Ch 7 : भुलाया गया अनुष्ठान
मंदिर के अंधेरे तहखाने से ऊपर लौटने के बाद भी पाँचों की साँसे अब भी भारी थीं। दिमाग़ में गूंजती वो रहस्यमयी आवाज़ — “तुमने फिर कदम रखा… और अब मैं देख रहा हूँ” — हर किसी के भीतर किसी न किसी तरह की बेचैनी छोड़ गई थी।
मीरा की हथेली अब शांत थी, लेकिन उसमें बना चिन्ह नीला होकर स्थिर रूप में चमक रहा था — जैसे कोई निष्क्रिय मंत्र जो जागने की प्रतीक्षा कर रहा हो। मंदिर का ऊपरी भाग अपेक्षाकृत शांत था, लेकिन हवा अब भी भारी और बोझिल लग रही थी।
रवि ने धीरे से पूछा, “क्या वो हमें देख सकता है, मीरा?”
मीरा ने सिर झुकाया, “अब देख ही नहीं सकता… वो हमें महसूस कर सकता है। हमने उसकी दुनिया में कदम रखा है, भले ही हम उसे जागने नहीं देना चाहते थे।”
तेजा ने कहा, “हमें अब उस रहस्य का पता लगाना होगा — जो अनुष्ठान कभी पूरा नहीं हुआ, लेकिन जिसकी वजह से ये सब शुरू हुआ।”
यामिनी ने सहमते हुए पूछा, “क्या तुम उस तांत्रिक की बात कर रही हो… जिसे 'छठा' कहा गया है?”
“हाँ,” राघव बोला। “हम निश्ठा को समझते रहे, उसकी आत्मा को खोजते रहे, लेकिन असली कहानी उससे कहीं गहरी है।”
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📜 एक भूली हुई पोथी
मीरा को याद आया कि मंदिर के पश्चिमी भाग में एक पुरानी पुस्तकालयनुमा कोठरी थी — जहाँ कुछ टूटे-फूटे शिलालेख और ग्रंथ रखे थे। वे सभी उस कोठरी में पहुँचे। अंदर घुप्प अंधेरा था, लेकिन जैसे ही दीया जलाया गया, दीवारों पर अंकित संकेत चमकने लगे।
तेजा ने एक लकड़ी की शेल्फ से एक धूल भरी पोथी निकाली। उस पर संस्कृत में लिखा था —
“त्रिलोक अग्नि तंत्र विधि”
“यह तंत्र अनुष्ठानों की सबसे पुरानी विधियों में से एक है,” मीरा बोली। “ऐसा कहा जाता था कि इसे केवल पांच ‘चयनित आत्माएं’ ही पूरा कर सकती थीं।”
राघव ने एक पन्ना पलटा और फुसफुसाया, “यहाँ लिखा है — ‘पंच आत्माओं का समर्पण ही छठे द्वार को बंद कर सकता है… पर यदि कोई लालच से मार्ग बदले, तो छठा मुक्त हो जाएगा।’”
सभी सन्न रह गए।
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🔥 धोखे का इतिहास
मीरा की आँखों में एक बीते जीवन की छवि कौंधी — पाँच लोगों का वृत्त, बीच में एक अनुष्ठानिक अग्नि, और एक व्यक्ति जो चुपके से कुछ मंत्र बदल रहा था।
“मुझे याद आ रहा है,” मीरा ने काँपती आवाज़ में कहा। “मैं… उनमें से एक थी। हमने उस तांत्रिक को बाँधने के लिए एक अनुष्ठान किया था। लेकिन… पाँचवाँ सदस्य हमें धोखा दे गया। उसने अपना स्थान उस तांत्रिक को सौंप दिया… और अनुष्ठान पूरा होते-होते, तांत्रिक ने अपनी आत्मा को इस मंदिर में बंद कर दिया। लेकिन वो कभी मरा नहीं।”
“इसलिए ये मंदिर अब तक जीवित है,” यामिनी बोली। “यह सिर्फ़ पत्थरों से बना ढाँचा नहीं है — यह एक आत्मा की कैदगाह है।”
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⚠️ दूसरी आत्मा की चेतावनी
रवि को अचानक झटका लगा। उसकी आँखें कुछ पलों के लिए पलट गईं, और उसके होठों से एक औरत की आवाज़ निकली — जो मीरा की नहीं थी।
> “वो केवल शक्ति नहीं चाहता… वो पुनर्जन्म चाहता है… एक पूर्ण देह में…”
रवि होश में आते ही पीछे हट गया। “क्या… क्या मैंने कुछ कहा?”
मीरा ने घबराकर उसकी ओर देखा। “वो… निश्ठा थी। वो हमसे कुछ कहना चाहती है।”
तेजा ने डायरी निकाली, और देखा — निश्ठा की आत्मा ने उस पर कुछ नया लिखा था।
> “यदि छठा जागा, तो वह पहले उन पाँचों को खोजेगा… और सबसे पहले… कुंजी को।”
“कुंजी?” यामिनी ने पूछा।
मीरा ने चुपचाप अपना हाथ उठाया। “मैं…”
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🔐 अगला सुराग
ग्रंथ के अंतिम पृष्ठ में एक चित्र था — एक चक्र, जिसमें पाँच अलग-अलग रंगों की बिंदियाँ थीं। और बीच में एक नीली ज्वाला।
तेजा ने कहा, “हमें अब उन पाँच आत्माओं की पहचान करनी होगी। अगर हम उन्हें जागृत कर पाएं, तो शायद हम अनुष्ठान को फिर से पूरा कर सकते हैं — लेकिन इस बार बिना धोखे के।”
“और अगर न कर पाए?” राघव ने पूछा।
“तो वो छठा… इस संसार में वापस लौट आएगा,” मीरा बोली।
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🌒 अग्नि का चिन्ह
मंदिर की एक दीवार पर हल्की सी दरार से रोशनी आ रही थी। वे जब उसके पास पहुँचे, तो देखा कि एक गुप्त कक्ष था — जिसमें एक अग्नि कुण्ड अब भी धीमे-धीमे जल रहा था।
“ये वही स्थान है जहाँ पिछला अनुष्ठान हुआ था,” मीरा ने धीरे से कहा।
कुंड के चारों ओर ताम्र पत्रों पर पाँच नाम अंकित थे — और एक स्थान खाली था।
तेजा ने गंभीरता से देखा, “जो पाँचवाँ था… उसने अपना नाम छिपा लिया था।”
मीरा ने ध्यान से उस खाली स्थान को देखा और उसकी आँखें फटी रह गईं।
“यह वही व्यक्ति था जिसने हमें धोखा दिया था… और उसकी आत्मा अब भी कहीं आसपास है।”
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📣 अगली चेतावनी
अचानक मंदिर की घंटी अपने-आप बजने लगी। हवा तेज़ हो गई, और मंदिर की दीवारों से फिर वही आवाज़ गूंजने लगी —
> “एक बार फिर... पाँच इकट्ठा हो रहे हैं... क्या इस बार बलिदान पूरा होगा, या धोखा फिर जन्मेगा?”
रवि ने मीरा की ओर देखा। “हमें समय नहीं है। हमें जल्द-से-जल्द बाकी आत्माओं की पहचान करनी होगी।”
मीरा ने अपनी हथेली की ओर देखा — वहाँ अब एक और रेखा उभर आई थी। पहली के ऊपर एक और चिन्ह — जैसे कोई चेतावनी हो।
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🕊️ विश्वास की पहली परीक्षा
मंदिर के एक कोने में एक पुराना पत्थर का दरवाज़ा था, जिस पर लिखा था:
> “जो इस द्वार को पार करे, वही अपने भीतर का सत्य देखेगा।”
मीरा ने बिना हिचक दरवाज़ा खोला।
अंदर अंधकार नहीं था — बल्कि एक हल्की-सी नीली रौशनी। बाकी सभी उसके पीछे-पीछे गए।
एक छाया दीवार पर उभरी — वह किसी और की नहीं, बल्कि मीरा की थी… पर आँखें भूरी नहीं, नीली थीं… और चेहरा शांत नहीं, क्रूर था।
“ये मैं नहीं हूँ…” मीरा ने कांपते हुए कहा।
“ये तुम हो सकती थी,” एक आवाज़ आई।
“अगर तुमने भी उस तांत्रिक की तरह शक्ति का चयन किया होता…”
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🔚 अंत की आहट
वे सब वापस मुख्य कक्ष में लौट आए।
राघव ने धीरे से कहा, “हमने जो देखा, वो डरावना था… पर ज़रूरी भी।”
मीरा ने कहा, “हमें इस बार सिर्फ़ आत्माओं को नहीं… खुद को भी बचाना है।”
तेजा ने धीरे से पूछा, “तो अगला कदम?”
मीरा ने गहराई से जवाब दिया — “हमें पाँच आत्माओं की तलाश
शुरू करनी होगी — और सच्चे दिल से उस अनुष्ठान को फिर से पूरा करना होगा। क्योंकि अगर हम नहीं कर पाए… तो अगली पूर्णिमा को छठा स्वयं को मुक्त कर लेगा।”