Ch 9 : आत्मा संग्रह
मीरा के दिल की धड़कनें अब सामान्य नहीं रहीं थीं। दर्पण कक्ष में जिन आत्माओं की परछाइयाँ उन्होंने देखीं — अरुण, साधना, सत्यनारायण और विनीत — वे अब एक आवाज़ की तरह उसके भीतर गूंज रही थीं। वे पुकार रहे थे… मुक्त होने के लिए।
लेकिन पाँचवां आत्मा? उसकी पहचान अब भी रहस्य बनी हुई थी। वह कौन था जिसने उस प्राचीन अनुष्ठान में धोखा दिया था? क्या वह अब भी जीवित था? और सबसे बड़ा सवाल — क्या वह उनके आसपास ही है?
तेजा ने शांत स्वर में कहा, “हमें समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। आत्माओं को खोजने का कार्य अभी से शुरू करना होगा। अगर पूर्णिमा की रात तक पाँचों आत्माएँ एकत्र नहीं हुईं, तो छठा मुक्त हो जाएगा।”
मीरा ने अपनी हथेली की ओर देखा — चिन्ह अब धीरे-धीरे और गहरा होता जा रहा था।
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🔍 आत्मा की खोज: अरुण की यात्रा
मीरा को पोथियों से पता चला कि अरुण, जो पहले आत्मा के रूप में प्रकट हुआ था, कभी एक पुरानी लाइब्रेरी में काम करता था — जो अब सुनसान पड़ी है। उस इमारत में अब कोई नहीं आता, लेकिन लोककथाओं के अनुसार वहाँ अक्सर किसी की आहटें सुनाई देती हैं।
पाँचों दोस्तों ने तय किया कि सबसे पहले वहीं जाना होगा।
शाम का समय था। हल्की बारिश हो रही थी। पुराने शहर की गलियों से गुजरते हुए वे उस टूटी-फूटी लाइब्रेरी तक पहुँचे। चारों ओर जाले, टूटी खिड़कियाँ और किताबों की बिखरी हुई महक थी। मगर सबसे अलग थी वहाँ की हवा — जो शांत होकर भी भारी लग रही थी।
“ये जगह… बोल रही है,” यामिनी ने फुसफुसाया।
मीरा आगे बढ़ी और लाइब्रेरी के बीच में रखी एक कुर्सी के पास पहुँची। वहां एक फटी पुरानी डायरी रखी थी।
जैसे ही उसने डायरी को छुआ, हवा का बहाव तेज़ हो गया और कुछ पन्ने अपने आप पलटने लगे। उस समय, एक नीली रोशनी चारों तरफ फैल गई, और अरुण की आत्मा वहां प्रकट हो गई।
> “तुम लौट आई…” अरुण की आवाज़ धीमी और भावुक थी।
मीरा ने कहा, “तुम्हें मुक्त करना है। लेकिन उसके लिए तुम्हें अपने दुख को छोड़ना होगा।”
अरुण की आँखों से आँसू बहने लगे। “मैं अब तैयार हूँ… पर मेरा एक अनुरोध है। मेरी माँ की एक फोटो, जो यहाँ कहीं गिर गई थी… उसे ढूंढ कर मेरे साथ रख देना।”
तेजा ने खोजते हुए एक पुरानी तसवीर खोज निकाली — जिसमें अरुण एक वृद्ध महिला के साथ खड़ा था। जैसे ही वह तसवीर आत्मा के सामने रखी गई, अरुण की आत्मा एक शांत नीली लौ में बदलकर मंदिर की दिशा में उड़ गई।
“एक आत्मा पूरी,” रवि ने कहा। “अब अगली।”
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🕊️ दूसरी आत्मा: साधना की अंतिम इच्छा
पोथी में लिखा था कि साधना एक प्राचीन घाट की देखरेख करती थी — जहाँ अब केवल सूखा पत्थर और टूटी नावें पड़ी थीं। उस घाट पर जाना आसान नहीं था — वहाँ अक्सर लोगों ने किसी औरत की साड़ी फड़फड़ाने की आवाज़, और ताज़ा फूलों की खुशबू की शिकायत की थी… जबकि आसपास कोई नहीं होता।
पाँचों दोस्त घाट की ओर बढ़े। रास्ते में अंधेरा बढ़ता जा रहा था, और वातावरण एक बार फिर बोझिल हो गया था।
घाट पर पहुँचते ही मीरा ने महसूस किया कि हवा में एक अलग तरह की उदासी है। वह चुपचाप घाट की सीढ़ियों पर बैठ गई और आँखें बंद कर लीं।
कुछ पल बाद, सफेद साड़ी में लिपटी एक आत्मा प्रकट हुई — साधना।
> “मैंने अपनी बेटी को खोया… लेकिन मेरी आत्मा यहीं रह गई,” साधना ने कहा। “क्या मेरी बेटी अब भी जीवित है?”
मीरा ने कहा, “हम नहीं जानते… लेकिन आपकी आत्मा को अब शांति की ज़रूरत है। अगर आप चाहें तो मैं घाट पर दीप जलाकर आपकी ओर से क्षमा याचना कर सकती हूँ।”
साधना ने सहमति में सिर हिलाया। यामिनी ने पास की टूटी नाव से एक मिट्टी का दीपक निकाला और उसमें दीया जलाया। दीये की लौ साधना की आत्मा से जुड़ गई… और धीरे-धीरे वह भी एक नीली रोशनी में बदलकर मंदिर की दिशा में उड़ गई।
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⚠️ तीसरा आत्मा: सत्यनारायण — प्रतिरोध का स्वर
अब बारी थी सत्यनारायण की आत्मा की, जो शायद सबसे ज़्यादा क्रोधित थी। पोथियों में बताया गया था कि उनका घर अब एक टूटी हवेली बन चुका है — जिसे लोग ‘श्रापित हवेली’ के नाम से जानते थे।
रास्ता सुनसान था। हवेली के दरवाज़े जंग लगे थे, लेकिन जैसे ही मीरा ने हाथ रखा, दरवाज़ा अपने आप खुल गया।
अंदर जाते ही दीवारों पर अंधेरे धब्बे, पुराने खून के निशान और टूटी मूर्तियाँ थीं। रवि ने काँपती आवाज़ में कहा, “यह जगह… हमें अंदर नहीं चाहती।”
मीरा ने फुसफुसाकर कहा, “हमें जल्दी करना होगा।”
जैसे ही वे मुख्य हॉल में पहुँचे, अचानक दरवाज़ा बंद हो गया और एक ज़ोर की चीख़ गूंजी।
सत्यनारायण की आत्मा सामने आई — उसकी आँखों में गुस्सा और घृणा थी।
> “तुम्हीं थे जिन्होंने मुझे बलि के लिए खड़ा किया… और अब तुम मुझे शांति देने आए हो?”
मीरा ने अपनी हथेली दिखाई। “मैं वो नहीं हूँ। लेकिन मैं उसका पुनर्जन्म हो सकती हूँ… जो तुम्हें दर्द दे गया था।”
सत्यनारायण का चेहरा धीरे-धीरे नरम हुआ। “अगर तुम सच में बदलना चाहती हो… तो उस कमरे में जाओ जहाँ मैंने अपनी अंतिम साँस ली।”
तेजा ने कमरा खोला — वहाँ एक पुराना ताम्रपत्र रखा था जिसमें उनके आखिरी शब्द खुदे हुए थे:
> “क्षमा वह करता है जो टूट चुका हो… पर मैं तैयार हूँ।”
आत्मा थोड़ी देर तक शांत रही, फिर एक रोशनी में बदल गई और मंदिर की दिशा में उड़ गई।
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🌫️ चौथा आत्मा: विनीत — मासूम की पुकार
विनीत की आत्मा एक स्कूल में प्रकट हुई थी — जहाँ वो बिना समझे उस अनुष्ठान का हिस्सा बन गया था। वह आत्मा सबसे मासूम थी, और सबसे डरपोक भी।
मीरा स्कूल पहुँची — चारों ओर टूटी कुर्सियाँ, चाक के निशान, और एक स्लेट पर किसी बच्चे की लिखावट में लिखा था — "मुझे डर लग रहा है माँ…"
मीरा ने एक पुरानी स्लेट पर “अब तुम सुरक्षित हो विनीत” लिखा।
अचानक हवा में एक हल्की सिसकियाँ गूंजी, और विनीत की आत्मा सामने आई — काँपती हुई, लेकिन मुस्कुराती हुई।
> “अब क्या मुझे जाना होगा?” उसने पूछा।
मीरा ने कहा, “हाँ… लेकिन वहाँ अब दर्द नहीं होगा, बस शांति।”
विनीत की आत्मा धीरे-धीरे रोशनी में बदलकर उड़ गई।
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🔍 पाँचवाँ कौन?
चार आत्माएँ अब मंदिर की ओर जा चुकी थीं। अब बचा था सिर्फ़ पाँचवां।
परंतु उसकी पहचान अब भी रहस्य थी।
रवि ने अचानक पूछा, “मीरा… क्या अगर पाँचवां हमारे बीच ही है?”
मीरा चौंकी। “तुम्हारा क्या मतलब?”
“शायद… पाँचवां आत्मा किसी नए शरीर में है। और अगर हम उसे पहचान न पाए, तो वह फिर से छठे को मुक्त कर सकता है।”
सबने एक-दूसरे की ओर देखा।
Thank you all