ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः
ॐ सों सोमाय नमः
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नमः
कई पंडित चंद्रताला मंदिर के प्रांगण में बैठकर तीन बड़े यज्ञ कुंडों में हवन कर रहे थे। मंदिर की किले की दीवार के नीचे बड़ा गड्ढा खोदकर उसमें अग्नि प्रकट की गई थी। विनय, जॉर्ज, श्रेया और रोमियो भी बंदी हालत में वहाँ आदम के आदमियों के घेरे में खड़े थे। उसी समय राहुल, श्रुति और कोयले की खान के इंचार्ज बने पुलिसवाले को लेकर आया। आदम उन सभी के बीच बैठा था। जिद को मंदिर के गर्भगृह के बाहर खड़ा किया गया था। वहाँ उस भुंयार में जाने वाला मंत्रोच्चार वाला दरवाजा था। वह पत्थर की बनावट जैसा लग रहा था, जिसमें चंद्रवंशियों की वह अर्धचंद्राकार चाबी और चंद्रवंशियों का रक्त डालते ही वह द्वार हटकर मंदिर की गुफा का रास्ता खुल जाएगा। बस उसी राह में आदम वहाँ से दूर बैठकर भी वहीं नजर रखकर एकटक देख रहा था।
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी, श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु: ।
चन्द्रो मृतात्मा वरद: शशांक:, श्रेयांसि मह्यं प्रददातु देव: ।।1।।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम ।।2।।
चंद्रस्तुति से पंडितों ने यज्ञ की समाप्ति की। अब आदम अपनी जगह से उठकर आगे आया। अभी ताबीज मांगने के लिए जिद को धमका ही रहा था कि पंडित रवीनाथन आया। उसने धीरे से ताबीज आदम के हाथ में रखा। आदम खुश हुआ और उसने मुँह से इनाम मांगने को कहा। पंडित इनाम माँगे उससे पहले ही मंदिर के द्वार पर एक-एक कर के बंदी हालत में माही, सायना और आराध्या को लेकर आदम के आदमी आए। यह देखकर आदम और अधिक प्रसन्न हुआ और बोला, “आज एक ही साथ सबका खात्मा हो जाएगा।” सभी हँसने लगे।
अब एक पंडित ने देर ना करते हुए, ताबीज को खून से भिगोकर उसे खजाने के द्वार पर रखने को कहा। उसकी बात मानते हुए आदम आगे बढ़ा और अपने पैर में बंधे खंजर को निकालकर जिद के पास गया। उसने वह खंजर जिद की गर्दन पर फेरा। पंडितों ने आँखें बंद कर लीं। यह देखकर विनय अब सहन नहीं कर सका। उसने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और नीचे अंजाने में पड़ा लोहे का एक नुकीला टुकड़ा हाथ में लिया। बंधे हुए हाथों को थोड़ा दूर खड़े राहुल की पीठ के पीछे जाकर उसकी गर्दन में परोया और फिर उसके कंधे में लोहे का टुकड़ा घुसाकर निकाल लिया और सीधे उसकी गर्दन पर रख दिया। टुकड़ा लगते ही राहुल के मुँह से चीख निकल पड़ी। यह देखकर आदम खड़ा हो गया।
“आदम, तू चाहे आदमखोर हो, पर अब तेरी लड़ाई कोलकाता पुलिस से है। अगर इसे कुछ हुआ, तो इसे भी नहीं जीने दूँगा।” विनय बोला।
आदम के लोगों को विनय ने अपने साथियों को छोड़ने का आदेश दिया। सभी छूट गए और उनके पास से बंदूक और हथियार ले लिए। आदम ने अपने हाथ ऊपर किए। जिद की आँखों में आँसू थे। सभी पंडितों की नजरें विनय पर थीं। अचानक पीछे से उस खान के इंचार्ज बने पुलिसवाले ने विनय के सिर पर बंदूक तान दी।
विनय समझ गया कि वह पुलिसवाला अभी भी आदम के साथ ही है। आदम ने देखा कि राहुल के कंधे से खून बह रहा है।
“उसने मेरे बेटे का खून बहाया? (फिर थोड़ा मुस्कुराकर) बस उतना ही खून मुझे भी चाहिए था।” ऐसा कहकर उसने जिद के हाथ खोलकर उसका एक हाथ पकड़ा और हथेली पर चीरा लगाया। जिद के मुँह से एक जोरदार चीख निकल पड़ी। उसके नाजुक हाथ से खून की धार बहने लगी। आदम ने वही किया जैसा पंडित ने कहा था और वह द्वार खुलने लगा। सोने के लालची आदम ने जिद को दूर फेंक दिया।
उसी समय विनय के पीछे खड़े पुलिसवाले के सिर पर भी बंदूक तानी गई। द्वार खुलते ही आदम ने एक चौकोर गड्ढे के अंदर एक पुरानी सालों पुरानी पेटी जैसी संदूक देखी। वह पेटी उसने अपने हाथ में ले ली।
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विद्रोह
चंद्रताला मंदिर में कई लोग खड़े थे जो आदम के लिए काम कर रहे थे। उनमें से कुछ ने अपने मुँह को ढँक रखा था। उन्हीं में नए आए एक अजनबी ने उस पुलिसवाले के सिर पर बंदूक तान दी थी। आदम की नजर अभी वहाँ नहीं थी। विनय ने राहुल को नीचे गिरा कर अपने हाथ छुड़ाए और जिद की ओर दौड़ा। नीचे गिरी जिद के शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि वह और दौड़ सके। विनय ने उसे अपने दोनों हाथों से उठाकर मंदिर से दूर खड़ी माही की ओर ले गया और एक कपड़ा फाड़कर जिद के हाथ पर बाँधा।
उसी समय मुँह बाँधे खड़े व्यक्ति ने खाली खड़े दूसरे लोगों को बुलाया और उन्हें जिद को हाथ से पानी और साथ लाए फल देने को कहा। मंदिर में खड़ा आदम यह सब देख रहा था। उसने पुलिसवाले पर बंदूक ताने, मुँह बाँधे खड़े व्यक्ति की आँखों में देखकर कहा, “कौन है तू?”
उसने मुँह से कपड़ा हटाया। उसे देख आदम चौंक गया और बोला, “परम!”
“हाँ, वही परम जिसे तूने पीठ थपथपाने के लिए खंजर घोंपा था।” परम बोला।
आदम अपना प्रकोप दिखाते हुए बोला, “अब तक कहाँ छुपकर बैठा था?”
“महारानी ने मुझे बचाकर वचन लिया था कि जब तक चंद्रताला मंदिर पर कोई आपत्ति नहीं आती, तब तक तुझे छिपे वेश में रहकर उसकी रक्षा करनी है। आज मेरा वचन पूरा हुआ और तेरा जीवन भी।” परम बोला।
विनय ने जिद को माही को सौंपा और आदम के पास गया और उसके हाथ में रखी पेटी छीन ली। मुँह बाँधे खड़े लोगों में से एक आगे आया – वह रोम था। वह आया और राहुल के सिर पर बंदूक तान दी। विनय ने पेटी खोली और देखा कि उस पेटी के अंदर एक नक्शा था। विनय ने नक्शा देखा, उसमें लिखा था कि सोने की खान में कैसे प्रवेश करना है। उसने देखा कि अंदर छह पड़ाव हैं। उसके नीचे लाल पानी की गोल झील जैसी चित्रित थी। नक्शे में अंत में संस्कृत में लिखा था
“केवलं सः एव धनं प्राप्नोति। यः स्वजीवनं जनसेवायां समर्पयति।”
मतलब – “इस धन का उपयोग केवल नागरिक की सेवा में ही करना है।”
विनय पढ़ ही रहा था कि तभी बाहर से एक टोली आई और पीछे से सभी पर टूट पड़ी। वे और कोई नहीं बल्कि आदम के ही लोग थे। विनय ने ज्यादा सोचे बिना सोने की रक्षा के लिए दौड़कर नीचे हवन कुंड के पास बैठे पंडितों के पास जाकर नक्शे को हवनकुंड में फेंक दिया। सभी की नजरों के सामने जैसे अनगिनत सोना जल रहा हो, वैसे सभी वही देख रहे थे।
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एक खंजर लिए खड़े आदम के पैरों के पास तहखाने में परम बैठा था। परम के दोनों हाथ बंधे हुए थे। उसने जीवन में कई दुख झेले थे और अंत में रमणलाल मुखी की सेवा में रहकर अपने जीवन का उद्धार किया था।
"उस समय खंजर पीठ में ही घोंपा था और तू बच गया," आदम बोला।
"अगर तू राजकुमार और सुर्यांश जैसे वीरों के हाथों से बच सकता है, तो तारे जैसे कायर के किए हुए पीछे से वार से मैं मरूं, ऐसा तू मानता है?" परम अपना सिर उठाकर बोला।
"भूल हो गई, मेरी भूल। पीछे से मारकर मैंने बहुत बड़ी गलती की। अब ऐसी भूल नहीं करूंगा," कहकर आदम ज़मीन पर बैठकर पैरों के पास बैठे परम के सामने आया और उसकी छाती में खंजर घोंप दिया।
यह देखकर हवन कुंड के पास खड़ा विनय दौड़ा और आदम को मारने एक पत्थर लेकर कूदा। उसने अपने हाथ की पूरी ताक़त लगाई और अभी आदम के सिर तक पहुँच ही रहा था कि बीच में आदम का एक आदमी कूद पड़ा और आदम के सिर पर आने वाला पत्थर अपने सिर से झेलकर अपने प्राण त्याग दिए।
यह देखकर आदम मुस्कराकर बोला, "वाह! कितने समय से मेरा खा रहा था, आज एक ही बार में सब चुका दिया।"
आदम ने विनय की ओर देखा और अपने आदमियों को उसे मारने का आदेश दिया। तभी उनके बीच में जॉर्ज आ गया और बोला, "आदम, अगर उसे मार डालेगा तो खज़ाना कैसे पाएगा?"
"रुको!" आदम बोला। फिर जॉर्ज की ओर मुड़कर बोला, "तो उसे समझा, नहीं तो..."
"नहीं तो क्या बोल?" विनय बोला।
थोड़ा सोचता हुआ आदम ग़ुस्से में इधर-उधर देखने लगा और अचानक जीद को देखकर उसकी ओर गया और उसके गले पर छुरी रखकर बोला, "इसे मार डालूंगा।"
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