कर्म कभी निष्फल नहीं होता in Hindi Spiritual Stories by Agyat Agyani books and stories PDF | कर्म कभी निष्फल नहीं होता

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कर्म कभी निष्फल नहीं होता

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✧ कर्म – ऊर्जा का धर्म ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲

> "कर्म कभी निष्फल नहीं होता —
वह या तो वासना बनता है,
या अहंकार,
या ब्रह्म।"

✧ प्रस्तावना ✧

यह ग्रंथ उन जिज्ञासुओं के लिए है —
जो कर्म को न पुण्य मानते हैं, न पाप,
बल्कि एक ऊर्जा चक्र के रूप में समझते हैं।
जहाँ फल न मिलने से वासना जन्म लेती है,
फल मिलने से अहंकार बढ़ता है,
और फल की अपेक्षा मिट जाने पर
ब्रह्म का साक्षात्कार होता है।

यह श्रद्धा या धर्म का उपदेश नहीं —
यह कर्म की मौलिक मनोविज्ञान है।

✧ 21 सूत्र (दर्शनीय शैली में) ✧

1.
कर्म एक ऊर्जा है —
जो कहीं भी व्यर्थ नहीं जाती।

2.
जो कर्म फल न दे —
वह कामना बनकर लौटता है।

3.
जो कर्म फल दे —
वह ‘मैं’ को पुष्ट करता है।

4.
जो कर्म बिना फल की अपेक्षा के हो —
वही मोक्ष की ओर ले जाता है।

5.
कर्म असफल नहीं होता —
मन असफलता मान लेता है।

6.
कर्म का परिणाम
हमेशा दिखाई नहीं देता —
कभी वह बीज बनकर भीतर गिरता है।

7.
इच्छा अधूरी रह जाए —
तो वह वासना बनती है।

8.
इच्छा पूरी हो जाए —
तो वह अहंकार बनती है।

9.
इच्छा ही न रहे —
तो वही ब्रह्मा बनता है।

10.
कर्म कभी अकेला नहीं होता —
वह अपने साथ फल की छाया लेकर चलता है।

11.
धर्म कहता है — “श्रद्धा रखो, फल मिलेगा।”
मैं कहता हूँ — “कर्म करो, ऊर्जा बदलेगी।”

12.
कर्म को समझो —
वह तुम्हारे भीतर की यात्रा है,
न कि किसी देवता को प्रसन्न करने का यज्ञ।

13.
कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं —
और न कर्म से छोटा कोई छल।

14.
कर्म, फल, इच्छा और वासना —
एक ही वृत्त की भिन्न दिशाएँ हैं।

15.
कर्म का निष्काम होना —
उसका ब्रह्म में लीन होना है।

16.
फल की चिंता ही कामदेव है।

17.
फल मिलने की इच्छा ही देवता को बनाती है।

18.
फल का होना या न होना —
तुम्हारे भीतर क्या उगाता है —
यही असली परीक्षा है।

19.
कर्म से बचो मत —
पर उससे चिपको भी मत।

20.
कर्म ही कारण है —
पर फल तुम नहीं चुन सकते।

21.
जो कर्म से प्रेम करता है —
उसे फल की प्रतीक्षा नहीं होती।
और वही व्यक्ति
ब्रह्मा हो जाता है।

फिर भी करे तू काम।

मेरा मूल भाव यह है कि।

> चाहे कर्म सफल हो या विफल — दोनों ही स्थितियों में नई प्रतिक्रिया, नई इच्छा, या अहंकार पैदा होता है।
और यही प्रतिक्रिया ही दुःख का बीज है।
प्रतिक्रिया ही "मैं" का निर्माण है।

✧ सूत्र: प्रतिक्रिया ही बंधन है ✧

> "सफलता में जो ‘मैं’ खड़ा हो जाए —
वह अहंकार है पुनः अधिक इच्छा है।
और विफलता में जो ‘मैं’ टूट जाए —
वह कम बसना में रूपांतरण होता है।
इन दोनों से जो प्रतिक्रिया से बच जाए —
वह ब्रह्मा है।"

🔍 व्याख्या:

जब तुम कोई कर्म करते हो, तो वह ऊर्जा है।
लेकिन जैसे ही उसका परिणाम आता है —
तुम उसमें प्रतिक्रिया देने लगते हो।

यदि सफलता मिली — तो ‘मैं सफल’ का गर्व उत्पन्न होता है नए सफलता कि इच्छा पैदा होती है।

यदि असफलता मिली — तो ‘मैं विफल’ का दर्द जन्म लेता है।

यह दोनों ही स्थिति नई इच्छाओं, नई वासनाओं, और नए कर्मों का बीज बन जाती हैं।

👉 यही प्रतिक्रिया ही बंधन है।
👉 यही प्रतिक्रिया ही "मैं" है।

भगवद् गीता में निष्काम कर्म का अर्थ यही है —
"कर्म में पूर्णता हो, पर फल की अपेक्षा में शून्यता रहे।"

क्योंकि कर्म में इच्छा होना स्वाभाविक है,
लेकिन फल की प्रतिक्रिया से मुक्त होना — यही योग है।

यह वही अवस्था है जहाँ कर्म तो होता है —
लेकिन 'करने वाला' मिट जाता है।

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓷𝓲