तहखाने का भारी दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुला। जैसे ही चिराग और राधिका अंदर कदम रखते हैं, घुप्प अंधेरा उनके चारों ओर छा जाता है। टॉर्च की हल्की-सी किरण दीवारों पर पड़ते ही जाले हिलने लगे। हवा इतनी ठंडी थी कि साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।
अचानक टॉर्च की रौशनी में एक आकृति उभरती है।
वो थी — नंदिनी।
उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूखे हुए और आँखों में खून उतर आया था। लेकिन सबसे डरावनी बात थी उसके माथे पर चमकता हुआ खून का टीका।
राधिका के मुँह से चीख निकल गई—
“नंदिनी… तुम तो… तुम तो मर गई थीं!”
नंदिनी की आँखों में अजीब-सी चमक उभरी। उसने धीमे स्वर में कहा—
“मरे हुए को तुमने देखा कहाँ है, राधिका? मौत और ज़िंदगी के बीच भी एक जगह होती है… वहीं मैं कैद हूँ।”
चिराग ने कदम बढ़ाया—“ये कैसे हो सकता है?”
नंदिनी ने हल्की-सी मुस्कान दी, लेकिन वह मुस्कान डर से भरी हुई थी।
“जिसे ये टीका छू लेता है, वो इस हवेली की दासी बन जाता है। मैंने इस हवेली के रहस्य जानने की कोशिश की थी… और उसी रात मेरे माथे पर ये टीका लगाया गया। तब से मैं न जिंदा हूँ, न मरी हुई।”
उसके शब्द सुनकर राधिका की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
नंदिनी धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसकी परछाई दीवारों पर फैलकर कई गुना बड़ी हो गई थी।
“तुम्हें लगता है ये हवेली बस पुरानी दीवारों और कमरों से बनी है? नहीं… ये हवेली औरतों के खून से जिंदा है। हर पीढ़ी में किसी न किसी स्त्री को बलि देना पड़ता है। तभी हवेली के बंधन टूटते हैं।”
राधिका काँपते हुए बोली—“और इस बार…?”
नंदिनी की आँखें सीधे राधिका पर टिक गईं। उसकी आवाज़ पत्थर जैसी कठोर हो गई—
“इस बार… तुम्हारा नंबर है।”
राधिका के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
चिराग गुस्से से चिल्लाया—
“नहीं! मैं तुम्हें ऐसा करने नहीं दूँगा। राधिका को कोई नहीं छू सकता।”
नंदिनी ने उसकी ओर देखा और ठंडी हँसी छोड़ दी—
“तुम सोचते हो ये खेल तुम्हारे बस का है? इस हवेली का इतिहास खून से लिखा गया है, और उसे मिटाना तुम्हारे हाथ में नहीं। चिराग… अगर कोई इसे रोक सकता है, तो वो भी अपनी जान देकर।”
इतना कहकर नंदिनी अचानक हवा में विलीन हो गई। उसकी जगह बस हल्की-सी धुंध रह गई, और उस धुंध में उसकी हँसी गूंजती रही।
राधिका सिहरते हुए बोली—
“चिराग… अगर वो सच बोल रही थी, तो अगली बलि मैं ही हूँ।”
चिराग ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। उसकी आँखों में आंसू और गुस्सा दोनों थे।
“जब तक मैं ज़िंदा हूँ, ये हवेली किसी को छू भी नहीं सकती। मैं इस खेल को यहीं खत्म कर दूँगा।”
उसी वक्त तहखाने की दीवार पर खून से खुद-ब-खुद एक नया वाक्य उभर आया—
“टीका लग चुका है… अगला सूरज तुम्हारे लिए नहीं उगेगा।”
राधिका के पैरों में जैसे जान ही नहीं बची। उसने काँपते हुए पूछा—
“क्या ये चेतावनी है… या फैसला?”
चिराग ने गहरी साँस ली।
“अब हमें जल्दी ही सच ढूँढना होगा। वरना ये हवेली सचमुच हम दोनों को निगल जाएगी।”
बाहर अचानक बिजली कड़की और हवेली की नींव जैसे हिल उठी। सन्नाटे में सिर्फ़ एक चीज़ साफ़ थी—
खून का टीका अब अपने अगले शिकार की तलाश में था।