हर्ष पर्वत यात्रा – अनुभव और विचार
हम सब भविष्य की चिंता करते हैं, और उसे सुधारने के लिए वर्तमान में भाग-दौड़ भी करते हैं ।
पर सच तो यह है कि हम जिस भविष्य की चिंता करते हैं, क्या उसमें हम होंगे भी?
यही सोच मन में उठी और लगा — कुछ भी तय नहीं होता, जैसा हम देखना चाहते हैं।
हाल ही में हम सीकर (राजस्थान) की यात्रा पर गए।
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यात्रा की शुरूवात
मेरा वैसे जाने का मन नहीं था।
मगर अचानक दोस्त कुलदीप का फोन आया, अजय भी साथ था।
उन्होंने कहा – “15 अगस्त से 17 तक बैंक की छुट्टी है, क्यों न दर्शन के लिए चलें। कुलदीप की कार होगी और अनिल भी साथ हो जाएगा । ”
हम चारों निकल पड़े, नए अनुभव की तलाश में।
मन में यही था कि यात्रा सामान्य होगी – दर्शन करेंगे और लौट आएंगे।
पर सुबह जैसे ही हम हर्ष पर्वत की ओर निकले, सब कुछ बदल गया।
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हर्ष पर्वत की और
रास्ता घुमावदार और कई जगह सँकरा था।
पहाड़ मानो अभी गिरने वाले हों – कच्चे और भुरभुरे।
सौभाग्य से बारिश नहीं थी, वरना चढ़ाई और कठिन होती।
जैसे-जैसे हम ऊपर पहुंचे, मन में सवाल आया –
“ये जगह आखिर है क्या?”
वातावरण अद्भुत था।
मंदिर के चारों ओर का दृश्य, पहाड़ियों पर घूमती पवन चक्कियाँ और सबसे अनोखी बात – मंदिर की दीवारों पर हाथों से की गई नक्काशी।
वहां जाकर सच में महसूस हुआ –
“राजस्थान कला और संस्कृति का धनी है।”
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इतिहास और आस्था
मुगलों ने भले हमारे मंदिर लूटे, उन्हें तोड़ा और इतिहास को मिटाने की कोशिश की,
पर वे भारतीयों के दिल से आस्था नहीं निकाल सके।
मेरे दोस्तों अजय और कुलदीप ने सही कहा –
यह मंदिर हमारी आस्था की मिसाल है।
आज हम जो देख रहे हैं वह महज ढांचा है,
असल वैभव तो मुगलों की तोड़फोड़ में मिट गया।
हमारा सनातन धर्म यही सिखाता है –
“दूसरे धर्म की इज्ज़त करो, उनकी बुराई मत करो।”
पर औरंगज़ेब ने इसे हमारी कमजोरी समझा और हमारी धरोहर कुचल दी।
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टूटे हुए अवशेष और सीख
हमने वहां टूटी हुई मूर्तियों को ध्यान से देखा।
कुछ इतनी क्षतिग्रस्त थीं कि पहचानना कठिन था।
दीवारों पर उकेरे गए पत्थरों को देख कर अनिल बोला –
“मैंने कई किले और मंदिर देखे हैं,
पर यहां आकर मन में उदासी है।
इतनी सुंदर कला को क्यों मिटा दिया गया?”
हमने बुजुर्गों से भी बात की।
उनका एक विचार मन को बहुत छू गया –
**“कितनी भी पुरानी किताब उठा लो,
हर जगह लिखा मिलेगा कि पहले का दौर अच्छा था और आज का बुरा।
राम जी के समय में भी लोग दुखी थे और कहते थे –
पहले का युग बेहतर था।
तो जो घटना आप हर्ष मंदिर के साथ देख रहे हैं,
वह कोई नई नहीं है।
हर निर्मित चीज़ एक दिन मिटती है।
पर खुशी इस बात की है कि हमने अपनी धरोहर को देखने और महसूस करने का अवसर पाया। ”**
जैसे श्री कृष्ण कहते हैं -
वक्त तय है ,
जगह तय है ,
घटना तय है ,
घटित होना तय है , , !!
हमारे साथ होने वाली घटना को प्रकृति का होना ही मान लेना , एक अलग ही सुख देता है ।
हम होते देख रहे है या होने के बाद ,
सब प्रकृति ने पहले से तय कर रखा ।
निष्कर्ष
इस यात्रा से मैंने सीखा –
भविष्य की चिंता छोड़कर, वर्तमान में जो धरोहर और अनुभव हैं,
उन्हें जीना ही जीवन की सच्ची पूंजी है।
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