ऑनलाइन शिकारी
नलिनी कुछ देर पहले ही बैंक से लौटी थी। आज बैंक में दिनभर बहुत काम रहा था। वह बैंक मैनेजर के पद पर थी और उसकी ज़िम्मेदारियां बहुत थीं। घर लौटकर वह सोफे पर लेट गई थी। थकी इतनी थी कि प्यास से गला सूख रहा था फिर भी उठकर पानी पीने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसे अपनी बेटी पीहू की याद आई। जब तक वह पढ़ाई के लिए बाहर नहीं गई थी तब तक नलिनी को बहुत आराम था। उसके बैंक से लौटने पर पीहू उसे पानी पिलाती थी। उसके लिए चाय बनाती थी। जब वह चाय पी रही होती थी तो उससे दिनभर का हालचाल लेती थी।
पिछले साल जब वह कॉलेज की पढ़ाई के लिए बाहर चली गई तो नलिनी बहुत अकेली पड़ गई थी। बैंक में दिनभर लोगों से बात करना पड़ता था फिर भी मन में बहुत कुछ था जो अनकहा था।
आठ साल हो गए थे नलिनी के पति ललित के देहांत को। एक सड़क दुघर्टना में ललित की मृत्यु हो गई थी। अपने पति के अचानक चले जाने से नलिनी बहुत दुखी हो गई थी। पीहू थी इसलिए वह खुद को संभाल पाई थी नहीं तो उसके लिए ललित का ना होना असहनीय था।
ललित और उसके बीच का रिश्ता आम पति पत्नी जैसा होते हुए भी थोड़ा अलग था। दोनों पति पत्नी की तरह एक दूसरे को प्यार करते थे। एक दूसरे से लड़ते झगड़ते थे पर एक दूसरे के अच्छे दोस्त भी थे। दोनों एक दूसरे के साथ हर छोटी बड़ी बात साझा करते थे। ललित की मौत के बाद सही मायनों में नलिनी को एहसास हुआ कि उन दोनों का रिश्ता कितना गहरा था। नलिनी को ललित की हर एक छोटी छोटी चीज़ याद आती थी।
उसे याद आता था कि कैसे हर बात के लिए उसे ललित से सलाह लेने की आदत थी। अपने लिए कुछ खरीदती थी तो कम से कम चार पाँच बार ललित से पूछती थी कि उसने सही चुनाव किया है या नहीं। ललित जिस पर हाथ रखता था उसे ही खरीदती थी। ललित उससे कहता था कि कल अगर मैं ना रहूँ तो फिर किससे सलाह लोगी। अच्छा है कि खुद निर्णय लेना सीखो। तब तो नलिनी ये कहकर टाल देती थी कि ऐसा कभी नहीं होगा। ललित हमेशा उसकी मदद के लिए रहेगा लेकिन वह साथ छोड़कर चला गया था। उसके जाने के बाद नलिनी ने अपने लिए कुछ खरीदना ही बंद कर दिया था।
ललित के जाने के बाद करीब एक साल तक तो नलिनी बात बात पर रोने लगती थी। धीरे धीरे उसे एहसास हुआ कि इससे कुछ होने वाला नहीं है। ललित उसे छोड़कर जा चुका है। अब उसे ललित के बिना ही जीना होगा। उसके कमज़ोर पड़ने से पीहू भी कमज़ोर पड़ रही थी। पीहू के बारे में सोचकर नलिनी ने अपने आपको संभाला।
नलिनी ने अपने दुख पर काबू पा लिया था पर मन के भीतर एक अकेलापन बस गया था। ऊपर से सबको सामान्य दिखने वाली नलिनी अंदर से बहुत दुखी थी। पीहू के जाने के बाद से नलिनी का अकेलापन और भी अधिक बढ़ गया था।
कुछ देर सोफे पर लेटे रहने के बाद नलिनी उठी। वॉशरूम में जाकर फ्रेश हुई। अपने लिए चाय बनाई। बाहर गार्डन में लगे झूले पर आकर बैठ गई। चाय पीते हुए उसने पीहू को फोन मिलाया। घंटी बज रही थी पर पीहू फोन नहीं उठा रही थी। नलिनी ने फोन काट दिया। सोचने लगी कि इस वक्त तो क्लास भी नहीं होती है फिर पीहू ने फोन क्यों नहीं उठाया? उसके लिए ये बात चिंतित करने वाली थी। चाय पीते हुए वह यही सोचती रही कि आखिर बात क्या है?
नलिनी अपने पसंदीदा ओटीटी प्लेटफार्म पर नई रिलीज़ वेबसीरीज़ देख रही थी। उसने इस वेबसीरीज़ की बहुत तारीफ सुनी थी। डिनर करने के बाद वह वही लगाकर देखने लगी थी। कल संडे था। बैंक नहीं जाना था इसलिए आराम से सारे एपीसोड्स खत्म कर सकती थी। अभी एक एपीसोड भी खत्म नहीं हुआ था पर नलिनी ने उसे बंद कर दिया। वेबसीरीज़ दिलचस्प थी पर नलिनी का मन नहीं लग रहा था। बार बार उसे पीहू के साथ हुई बातचीत याद आ रही थी।
उसके फोन करने पर पीहू ने फोन नहीं उठाया था। उसके लगभग दो घंटे के बाद उसने कॉल करके बताया कि वह अपने दोस्तों के साथ बाहर गई थी। फोन साइलेंट पर था। नलिनी ने उससे कहा कि जो भी हो उसे फोन साइलेंट पर नहीं रखना चाहिए था। उसके फोन ना उठाने से वह बहुत परेशान हो गई थी। उसके जवाब में पीहू ने जो कहा था वही नलिनी को परेशान कर रहा था। पीहू ने उससे कहा था कि वह दिन में तीन चार बार उसे फोन करती है। आज भी बैंक से निकलने से पहले उन दोनों की बात हुई थी। फिर दोबारा फोन करने का क्या मतलब था। वह कोई बच्ची नहीं है कि इस तरह उस पर नज़र रखी जाए। उसके दोस्त इस बात के लिए उसका मज़ाक बनाते हैं कि उसकी मम्मी हर थोड़ी देर में उसे फोन करती हैं।
पीहू के बोलने के तरीके से उसे लगा था कि उसका फोन करना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। ये बात नलिनी को बुरी लगी थी। पीहू से बात करने के बाद उसने खुद को शांत करने की कोशिश की थी। अपना मन बदलने के लिए वेबसीरीज़ देखने बैठी थी पर उसमें मन नहीं लगा।
टीवी बंद करके नलिनी अपने बिस्तर पर जाकर लेट गई। आज पीहू जिस तरह से बात कर रही थी उससे नलिनी ने महसूस किया था कि उसका फोन करना उसे अपनी आज़ादी में खलल महसूस होता है। नलिनी सोच रही थी कि पीहू की आज़ादी में तो उसने कभी कोई अंकुश नहीं लगाया। वह बाहर जाकर पढ़ना चाहती थी। उसने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। जबकि उसकी इच्छा थी कि वह उसके पास रहकर ही कॉलेज पूरा करे। उसे डर था कि पीहू के जाने के बाद वह अकेली पड़ जाएगी। उसने पीहू से इस बारे में बात करनी चाही थी पर वह बाहर जाने के नाम पर इतनी उत्साहित थी कि नलिनी उससे कुछ नहीं कह पाई थी।
पीहू के जाने के बाद नलिनी को एहसास हुआ कि उसका डर सही था। वह सचमुच अकेलापन महसूस करती है। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए ही दिन में कई बार वह पीहू से फोन पर बात करती थी।
लेटे हुए नलिनी की आँखों से आंसू बहने लगे। ललित के जाने के बाद उसे पीहू का ही सहारा था। अब उसे लग रहा था कि जैसे वो सहारा भी उससे छिन गया हो।
नलिनी को नींद नहीं आ रही थी। उसने सोचा कि वह वेबसीरीज़ ही देख लेती है। वह उठकर लिविंग एरिया में आई। टीवी खोलने जा रही थी फिर उसने अपना इरादा बदल दिया। वह अपना फोन लेकर बैठ गई। अपने सोशल अकाउंट पर गई। वह स्क्रॉल करने लगी। कोई पोस्ट ऐसी नहीं थी जो उसे दिलचस्प लगती। बात तो ये थी कि उसका मन खिन्न था। पीहू से उसे इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। वह अपना फोन रखने जा रही थी तभी उसे एक मैसेज का नोटीफिकेशन मिला। मैसेज करने वाले का नाम रघु ग्रोवर था।
पहले तो नलिनी ने उसे अनदेखा करना चाहा पर फिर कुछ सोचकर उसने मैसेज पढ़ा।
हैलो....
कुछ देर पहले आपके प्रोफाइल पर आपकी एक लड़की के साथ तस्वीर देखी। शायद आपकी बेटी थी। ना जाने क्यों आप दोनों की तस्वीर ने दिल छू लिया। मैंने पोस्ट पर लाइक और कमेंट किया था पर फिर आपको मैसेज करने का मन किया। मुझे उम्मीद है आपको बुरा नहीं लगेगा। हम दोनों इस प्लेटफार्म पर दोस्त हैं पर कभी हमारे बीच टेक्सटिंग नहीं हुई।
मैसेज पढ़ने के बाद नलिनी रघु ग्रोवर के प्रोफाइल पर गई। उसने अपने बारे में लिखा था कि वह एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करता है। वह वित्तीय मामलों में गहरी रुचि रखता है। संगीत प्रेमी है। पढ़ने का शौकीन है। उसकी प्रोफाइल पिक की जगह एक दिलचस्प तस्वीर थी। एक पेड़ की पत्तियों से छनकर आती रौशनी। नलिनी को वह पिक पसंद आई। उसने पिक को लाइक कर दिया। उसके बाद नलिनी उसकी टाइमलाइन पर उसकी पोस्ट्स चेक करने लगी। पोस्ट्स लंबी नहीं थीं। नलिनी ने कुछ पोस्ट्स पढ़ीं। सभी वित्तीय सलाह से संबंधित थीं। नलिनी ने कुछ पोस्ट्स को लाइक किया।
रघु के प्रोफाइल से वह नोटीफिकेशन सेक्शन में गई। रघु ने जिस तस्वीर पर कमेंट किया था उसका नोटीफिकेशन था। वह उस तस्वीर पर गई। पीहू के कॉलेज जाने के एक हफ्ते पहले की तस्वीर थी। वह याद करने लगी। दोनों फिल्म देखने के बाद फेवरेट ढाबे पर खाना खाने गई थींं। वहीं के एक कर्मचारी से कह कर नलिनी ने वह तस्वीर खिंचवाई थी। उस दिन उसने और पीहू ने साड़ी पहन रखी थी। इससे पहले पीहू ने एक रिश्तेदार की शादी में साड़ी पहनी थी। उस दिन ज़िद करके साड़ी पहन कर गई थी। नलिनी को वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। घर से निकलने से पहले उसने पीहू को एक छोटा सा काला टीका लगाया था। नलिनी ने रघु का कमेंट पढ़ा।
ऐसा लग रहा है जैसे सुंदरता और शालीनता की देवियां खड़ी हों...
नलिनी को कमेंट पसंद आया। अक्सर लोग नाइस पिक, ब्यूटीफुल, वॉओ जैसे कमेंट देते हैं। रघु ने उन दोनों को सुंदरता और शालीनता की देवी बताया था। उसकी पोस्ट्स भी उसे अच्छी लगी थीं। वह रघु से प्रभावित हुईं थी। उसने कमेंट का जवाब दिया।
इस खूबसूरत कमेंट के लिए धन्यवाद....
नलिनी का खिन्न मन अब कुछ अच्छा हुआ था। अब वह पीहू की बात पर दूसरी तरह से सोच रही थी। उसे लग रहा था कि पीहू गलत नहीं है। वह कोई बच्ची नहीं है। बहुत समझदार है। अपनी देखभाल कर सकती है। उसे बार बार फोन करना ठीक नहीं है। उसके हालचाल लेने के लिए दिन में एक बार बात कर लेना ठीक है पर दिन में कई बार फोन करना सचमुच परेशान करने वाला है।
अब नलिनी अपनी बार बार फोन करने की आदत के बारे में सोचने लगी। कारण उसकी समझ में आ रहा था। पीहू के जाने के बाद वह एकदम अकेली पड़ गई थी। इसलिए जब मौका मिलता उसे फोन कर लेती थी। नलिनी सोच रही थी कि उसे अपने आप पर नियंत्रण रखना होगा। अभी तो पढ़ने गई है। उसके बाद जॉब के लिए भी बाहर रहेगी। आगे अपने जीवनसाथी के साथ रम जाएगी। उसे तो अकेले ही रहना है। उसे आदत डालनी होगी।
देर तक ये सब सोचते हुए उसे नींद आने लगी। वह जाकर सो गई।
नलिनी ने कुछ समय पहले ही पीहू से बात की थी। अब वह दिन में कई बार उसे फोन नहीं करती थी। एक वक्त तय कर लिया था। रोज़ उस वक्त पाँच छह मिनट उससे बात करके उसके हालचाल पूछ लेती थी। उसने पीहू से कहा था कि अगर कोई समस्या हो तो फोन करके उसे बता दे।
पीहू से बात करने के बाद नलिनी अपने सोशल अकाउंट पर स्क्रॉल कर रही थी। स्क्रॉल करते हुए उसे रघु की एक पोस्ट दिखाई पड़ी। पोस्ट में रघु ने लोगों को विनियोग संबंधी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी थीं। नलिनी ने पोस्ट पढ़ने के बाद कमेंट किया कि सबकुछ बहुत आसान तरीके से समझाया गया है। कुछ देर बाद नोटीफिकेशन आया कि रघु ने उसके कमेंट को पसंद किया है। उसके कुछ देर बाद रघु का मैसेज आया।
उस दिन के बाद आपसे चैट नहीं हो पाई। मैं चाहता था कि बात आगे बढ़े पर सोच रहा था कि आप कहीं बुरा ना मान जाएं। यदि आपको ऐतराज़ ना हो तो हम एक दूसरे को और अधिक जानें। आप राज़ी हों तो मेरे मैसेज का जवाब दें नहीं तो मैं समझ लूँगा कि आप आगे बातचीत नहीं बढ़ाना चाहती हैं।
रघु का मैसेज पढ़कर नलिनी सोच में पड़ गई। सही बात तो ये थी कि वह रघु को सही से नहीं जानती थी। वह दुविधा में थी कि एक अजनबी से बातचीत करना सही होगा या नहीं। देर तक वह इस बात पर विचार करती रही। वह एकबार फिर रघु की प्रोफाइल पर गई। उसने उसकी टाइमलाइन चेक की। वित्त और विनियोग संबंधी पोस्ट्स के अलावा कुछ पोस्ट्स प्रेरक कोट्स वाली थीं। उसने अपनी या अपने परिवार की एक भी तस्वीर पोस्ट नहीं की थी। ये बात नलिनी को संकेत दे रही थी कि वह बहुत प्राईवेट किस्म का व्यक्ति है।
काफी विचार के बाद नलिनी ने तय किया कि वह शुरुआत करती है। बातचीत का रुख देखती है। अगर उसे लगता है कि रघु ठीक नहीं है तो उसे ब्लॉक कर देगी। उसने उत्तर लिखा।
आपने लिखा है कि हम एक दूसरे को और अधिक जानें। मैं चाहूँगी कि शुरुआत आप करें। अपने बारे में अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं।
मैसेज भेजने के कुछ क्षणों में ही जवाब आया।
धन्यवाद... जानकर अच्छा लगा कि आप बात आगे बढ़ाना चाहती हैं।
नलिनी ने देखा कि रघु अगला मैसेज टाइप कर रहा है। वह भी चैटिंग के मूड में आ गई। रघु ने उसे बताया कि वह सिंगल है। उसकी शादी हुई थी पर चली नहीं। पाँच साल हो गए उसके तलाक को पर उसने दोबारा किसी के साथ रिश्ता नहीं बनाया। उसने बताया कि उसके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। भाई बहन थे नहीं। कुछ रिश्तेदार हैं पर उनसे अधिक वास्ता नहीं रखता है। वह एकदम अकेला है। नलिनी ने भी उसे अपने बारे में बताया। पहले दिन दोनों के बीच बस इतनी बात हुई।
पहली बार रघु से अधिक बात नहीं हुई फिर भी नलिनी को बहुत अच्छा लगा था। उसके बाद दो दिन तक रघु ने कोई मैसेज नहीं भेजा। इन दो दिनों में नलिनी ने महसूस किया कि रघु के मैसेज ना करने से वह कुछ परेशान है। एक लंबे अर्से के बाद उसने किसी से अपने बारे में बात की थी। उसे तसल्ली मिली थी। वह चाहती थी कि ये सिलसिला शुरू हुआ है तो आगे बढ़े। तीसरे दिन उसने इंतज़ार किया जब रघु ने मैसेज नहीं किया तो उसने मैसेज भेजा।
शायद मेरे बारे में जानकर आपको अच्छा नहीं लगा इसलिए उसके बाद मैसेज नहीं किया।
कुछ ही क्षणों में जवाब आया।
ऐसी बात नहीं है। मैं आपसे जान पहचान बढ़ाना चाहता हूँ पर इधर कुछ व्यस्तता रही। अभी भी ऑफिस में हूँ। कल छुट्टी है हम सुबह बात कर सकते हैं।
उसके बाद से नलिनी और रघु के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। पहले टेक्सटिंग होती थी। उसके बाद फोन पर बात होने लगी।
रघु से हुई दोस्ती के बाद नलिनी को समझ में आया कि ललित के जाने के बाद उसकी ज़िंदगी में एक दोस्त की कमी आ गई थी। ललित सिर्फ उसका पति नहीं दोस्त भी था। नलिनी के जीवन में ललित के अलावा कोई और दोस्त नहीं था। उसके जाने के बाद वह बहुत दुखी हुई थी। उस वक्त उस पर पीहू की ज़िम्मेदारी थी जिसके चलते उसने अपने दुख को सीने में दबा लिया था। पीहू के साथ वह दोस्ताना व्यवहार करने की कोशिश करती थी। उसे लगता था कि इस तरह वह ललित की कमी को पूरा कर लेगी।
जब तक पीहू थी उसे इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि वह अपने आप को भुलावे में रख रही है। ललित के जाने से वह अंदर से टूट गई है। पीहू के जाने के बाद अकेलेपन के एहसास ने उसे बहुत परेशान किया। अब जब रघु एक दोस्त की तरह उसके जीवन में आया था तो वह समझ पा रही थी कि उसे एक हमदर्द साथी की कितनी ज़रूरत थी।
रघु से बात करना नलिनी को बहुत अच्छा लगता था। सारा दिन उसे उस वक्त का इंतज़ार रहता था जब रघु और उसकी बातचीत होती थी। रघु ने उससे कहा था कि कॉल वही करेगा। इसके लिए उसने समय निश्चित कर लिया था। वह रोज़ ठीक समय पर कॉल करता था।
रात के दस बजे नलिनी के फोन की घंटी बजी। वह मुस्करा दी। अब हर रात दस बजे रघु ग्रोवर के साथ उसकी फोन पर बात होती थी। उसने फोन उठाया और रघु से बात करने लगी।
आज रघु से बात करते हुए उसके मन में एक अजीब सा खयाल आया। उसकी और रघु की दोस्ती को दो महीने से अधिक का समय हो गया था लेकिन इतने समय में उसने रघु की सिर्फ आवाज़ ही सुनी थी। वह नहीं जानती थी कि रघु कैसा दिखता है। आज उसने रघु के सामने इच्छा जाहिर की थी कि वह उसे देखना चाहती है इसलिए वीडियो कॉल करे। रघु ने उसकी इच्छा को टालते हुए कहा था कि एक दिन दोनों आमने सामने मिलेंगे। तब वह अपनी इच्छा पूरी कर सकती है। तब तक धैर्य रखे।
नलिनी के बार बार कहने पर रघु उससे मिलने को तैयार हो गया। उसने कहा कि उसे किसी काम नोएडा आना है। तब वह फोन करके मिलने की जगह बता देगा। नलिनी उससे मिलने की राह देखने लगी।
दोनों की मुलाकात शहर के एक अच्छे रेस्टोरेंट में हुई। नलिनी ने जब रघु को देखा तो वह उसे बहुत आकर्षक लगा। लंबा गठा हुआ शरीर, गेहुआं रंग, बड़ी बड़ी आँखें, पोनी टेल में बंधे लंबे बाल ये सब उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहे थे। अभी तक वह उसकी बातों की दीवानी थी। उसे रूबरू देखकर पहली ही मुलाकात में उसके आकर्षण में बंध गईं।
उसके बाद नलिनी और रघु की तीन और मुलाकातें हुईं। तीसरी मुलाकात में नलिनी ने उसे अपने घर आने की दावत दी थी। उस मुलाकात के बाद ही नलिनी महसूस करने लगी थी कि वह रघु की तरफ आकर्षित होने लगी है। पहले तो उसे लगा कि ये आकर्षण ठीक नहीं है। वह एक जवान बेटी की माँ है। वह विधवा है। समाज में जब ये बात फैलेगी तब लोग अलग अलग तरह की बातें करेंगे। उसने अपने आप को रोकने की कोशिश की। खुद को समझाया कि अकेलापन दूर करने के लिए दोस्ती ठीक है पर इसके आगे उसे नहीं सोचना चाहिए।
नलिनी खुद को रोकने की कोशिश तो करती थी पर सारी कोशिशों के बावजूद भी रघु के आकर्षण से खुद को मुक्त नहीं कर पा रही थी। अब उसने कोशिश भी छोड़ दी थी।
पीहू अपनी ज़िंदगी में मस्त थी। अपनी तरफ से तभी फोन करती थी जब उसे कोई ज़रूरत हो। नलिनी ही फोन करके उसके हालचाल लेती थी। तब भी वह नलिनी से कभी ये नहीं पूछती थी कि वह कैसी है? उसे कोई तकलीफ तो नहीं। नलिनी सोचती थी कि जिस बेटी के लिए वह खुद को रोकने की कोशिश कर रही है उसे तो उसकी ज़रा भी परवाह नहीं है। बाकी रही लोगों की बात तो कौन है जो उसकी तकलीफ को समझता है। इसलिए अब वह दिल खोलकर रघु से मिलती थी।
इधर उसने महसूस किया था कि रघु भी उसकी तरफ वैसे ही आकर्षित है जैसे कि वह है। हालांकि दोनों ने ही एक दूसरे से कुछ कहा नहीं था पर ऐसा लगता था कि रघु उसके साथ रिश्ते के लिए गंभीर है।
नलिनी बैंक से कुछ समय पहले ही आई थी। फ्रेश होकर अपने लिए चाय बनाने किचन में गई थी कि डोरबेल बजी। उसने जाकर दरवाज़ा खोला तो रघु था। रघु को अचानक आया देखकर उसे आश्चर्य हुआ। वह रघु को अंदर लेकर आई। उसे बैठाकर बोली,
"अचानक आ गए। कोई खबर नहीं दी।"
रघु ने कहा,
"मुझे तो लगा था कि हमारा रिश्ता इतना तो आगे बढ़ गया है कि मैं बिना बताए भी आ सकूँ।"
रघु ने रिश्ते के आगे बढ़ने की बात कही थी। नलिनी को ये बात बहुत अच्छी लगी। उसने कहा,
"मैं तो बस इसलिए पूछ रही थी कि आज वर्किंग डे है। हम छुट्टी के दिन ही मिलते हैं।"
रघु ने कोई जवाब नहीं दिया। नलिनी ने कहा,
"तुम बैठो... मैं चाय बनाने जा रही थी। अभी लेकर आती हूँ।"
नलिनी किचन में चली गई। उसने दो कप चाय चढ़ाई। पानी उबलने की राह देखने लगी। तभी रघु किचन में आ गया। उसने कहा,
"सोचा कि वहाँ अकेले बैठने से अच्छा है तुम्हारे पास आ जाऊँ। वैसे तुम्हारा घर बहुत सुंदर है।"
चाय बनाते हुए नलिनी ने कहा,
"ललित ने बनवाया था लेकिन बहुत दिन रह नहीं सके।"
नलिनी कुछ उदास हो गई। रघु ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे तसल्ली दी।
नलिनी और रघु लिविंग रूम में बैठे चाय पी रहे थे। चाय पीते हुए रघु ने कहा,
"ललित के जाने के बाद बहुत अकेली पड़ गई होगी।"
"हाँ.... अभी तक पीहू थी तो इतना नहीं खलता था। उसके जाने के बाद तो बहुत अकेलापन महसूस होता था।"
नलिनी ने चाय का घूंट भरा। उसके बाद रघु की तरफ देखकर बोली,
"जबसे तुम्हारे साथ दोस्ती हुई है अकेलेपन का एहसास कम हो गया है।"
"मेरा भी यही हाल था नलिनी पर तुम जबसे दोस्त बनकर मेरी ज़िंदगी में आई तबसे बहुत अच्छा लगता है।"
दोनों ने पहली बार एक दूसरे के सामने ये बात कबूल की थी कि उनकी दोस्ती कितनी महत्वपूर्ण है। दोनों कुछ देर चुपचाप चाय पीते रहे। रघु को देखकर नलिनी को लग रहा था कि शायद वह उससे कोई ज़रूरी बात करना चाहता है। वह इंतज़ार कर रही थी कि रघु उससे कुछ कहे। कुछ देर बाद रघु ने कहा,
"एक बात पूछूँ नलिनी।"
"पूछो...."
"ललित के जाने के बाद तुमने कभी नहीं सोचा कि अब ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहिए। किसी को अपना साथी बनाकर अकेलेपन को दूर करना चाहिए।"
नलिनी के लिए ये सवाल अप्रत्याशित था। वह कोई जवाब देती उससे पहले ही रघु ने कहा,
"क्या तुम मुझ पर इतना भरोसा कर सकती हो कि मुझे अपना साथी बना सको।"
नलिनी के मन में ये बात आई थी पर बहुत कुछ था जो उसे ऐसा सोचने से रोक रहा था। खासकर उसे पीहू की फिक्र थी। वह जानती थी कि पीहू के लिए इसे स्वीकार करना आसान नहीं होगा। उसने कहा,
"तुम पर भरोसा है रघु पर ये संभव नहीं हो सकता है।"
"तुम लोगों के बारे में सोच रही हो। क्या कभी ललित के जाने के बाद किसी ने तुम्हारी फिक्र की है।"
"बात सिर्फ लोगों की नहीं है रघु। मुझे फिक्र पीहू की है। वह इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पाएगी।"
रघु कुछ देर सोचने के बाद बोला,
"अगर उसे सही से समझाया जाए तो समझ जाएगी। उसकी ज़िंदगी अब शुरू हुई है। समय के साथ साथ तुमसे दूर ही होगी। तब तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। सोचकर देखना।"
नलिनी उसकी बात पर विचार करने लगी। रघु ने कहा,
"पिछली बार जब तुमसे मिलकर गया था तबसे ही ये बात दिमाग में घूम रही थी। इसलिए आज ये बात करने आ गया। मैंने तुम्हें अपने बारे में सब बता दिया है। चाहो तो कभी मेरे घर आकर तसल्ली कर लो। नोएडा से दिल्ली आने में वक्त ही कितना लगेगा। बल्कि मुझे कह देना मैं आकर ले जाऊँगा।"
अपनी बात कहकर रघु चलने के लिए खड़ा हो गया। नलिनी ने कहा,
"एकदम से चल दिए।"
"अभी अपने एक दोस्त के घर जा रहा हूँ। उससे मिलकर दिल्ली चला जाऊँगा। मेरी बात पर विचार करना।"
रघु चला गया। नलिनी बहुत देर तक उसकी बात पर विचार करती रही।
नलिनी दिल्ली जाकर रघु का घर देख आई थी। वह किराए के फ्लैट में रहता था। उसका कहना था कि वह कुछ ऐसा करने की सोच रहा है जिससे आगे की ज़िंदगी आराम से काटने के लिए ढेर सारे पैसे कमा सके।
रघु के घर से लौटने के बाद नलिनी को तसल्ली हो गई थी। उसने रघु के साथ जीवन बिताने का मन बना लिया था। उसने तय किया था कि पीहू जब छुट्टियों में घर आएगी तब उससे बात करेगी।
आज नलिनी ने रघु को उसके घर लंच के लिए बुलाया था। टेबल लगाने में रघु ने उसकी मदद की थी। खाना खाते हुए रघु बता रहा था कि ऑफिस में काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। काम का प्रेशर हैंडिल करना उसके लिए कठिन हो रहा है। नलिनी उसकी बात समझ रही थी। उस पर भी काम का प्रेशर था। वह रघु के लिए हमदर्दी महसूस कर रही थी।
लंच के बाद दोनों बाहर गार्डन में आकर बैठ गए। ठंड के दिन थे। धूप अच्छी लग रही थी। नलिनी ने कहा,
"सच है... काम का प्रेशर इतना है कि मैं तो बेसब्री से छुट्टी के दिन का इंतज़ार करती हूँ। कभी कभी तो लगता है कि नौकरी छोड़कर आराम करूँ। पर ऐसा होना संभव नहीं है।"
रघु ने कुछ सोचकर कहा,
"मैंने तुम्हें बताया था कि मैं एक विनियोग की स्कीम पर विचार कर रहा हूँ। सब सही रहा तो मैं सचमुच नौकरी छोड़ दूँगा।"
नलिनी ने आश्चर्य से कहा,
"ऐसा संभव हो सकता है। मेरा मतलब है कि नौकरी छोड़ दोगे तो इतनी कमाई हो सकेगी कि आराम से रह सको।"
"बिल्कुल... जो स्कीम है उसमें आज जो कमा रहा हूँ उससे अधिक कमाऊँगा। आज जितनी माथापच्ची करनी पड़ती है वो भी नहीं करनी पड़ेगी।"
रघु ने बहुत आत्मविश्वास के साथ ये बात कही थी। नलिनी उसकी पोस्ट्स पढ़ती थी। उसे यकीन हो गया कि रघु जो कह रहा है वैसा होगा। उसने पूछा,
"ऐसा है तो शुरू क्यों नहीं करते हो?"
"फंड... कोई भी काम के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ती है। कम से कम पच्चीस लाख की ज़रूरत होगी। इतना मेरे पास नहीं है।"
नलिनी चुप हो गई। रघु भी गंभीर था। कुछ देर बाद रघु ने कहा,
"तुम तो बैंक मैनेजर हो। तुम मेरी कोई मदद कर सकती हो?"
नलिनी सोच में पड़ गई। उसने कहा,
"लोन के लिए तो तुम्हें अपना बिजनेस प्रपोजल देना पड़ेगा। उसके बाद उस पर विचार करके बैंक कोई फैसला लेगा। समय लगेगा।"
"तभी तो मैंने लोन के लिए अप्लाई नहीं किया। मुझे जल्दी ही पैसों की ज़रूरत है नहीं तो स्कीम फेल हो जाएगी। इसलिए कोई और रास्ता खोज रहा था।"
"कोई और रास्ता है तुम्हारे दिमाग में?"
रघु ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"है... तुम उसमें मेरी मदद कर सकती हो।"
नलिनी को आश्चर्य हुआ। रघु ने कहा,
"तुम मदद कर दो तो उस स्कीम में तुम आधे मुनाफे की हिस्सेदार होगी।"
अभी तक नलिनी इस सबमें खुद को जोड़ नहीं रही थी। रघु ने बराबर हिस्सेदारी की बात कहकर बात को नया रंग दे दिया था। उसे स्कीम के बारे में कुछ पता नहीं था। वह सोच में थी। रघु ने कहा,
"नलिनी...आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत पैसा है। पैसा कमाना कितना कठिन है ये भी तुम जानती हो। मैं या तुम कब तक दूसरों के लिए काम करके पैसा कमाते रहेंगे। जिस हिसाब से तुम्हारी ज़िम्मेदारी है क्या तुम उस कमाई से सही सेविंग कर पाओगी?"
नलिनी ने सर हिलाकर ना कहा। रघु बोला,
"कल हो सकता है पीहू तुमसे कुछ पैसों की मदद चाहे तो क्या आसानी से कर पाओगी? उम्र बढ़ेगी तो बीमारी बढ़ेगी। थोड़ी बहुत सेविंग से अपने खर्चे चलाना ही कठिन होगा।"
नलिनी ध्यान से उसकी बात सुन रही थी। उसके चेहरे से स्पष्ट था कि वह रघु की बात से इत्तेफाक रखती है। रघु ने आगे कहा,
"तुम तो जानती हो कि आज के समय में कोई मदद नहीं करता है। खासकर जब पैसा ना हो तो लोग आसपास भी नहीं फटकते हैं। इसलिए अगर तुम साथ दो तो भविष्य की इन सारी चिंताओं से मुक्त हो सकती हो।"
नलिनी गंभीरता से रघु की बातों पर विचार कर रही थी। उसने कहा,
"रघु मुझे तुम्हारी स्कीम के बारे में कुछ भी नहीं पता है। पहले बताओ तो सही क्या करने वाले हो? मैं तुम्हारी मदद कैसे कर सकती हूँ? फिर सोचूँगी।"
"उससे पहले तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा। मुझ पर भरोसा रखोगी तभी बात बनेगी।"
"भरोसा है तुम पर। तभी तो तुम्हारे साथ आगे का जीवन बिताने का फैसला किया है। तुम अपनी स्कीम बताओ।"
रघु ने नलिनी को अपनी स्कीम समझाई। उसे ये भी बताया कि वह किस तरह उसकी मदद कर सकती है।
नलिनी को रघु का ईमेल मिला। उस ईमेल में वो सभी डॉक्यूमेंट्स थे जो उसकी स्कीम के पुख्ता होने का सबूत दे रहे थे। उन्हें देखने के बाद नलिनी का विश्वास स्कीम पर पक्का हो गया था। समस्या थी कि उस स्कीम के लिए पैसों का जुगाड़ करने में उसे रघु की मदद करनी थी। रघु ने जो तरीका बताया था उसमें जोखिम था।
पैसों की अहमियत नलिनी अच्छी तरह समझती थी। जब ललित का एक्सीडेंट हुआ था तब सर में लगी चोट के कारण करीब एक महीने अस्पताल में रहा था। तब बहुत सा पैसा खर्च हुआ था। बहुत सी जमा पूंजी खत्म हो गई थी। ललित भी जीवित नहीं रहा। तब वह बैंक मैनेजर के पद पर नहीं थी। कम सैलरी में उसे सारी ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती थी। तब उसने जाना था कि पैसों की अपनी अहमियत है।
रघु ने जो कुछ कहा था उसे सही लगा था लेकिन पैसे कमाने का रास्ता उसे सही नहीं लग रहा था। जोखिम तो था ही जो रघु ने करने के लिए कहा था वह उसके काम के प्रति गद्दारी भी होती। वह ऐसा करने का मन नहीं बना पा रही थी।
एक हफ्ते से अधिक का समय बीत गया था। नलिनी कोई फैसला नहीं ले पा रही थी। कभी वह मन बनाती थी कि जैसा रघु ने कहा है करके देखती है पर कुछ ही देर में अपना इरादा बदल देती थी। अपनी दुविधा के चलते वह बहुत परेशान थी। वह खतरा नहीं उठाना चाहती थी पर इस बात से भी डर रही थी कि कहीं रघु उससे दूर ना हो जाए। रघु को वह अब अपने आप से दूर नहीं कर सकती थी।
अभी तक रघु ने उससे उसका फैसला जानने के लिए संपर्क नहीं किया था। वह सोच रही थी कि जब रघु उससे उसका फैसला पूछेगा तो वह क्या जवाब देगी।
रघु ने अचानक फोन करके नलिनी को अपने बैंक के पास वाले रेस्टोरेंट में लंच टाइम में मिलने बुलाया था। नलिनी समझ गई थी वह उसके फैसले के बारे में जानना चाहता है। वह अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई थी। समझ नहीं पा रही थी कि क्या जवाब देगी।
नलिनी जब रघु से मिली तो उसने पूछा कि उसका फैसला क्या है। नलिनी ने अपने डर के बारे में उसे बताया। रघु ने समझाते हुए कहा,
"नलिनी...डरो मत। तुम बैंक मैनेजर हो। उन एकाउंट्स को देखो जिनमें पैसा हो पर बहुत अधिक ट्रांजेक्शन ना होते हों। उन एकाउंट्स में से थोड़ा थोड़ा पैसा तुम मेरे एकाउंट में ट्रांसफर करोगी तो किसी को पता नहीं चलेगा। मैंने तुम्हें जो डॉक्यूमेंट भेजे थे उनमें स्कीम अच्छी तरह समझाई थी। हम उन विनियोगों को बहुत कम दाम में खरीदेंगे। पक्की सूचना है कि उन विनियोगों का मूल्य कुछ ही समय में तीन गुना हो जाएगा।"
नलिनी अभी भी मन पक्का नहीं कर पाई थी। रघु ने कहा,
"कोई ना कोई एकाउंट ऐसा होगा जिसे हम अपने फायदे में इस्तेमाल कर सकते हैं।"
"रघु मैंने आज तक ऐसा काम नहीं किया है। मुझे बहुत डर लग रहा है।"
"तुम परेशान मत हो। मैं वादा करता हूँ दो हफ्तों में सारा पैसा वापस कर दूँगा।"
नलिनी सोच में थी। रघु ने कहा,
"मेरे पास और भी बहुत सी स्कीम हैं। यहाँ से जो मुनाफा आएगा उसे उनमें लगाऊँगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि कुछ ही समय में इतना पैसा हो जाएगा कि तुम्हारे साथ एक आराम की ज़िंदगी बिता सकूँ।"
नलिनी अंतिम बात सुनकर उत्साहित हुई। उसने कहा कि वह पूरी कोशिश करती है। रघु ने कहा कि जल्दी करे नहीं तो मौका हाथ से चला जाएगा।
बहुत सोच विचार के बाद नलिनी रघु की मदद के लिए तैयार हो गई। उसे एक एकाउंट मिला जिसमें पिछले दस महीने से कोई ट्रांजेक्शन नहीं हुआ था। उसे सूचना मिली कि एकाउंट होल्डर की दस महीने पहले मृत्यु हो गई थी पर किसी ने बेंक को कोई सूचना नहीं दी थी। नलिनी ने उस खाते में से एक बड़ी रकम रघु को ट्रांसफर कर दी।
रघु की मदद करके नलिनी खुश थी पर मन में एक डर भी था। उसे रघु पर विश्वास था पर सोचती थी कि कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। जैसा रघु ने सोचा है प्लान उस हिसाब से ना चल पाए या समय से पहले ही बैंक को उस खाते में की गई गड़बड़ी का पता चल जाए। अपनी इस घबराहट के कारण उसने रघु से बात कर उसे अपने मन का डर बताया था। रघु ने कहा था कि वह निश्चिंत रहे। सब वैसा ही होगा जैसा सोचा था। उसे शांति से अपने प्लान पर काम करना है इसलिए कुछ दिन उससे बात ना करे।
एक हफ्ते तक नलिनी ने धैर्य रखा। वह रघु से संपर्क नहीं करती थी। उसका मन बहुत घबरा रहा था। अब वह पछता रही थी कि उसे लालच में नहीं पड़ना चाहिए था। उसे रघु को भी समझाना चाहिए था। अब वह कुछ नहीं कर सकती थी। इस बात से उसकी परेशानी और बढ़ रही थी।
नलिनी बैंक में थी। काम में उसका मन नहीं लग रहा था। एक शख्स उससे मिलने आया। उसने बताया कि उसके पिता का एकाउंट उसके बैंक में था। उनकी मृत्यु हो गई है। उसे उनके इस एकाउंट के बारे में अभी पता चला है। वह नॉमिनी है इसलिए उस एकाउंट को बंद करके पैसा अपने एकाउंट में ट्रांसफर करना चाहता है। नलिनी ने डीटेल देखे तो माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। उस एकाउंट से ही उसने एक बड़ी रकम रघु को दी थी। नलिनी ने तबियत ठीक ना होने की बात कहकर उसे अगले दिन आने को कहा।
बैंक से छुट्टी लेकर वह घर आ गई। उसने रघु को फोन मिलाया तो नंबर स्विचऑफ था। वह परेशान हो गई। सोशल एकाउंट पर गई। रघु का प्रोफाइल नहीं मिल रहा था। मैसेंजर पर पुरानी चैट्स थीं पर रघु की प्रोफाइल पिक नहीं दिख रही थी। साफ था कि रघु ने अपना सोशल अकाउंट डिलीट कर दिया था।
नलिनी को अब धोखे का अंदेशा हो गया था पर फिर भी मन को बहलाने की कोशिश कर रही थी। उसने सोचा कि चलकर रघु से उसके फ्लैट पर मिलती है। वह फौरन कैब से दिल्ली के लिए निकल गई।
रघु का फ्लैट बंद था। नलिनी ने आस पड़ोस में पूछताछ की तो सबका यही कहना था कि उन्हें उस फ्लैट में रहने वाले की कोई जानकारी नहीं है। उन्हें तो उसका नाम भी नहीं पता है। अभी कुछ ही समय पहले यहाँ रहने के लिए आया था। निराश नलिनी अपने घर लौट आई।
नलिनी को अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था। वह इतनी कमज़ोर पड़ गई कि एक धोखेबाज़ पर भरोसा कर बैठी। उसके अकेलेपन का फायदा उठाकर रघु ने ऐसा जाल फेंका कि वह उसमें उलझ गई।
नलिनी ने तय कर लिया कि अब उसके साथ जो कुछ भी हो वह अपनी गलती स्वीकार कर रघु के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज़ कराएगी।