भाग 8: सायों का शिकार
21 सितंबर 1973 की रात सैंटियागो में अंधेरा गहरा था, जैसे चिली की आत्मा काले सायों में डूब गई हो। सड़कों पर सैनिकों की बूटों की गड़गड़ाहट और DINA के काले वैन की आवाजें गूँज रही थीं। हर घर में खामोशी थी, पर यह खामोशी डर की थी, जो हड्डियों तक समा चुकी थी। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में बैठा था। उसकी मेज पर एक पुराना रेडियो बज रहा था, जिसमें उसका ही भाषण दोहराया जा रहा था—“चिली मेरे नियमों से चलेगा। दुश्मन जीवित नहीं रहेंगे।” उसकी उंगलियाँ मेज पर रखे चाकू को सहला रही थीं, और उसकी आँखों में एक ठंडी चमक थी—वह अब सिर्फ तानाशाह नहीं, बल्कि सायों का शिकारी बन चुका था। लेकिन उसे नहीं पता था कि चिली की खामोशी में विद्रोह की लपटें अब भड़कने लगी थीं।
DINA का आतंक अब चिली की हर साँस में समा चुका था। उनके काले वैन रात के अंधेरे में भूतों की तरह निकलते थे, घरों के दरवाजे तोड़ते थे, और लोगों को गायब कर देते थे। सैंटियागो के एक छोटे-से मोहल्ले में एक युवा माँ अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही थी। उसका पति, जो कभी अयेंदे की रैलियों में नारे लगाता था, पहले ही गायब हो चुका था। रात के 2 बजे दरवाजे पर तेज दस्तक हुई। उसने बच्चे को सीने से लगाया और दरवाजा खोला। काले कपड़ों में पाँच लोग अंदर घुसे। “तूने अपने पति को छिपाया है?” एक सैनिक ने गुर्राते हुए पूछा। उसने रोते हुए कहा, “वह तो पहले ही चला गया।” सैनिकों ने घर तहस-नहस कर दिया। बच्चा रो रहा था, पर सैनिकों ने उसे चुप कराने के बजाय माँ को घसीटते हुए बाहर ले गए। उसकी चीखें सड़क पर गूँजीं, और फिर सन्नाटा छा गया। अगले दिन उसका शरीर एक नाले में मिला—हाथ बँधे, चेहरा कुचला हुआ। बच्चा अनाथ हो गया, और मोहल्ले में कोई मदद के लिए नहीं आया। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “परिवार भी सजा भुगतेगा। अगला।”
नेशनल स्टेडियम अब चिली का सबसे भयानक नरक था। वहाँ की दीवारें खून और आँसुओं से रंगी थीं। हर रात नई बसें आती थीं, जिनमें लोग ठूँसे हुए थे—छात्र, मजदूर, शिक्षक, यहाँ तक कि बूढ़े और बच्चे। एक युवा कवयित्री को स्टेडियम में लाया गया। उसने कभी अयेंदे के लिए कविताएँ लिखी थीं। सैनिकों ने उससे पूछा, “क्या लिखा था तूने?” उसने जवाब दिया, “सच।” एक सैनिक ने उसका चेहरा थप्पड़ों से लाल कर दिया। उसे एक अंधेरे तहखाने में ले जाया गया, जहाँ उसे बिजली के झटके दिए गए। उसकी चीखें दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। लेकिन स्टेडियम के एक कोने में, एक और कैदी ने उसकी कविता सुनी। उसने चुपके से दीवार पर लिखा—“सच मरेगा नहीं।” यह विद्रोह की एक और चिंगारी थी।
ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था—वह चिली की हर स्मृति को मिटाना चाहता था। उसने स्कूलों, पुस्तकालयों, और थिएटरों को निशाना बनाया। सैंटियागो के एक पुराने संगीत स्कूल में, जहाँ कभी बच्चे गिटार और पियानो बजाते थे, सैनिकों ने आग लगा दी। स्कूल का मालिक, एक बूढ़ा संगीतकार, अपने वाद्ययंत्र बचाने की कोशिश कर रहा था। सैनिकों ने उसे आग की लपटों के सामने खड़ा किया। उसने रोते हुए कहा, “संगीत को मत मारो!” एक सैनिक ने उसका गला पकड़ा और बोला, “संगीत अब जनरल का है।” बूढ़े को आग में धकेल दिया गया। आग की लपटें रात के आसमान को लाल कर रही थीं। सैंटियागो की सड़कों पर उसकी राख उड़ रही थी, जैसे चिली के सपनों की राख। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और बोला, “आग सिखाती है। और जलाओ।”
दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों की बैठक बुलाई। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। उसने टेबल पर चिली का नक्शा बिछाया, जिस पर और शहरों को लाल स्याही से चिह्नित किया गया था। “हर गाँव, हर शहर मेरा होगा,” उसने कहा। “कोई बगावत नहीं, कोई आवाज नहीं।” एक कमांडर ने डरते हुए पूछा, “लेकिन कुछ लोग गुप्त मीटिंग कर रहे हैं।” ऑगस्तो की आँखें सिकुड़ गईं। “उन्हें ढूँढो और खत्म करो,” उसने गुर्राते हुए कहा। उसने DINA को और हथियार दिए, और आदेश दिया कि हर संदिग्ध को गायब कर दिया जाए। उस रात वालपाराइसो में एक युवा कार्यकर्ता को सैनिकों ने पकड़ा। उसने गुप्त रूप से पर्चे बाँटे थे, जिन पर लिखा था—“पिनोशे को हटाओ।” सैनिकों ने उसे समुद्र के किनारे ले जाया। उसने चिल्लाकर कहा, “चिली जागेगा!” एक गोली ने उसकी आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी। लेकिन उसका एक पर्चा हवा में उड़ता हुआ एक मछुआरे के हाथ में पहुँच गया। यह विद्रोह की एक और चिंगारी थी।
शाम को ऑगस्तो ने रेडियो पर एक और भाषण दिया। उसकी आवाज ठंडी थी, पर हर शब्द में जहर भरा था। “चिली मेरे नियमों से चलेगा। जो मेरे खिलाफ है, वह मरेगा।” उसकी आवाज सुनकर लोग अपने घरों में काँप गए। एक बूढ़ा मछुआरा, जिसने अपने बेटे को DINA के हाथों खोया था, रेडियो बंद करके फुसफुसाया, “यह शैतान है।” उसकी बेटी ने चुपके से जवाब दिया, “पापा, हम लड़ेंगे।” उसकी आवाज हल्की थी, पर उसमें एक चिंगारी थी। ऑगस्तो को यह नहीं पता था, लेकिन चिली की खामोशी में विद्रोह की लपटें अब और तेज हो रही थीं।
रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया ने उससे पूछा, “तुम्हें पछतावा नहीं होता?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें बर्फ की तरह ठंडी थीं। “पछतावा कमजोरों के लिए है,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“21 सितंबर 1973। चिली मेरे सायों में है। मैं इसका शिकारी हूँ।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। लेकिन कहीं गहरे में, विद्रोह की चिंगारियाँ अब लपटों में बदल रही थीं।
22 सितंबर 1973 की सुबह सैंटियागो में आसमान काला था, जैसे वह चिली के टूटे सपनों का मातम मना रहा हो। सड़कों पर खून के धब्बे और टूटे हुए जूतों के निशान बिखरे थे। हर गली में सैनिकों की बूटों की गड़गड़ाहट और DINA के काले वैन की आवाजें गूँज रही थीं। ऑगस्तो पिनोशे अपने सैन्य मुख्यालय में खड़ा था, एक बड़े शीशे के सामने। उसकी वर्दी चमक रही थी, और उसकी छाती पर लगे मेडल्स सूरज की हल्की रोशनी में झिलमिला रहे थे। वह अपने प्रतिबिंब को देख रहा था—एक तानाशाह, जिसने चिली को अपने पंजों में जकड़ लिया था। उसकी होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे कोई शिकारी अपनी ट्रॉफी को निहार रहा हो। लेकिन उसे नहीं पता था कि चिली की खामोशी में विद्रोह की लपटें अब और तेज हो रही थीं।
DINA का आतंक अब चिली की हर नस में समा चुका था। उनके काले वैन रात के अंधेरे में भूतों की तरह निकलते थे, घरों के दरवाजे तोड़ते थे, और लोगों को गायब कर देते थे। सैंटियागो के एक छोटे-से गाँव में एक बूढ़ा किसान अपने खेतों में काम कर रहा था। उसने कभी अयेंदे की रैलियों में हिस्सा लिया था। रात के 1 बजे एक काला वैन उसके घर के सामने रुका। DINA के एजेंटों ने दरवाजा तोड़ा। किसान की पत्नी ने अपने बच्चों को सीने से लगाया, पर सैनिकों ने उसे धक्का दे दिया। किसान को घसीटते हुए वैन में ठूँसा गया। उसने चिल्लाकर कहा, “मैंने कुछ नहीं किया!” एक सैनिक ने उसका मुँह बंद किया और बोला, “तेरा होना ही गुनाह है।” अगले दिन उसका शरीर एक नदी के किनारे मिला—हाथ बँधे, सिर पर गोली का निशान। गाँव वालों ने उसकी लाश देखी, पर किसी ने मुँह नहीं खोला। डर ने उनकी जुबान छीन ली थी। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट जलाई और कहा, “कमजोर मरते हैं। अगला।”
नेशनल स्टेडियम अब एक जीता-जागता नरक था। वहाँ की दीवारें खून और पसीने से सनी थीं। हर रात नई बसें आती थीं, जिनमें लोग ठूँसे हुए थे—छात्र, मजदूर, शिक्षक, यहाँ तक कि बूढ़े और बच्चे। एक युवा वकील को स्टेडियम में लाया गया। उसने मानवाधिकारों की बात की थी। सैनिकों ने उससे पूछा, “कानून की बात करेगा?” उसने जवाब दिया, “कानून मर नहीं सकता।” सैनिकों ने उसकी उंगलियाँ तोड़ दीं। उसकी चीखें स्टेडियम की दीवारों से टकराती रहीं, पर बाहर तक नहीं पहुँचीं। लेकिन स्टेडियम के एक कोने में, एक और कैदी ने उसकी बात सुनी। उसने चुपके से दीवार पर लिखा—“कानून जागेगा।” यह विद्रोह की एक और चिंगारी थी।
ऑगस्तो का आतंक अब सिर्फ मारने तक सीमित नहीं था—वह चिली की हर स्मृति को मिटाना चाहता था। सैंटियागो के एक पुराने थिएटर में, जहाँ कभी नाटक और कविताएँ गूँजती थीं, सैनिकों ने आग लगा दी। थिएटर का मालिक, एक बूढ़ा नाटककार, अपनी स्क्रिप्ट्स बचाने की कोशिश कर रहा था। सैनिकों ने उसे आग की लपटों के सामने खड़ा किया। उसने रोते हुए कहा, “यह मेरा सपना है!” एक सैनिक ने उसका गला पकड़ा और बोला, “सपने अब जनरल के हैं।” नाटककार को थिएटर के साथ जलने दिया गया। आग की लपटें रात के आसमान को लाल कर रही थीं। ऑगस्तो को यह खबर मिली। उसने सिगरेट का धुआँ हवा में छोड़ा और बोला, “आग साफ करती है। और जलाओ।”
दोपहर में ऑगस्तो ने अपने सैन्य कमांडरों की बैठक बुलाई। कमरे में सिगरेट का धुआँ और तनाव भरा था। उसने टेबल पर चिली का नक्शा बिछाया, जिस पर और शहरों को लाल स्याही से चिह्नित किया गया था। “हर गाँव, हर शहर मेरा होगा,” उसने कहा। “कोई बगावत नहीं, कोई आवाज नहीं।” एक कमांडर ने डरते हुए पूछा, “लेकिन कुछ लोग गुप्त संगठन बना रहे हैं।” ऑगस्तो की आँखें सिकुड़ गईं। “उन्हें ढूँढो और खत्म करो,” उसने गुर्राते हुए कहा। उसने DINA को और हथियार दिए, और आदेश दिया कि हर संदिग्ध को गायब कर दिया जाए। उस रात सैंटियागो में एक युवा कार्यकर्ता को सैनिकों ने पकड़ा। उसने गुप्त रूप से पर्चे बाँटे थे, जिन पर लिखा था—“पिनोशे हत्यारा है।” सैनिकों ने उसे एक गुप्त जेल में ले जाया। उसने चिल्लाकर कहा, “चिली जागेगा!” एक गोली ने उसकी आवाज हमेशा के लिए बंद कर दी। लेकिन उसका एक पर्चा हवा में उड़ता हुआ एक बच्चे के हाथ में पहुँच गया। यह विद्रोह की एक और चिंगारी थी।
रात को ऑगस्तो अपने घर लौटा। उसकी पत्नी लूसिया ने उससे पूछा, “तुम्हें नींद कैसे आती है?” ऑगस्तो ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखें पत्थर की तरह ठंडी थीं। “नींद कमजोरों के लिए है,” उसने जवाब दिया। वह अपने कमरे में गया, अपनी डायरी खोली, और लिखा—“22 सितंबर 1973। चिली मेरे सपनों का मलबा है। मैं इसका मालिक हूँ।” बाहर सैंटियागो की सड़कें खामोश थीं, पर हर घर में डर की साँसें गूँज रही थीं। लेकिन कहीं गहरे में, विद्रोह की चिंगारियाँ अब लपटों में बदल रही थीं।