(छाया अपनी पहली नौकरी पर गई तो वहां उसे धोखे और खतरे का सामना करना पड़ा। उसने साहस दिखाकर हमला करने वालों को मात दी। एक रहस्यमय औरत ने उसकी मदद की, लेकिन समझाया कि अपनी रक्षा खुद करनी होगी। पुलिस आई और छाया ने रिपोर्ट दर्ज करवाई। इस घटना ने छाया को मजबूत और आत्मनिर्भर बना दिया। परिवार उसकी मेहनत से खुश था, जबकि दोस्त विशाल के जीवन में भी बदलाव आ रहा था। छाया की कहानी संघर्ष, हिम्मत और बदलती ज़िन्दगी की प्रेरणा है। अब आगे)
पुलिस छाया को अस्पताल लेकर आई, जहाँ दाएँ हाथ और सिर पर मरहम-पट्टी की गई। वहां उन्होंने पूरी घटना की विस्तार से जानकारी ली और छाया की बहादुरी की जमकर तारीफ की। कुछ ही देर में जतिन और केशव भी अस्पताल पहुँच गए। छाया ने उस रहस्यमयी भली औरत के बारे में बताया, लेकिन उसकी पहचान का कोई सुराग नहीं मिला। जतिन ने हाथ जोड़कर पुलिस से विनती की, "ऐसे लोगों को छोड़िए मत जो गरीब और भोली-भाली लड़कियों को नौकरी का झांसा देकर उनका फायदा उठाते हैं।"
इंस्पेक्टर मुस्कुराए और बोले, "क्या आप जानते हैं कि हमें किसने सूचना दी?" जतिन ने हैरानी से पूछा, "किसने?"
इंस्पेक्टर ने हँसते हुए जवाब दिया, "उन्हीं लोगों ने जो आपकी बेटी के साथ बुरा व्यवहार कर रहे थे।"
केशव चौंक कर बोला, "सच में? ऐसा कैसे हो सकता है?"
इंस्पेक्टर ने कहा, "हां, आपकी बेटी बहुत बहादुर है। उसने उन सबको मार-मार कर बुरी हालत कर दी।"
जतिन और केशव अपनी प्यारी बेटी और बहन के साथ हुई बदसलूकी सहन नहीं कर पाए, लेकिन छाया की बहादुरी जानकर उन्हें गर्व हुआ। जतिन ने डॉक्टर से छाया की हालत पूछी। डॉक्टर ने बड़े सम्मान से कहा, "शेरनी है आपकी बेटी। जो चोटें आई हैं, वे मामूली हैं। चिंता मत कीजिए, कुछ दिन में ठीक हो जाएगी।"
जतिन और केशव के चेहरे पर खुशी और गर्व दोनों झलक रहे थे। छाया जल्द ही घर लौट आई। नम्रता ने उसे गले लगाकर उसकी बहादुरी की खूब तारीफ की। काशी और नित्या भी खुश थे कि छाया सुरक्षित लौट आई है। उन्होंने छाया को प्यार से गले लगाया। नम्रता ने उसे खाना खिलाकर जल्दी सुला दिया, और खुद भी छाया के पास बैठकर सो गई।
लेकिन छाया की आंखों में नींद नहीं थी। वह पूरी रात उस औरत के बारे में सोचती रही जिसने उसे बचाया था। उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की कि एक दिन उस आंटी से मिलने का मौका मिले।
---
अगले दिन जब छाया कॉलेज जाने के लिए निकल रही थी, तो सबने उसे रोकने की कोशिश की, पर वह न मानी। तब केशव ने छाया और काशी के लिए टैक्सी बुक करवाई। छाया ने मना किया, लेकिन उसके घाव अभी भी ताजे थे। जतिन और नम्रता भी केशव की बात से सहमत थे।
कॉलेज पहुंचकर जब भी कोई उसके चोट के बारे में पूछता, तो वह कहती, "मैं बाथरूम से गिर गई थी।" छाया जानती थी कि यह झूठ था, वह उस दर्दनाक घटना को याद भी नहीं करना चाहती थी। वह काशी के साथ पढ़ाई में लगी थी, लेकिन चोट के कारण बाल ठीक से नहीं सँभाल पा रही थी, जिससे उसे बहुत तकलीफ हो रही थी।
तभी अचानक विशाल वहाँ आ गया। उसने धीरे से छाया के बाल सहलाए। काशी यह देखकर उत्साहित थी, लेकिन छाया को यह अजीब लग रहा था क्योंकि विशाल उसकी आंखों में घूर रहा था। छाया को लगा जैसे वह कोई सपना देख रही हो। उसने धीरे से विशाल से कहा, "देख रहे हैं सब," और वहां से उठकर चली गई। वह सोचने लगी कि विशाल ने खुद कहा था कि वह उसे प्यार नहीं करता, तो फिर यह सब क्यों कर रहा है?
विशाल ने महसूस किया कि शायद छाया शरमा रही है, इसलिए उसने उसे कुछ स्पेस देना ठीक समझा। लेकिन छाया का यह व्यवहार काशी को अच्छा नहीं लगा।
---
छाया एक खाली क्लासरूम में जाकर बैठ गई और विशाल के बदले हुए व्यवहार को समझने की कोशिश करने लगी। थोड़ी देर बाद जब वह बाहर निकलने लगी, तो किसी ने प्यार से उसे पकड़ लिया। छाया घबरा गई और हमले के लिए तैयार हो गई, पर सामने देखकर वह दंग रह गई—यह विशाल था।
विशाल ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। छाया की सांसें थम सी गईं। विशाल उसके करीब कदम बढ़ा रहा था, लेकिन छाया पीछे हट रही थी। वह दीवार के सहारे सट गई। जब उसने नजरें झुका कर रास्ता निकालने की कोशिश की, तो विशाल ने दोनों तरफ से उसका रास्ता रोक लिया।
विशाल उसकी नजरों में नजरें डालना चाहता था, लेकिन छाया उसकी तरफ देख भी नहीं रही थी। यह देख विशाल को बुरा लगा, इसलिए उसने उसे छोड़ दिया। छाया भी बिना देर किए वहां से चली गई।
जब उसने देखा कि कोई नहीं है, तो उसने राहत की सांस ली। तभी याद आया कि उसने अपनी किताबें वहीं छोड़ दी हैं। वह वापस उस कमरे में गई और झांककर देखा कि कोई नहीं है। उसने किताबें उठा लीं और दरवाजे की तरफ बढ़ी। तभी वह किसी से टकरा गई।
आंखें उठाई तो विशाल उसे घूर रहा था। छाया ने महसूस किया कि जो बचकानी हरकतें वह उसके लिए करती थी, वही विशाल कर रहा था। यह देखकर छाया कुछ समझ नहीं पा रही थी।
अचानक विशाल ने उसके बाल सहलाने शुरू किए। छाया कुछ कहने ही वाली थी कि विशाल ने प्यार से कान में फुसफुसाया, "यहाँ कोई नहीं देख रहा।" फिर वह फिर से उसके बाल सहलाने लगा। विशाल का यह रूप छाया की समझ से परे था।
कुछ देर ऐसा ही चलता रहा, फिर विशाल ने उसे जाने दिया। छाया बिना देर किए वहां से चली गयी । विशाल खुद से बोला, "हाँ, मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड बनूंगा।" यह कहकर मुस्कुराया। उसने मन बना लिया था कि जल्द ही छाया से अपने दिल की बात करेगा।
---
1. क्या छाया की बहादुरी उसकी जिंदगी को नया मोड़ दे पाएगी, या उसके सामने और भी बड़े खतरे हैं?
2. विशाल का बदला हुआ व्यवहार असल में क्या छिपा रहा है, और क्या छाया उसके दिल की सच्चाई समझ पाएगी?
3. वो रहस्यमयी औरत कौन है, जिसने छाया को बचाया — मददगार या फिर कोई दूसरा खेल?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की"