You Are My Choice - 63 in Hindi Short Stories by Butterfly books and stories PDF | You Are My Choice - 63

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You Are My Choice - 63

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"तो, तुम मिस खन्ना से नफरत करती हो। सही कह रहा हूँ?" डिनर के बाद मायरा और आदित्य को अलविदा कहते हुए जय ने पूछा।

"तुम बहुत जजी हो रहे हो।" काव्या ने चौंककर जवाब दिया, भौंहें चढ़ाते हुए, फिर सामने के दरवाज़े की तरफ मुड़ गई।

"अरे सच में?" वह उसके पीछे-पीछे अंदर आया, चेहरे पर एक चुटीली मुस्कान के साथ।

"हाँ। मैं उससे नफरत क्यों करूंगी? ये तो तुमने पूरा फैसला सुना दिया," वो मना करते हुए ड्राइंग रूम की ओर बढ़ी।

"ओह! लेकिन तुम्हारा बर्ताव कुछ और ही कहता है," जय ने हल्के से कहा, जैसे किसी बच्चे को सही कर रहा हो।

"क्या मतलब?" वह रुकी और उलझन में पूछने लगी।

जय ने उसकी आँखों में देखा। "तुम अच्छी तरह जानती हो मेरा क्या मतलब है।"

"नहीं, मुझे नहीं पता," उसका स्वर सख्त था।

"मिस सहगल?" उसने इशारा करते हुए जोड़ा।

"लो फिर से — ‘मिस सहगल’।” वह आँखें घुमाते हुए बोली, बुरी तरह सा जय की इस आदत से परेशान हो चुकी थी।

"ठीक है... काव्या," उसने खुद को सुधारा। "क्या तुम बात करना चाहोगी? शायद अच्छा लगे। तुम्हें अपना माईन्ड क्लियर करने की ज़रूरत है।"

उसके चेहरे पर एक क्षण के लिए भाव बदले। "ऐसा कुछ नहीं है..." वह बुदबुदाई और जाकर सोफे पर बैठ गई।

"तो फिर कैसा है?" जय ने उसके सामने बैठते हुए पूछा।

"देखो... वी हेव अ हिस्टरी। मैं तुम्हें बता नहीं सकती। और मुझे पता है तुम समझोगे, क्योंकि तुम भी अपने दोस्तों के बारे में कुछ नहीं बताते।"

जय ने भौंहें चढ़ाईं। "अब बस करो तुम्हारा ताना देना।"

"ठीक है," उसने हल्की मुस्कान दी। "फिर भी नहीं बताऊंगी।"

"मैं पूरी बात नहीं कर रहा। मैं सिर्फ तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ।"

"क्यों?" उसने सिर टेढ़ा किया। "क्यों मदद करना चाहते हो?"

"क्योंकि…" वह रुका। "क्योंकि… तुम मेरी मदद कर रही हो।" आख़िरी शब्द हलकी आवाझ में थे, फिर भी कमरे में गूंज से गए।

उसका चेहरा सख्त हो गया।

"ठीक। क्योंकि मैं मदद कर रही हूँ, इसलिए तुम्हें फिक्र है," वह बुदबुदाई।

"तुमने कुछ कहा?" जय ने उलझन में पूछा।

"कुछ नहीं... तो अगर मैं तुम्हारी मदद नहीं कर रही होती, तब तुम भी मेरी मदद नहीं करते, है ना?"

"मैंने ऐसा मतलब नहीं निकाला," जय ने धीमे स्वर में कहा, अपराध-बोध के साथ।

"ये कोई जवाब नहीं है," काव्या ने पलटकर कहा।

"काव्या, सुनो— बात ये नहीं—"

"मुझे जवाब मिल गया," उसने तेज़ी से काटा। "तुम मुझे दोस्त नहीं मानते।"

"सुनो—कम से कम—"

"क्या?" उसकी आवाज़ थरथरा गई, लेकिन गुस्सा साफ था। "तुम हमेशा ऐसा ही करते हो। तुमने मुझे ये तक नहीं बताया कि तुम किस प्रोबलम से गुज़र रहे हो। तुमने मेरी कॉल्स तक इग्नोर की। इसका क्या मतलब था? दोस्त ऐसा नहीं करते। मेरे दोस्त ऐसा नहीं करते।"

"मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था," वह शांत स्वर में बोला।

"मैं समझती थी कि हम दोस्त हैं," उसने फुसफुसाया।

"हम हैं," उसने तुरंत कहा।

"सच में? क्योंकि ये—ये दोस्ती नहीं है।"

"मेरा मतलब वो नहीं था," जय ने अंततः टूटते हुए कहा। "मुझे डर लग रहा था।"

"किस बात का डर?" काव्या थकी हुई लग रही थी।

"मैंने सोचा… तुम मुझे जज करोगी। जैसे बाक़ी सबने किया।"

काव्या ने लंबी सांस ली और इशारे से उसे अपने पास बैठने को कहा। "जय, मैंने कभी तुम्हें जज नहीं किया। एक सेकंड के लिए भी नहीं। मुझ पर भरोसा रखो।"

"मैं इसका शुक्रगुजार हूँ। सच में। बहुत मायने रखता है। लोग क्या कहते हैं, मीडिया क्या कहती है, इससे फर्क नहीं पड़ता। मेरे परिवार और मेरे दोस्तों की परवाह है मुझे। तुम मायने रखती हो। मैं सिर्फ चाहता हूँ कि तुम मुझ पर भरोसा रखो।"

"मैं करती हूँ। हम सब करते हैं। हम तुम्हारे साथ हैं।"

जय थोड़ी देर चुप रहा, फिर कहा, "मैं सिर्फ उसकी मदद करना चाहता था। क्योंकि... उसने मदद मांगी थी। बस इतना ही। मुझे नहीं पता था कि उसके इरादे गलत हैं।"

"यही दिक्कत है लड़कों में," काव्या ने बुदबुदाया। "तुम लोग कभी ये नहीं समझते कि कोई लड़की असल में क्या चाहती है। बस आँख बंधकर भरोसा कर लेते हो। और देखो, नतीजा क्या हुआ।"

जय ने आँखें संकुचित कीं। "क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम कह रही हो— क्या मिस खन्ना…?"

"नहीं।" काव्या ने उसे बीच में रोक दिया। "मैं उसके बारे में बात नहीं करना चाहती। बात ये है—अब हम दोस्त नहीं हैं। आदित्य उसे यहाँ क्यों लाया? मैं उसे जान से मार देती। और फिर भी, मैंने उसे जाने दिया—खुद चलकर गया, अपने पैरो पे। धीस ईस नोट मी।"

जय ने शांति से उसकी ओर देखा। "तुमने नहीं किया क्योंकि… तुम जानती हो।"

"क्या जानती हूँ? बात को घुमा फिराकर मत कहो," उसने पूछा।

"कि शायद आदित्य के अपने रीझन्स हैं।"

"मुझे इसी बात का डर है," काव्या ने स्वीकारा, उसका स्वर नरम हो गया। "अगर इससे रोनित को चोट पहुँची तो? वो पहले ही बहुत कुछ झेल रहा है।"

"ये उसी की गलती थी। कोई किसीको फोर्स नही कर सकता शादी के लिए। ये उसका फैसला था।"

"नहीं। उसे शादी से नफरत है। जो कुछ मायरा और उसके बीच हुआ था… कुछ तो और भी है।"

"कल सब सामने आ जाएगा। बहुत बड़ा दिन है," जय ने कहा, उसके कंधे पर हाथ रखते हुए। "अब सो जाओ। तुम्हें सच में नींद चाहिए।"

"ये तुम खुद को कहना चाहिए, डॉक्टर। तुम कल से सोए नहीं हो। भूत जैसे लग रहे हो। चलो अब कोई सपना देखो। गुड नाइट।"

जय मुस्कराया। "चलो, तुम्हें तुम्हारे रूम तक छोड़ देता हूँ।"

उसने कोई बहस नहीं की। जय ने सुनिश्चित किया कि वह अंदर चली गई है, फिर धीरे से दरवाज़ा बंद किया और चला गया।

जैसे ही जय गया, काव्या ने दरवाज़ा फिर से चेक किया। फिर बिस्तर पर गई, सिरहाने की लाइट जलाई।

उसने फोन उठाया और एक नंबर डायल किया।

काव्या:
"हाय..."

दानिश:
"मैम? सब ठीक है?"

काव्या:
"हाँ, रिलैक्स। मुझे कुछ पता लगवाना है।"

दानिश:
"सच में? मैं सो रहा था। आधी रात है।"

काव्या:
"मेरे पास भी वोच है। शायद तुमसे ज़्यादा।"

दानिश:
"दिखावा बंद करो। और नहीं, मैं कुछ नहीं कर रहा। गुड नाइट।"

काव्या:
"रोनित की शादी हो गई।"

दानिश
: "...क्या?"

काव्या:
"हाँ। शॉकिंग है। मुझे पता लगवाना है कि वो किसकी शादी में गया था। वो चंडीगढ़ में है। शायद किसी अस्पताल में कपूर ग्रुप के इन्वेस्टमेंट से जुड़ा मामला है। मैं उन्हें जानती नहीं। बस सब जानकारी मुझे और आकाश को भेज देना। आकाश अब तक पहुंच गया होगा। रोनित का फोन फिर बंद है। कोई सुराग नहीं।"

दानिश:
"मैं देखता हूँ। अब सो जाओ।"

काव्या:

"हाँ हाँ, तुम तो मेरे बॉस हो।"

दानिश:
 "गुड नाइट।"

काव्या:
"हैपी वर्किंग। बाय।"


उसने कॉल कट कर दीया और अपना लैपटॉप खोला।

कुछ की-बोर्ड पर क्लिक करने के बाद, उसने जय का फोन ट्रैक करना शुरू किया। कुछ ही मिनटों में उसे दो नंबर मिल गए — एक उस लड़की का जिसने जय से रिया के बारे में संपर्क किया था, और दूसरा… रिया का था।

 

वो मुस्कराई।

"उम्मीद है कि वो सो रही हो। मेरा काम आसान हो जाएगा।"

काव्या की उंगलियां कीबोर्ड पर चलने लगीं — तेज़, आत्मविश्वासी। ये हुनर सिर्फ टैलेंट से नहीं, जुनून से आता है। उसकी आंखें झपकती भी नहीं थीं।

और फिर — उसे मिल गया।

"शुरुआत करते हैं, काव्या," उसने फुसफुसाया।

उसने गैलरी खोली। जय की तस्वीरें। कुछ सोशल मीडिया से ली गईं थीं, कुछ अस्पताल के पेज से। ये सब बहुत व्यवस्थित थीं। इत्तेफ़ाक नहीं हो सकता।

"ये मेरे डॉक्टर को स्टॉक कर रही है..." काव्या ने बुदबुदाया। फिर जल्दी से जोड़ा, "मतलब, जिसने मेरी सर्जरी की थी, वो फँस गया है। मेरा डॉक्टर नहीं है। ऐसा कुछ नहीं है। बिल्कुल नहीं।"

लेकिन उसके चेहरे पर आई लाली कुछ और ही कह रहा था।

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सुबह की धूप अस्पताल के ईस्ट विंग की ऊँची काँच की खिड़कियों से छनकर अंदर आ रही थी, सफ़ेद चमचमाते फ़र्श पर तीखी रौशनी बिखेरती हुई। माहौल में हल्की-सी गुनगुनाहट थी — मरीज़ों की नहीं, बल्कि तनाव की। स्टाफ़ तेज़ क़दमों से गलियारों में चल रहे थे, धीमी आवाज़ में बातें कर रहे थे। सबको पता था कि कुछ गंभीर चल रहा है।

 

जय, काव्या के साथ मुख्य इमारत में दाख़िल हुआ। वह उसके क़दमों से मेल रखते हुए चल रहा था, उसके स्वास्थ्य का ख़याल रखते हुए। काव्या ने गहरे रंग का सनग्लास पहना हुआ था, होंठ पतली सी रेखा में दबे हुए। जय हमेशा की तरह सादा था।

 

मामला तेज़ी से बिगड़ गया था। अभी तक यह अस्पताल के आंतरिक प्रबंधन में था, लेकिन कानूनी दख़ल की फुसफुसाहटें फैलने लगी थीं। वे कॉन्फ़्रेंस विंग पहुँचे, जहाँ पहले से ही एक छोटा समूह जमा था — अस्पताल बोर्ड के सदस्य, कुछ वरिष्ठ डॉक्टर, और दीवारों के पास खड़े सुरक्षा कर्मी।

 

हॉलवे के उस पार मायरा खड़ी थी, नेवी ब्लू सूट में बेहतरीन, बाँहें सीने पर क्रॉस किए, चेहरा बिल्कुल सपाट। उसकी मौजूदगी सबकी नज़रों से नहीं बची, और न ही उसके शांत चेहरे के पीछे छुपा तूफ़ान।

 

लेकिन अब तक मिसेज़ नायर का कोई अता-पता नहीं था — वही महिला जिसने कथित तौर पर रिया को काम पर रखा था — और वह नर्स, जिसने पहली बार रिया की संदिग्ध बातचीत सुनी थी, पहले से बोर्डरूम में मौजूद थी, साफ़ तौर पर असहज।

 

एक स्टाफ़ मेंबर ने बोर्डरूम के दरवाज़े की ओर इशारा किया। जय, मायरा और नर्स साथ में अंदर गए।

 

काव्या पीछे रुक गई, बोर्डरूम के बाहर लगी कुर्सियों में से एक पर बैठ गई। उसके हाथ गोद में रखे थे, उंगलियाँ हल्के से जुड़ी हुईं, लेकिन शरीर का तनाव साफ़ था। वह घबराने वालों में से नहीं थी — उसे घबराहट होती ही नहीं थी। लेकिन आज कुछ अजीब था।

 

उसकी नज़र गलियारे के सिरे पर पड़ी… और उसने उसे देखा।

 

रिया।

 

बेदाग़ कुर्ता, बाल फ़्रेंच ब्रेड में बंधे हुए, और चाल में वही आत्मविश्वास जो किसी जीत चुके खिलाड़ी में होता है। उसके चेहरे पर मुस्कान — न शिष्ट, न संकोची — बल्कि जैसे वो अपनी ही जीत की पार्टी में चली आई हो। उस चौड़ी, घमंडी मुस्कान ने काव्या का जबड़ा तुरंत भींच दिया।

 

उसे उस मुस्कान से नफ़रत थी।

 

काव्या ने बिना समय गँवाए आँखें घुमा लीं, और फ़ोन चेक करने का दिखावा किया, मानो रिया को एक पल की भी तसल्ली न देना चाहती हो।

 

रिया बिना रुके बोर्डरूम के दरवाज़े तक गई, और बिना दस्तक दिए अंदर चली गई, जैसे यह जगह उसकी ही हो।

 

दरवाज़ा धीरे से बंद हो गया।

 

काव्या चुपचाप आगे देखती रही, रिया के कदमों की आहट अब भी उसके कानों में गूंज रही थी। वह जानती थी कि यह आसान नहीं होने वाला। लेकिन आसान चीज़ों के लिए वो यहाँ नहीं आई थी।

 

कमरे में सब अपनी जगह पर बैठ चुके थे, हवा में उम्मीद और बेचैनी का घना मेल था। फ़ाइलें खुली हुईं, पेन तैयार, लेकिन बातें कम। सब रिया का इंतज़ार कर रहे थे।

 

कुछ मिनट बाद, दरवाज़ा चरमराया। रिया अंदर आई — चेहरे पर गढ़ा हुआ मासूमपन, जैसे वही पीड़ित हो। सिर हल्का झुका हुआ, कंधे थोड़े झुके, मानो दुनिया का सारा बोझ उसी पर हो।

 

बिना किसी को अभिवादन किए, वह सीधे डॉ. कमिनी राव के पास वाली कुर्सी पर बैठ गई। कमरे में मौजूद बाकी लोगों की ओर उसने देखा तक नहीं, लेकिन उसकी नज़र एक पल के लिए जय पर ठहरी — जिसने उसे अनदेखा कर दिया, चेहरा सख़्त, नज़रें कहीं और।

 

पैनल के अध्यक्ष ने शुरू किया।

“चलिए, शुरू करते हैं,” उनकी आवाज़ में सख़्ती थी। “रिया, हम आपसे उस घटना के बारे में कुछ सवाल करेंगे जो आपने रिपोर्ट की है। सच-सच जवाब दें।”

 

एक-एक करके पैनल के सदस्य उससे पूछने लगे।

“क्या आपको पक्का यक़ीन है,” डॉ. कमिनी ने पूछा, “कि डॉ. जय ने आपके साथ बदसलूकी की?”

 

रिया ने धीमे से सिर हिलाया। “हाँ… मैं इस बारे में झूठ नहीं बोलूँगी।”

 

फिर नर्स सुचिता की बारी आई। वह घबराई हुई थी, लेकिन उसकी आवाज़ में दृढ़ता थी।

“सर, मैं छुट्टी पर थी। आज लौटी और यह मामला सुना। लेकिन… छुट्टी पर जाने से पहले मैंने रिया को फ़ोन पर सुना था। वह हँस रही थी और कह रही थी, ‘जय ने मुझे फिर ठुकरा दिया। मैं उसे इसका मज़ा चखाऊँगी।’ उस वक़्त मैंने मज़ाक समझा। लेकिन अब… लगता है, वह सच में यही चाहती थी।”

 

कमरे में सन्नाटा छा गया।

 

अचानक, एक हल्की गुनगुनाहट कमरे में गूंजी। एक फ़ोन, फिर दूसरा… लगातार। डॉ. शेट्टी ने स्क्रीन देखी, भौंहें सिकुड़ गईं।

“मेरा मानना है, सबको अपना फ़ोन देखना चाहिए,” उन्होंने कहा, खड़े होते हुए। उन्होंने स्पीकर ऑन किया और फ़ाइल चलायी — शीर्षक था ‘रिया केस का सबूत’।

 

कमरा चुप हो गया।

 

रिकॉर्डिंग में रिया की आवाज़ थी — लापरवाह और ठंडी।

 

रिया: “नहीं यार, अब तो वो बात भी नहीं कर रहा। सोचो, मुझे इग्नोर कर रहा है। मैंने सब किया है — सबकुछ, उसका ध्यान खींचने के लिए।”

रिध्धी: “सच में? छोड़ दे न।”

रिया: “छोड़ दूँ? कभी नहीं। एक रिपोर्ट, एक छोटा सा झूठ — और उसकी ज़िंदगी उलट जाएगी। पछताएगा।”

[कुछ हल्की-सी हँसी]

 

कमरे में सन्नाटा-सा छा गया, और लोग हाँफ उठे। रिया का चेहरा पीला पड़ गया। उसका मुँह खुला, पर कोई शब्द बाहर नहीं आया।

वह फ़ोन लेने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसकी दूसरी ओर बैठी मायरा ने उसका हाथ बीच में ही रोक दिया और उसे घूर कर देखा। रिया हिली तक नहीं।

 

रिया: “दो बार ठुकराया है उसने मुझे। दो बार! अब उसे पता चलेगा रिजेक्शन कैसा लगता है। मैं उस पर हैरेसमेंट का केस डालूँगी।”

 

रिकॉर्डिंग खत्म हुई।

 

रिकॉर्डिंग ख़त्म होते ही कमरे में ऐसा सन्नाटा छा गया, जो किसी भी आवाज़ से ज़्यादा भारी था। कमरे में मौजूद हर नज़र रिया पर टिकी हुई थी।

जय चुपचाप बैठा था — न घमंडी, न गुस्से में — बस थका हुआ। सच सामने आने से संतुष्ट, लेकिन भीतर से सुन्न।

 

मायरा की नज़रें बर्फ़ जैसी ठंडी थीं। “अब और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं।”

 

डॉ. कमिनी ने फ़ाइल बंद की।

“तुमने न सिर्फ़ एक सहकर्मी को बदनाम करने की कोशिश की,” उनकी आवाज़ में ठंडापन था, “बल्कि इस संस्थान के भरोसे का भी ग़लत इस्तेमाल किया, मिसेज़ नायर।”

 

डॉ. शेट्टी उठ खड़े हुए। “यह पैनल डॉ. जय को तुरंत सभी आरोपों से मुक्त करता है। आधिकारिक बयान जारी किया जाएगा।”

 

एक अन्य सदस्य ने कहा, “और डॉ. रिया, आपको आगे की जाँच तक निलंबित किया जाता है। सुरक्षा आपको बाहर ले जाएगी।”

 

रिया का चेहरा टूट गया। “नहीं, रुको—मैंने ऐसा मतलब नहीं—” लेकिन कोई सहानुभूति नहीं थी।

 

मायरा ने कहा, “तुमने हर शब्द का मतलब रखा। बस बदक़िस्मत रही कि पकड़ी गई।”

 

जय ने उसकी ओर देखा तक नहीं।

 

सुरक्षा कर्मी आगे बढ़ा। रिया एक पल झिझकी, फिर उठी — इस बार आँखों में जीत नहीं, शर्म थी। दरवाज़ा बंद होते ही कमरा फिर चुप हो गया।

 

धीरे-धीरे पैनल के सदस्य बाहर निकल गए। बस जय, मायरा और काव्या बचे।

 

जय चुप बैठा था, पिछले दिनों का बोझ कंधों पर।

 

मायरा उसके पास आई, हाथ उसके कंधे पर रखा — गर्म, स्थिर।

“माफ़ करना, तुम्हें ये सब झेलना पड़ा,” उसने कहा।

 

जय ने उसकी ओर देखा, थका लेकिन आभारी। “ख़ुश हूँ कि ख़त्म हुआ… और माफ़ी मत माँगो। तुम्हें शुक्रिया कहना चाहिए… बॉस।”

 

मायरा मुस्कुरा दी।

 

तभी काव्या अंदर आई, और पहली बार जय से नज़रें मिलीं। उसने हल्का-सा सिर हिलाया — सहानुभूति नहीं, बल्कि साथ का इशारा। जय ने भी वैसा ही किया।

 

कुछ पल के लिए, तीनों वहीं खड़े रहे — शब्दों से नहीं, बल्कि सच्चाई से बंधे हुए। और एक ऐसी लड़ाई से, जो अब गहरे साए दिखाने वाली थी।

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Countinues in the next episode...