Chandrvanshi - 10 in Hindi Thriller by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 10

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चंद्रवंशी - अध्याय 10



रोती हुई माही को संभालती सायना और आराध्या की आँखों में भी आँसू बह रहे थे। पंडित लालची और धूर्त ज़रूर था। लेकिन किसी की ऐसी मौत अगर एक ब्राह्मण का हृदय भी न पिघला सके, तो वह ब्राह्मण कहलाने योग्य नहीं। इसलिए कुछ देर वह भी दुखी हो गया। उसके मन में भी यह विचार आया कि, चाहे अनचाहे इस पाप में उसका भी हाथ है।
ऐसे कठिन समय में माही अपना होश खो दे तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। यह सोचकर आराध्या आगे बढ़ी और रोम को माही को समझाने को कहा।
"नानकी मेरी छोटी बहन है, तेरा भाई तुझे कैसे रोने देगा। चल उठ खड़ी हो, तू भूल न जा कि हम सब भी उसी मुसीबत में फंसे हैं, जिसमें वे सब फंसे थे।"  
रोम बोला।
"हाँ माही! अभी हम उसके शिकंजे से बचे नहीं हैं।" सायना बोली।
"और अभी जीद को भी उस राक्षस से छुड़ाना है।" आराध्या बोली।
आराध्या की बात सुनकर पंडित होश में आया हो जैसे वहाँ से भागने लगा। किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। उल्टा उसके रास्ते पर वे सब भी वहाँ से निकलने की कोशिश करने लगे।
दूसरी ओर आदम के आदेश से निकले राहुल और उसके आदमी पंडित को खोज रहे थे। उन्होंने सबने अलग-अलग रास्ते पकड़ लिए।
पंडित थोड़ी देर में रोम और बाकी सबकी नजरों से ओझल हो गया। पीछे चलते चारों वैसे तो कोलकाता में रास्ता तो निकाल ही लेते, लेकिन आदम के लोग कौन हैं और कौन नहीं, यह केवल पंडित ही जानता था। कुछ देर वे वहीं आसपास घूमते चौराहे पर खड़े रहे। तभी एक अजनबी आदमी आया। उसने रोम से पूछा, "आदम के लोग आपके पीछे क्यों हैं?"
उसकी बात सुन सब हैरान रह गए।
"आप कौन?" रोम ने पूछा।
"मैं आपकी मदद करूँगा, आइए मेरे साथ।"
"हम तो आपको जानते भी नहीं, तो आप हमारी मदद क्यों करना चाहते हैं?" माही बोली।
"वह सब मैं आपको बताऊँगा। लेकिन अभी आप मेरे साथ चलिए।" अजनबी आदमी बोला।
सब उसके पीछे चलने लगे।

***

पांडुआ गाँव में फिर से पहुँचे माही और रोम हैरान रह गए। सायना और आराध्या को तो सब कुछ नया ही लग रहा था। एक अपनी मोहब्बत के लिए आई थी और दूसरी अपने भाई के साथ। बस इसी तरह सब इस चक्रव्यूह में जान-बूझकर या अनजाने में उलझते चले गए और अब यह अजनबी व्यक्ति उससे भी अधिक एक नया जुड़ गया। कहते हैं न कि राक्षस जितना खतरनाक दिखता है, उसका एकमात्र कारण उसका दुश्मन होता है। लेकिन उस अजनबी आदमी की आदम से क्या दुश्मनी होगी? यह सवाल माही और बाकी सभी के मन में उठ रहा था। 
जीद की माँ की हत्या और सूखा हुआ शरीर देखकर रोम थोड़ा गंभीर हो गया था। अब उसे मज़ाक सूझ नहीं रही थी। यह देखकर आराध्या भी उसकी ओर आकर्षित होने लगी थी।
"आप हमें कहाँ ले आए हैं?" रोम बोला।
"मेरे घर।" अजनबी आदमी बोला।
उसका घर पांडुआ गाँव के पीछे के जंगल से सटा हुआ था। जहाँ गाँव के लोग ज़्यादा आना-जाना नहीं करते थे। रोम और बाकी सभी ने उससे पूछा, "आप यहाँ क्यों रहते हैं? गाँव से दूर जंगल में बाघ आने की संभावना ज़्यादा होती है।"
वह हँस कर बोला, "बाघ... बाघ तो अभी आ ही गया है।"
उसकी बात सुन सब इधर-उधर देखने लगे। माही, सायना और आराध्या तीनों रोम के पास आकर खड़ी हो गईं। उसकी बात को गंभीरता से लेते हुए रोम बोला, "तू कौन है?"
"अरे... शांत, शांत, मैं ऐसा नहीं कह रहा। मैं तो ये कह रहा हूँ कि आदम क्या बाघ से कम है?"
वह अजनबी आदमी जैसे खुद को और अपने साथ जुड़े लोगों को किसी बड़ी लड़ाई की तैयारी के लिए यहाँ रखे हो, ऐसा बाहर से ही देखने में लग रहा था। घर के बाहर की सजावट और घर के चारों ओर बनी दीवार किसी कोर्ट की दीवार जैसी थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह घर नहीं बल्कि पुराने ज़माने की युद्ध काल की कोई पाठशाला हो। उसी वक्त घर के बाहर एक व्यक्ति आया और उस अजनबी व्यक्ति से कहकर बोला, "गुरुजी, भोजन तैयार हो गया है।"
"मेरे साथ इन चारों के भोजन की भी व्यवस्था कर देना।" अजनबी व्यक्ति बोला।
उसकी ऐसी उदारता देखकर आराध्या नम्रता से बोली, "आप हमारी मदद कर रहे हैं। हमें अपने घर लाए हैं और हमने अब तक आपका नाम भी नहीं पूछा। कृपया पहले हमें अपना नाम बताइए।"
आराध्या की बात सुनकर तीनों एक साथ बोले, "हाँ कृपया हमें अपना नाम बताइए।"
"मेरा नाम परम है। परम वै..." वह वाक्य पूरा करने ही जा रहा था कि एक और शिष्य ज़ोर से बोलता हुआ आया, "गुरुजी, वह स्त्री होश में आ गई है।"
"स्त्री?" चारों एक साथ बोले।
"हाँ, स्त्री! आइए मेरे साथ।" परम बोला।
चलते-चलते माही बोली, "यहाँ एक स्त्री, वह भी अजनबी?"
"हाँ, स्त्री! वह भी आपकी तरह आदम के चक्रव्यूह में फँस गई थी। कई दिनों से न तो खाना मिला था और न ही पानी, ऐसा डॉक्टर कह रहे थे।"
"वह कहाँ से मिली?" रोम बोला।
"वहीं से जहाँ से तुम निकले थे।" परम बोला।
"मतलब आपको पता था कि हम वहाँ छिपे हुए थे?" माही बोली।
"हाँ।" परम बोला।
"आपको वह स्त्री कैसे मिली?" आराध्या बोली।
"उस दिन मेरे शिष्य वहाँ से आए और आदम के उस घर से नीचे गिरे हुए हथियार लेकर निकल रहे थे। तभी किसी की आवाज़ सुनाई दी और वे ऊपर गए। उन्होंने जाकर सामने का कमरा खोला। वहाँ अठारह मृत महिलाएँ थीं। उन्होंने कुछ देर खड़े रहकर देखा लेकिन कोई आवाज़ नहीं आई। वे निकलने ही वाले थे कि तभी उन्हें एक तेज़ चीख सुनाई दी और उन्होंने वह कमरा खोला जिसमें वह स्त्री बंधी हुई थी। अंदर जाकर देखा कि वह स्त्री एक ज़ोर की चीख के बाद बेहोश हो गई थी। तो उन्होंने जल्दी से उसे खोलकर उसकी जगह एक और मृत महिला को उस कमरे में रख दिया और उस स्त्री की साड़ी व गहने उस मृत स्त्री को पहनाकर उसे साथ ले आए।" 
परम की बात पूरी होते ही सब वहाँ पहुँच गए जहाँ वह स्त्री थी। उसे देखते ही माही की आँखों में चमक दौड़ गई और वह अचानक उससे लिपट गई। वह स्त्री कोई और नहीं बल्कि जीद की माँ पारो थी।

***