Internet ki Duniya - 4 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | इंटरनेट की दुनिया - भाग 4

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इंटरनेट की दुनिया - भाग 4



आशा किरण डिजिटल पाठशाला 


कार एक चाय की दुकान पर आकर रुकी। कार से निमिषा भास्कर अपने सहयोगी संदीप प्रजापति के साथ नीचे उतरी। उसने संदीप से कहा,

"एक एक चाय पी लेते हैं उसके बाद आगे बढ़ते हैं।"

निमिषा और संदीप ने अपने पैर सीधे किए।‌ ड्राइवर ने तीन कप चाय का ऑर्डर दे दिया। निमिषा संदीप के साथ खाली पड़ी बेंच पर जाकर बैठ गई। संदीप ने कहा,

"अभी तो लगभग एक घंटे का रास्ता बचा है।"

निमिषा ने वक्त देखा। वह बोली,

"फिर भी समय से पहुँच जाएंगे।"

ड्राइवर पास में खड़ा मोबाइल पर कुछ देख रहा था। निमिषा ने उसे कार से पानी निकालने को कहा। पहले निमिषा ने पानी पिया उसके बाद संदीप ने। कुछ देर में एक लड़का तीन कप चाय लेकर आ गया। तीनों चाय पीने लगे।


निमिषा भास्कर एक ऑनलाइन न्यूज़ चैनल विज़न न्यूज़ की पत्रकार थी। वह चैनल के लिए सच्ची और प्रेरणादायक कहानियां कवर करती थी। संदीप प्रजापति कैमरामैन था। वह हर स्टोरी को निमिषा के साथ अपने कैमरे में कैद करता था। 

निमिषा ने चाय पीते हुए कहा,

"संदीप पहले गांव की कुछ फुटेज ले लेंगे। उसके बाद गांव वालों से बात करेंगे। आखिरी में आशा, पूनम और दीपक को एक साथ बैठाकर उनसे इस तरह सवाल करेंगे जिससे कहानी अच्छी तरह से हमारे दर्शकों तक पहुँच‌ सके।"

संदीप ने हंसकर कहा,

"निमिषा तुम कल से चार बार ये सब बता चुकी हो। हम साथ में पहली स्टोरी कवर नहीं कर रहे हैं। ये स्टोरी साथ में हमारी पचासवीं स्टोरी होगी।"

निमिषा ने चाय का कप उठाते हुए कहा,

"चियर्स टू दैट...."

चाय पीने के बाद उनकी कार एकबार फिर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ गई।


सुदूर स्थित हरकामऊ नामक गांव मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बना हुआ था। 

हरकामऊ उत्तर भारत का एक छोटा सा गांव था। अब तक इस गांव का ज़िक्र कभी होता भी था तो इसके पिछड़े पन के लिए होता था। कुछ साल पहले जब महामारी फैली थी तब यहाँ मौत के आंकड़ों ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। उस दुखद और नकारात्मक समाचार के बाद इस समय गांव एक बहुत ही सुखद और सकारात्मक खबर के कारण चर्चा में था। 


गांव में शिक्षा का स्तर बहुत कम था। इस गांव से अब तक एक भी ग्रैजुएट नहीं निकला था। लड़के बहुत हुआ तो बारहवीं तक ही पढ़ते थे। लड़कियों की शिक्षा का स्तर उससे भी बदतर था। एक तो लोग लड़कियों को पढ़ाने के पक्ष में ही नहीं थे। अगर कोई लड़की पढ़ती भी थी तो आठवीं कक्षा से ऊपर नहीं बढ़ पाती थी। गांव में एक स्कूल था जो सिर्फ आठवीं कक्षा तक था।

उसी हरकामऊ गांव से पूनम कुमारी ने दसवीं की बोर्ड परीक्षा में अपने जिले में पहला स्थान प्राप्त किया था। अब वह आगे की पढ़ाई करने वाली थी। हरकामऊ के लिए ये उपलब्धि बहुत बड़ी थी।

पूनम कुमारी की इस सफलता के पीछे आशा देवी की मेहनत और एक ऐसा प्रयास था जिसने हरकामऊ में ज्ञान प्राप्त करने की एक जोत जला दी थी। उनके इस प्रयास से हरकामऊ और आसपास के गांव वाले लाभान्वित हो रहे थे।


दीपक और पूनम गांव के अंदर दाखिल होने वाली सड़क के किनारे खड़े थे। दोनों निमिषा और उसके सहयोगी के स्वागत के लिए खड़े थे। पूनम‌ ने अपने पास खड़े दीपक से कहा,

"भइया आज हमारे गांव के लिए कितना बड़ा दिन है‌। न्यूज़ वाले आ रहे हैं।"

दीपक ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा,

"गांव को ये इज्ज़त दिलाने वाली तो तुम हो। तुम्हारे कारण ही तो लोग इस गांव का नाम जान पाए हैं।"

पूनम ने कहा,

"भइया हम कुछ कर पाए हैं तो आशा दीदी की बदौलत। नहीं तो हमने कभी सोचा भी नहीं था कि ये दिन देख पाएंगे।"

दीपक ने उसकी बात का समर्थन किया। पूनम ने कहा,

"वैसे आप ना होते तो आशा दीदी का सपना पूरा होना मुश्किल था।"

"मैं तो वही करने आया था जो मेरा काम था। तारीफ तो आशा दीदी की है जिन्होंने उस माहौल में जहाँ सपना देखना ही बहुत बड़ी बात है उसे सच करने का काम किया है।"

एक कार सड़क पर आकर रुकी। दीपक और पूनम कार के पास गए। निमिषा ने अपनी विंडो का शीशा खोलकर बाहर झांका। दीपक उसके पास आ गया। उसने कहा,

"विज़न न्यूज़.... निमिषा जी...."

"आप दीपक पांडे..."

"हाँ....अब बस कुछ ही दूर है। रास्ता कच्चा है पर गाड़ी आराम से चली जाएगी। आप मेरी मोटरसाइकिल के पीछे पीछे आइए।"

निमिषा की नज़र पूनम पर पड़ी। उसने उसे अपने पास बुलाया। 

"तुम पूनम हो?"

"हाँ... भइया के साथ हम भी आप लोगों को लेने आ गए।"

"आओ कार में बैठ जाओ।"

निमिषा ने दरवाज़ा खोला और थोड़ा खिसक गई। पूनम कार में बैठ गई। दीपक मोटरसाइकिल पर आगे चलने लगा और कार उसके पीछे पीछे।


दीपक की मोटरसाइकिल एक जगह जाकर रुकी। ड्राइवर ने भी कार वहीं खड़ी कर दी। पूनम निमिषा और संदीप कार से उतर गए। दीपक ड्राइवर को कार पार्क करने की सही जगह दिखाने ले गया। निमिषा की निगाह भवन पर लगे बोर्ड पर गई। 

आशा किरण डिजिटल पाठशाला 

उसने संदीप से कहा,

"सबसे पहला शॉट इस बोर्ड का लेना।"

संदीप ने सर हिलाकर हाँ कहा।

आशा देवी ने निमिषा और संदीप का स्वागत किया। वहाँ कुछ गांव वाले भी मौजूद थे। आशा देवी ने एक बुज़ुर्ग से मिलवाते हुए कहा,

"आप हमारे गांव के प्रधान जगदीश प्रसाद जी हैं।"

निमिषा और संदीप ने उन्हें नमस्ते किया। जगदीश प्रसाद ने कहा,

"आप लोग दूर से आए हैं। अंदर चलकर जलपान कर लीजिए। उसके बाद अपना काम कीजिएगा।"

आशा देवी और पूनम उन लोगों को अंदर ले गईं। कार सही जगह पार्क करवा कर दीपक भी ड्राइवर के साथ आ गया था। 

चाय नाश्ते के बाद निमिषा ने संदीप से कहा,

"अब काम पर लग जाओ। चलकर पहले गांव की कुछ फुटेज लेते हैं। लोगों से बात करते हैं। उसके बाद यहाँ आकर इंटरव्यू करना है।"

संदीप और निमिषा अपने काम पर लग गए। दीपक एक गाइड की भूमिका में था। वह उन लोगों को गांव के कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ले गया। संदीप सब अपने कैमरे में कैद कर रहा था।‌ दीपक उन लोगों को एक जगह पर ले गया। वहाँ का नज़ारा अलग था। एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था। उसके पास ही छायादार बारादरी थी। पेड़ के नीचे और बारादरी में बच्चे, बुज़ुर्ग और औरतें इकठ्ठा थे। अधिकांश के पास मोबाइल, टैब या लैपटॉप था। जिनके पास नहीं था वो दूसरे के स्क्रीन में देख रहे थे। दीपक ने कहा,

"ये कम्यूनिटी वाईफाई हॉटस्पॉट है। इस वक्त सब ऑनलाइन अपनी अपनी पसंद के अनुसार कोई वीडियो देखकर या पढ़कर कुछ सीख रहे हैं।"

निमिषा ने संदीप से कहा,

"यहाँ लोगों से बातचीत करते हैं।"

उसने बरगद के पेड़ के नीचे बैठे कुछ बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा,

"पहले उधर चलते हैं।"

अपना माइक लेकर वह उन बच्चों की तरफ बढ़ गई। संदीप भी अपने कैमरे के साथ उनकी तरफ बढ़ा। वहाँ कुछ लड़के लड़कियां बैठे थे। बच्चों के पास पहुँच कर उसने कहा,

"मैं तुम लोगों से बात करना चाहती हूँ। क्या तुम लोग मुझसे बात करोगे?" 

बच्चों ने एकसाथ हाँ कहा। निमिषा ने संदीप को कुछ निर्देश दिए। उसके बाद उसने उनसे बातचीत शुरू की। उसने कहा,

"तुम लोग यहाँ इकठ्ठा होकर क्या कर रहे हो?"

उन बच्चों में एक लड़की ने जवाब दिया,

"हम सब लोग यहाँ इकठ्ठा होकर ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं। यहाँ हमको वाईफाई मिलता है। अपने फोन को उससे कनेक्ट करके कोई ना कोई विषय से संबंधित ऑनलाइन वीडियो देखते हैं। ई बुक्स डाऊनलोड कर लेते हैं जिन्हें हम बाद में आराम से अपने घर पर बैठकर पढ़ लेते हैं।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है। अभी कौन सा विषय पढ़ रहे थे।"

एक दूसरी लड़की ने कहा,

"हम दोनों अंग्रेज़ी बोलने की क्लास ले रहे थे। हम रोज़ एक घंटे यहाँ आकर विक्रम सर के इंग्लिश स्पीकिंग के वीडियोज़ देखते हैं।"

"क्या तुम लोग इंग्लिश बोल लेती हो?"

दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और एक साथ बोलीं,

"यस वी कैन...."

कुछ और लड़कियों से बात की तो उन्होंने बताया कि उनके लिए पढ़ाई अब पहले से आसान हो गई है। इंटरनेट का इस्तेमाल करके वो सभी बहुत कुछ सीख पा रही हैं।

सभी लड़कियां पूनम की सफलता से प्रभावित थीं और उसके जैसे ही नाम करना चाहती थीं।


निमिषा लड़कियों से हटकर दो लड़कों के पास गई। उन्होंने बताया कि दोनों दसवीं कक्षा में हैं और गणित विषय पढ़ रहे हैं। स्कूल में उनके शिक्षक उनकी मदद के लिए वीडियो बनाकर भेजते हैं जिसमें वह गणित के पढ़ाए गए पाठ को समझाते हैं। दोनों उनकी सहायता से गणित के प्रश्न हल‌ करते हैं। 

उन लड़कों का भी यही कहना था कि जबसे इंटरनेट उनके जीवन में आया है उनके लिए ‌सीखने के कई दरवाज़े खुल गए हैं।

उन बच्चों के पास से निमिषा औरतों के एक समूह के पास गई। एक लैपटॉप पर कोई वीडियो चल रहा था। तीन चार महिलाएं उसे ध्यान से देख रही थीं। निमिषा ने उनसे बात की। उन महिलाओं की मुखिया ने बताया कि वो सभी इंटरनेट पर छोटे उद्योग जिन्हें कुटीर उद्योग कहते हैं के बारे में सीख रही थीं। वो सभी अपना एक काम शुरू करना चाहती हैं। 

निमिषा ने मर्दों से बात की। उनका कहना था कि वो सभी यहाँ आकर इंटरनेट के ज़रिए देश और दुनिया के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। खेती के संबंध में कुछ नई चीज़ें सीखते हैं।

पूरे गांव में घूमते हुए निमिषा ने बहुत से लोगों से बात की। अधिकांश लोगों का ये कहना था कि आशा देवी के प्रयास के कारण उनके जीवन में एक सुखद बदलाव आया है। निमिषा अब जानने को उत्सुक थी कि आशा किरण डिजिटल पाठशाला कैसे शुरू हुई? 

वह संदीप के साथ आशा किरण डिजिटल पाठशाला वापस जा रही थी। वहाँ पहुँच कर वह सारी कहानी जानना चाहती थी। वापस लौटते हुए उसने दीपक से पूछा,

"कम्यूनिटी वाईफाई हॉटस्पॉट में सबके पास कोई ना कोई डिवाइस थी। लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी तो नहीं लगती है कि वो महंगी डिवाइस खरीद सकें। इनके पास ये सब कहाँ से आया।"

दीपक ने जवाब दिया,

"एक शेर है ना कि मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। आशा दीदी ने एक प्रयास किया तो लोग उनकी मदद के लिए आगे आए। ये सारी डिवाइसेस चाहें टैब हों, मोबाइल हों या लैपटॉप सब खुर्शीद अनवर साहब की मदद है। जब महामारी फैली थी और स्कूल बंद थे तब ऑनलाइन पढ़ाई ही एक ज़रिया थी। समस्या थी कि हर बच्चे के पास मोबाइल या लैपटॉप जैसी चीज़ नहीं थी। तब खुर्शीद साहब ने एक मुहीम चलाई थी। लोगों से अपील की थी कि अपने यहाँ बेकार पड़ी ऐसी डिवाइसेस उन्हें डोनेट करें। लोगों ने भी दिल खोल दिया। खुर्शीद साहब ने उन्हें ज़रूरतमंदों में बांटना शुरू कर दिया। महामारी के बाद ऑनलाइन पढ़ाई एक अच्छे विकल्प के रूप में उभरी। खुर्शीद साहब की मुहिम जारी रही। जब उन्हें हमारे गांव के बारे में पता चला तो उन्होंने यहाँ भी अपनी मदद पहुँचाई।"

संदीप ने कहा,

"तो इस कारवां में बहुत से लोग शामिल हैं।"

"बिल्कुल.... समाज में बदलाव के लिए बहुत से लोगों का साथ चाहिए होता है। एक आदमी पहल करता है और बाकी उसके साथ जुड़ जाते हैं। मैं एक और नाम लेना चाहूँगा। शिव माधवानी जी का।"

संदीप ने कहा,

"माधवानी सोलर एनर्जी वाले..."

"जी वही.... डिवाइसेस की समस्या तो खुर्शीद साहब ने दूर कर दी। बिजली एक बड़ी समस्या थी। बहुत कम समय के लिए आती थी। ऐसे में बच्चों को दिक्कत होती थी। शिव माधवानी ने गांव में सोलर पैनल लगवाए। अब बिजली की कमी सोलर एनर्जी से पूरी होती है।"

इतना कुछ जानने के बाद निमिषा कहानी को शुरुआत से जानने के लिए बेचैन हो गई थी।


निमिषा और संदीप ने मिलकर इंटरव्यू का सारा सेटअप कर लिया। आशा देवी को बीच में बैठाया गया। उनके दाईं तरफ पूनम और बाईं तरफ दीपक बैठे थे। निमिषा ने संदीप को इशारा किया। उसने कैमरा निमिषा की तरफ कर दिया। निमिषा ने शुरुआत आशा डिजिटल पाठशाला के बारे में बताने से की।

"आज मैं एक बहुत ही अनोखी जगह बैठी हूँ। ये एक डिजिटल पाठशाला है। यहाँ उन लोगों को शिक्षा मिलती है जो स्कूल नहीं जा सकते हैं पर शिक्षित होने का अपना सपना पूरा करना चाहते हैं। उन लोगों को भी इस पाठशाला से मदद मिलती है जो स्कूल तो जाते हैं पर उन्हें अतरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है। इस पाठशाला ने इस गांव की उन बच्चियों को आगे बढ़ने में मदद की है जिन्हें आठवीं कक्षा के बाद स्कूल दूर होने के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ती थी। ऐसी ही एक बच्ची है पूनम कुमारी। पूनम ने इस पाठशाला की सहायता से आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए दसवीं की परीक्षा में पूरे जिले में पहला स्थान हासिल किया है। आइए पूनम से जानते हैं कि उसने ये उपलब्धि कैसे हासिल की।"

संदीप ने कैमरा पूनम की तरफ कर दिया। पूनम ने चेहरे पर मुस्कान लिए हुए उन लोगों को नमस्कार किया जो उसके इस इंटरव्यू को देखने वाले थे। उसने जवाब देते हुए कहा,

"हमें पढ़ना बहुत अच्छा लगता था। पढ़ लिखकर आगे बढ़ना चाहते थे पर हमारे सामने भी वही समस्या थी जो बाकी लड़कियों के सामने। आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई के लिए बहुत दूर जाना पड़ता था। घरवाले लड़कियों को भेजने को तैयार नहीं होते थे। इसलिए उनकी पढ़ाई छूट जाती थी। हमारी भी छूट गई थी। हम बहुत दुखी थे। घरवालों को मनाने की कोशिश की पर वो नहीं माने। हम हारकर बैठ गए। हमने सोच लिया था कि बाकी लड़कियों की तरह हमारी पढ़ाई भी बस यहीं तक थी।"

पूनम रुकी। उसने आशा देवी की तरफ़ देखा‌। वह आगे बोली,

"आशा दीदी ने हमें नई उम्मीद दी। इन्होंने कहा कि महामारी के समय जैसे लोग ऑनलाइन पढ़ाई करते थे वैसे ही अब भी कर सकती हो। महामारी के समय तो हमारी पढ़ाई ठीक से हो नहीं पाई थी। हमारे पास कोई साधन ही नहीं था। हम थोड़ा बहुत जो पढ़ सके थे उसके दम पर पास हुए थे। हमें तो ये असंभव सा लगा था पर दीदी ने हमें यकीन दिलाया कि ऐसा होगा। हमने दीदी की बात मानी। मेहनत की और वो कर दिखाया जिसकी हमको भी उम्मीद नहीं थी।"

"पर तुमने सचमुच कमाल कर दिया।"

"जो भी हुआ है वह आशा दीदी के कारण ही हुआ है।"

थोड़ा रुककर इंटरव्यू दोबारा शुरू हुआ। निमिषा ने आशा देवी से सवाल किया कि उन्हें इस तरह की डिजिटल पाठशाला बनाने का खयाल कैसे आया? आशा देवी ने कहा,

"पूनम के घर से हमारा पुराना नाता है। बचपन से हमने इसको देखा है। यह बहुत खुशदिल लड़की है। पर उन दिनों यह हमेशा उदास रहती थी। हम जब इसे देखते थे हमें अच्छा नहीं लगता था। इसके घरवालों का कहना था कि बेवजह की बात मन में लगाकर दुखी है। उनका कहना था कि इस गांव में लड़कियों की पढ़ाई छूट जाना कोई नई बात तो है नहीं। उनकी ये बात हमें भी पीड़ा पहुँचाती थी। हमारे घरवालों ने भी हमारी पढ़ाई छुड़ा दी थी। हमने कभी किसी से कहा नहीं था पर इस बात का दुख हमारे अंदर भी था। हम चाहते थे कि पूनम की कुछ मदद करें।"

आशा देवी ने अपने दुख की बात कही थी। निमिषा ने कहा,

"आपको भी आगे पढ़ने से रोका गया था। आप मुझे उसके बारे में बताइए।"

आशा देवी कुछ क्षण रुकीं।‌ ऐसा लग रहा था कि जैसे अपने अतीत को खंगाल रही हों। उन्होंने कहा,

"जब हम दसवीं में थे तो एक सदी का अंत हुआ था और नई सदी शुरू हुई थी। साल था 2000 विदा हो गया था और 2001 से इक्कीसवीं सदी की शुरुआत हुई थी। ऐसी बातें होती थीं जैसे कि बहुत कुछ बदल जाएगा। पर हमारे साथ वही हुआ जो सदियों से लड़कियों के साथ हो रहा था। दसवीं का इम्तिहान भी नहीं देने दिया और हमारी शादी करवा दी।‌ हम छोटे से शहर में रहते थे। शादी करके हरकामऊ जैसे गांव में आ गए जहाँ कुछ नहीं था। तब तो ठीक सड़कें भी नहीं थीं। हमको ऐसा लगा जैसे कि तालाब से निकाल कर हमको कुएं में डाल दिया गया हो।"

आशा देवी अपने अतीत की कहानी कैमरे पर सुना रही थीं। 

शहर छोड़कर एक पिछड़े हुए गांव में आने से अधिक दुख आशा को अपनी पढ़ाई छूट जाने का था। गांव में उसके घर अखबार भी नहीं आता था। दुनिया की खबर उसे थोड़ी बहुत रेडियो से मिल जाती थी। टीवी देखना संभव नहीं था क्योंकि गांव में बिजली नहीं थी। 

विदाई के समय अपने सामान के साथ वह दसवीं की अपनी अंग्रेज़ी की किताब ले आई थी। घर का काम निपटा कर जब वक्त मिलता तो उसे लेकर बैठ जाती। कई बार पढ़े हुए पाठों को बार बार दोहरा कर पढ़ती थी। 

जब कभी वह मायके जाती और वहाँ हुए बदलाव को देखती तो उसका मन करता कि वह भी इसका हिस्सा बने। वहाँ स्थिति बदल रही थी। उसकी चचेरी बहन बारहवीं पास करके बीए की पढ़ाई कर रही थी। ये सब देखकर उसे अपनी स्थिति पर और भी दुख होता था।

आशा का पति मंगल शहर में एक फैक्ट्री में काम करता था। आशा गांव में अपने सास ससुर के साथ रहती थी। जब कभी मंगल शहर से आता था तो वह उससे कहती थी कि उसे भी अपने साथ ले चले। मंगल कहता था कि अभी उसकी कमाई इतनी नहीं है कि उसके लिए सही से व्यवस्था कर सके। आशा मन मारकर रह जाती थी।

शादी का दूसरा साल ही था कि मंगल की तबियत बिगड़ गई। वह नौकरी छोड़कर गांव आ गया। दिन पर दिन उसकी तबियत बिगड़ती जा रही थी। तीन महीने के अंदर वह चल बसा। शादी के दो साल के अंदर ही आशा विधवा हो गई।

"पति चला गया। उसके कुछ समय बाद ससुर भी चल बसे। सास भी बीमार रहती थीं। सारी ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर आ गई। हमने भी बिना डरे सब संभाल लिया। थोड़ी बहुत खेती थी उसे देखते थे। उससे इतनी आमदनी हो जाती थी कि इज्ज़त से ज़िंदगी गुज़ार सकें।"

आशा देवी अपनी बात कहकर चुप हो गईं। निमिषा ने कहा,

"अब बताइए इस डिजिटल पाठशाला की शुरुआत कैसे हुई?"

आशा देवी ने उसके सवाल का जवाब देते हुए आगे कहानी सुनाई।


धीरे धीरे ही सही पर बाकी जगहों की तरह हरकामऊ में भी विकास होना शुरू हो गया था। गांव सड़क से जुड़ गया था जिसके चलते आना जाना आसान हो गया था। गांव में बिजली आ गई थी। बहुत से घरों में टीवी थे। जिसके ज़रिए बाहर की दुनिया को देख पाना आसान हो गया था। 

गांव में लोगों के पास मोबाइल भी आ गए थे लेकिन अक्सर नेटवर्क नहीं पकड़ता था। फिर भी बहुत कुछ बदल रहा था। जो नहीं बदला था वो थी समाज की सोच। इसके चलते लोग लड़कियों को अधिक पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। अभी भी गांव में आठवीं के बाद स्कूल नहीं था। 


आशा की सास का देहांत हो गया था। वह एकदम अकेली पड़ गई थी। इस दुख में वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके गई हुई थी। वह सोच कर गई थी कि दस पंद्रह दिन रहकर लौट आएगी। जब अपने मायके पहुँची तो एक बीमारी फैलने की खबरें न्यूज़ चैनल्स पर दिखाई जा रही थीं लेकिन उस समय तक कोई चिंता जनक स्थिति नहीं थी। देखते ही देखते बीमारी भयंकर हो गई‌। तेज़ी से फैलती बीमारी को महामारी कहा जाने लगा‌‌। लॉकडाउन लग गया। पूरी दुनिया ठहर गई।

लॉकडाउन के दौरान आशा को लंबे समय तक अपने मायके में रहना पड़ा। स्कूल बंद हो गए थे। बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। आशा के घर पर भी उसके भतीजे भतीजियां इसी तरह पढ़ाई कर रहे थे। उन बच्चों के ज़रिए आशा ने इंटरनेट और उसके इस्तेमाल के बारे में सीखा। उस समय उसे लगा कि ये तो कमाल की चीज़ है। इसके इस्तेमाल के बहुत से फायदे हो सकते हैं। उसके पास अपना एक साधारण फोन था। उस पर इंटरनेट इस्तेमाल नहीं हो सकता था। बच्चों के माध्यम से ही उसे कुछ बातें पता चली थीं। जिससे उसकी इच्छा इंटरनेट को और अधिक जानने की हो गई थी।


स्थितियां सामान्य हुईं। लॉकडाउन हटा तो लंबे समय के बाद आशा अपने घर लौटने की तैयारी करने लगी। उसके मन में एक इच्छा थी। वह चाहती थी कि कोई पुराना फोन खरीद ले जिससे वह भी इंटरनेट इस्तेमाल कर सके। उसकी इस इच्छा की भनक उसके भाई को लग गई। उसने चलते समय आशा को अपना फोन देकर कहा कि वह अपने लिए एक नया फोन खरीदने वाला है। उसका फोन अभी अच्छा चलता है। वह फोन ले जाए। इस्तेमाल करके देखे। उसके भाई ने उस फोन में आशा का सिम डालकर नेटपैक डलवा दिया। 

फोन मिलने के बाद जब तक वह मायके में रही तब तक उसने बच्चों के ज़रिए उसका इस्तेमाल सीख लिया। वह बहुत खुश थी।

हरकामऊ लौटने के बाद बड़े उत्साह के साथ उसने इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू किया। कभी गूगल पर कुछ सर्च करती थी तो कभी कोई वीडियो देखती थी। उसकी रुचि उन वीडियो में अधिक रहती थी जिनसे कुछ सीखने को मिले। 

आशा देवी ने कहा,

"एक महीने का पैक खत्म होने के बाद मैंने अपनी तरफ से नेटपैक डलवाया। अब मुझे इंटरनेट का इस्तेमाल बहुत अच्छा लगता था। ऐसा लगता था कि दूर एक गांव में बैठे हुए भी मैं पूरी दुनिया से जुड़ी हूँ।"

आशा देवी ने रुककर कहा,

"इस सबके बीच समस्या एक ही थी। नेटवर्क सही नहीं पकड़ता था जिसके कारण बहुत समस्या होती थी।‌ कोई वीडियो खोलो तो देर तक गोल गोल चक्का घूमता रहता था। तब बहुत बुरा लगता था। मैंने उसका उपाय निकाला। अपना फोन लेकर मैं अक्सर छत पर बैठ जाती थी जहाँ नेटवर्क पकड़ लेता था। कभी कभी गांव के किसी ऊँचे स्थान पर चली जाती। वहाँ बैठकर अपना मनपसंद वीडियो देखती थी। लेकिन नेटवर्क की समस्या परेशान करती थी।"

निमिषा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा,

"इस समस्या का निवारण लेकर दीपक जी गांव आए।"

आशा देवी ने सर हिलाकर हाँ कहा। निमिषा ने दीपक से कहा,

"आप अपनी कहानी बताइए फिर जानेंगे कि डिजिटल पाठशाला कैसे शुरू हुई। बिना सही नेटवर्क के तो ऐसा संभव नहीं था।"

दीपक ने कहा,

"सरकार देश को डिजिटल बनाने के लिए दूर दूर तक कनेक्टिविटी बढ़ाने ‌‌पर काम कर रही थी। मैं एक सरकारी एनजीओ से जुड़ा था। हमारे एनजीओ को काम सौंपा गया था कि हम देश के दूर दराज़ के इलाकों में जाकर नेटवर्क संबंधी समस्याओं की जानकारी जुटाएं तथा ये भी तय करें कि नेटवर्क के लिए टावर कहाँ लगाए जा सकते हैं। इस काम के लिए मैं अपने एनजीओ की तरफ से हरकामऊ भेजा गया था। मैंने लोगों से बात की। उनकी समस्याएं समझीं। कहाँ टावर लगाए जा सकते हैं इसकी जानकारी ली और सरकार तक पहुँचा दिया।"

निमिषा ने कहा,

"उसके बाद यहाँ नेटवर्क की समस्या में सुधार हुआ?"

आशा देवी ने कहा,

"बहुत हद तक। नेटवर्क सुधरा तो हमें इधर उधर भटकना नहीं पड़ता था। रसोई में काम करते हुए भी इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते थे। दीपक भइया के कारण ना सिर्फ नेटवर्क समस्या हल हुई बल्कि मुझे और भी बहुत सी बातें पता चलीं।"

निमिषा ने दीपक की तरफ देखा। उसने कहा,

"गांव में मेरी आशा दीदी से अच्छी जान पहचान हो गई थी। अक्सर दीदी मुझे घर बुलाकर खाना खिलाती थीं। उस दौरान बातचीत में मुझे लगा कि इनके अंदर ज्ञान प्राप्त करने की भूख है। मैंने इन्हें बताया कि किस तरह डिजिटल लर्निंग खुद को शिक्षित करने का अच्छा माध्यम बन सकती है। मैंने उन्हें इस संबंध में सरकारी योजनाओं के बारे में बताया। आशा दीदी इससे बहुत प्रभावित हुईं।"

निमिषा ने एक बार फिर आशा देवी का रुख करते हुए कहा,

"तो इससे प्रेरित होकर आपने डिजिटल पाठशाला आरंभ की।"

आशा देवी ने आगे बताया।


जैसे जैसे आशा डिजिटल लर्निंग की तरफ बढ़ रही थीं उन्हें यकीन हो रहा था कि इसके माध्यम से बहुत से लोगों के जीवन में परिवर्तन लाया जा सकता है। वह गांव के लोगों से मिलती थीं तो उन्हें भी इस संबंध में जागरूक करती थीं। 

जब आशा को पूनम की समस्या का पता चला तो उन्होंने पूनम को भी इस सबकी जानकारी दी। पहले तो उसे इस बात में यकीन नहीं हुआ कि इस तरह उसका आगे पढ़ने का जो सपना था वो ‌पूरा हो सकेगा। आशा ने उसे यकीन दिलाया। दोपहर को रोज़ कुछ घंटों के लिए पूनम आशा के घर जाती थी। आशा अपने मोबाइल पर उसे सब दिखाती थीं। निराश हो चुकी पूनम के मन में एक उम्मीद जाग उठी। 

पूनम आशा के घर आकर उनके मोबाइल से रोज़ पढ़ाई करती थी। उसे अच्छा लगने लगा था। समस्या ये थी कि उसके पास फोन नहीं था अतः घर जाने के बाद उसे अगले दिन का इंतज़ार करना पड़ता था। आशा ने पूनम के घरवालों को समझाया। उन्होंने पूनम को एक मोबाइल दिला दिया। अब पूनम घर पर रहकर भी पढ़ाई करने लगी।

पूनम ने प्राइवेट दसवीं का फार्म भरने का निश्चय किया। वह बोर्ड परीक्षा के लिए तैयारी करने लगी। 

पूनम को देखकर गांव वालों की सोच में भी परिवर्तन आने लगा‌‌। अब कुछ और लड़कियां पढ़ाई के लिए आगे आईं। उन्होंने भी डिजिटल लर्निंग के माध्यम से खुद को शिक्षित करने का मन बनाया। सब आशा के घर आने लगीं। देखते ही देखते और बहुत से लोग इस मुहीम से जुड़ने लगे। इनमें लड़के भी थे। गांव की कुछ औरतें भी आगे आईं।

एक और समस्या आई। आशा के घर में सबके बैठने की व्यवस्था नहीं हो सकती थी। हरकामऊ के ‌गांव प्रधान आशा के प्रयास से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने ग्राम पंचायत के एक हिस्से में सबके बैठने की व्यवस्था कर दी। समस्या यहीं नहीं खत्म हुई। डिजिटल लर्निंग के लिए मोबाइल, टैब और लैपटॉप जैसी चीज़ों की ज़रूरत थी। लोग नेटपैक लेने की स्थिति में तो थे पर महंगी डिवाइसेस खरीदना सबके बस का नहीं था।

दीपक अक्सर गांव आकर आशा से मिलता था। आशा ने जो बदलाव की हवा चलाई थी उससे वह बहुत प्रभावित था। एनजीओ में काम करते हुए उसे खुर्शीद अनवर के बारे में पता चला था। उसने खुर्शीद को आशा के प्रयास के बारे में बताया। उन्हें बताया कि लोग सीखना चाहते हैं पर डिवाइसेस नहीं खरीद सकते। खुर्शीद खुद हरकामऊ आए और अपनी आँखों से आशा के प्रयास को बढ़ते देखा‌। वह मदद के लिए आगे आए। बहुत से लोगों को उन्होंने डिवाइसेस उपलब्ध कराईं।

आशा की अस्थाई डिजिटल पाठशाला शुरू हो गई थी।‌ सुबह शाम कुछ घंटे लोग इस पाठशाला में आते। वहाँ बैठकर सरकार द्वारा चलाए जा रहे डिजिटल लर्निंग के प्लेटफार्म जैसे स्वयं, दीक्षा, ई पाठशाला, स्वयं प्रभा आदि का प्रयोग कर पढ़ाई से संबंधित विभिन्न सामग्री का प्रयोग करते थे।

पाठशाला चालू हो गई थी। गांव के एक कंटेंट क्रिएटर ने पाठशाला के बारे में वीडियो बनाकर डाला था। उसके कारण लोगों को इस पाठशाला का पता लगा। कुछ और लोग आगे आए। सोशल मीडिया पर आशा किरण डिजिटल पाठशाला का नाम होने लगा।

पाठशाला के अभियान में बिजली की समस्या एक बाधा बन रही थी। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इसका ज़िक्र किया। शिव माधवानी को जब इसका पता चला तो वह सामने आए। उन्होंने गांव में सोलर पैनल लगवाए।

गांव में अब डिजिटल लर्निंग की क्रांति सी आ गई थी। दीपक की कोशिश से गांव में कम्युनिटी वाईफाई हॉटस्पॉट बनाए गए। अब गांव के बहुत से लोग उसका लाभ उठा रहे थे।

जो कुछ निमिषा ने सुना था वह बहुत प्रेरणादायक था। उसने आशा देवी से सवाल किया,

"ग्राम पंचायत के भवन से निकल कर पाठशाला अपने भवन में कैसे पहुँची?"

"इसका श्रेय तो पूनम को जाता है। इसके साथ गांव की कुछ और लड़कियों ने भी दसवीं की परीक्षा ‌दी थी। वो सब भी पास हो गईं पर इसने जिले में पहला स्थान हासिल किया। इस बात की खबर अखबारों के माध्यम से दूर दूर तक गई। राज्य सरकार तक ये खबर पहुँची तो उन्होंने हमारी पाठशाला के लिए भवन दिया और कुछ उपकरण भी। अब जल्दी ही हरकामऊ में दसवीं तक का स्कूल भी होगा।"

निमिषा ने पूनम से कहा,

"तुम्हारी उपलब्धि सचमुच सराहनीय है। तुम आगे पढ़ाई करने वाली हो। पढ़ लिखकर क्या करने का इरादा है?"

पूनम ने जवाब दिया,

"पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होऊँगी जिससे अपने परिवार को सपोर्ट कर सकूँ। लेकिन आशा दीदी से सीखा है कि हमें समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए। इसलिए साथ में समाज की भलाई का काम भी करूँगी। खासकर लड़कियों की शिक्षा के लिए।"

जवाब देते हुए पूनम के चेहरे पर आत्मविश्वास और आँखों में चमक थी।


निमिषा और संदीप का काम पूरा हो गया था। उन्हें अब निकलना था। आशा किरण डिजिटल पाठशाला के बाहर बहुत से लोग एकत्र थे। निमिषा ने सबका धन्यवाद देते हुए कहा,

"आप सबने बहुत सहयोग किया। उम्मीद है कि इन उपलब्धियों का सिलसिला रुकेगा नहीं। हम एक और उपलब्धि की कहानी कवर करने जल्दी ही यहाँ आएंगे।"

उसकी बात पर सबने तालियां बजाईं।

ड्राइवर कार ले आया था। कार में बैठने से पहले निमिषा और संदीप ने सबको हाथ जोड़कर नमस्ते किया। निमिषा ने पूनम से कहा,

"भविष्य

के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। तुम खूब तरक्की करो।"

वह और संदीप कार में बैठ गए। कार आगे बढ़ गई।‌