है… और चेहरा — एक आंसू धीरे से गाल तक बह गया है।

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राठौड़ मेंशन – उत्सव की तैयारी

हवेली रोशनी में नहा रही है। हर कोना ख़ुशी का पैग़ाम लिए हुए है। गुलाब और गेंदे की लड़ी हर दीवार से लटक रही है।

आदित्य आईने के सामने खड़ा है। बाल संवारता है, और मुस्कुराता है — उसकी आँखों में रिया की तस्वीर तैर रही है।

वह एक पेंटिंग के पास जाता है — रिया की बनाई हुई। रुकता है। मुस्कुराता है — जैसे उस तस्वीर में वह अपना भविष्य देख रहा हो।

तभी मुख्य दरवाज़े से कुणाल दाख़िल होता है। सजी-धजी हवेली पर उसकी निगाहें कुछ देर टिकी रहती हैं। भौंहें थोड़ी सिकुड़ती हैं। वह चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ता है।

कमरे में आते ही दरवाज़ा बंद करता है — तभी आदित्य बिना दस्तक के अंदर आ जाता है।

आदित्य (उत्साह से): भाई! इस बार मम्मी ने डबल गेम खेला — एक साथ सगाई! वह अलमारी से एक रेशमी सूट निकालकर उसकी ओर बढ़ाता है। "आज की शाम — राठौड़ ब्रदर्स की शाम होगी!"

कुणाल बस हल्का मुस्कराता है, फिर चुपचाप सूट थाम लेता है। आदित्य चला जाता है। कुणाल वहीं खड़ा रह जाता है।

वह टेबल पर रखी मां के हाथों प्रिया की भेजी गई तस्वीर उठाता है। देर तक उसे देखता है।

कुणाल (धीरे से, लगभग बुदबुदाते हुए): क्या तुम… सच में खुश हो, प्रिया?

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सगाई की शाम

हवेली जगमगा रही है। गीत, हँसी, और ढोल की थापों से शाम गूंज रही है।

कुमुद थाल में आरती सजाकर दरवाज़े पर खड़ी हैं। बिन्नी और बाकी महिलाएँ मंगलगीत गा रही हैं।

सीढ़ियों से धीरे-धीरे उतरती हैं दो बहनें—

रिया: गुलाबी साड़ी में आत्मविश्वास की मिसाल, सिर ऊँचा, चाल दृढ़।

प्रिया: नीली साड़ी में नज़रें झुकी हुईं, मुस्कराने की कोशिश, और लंगड़ाहट छुपाती धीमी चाल।

रिया को देख आदित्य की आँखें चमक उठती हैं — मुस्कराहट खुद-ब-खुद फैल जाती है।

पर जब कुणाल प्रिया को देखता है — उसके कदम ठिठक जाते हैं।

कुणाल (मन में):

"ये… ये वही लड़की…

जिससे उस दिन…"

प्रिया की चाल की असमानता उसकी नज़र में दर्ज हो जाती है। वही आँखें… वही मुस्कान…

उसका चेहरा बुझ जाता है।

कुणाल (भीतर से टूटता हुआ): "मां ने… मेरे लिए ये रिश्ता तय किया? मुझे बताया भी नहीं कि ...'?"

उधर प्रिया, कुणाल की निगाह खुद पर टिकी देख रुक जाती है।

प्रिया (मन में):“कुणाल… मेरे सामने… मेरे लिए?”

वह मुस्कराने की कोशिश करती है, लेकिन होंठ हिलते ही नहीं। उसकी नज़रें अब जवाब माँग रही हैं — और दिल अजीब-सा कांप रहा है।

दूर खड़ी ललिता सब देख रही हैं। उनकी आँखें पहले कुणाल पर, फिर प्रिया पर… और अंत में — रिया पर टिक जाती हैं। उनका चेहरा भावशून्य है, पर मन में जैसे शतरंज की कोई चाल पूरी हो चुकी हो।

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1. क्या रिया अपनी बहन प्रिया के अधूरे प्रेम के लिए अपने सपनों का गला घोंट देगी?

2. क्या प्रिया, रिया के त्याग को जानने के बाद, अपने प्रेम को फिर से खोने देगी?

3. जब कुमुद और वैभव को रिया के फैसले की सच्चाई पता चलेगी — तो क्या वे आदित्य से उसका विवाह होने देंगे?

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफर''।