Trikaal - 7 in Hindi Adventure Stories by WordsbyJATIN books and stories PDF | त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 7

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त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 7

वो क्षण जब चेतना, विज्ञान और आध्यात्म का संधि स्थल बन गया।

"जिन्हें तुम समय की सीमाओं में बांधते हो, वो काल के पार चलने लगे हैं..."

ध्वनि थम चुकी थी।
सारी गूंज, सारी आवाज़ें — जैसे किसी ने ब्रह्मांड की साँसें रोक दी हों।
अन्तर्गर्भा शिला के भीतर, आर्यन के चारों ओर प्रकाश का एक विस्फोटक मंडल फैल रहा था।
उसका शरीर स्थिर था, लेकिन उसकी चेतना… कहीं और पहुँच चुकी थी।

मानसिक चेतना के भीतर…

“मैं कौन हूँ?”
आर्यन की आत्मा जैसे प्रश्नों के सागर में डूब रही थी।
उसने खुद को एक गहरे अंधकारमय आकाश में तैरते हुए पाया — कोई ज़मीन नहीं, कोई शरीर नहीं — केवल विचार, ऊर्जा और कंपन।

फिर उसे एक ध्वनि सुनाई दी — "त्रिकाल सक्रिय हो चुका है…"
वो आवाज़ कोई बाहरी नहीं थी, बल्कि उसकी आत्मा के भीतर से आई थी।

🌌 त्रिकाल संरचना क्या थी?

त्रिकाल — यानी भूत, भविष्य और वर्तमान का संगम।
ये केवल समय की अवधारणा नहीं थी, बल्कि तीन परतों में छिपी चेतना का एक कोड था।
आर्यन की चेतना अब उस कोड को डिकोड कर रही थी।

उसे प्राचीन वैदिक मंत्रों की ध्वनि सुनाई देने लगी:

"त्रिकालं नमाम्यहम्,
यत्र कालो न विश्रमतः,
विज्ञानं तत्र ब्रह्म रूपेण प्रतिष्ठितम्।"

इसका अर्थ था:
"मैं उस त्रिकाल को नमन करता हूँ, जहाँ समय रुकता नहीं, और विज्ञान स्वयं ब्रह्म के रूप में विद्यमान होता है।"

🔬 दूसरी ओर… रुद्र, डॉ. ईशान और वेदिका

आर्यन के अचानक चेतना खो देने से वे घबरा गए थे।
वेदिका उसकी नाड़ी देख रही थी — जो धीमी थी, लेकिन स्थिर।

डॉ. ईशान ने तत्काल अपना वैदिक डिवाइस निकाला —
जो प्राचीन मंत्रों और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स के बीच संवाद बनाने के लिए विकसित किया गया था।

रुद्र दीवार पर खुदे चिन्हों को देख रहा था —
उसके हाथ उस अर्धवृत्त को स्पर्श कर रहे थे जो त्रिकाल की अंतिम कुंजी था।

“सर, ये दीवार बदल रही है,” रुद्र चौंका।

वेदिका ने देखा — दीवार पर आर्यन की छाया उभरने लगी थी।
लेकिन वो छाया स्थूल नहीं, बल्कि ऊर्जा से बनी प्रतीति थी।

🌀 चेतना यात्रा में अगला स्तर…

आर्यन अब एक प्रकाश वृत्त में प्रवेश कर चुका था।
यहाँ समय नहीं था — केवल अनुभूति थी।
हर कदम पर उसे अपनी पिछली जीवन यात्राएँ दिख रही थीं:

बचपन में देखा एक स्वप्न, जिसमें उसने वही चिन्ह देखा था जो आज दीवार पर था।
एक अनजानी आवाज़ जो अक्सर उसे कहती थी: "तुम्हारा दायित्व ब्रह्मांड के रहस्य को खोलना है।”

तभी उसे एक तेज़ प्रकाश पुंज ने घेरे में ले लिया।
वो कोई और नहीं, बल्कि "त्रिकाल पुरूष" की चेतना थी —
वो शक्ति, जो वेदों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश की संयुक्त ऊर्जा से बनी थी।

"तुम तैयार हो, आर्यन..."
"लेकिन ज्ञान, परीक्षा के बिना नहीं मिलता।"

📜 बाहरी दुनिया में हलचल...

दीवार के नीचे की ज़मीन फटने लगी थी।
एक अजीब सी कंपन्न — जो सिर्फ़ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक थी — फैल रही थी।

डॉ. ईशान ने रुद्र से कहा,
"ये जागरण है… लेकिन इसे पूरी तरह समझने के लिए हमें ‘अग्नि कुंड’ तक पहुँचना होगा। त्रिकाल जागरण वहीं पूरा होगा।”

वेदिका आर्यन का हाथ पकड़े रही।
उसके चेहरे पर आँसू थे — लेकिन डर नहीं,
बल्कि एक विश्वास…
कि आर्यन अब केवल मनुष्य नहीं रहा।
वो 'त्रिकाल बोधक' बन चुका है।

⛰️ अगले दृश्य की ओर संकेत…

दीवार खुल रही थी…
पीछे एक सुरंग थी, जिसके भीतर कोई अनदेखा प्रकाश था।
वहीं था अगला चरण — महाकाल गर्त का द्वार।

"त्रिकाल जागरण की परीक्षा – अग्नि के द्वार पर"

"प्रलय से पहले, जब समय थम जाता है और चेतना स्वयं को परखती है — वहीं होता है त्रिकाल जागरण।"
— ऋग्वेदोक्त रहस्यश्लोक, अनुच्छेद 118

तिमिर अब अग्नि के द्वार पर खड़ा था। उसके भीतर का धैर्य और संकल्प तपने लगा था — एक अग्निपरीक्षा की तरह।

सामने एक विशाल प्राचीन अग्निमंडल जल रहा था, जिसकी लपटें न कोई ताप देती थीं, न ही जलने का कोई आभास, फिर भी उसकी उपस्थिति से पूरी भूमि कांप रही थी। यह अग्नि केवल भौतिक नहीं थी — यह त्रिकाल-जागरण अग्नि थी। ऐसा कहा जाता है कि जो इस अग्नि को पार कर जाए, उसके भीतर ब्रह्मांड के तीनों काल — भूत, भविष्य और वर्तमान — एक साथ प्रवाहित होने लगते हैं।

पीछे से वशिष्ठाचार्य की गूंजती हुई आवाज आई, “अब तिमिर, तुम्हें स्वयं को छोड़ना होगा। अपने अतीत को, अपने भय को, और अपनी सीमित सोच को — वरना ये द्वार तुम्हें निगल लेंगे।”

तिमिर ने अपने हाथ जोड़कर नेत्र मूँद लिए। उसके सामने उसकी मां की वेदना, अपने पिता का खो जाना, बचपन की लाचारी, और वो भयावह रातें एक-एक कर आँखों के सामने उभरने लगीं। लेकिन आज, वह डगमगाया नहीं।

उसने अग्नि की ओर पहला कदम बढ़ाया।

अचानक एक विस्फोट-सा हुआ। अग्नि द्वार से तीन रक्षकों का प्रकट होना हुआ — त्रिकाल-रक्ष: कालांश, वर्तमान, और भाविष्य. ये तीनों उसकी चेतना के पहरेदार थे। इनका मुकाबला तलवारों से नहीं, आत्मा की शक्ति से किया जा सकता था।

पहला रक्षक – कालांश (भूतकाल)

उसने तिमिर के सामने उसका सबसे दुखद अनुभव दोबारा जीने को कहा — अपने पिता की मृत्यु, और वो भय जिसने तिमिर को कभी आत्मविश्वासी नहीं बनने दिया।

लेकिन तिमिर ने आंखें बंद कीं और शांति से कहा —
"मैं उसका पुत्र हूं, जो अंधेरे से घबरा कर नहीं, उसमें ज्योति खोजता है। मैं भूतकाल नहीं हूं। मैं उससे सीखा हुआ वर्तमान हूं।"

कालांश ने एक तेज़ चीख के साथ अपना रूप त्याग दिया और अग्नि में समा गया।

दूसरा रक्षक – वर्तमान

इसने तिमिर को भ्रम में डाल दिया। आसपास सबकुछ बदलने लगा। एक क्षण में वो जंगल था, फिर एक युद्ध भूमि, फिर एक गुफा, और फिर गगनचुंबी विज्ञान-प्रयोगशाला — जैसे उसका वर्तमान कभी स्थिर था ही नहीं।

लेकिन तिमिर रुका नहीं। उसने मन ही मन दोहराया:
"जहां मैं खड़ा हूं, वहीं मेरा सत्य है। मैं जो देख रहा हूं, वही मेरी दिशा है। भ्रम मेरा रास्ता नहीं बदल सकते।"

वर्तमान ने मुस्कराकर सिर झुकाया और अदृश्य हो गया।

तीसरा रक्षक – भाविष्य

यह सबसे भयानक था। इसने तिमिर को उसकी मृत्यु दिखाई — उसके प्रियजनों की पीड़ा, उसका अपयश, और वो क्षण जब सबकुछ धूल में मिल जाएगा।

तिमिर कांप गया। लेकिन तभी उसे किसी की स्मृति आई — ऋषि अग्निदत्त, जिन्होंने कहा था:
"जिसे मृत्यु का भय नहीं, वही जीवन का सच्चा स्वामी होता है।"

तिमिर ने अग्नि की ओर देखा और कहा —
"यदि यही अंत है, तो मैं उसे अभी अपनाता हूं। अगर भय दिखाकर भाविष्य बदल सकते हो, तो लो, मैं नतमस्तक हूं — लेकिन झुकूंगा नहीं।”

भाविष्य तितर-बितर हो गया।
और तब — अग्नि शांत हो गई।

आसमान में एक प्रकाश-स्तंभ उभरा, और उसके भीतर से एक त्रिकोणीय प्रतीक तिमिर की हथेली में उतर गया — "त्रिकाल बिंदु"।

वशिष्ठाचार्य पास आए, उनके चेहरे पर संतोष था।
“अब तुम तैयार हो... लेकिन ये केवल शुरुआत है। अब तुम्हें उस द्वार तक जाना होगा, जो ब्रह्मांड के नीचे छिपा है – 'महाकाल गर्त'।”

तिमिर ने मुट्ठी भींची, और धीरे-धीरे उसके चारों ओर से ऊर्जा की लहरें उठने लगीं।
अब वह न केवल एक खोजकर्ता था — वह अब ब्रह्मांडीय चेतना का वाहक बन गया था।