(दो साल बाद प्रिया पूरी तरह बदल चुकी है—अब वह भीम रियल एस्टेट में काम करती है, लेकिन नौकरी पर बने रहने के लिए उसे पाँच प्रोजेक्ट बेचने का दबाव है। कंपनी भी संकट में है और एक साल में ग्रोथ न होने पर बंद हो सकती है। दूसरी ओर रिया IAS की तैयारी कर रही है, लेकिन अख़बार में कुणाल सक्सेना की तस्वीर देखकर अतीत की यादें उसे विचलित कर देती हैं। कुणाल दोनों बहनों के लिए कभी ढाल था। परिवार से बात करके रिया को हिम्मत मिलती है और प्रिया को भी नया उत्साह। दोनों बहनों की राहें अलग हैं, मगर दिल से वे अब भी जुड़ी हुई हैं। अब आगे)
प्रिया या भ्रम
🕯️ राठौड़ हाउस —
कुणाल राठौड़ हाउस के ऊपरी मंज़िल के अपने कमरे में अकेला बैठा था। कमरे की खामोशी को बस घड़ी की टिक-टिक और उसके हाथों में कांपती एक पुरानी तस्वीर तोड़ रही थी — उसकी और प्रिया की सगाई की तस्वीर।
वह तस्वीर को घूर रहा था, जैसे उसमें कोई जवाब तलाश रहा हो।
तभी दरवाज़ा हल्के से खटखटाया गया। तभी अंदर आया — मिस्टर सक्सेना, उसका सेक्रेटरी।
"Congratulations, sir," उसने धीमे स्वर में कहा, "आपको Most Successful Businessman of the Year घोषित किया गया है।"
कुणाल की होंठों पर एक तीखी, लगभग कड़वी मुस्कान उभरी — "Successful? Really, Mr. Saxena?"
उसकी आँखें अब भी तस्वीर से नहीं हटी थीं।
मिस्टर सक्सेना थोड़ा झिझकते हुए सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। "सर, आपने प्रिया जी और उनके परिवार को ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जो कुछ भी हुआ... उसमें आपकी कोई गलती नहीं थी।"
कुणाल की आँखें अब उस पर टिकीं — ठंडी और कठोर। "आपकी सैलरी में मेरे पर्सनल लाइफ पर कमेंट करना शामिल नहीं है, मिस्टर सक्सेना।"
"सो... सॉरी सर," सक्सेना ने घबरा कर कहा और उठने लगा।
लेकिन तभी कुणाल की आवाज़ ने उसे रोक दिया — "मिस्टर सक्सेना, आपको सच में लगता है कि मेरी कोई गलती नहीं थी?"
सक्सेना एक पल को रुका, फिर हल्के से सिर हिलाया। "हाँ सर, मुझे ऐसा ही लगता है।" और वह धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकल गया।
कुणाल अब फिर अकेला था। उसने तस्वीर को अपने सीने से लगाया और फुसफुसाया — "जब मुझे छोड़ना ही था, तो मेरे दिल में अपने लिए प्यार क्यों जगाया, प्रिया?"
"काश... मैं तुम्हें कह पाता — हमारी शादी भले ही शर्तों में बंधी थी, लेकिन मेरा प्यार... वो तो बिल्कुल बेशर्त था..." उसकी आँखें नम थीं।
"तुम कहाँ हो...? हमारी बातें अब भी अधूरी हैं..."
कमरे में एक बार फिर ख़ामोशी भर गई — लेकिन उस ख़ामोशी में सालों पुरानी मोहब्बत की आहटें गूंज रही थीं।
कुणाल भारी क़दमों से कमरे से बाहर निकला। उसके चेहरे पर दृढ़ता थी, लेकिन आँखों में एक भीगी सी बेचैनी।
सामने लॉबी में ललिता दीवान पर बैठी अख़बार के पन्नों में खोई हुई थी।
उसके चेहरे पर वही पुराना, अहंकारी सुकून फैला था।
कुणाल उसके पास जाकर झुका और उसके चरणों को छूते हुए बोला —"मां, मैं एक हफ्ते के लिए नैनीताल जा रहा हूं।"
ललिता ने अख़बार को धीरे से मोड़ा, जैसे कोई पुराना अध्याय बंद कर रही हो। फिर नज़रों में तल्ख़ी लाते हुए बोली — "तीन दिन में तुम्हारा रोका है भानु से। और तुम?"
कुणाल ने उसके हाथों को धीरे से थामते हुए कहा, "मां, मैं आपके लिए जान दे सकता हूं... लेकिन प्रिया को छोड़कर किसी और से शादी..." "नहीं। यह मुझसे नहीं होगा।"
ललिता की आँखों में गुस्से की लपटें भड़क उठीं — "कितनी बार कहा है — उस लड़की का नाम इस घर में मत लिया करो!"
"वो तो गिरीश सिंघानिया के साथ भाग गई... भूल जा ओ उसे!"
कुणाल ने सिर हिलाया — "नहीं मां। मैं नहीं मानता। प्रिया ऐसा नहीं कर सकती।" और बिना एक पल ठहरे वह हवेली से बाहर निकल गया।
उसकी कार ने ज़ोर से आवाज़ की और वह एयरपोर्ट की ओर रवाना हो गया।
...
हवेली की दीवारों में अब सन्नाटा भर गया था।
लेकिन तभी ललिता ने झपटकर आदित्य के गाल पर एक करारा तमाचा जड़ दिया।"अगर तुम कुणाल की तरह सफल होते, तो आज मुझे उसके रोके के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता!" उसकी सांसें तेज़ थीं, चेहरा गुस्से से लाल। "पता नहीं उस लंगड़ी लड़की में ऐसा क्या है... जिसकी वजह से कुणाल मेरे हाथ से फिसल रहा है!"
....
"नैनीताल की खामोश गूंज"
नैनीताल की वादियाँ आज कुछ ज्यादा ही खामोश थीं।
बर्फीली हवाओं के बीच, सूरज की सुनहरी किरणें भी कुणाल राठौड़ के चेहरे की बेचैनी को नरम न कर सकीं।
उसकी कार रुकती है एक पुराने, लेकिन भव्य बंगले के सामने —"सिंघानिया हाउस"
दरवाज़ा खुला। एक नौकर सामने खड़ा था।
"गिरीश सिंघानिया से मिलना है," कुणाल ने सीधे कहा, आंखें झुकी थीं, पर दिल तेज़ धड़क रहा था।
"अंदर आइए, साहब।"
...
ड्रॉइंग रूम में गिरीश आराम से सोफे पर बैठा मिला। कुणाल को देखकर उसने तिरछी मुस्कान के साथ कहा,"देश का सबसे सफल आदमी मेरे घर आया है? ये तो हमारा सौभाग्य है!"
कुणाल ने सीधे आंखों में देखा, "प्रिया कहाँ है?"
गिरीश ने कंधे उचकाए, "नहीं पता।"
"झूठ!" कुणाल ने उसका कॉलर पकड़ लिया, "उसकी आखिरी लोकेशन तुम्हारे घर थी! कहां है वो? बताओ... वरना—"
गिरीश ने नजरे मिलाकर तीखा जवाब दिया,
"वरना क्या? मेरी ज़िंदगी भी बर्बाद करोगे, जैसे प्रिया की की थी?"
कुणाल के चेहरे की नसें तन गईं। "क्या बकवास है ये?"
"बकवास? तूने वैभव अंकल को बिजनेस में 400 करोड़ के फर्जीवाड़े में फंसाकर उनका सब कुछ छीन लिया। उनका घर, उनकी इज़्ज़त... सब!"
गिरीश की आँखें लाल थीं।
"आगे बोलो!" कुणाल बुरी तरह कांप रहा था।
"टोनी?" गिरीश हँसा, "उसे भी ज़मानत दिलवा दी तूने! उसी टोनी को, जिसने प्रिया से जबरदस्ती शादी की कोशिश की... और तुम सबने चुप्पी साध ली।"
कुणाल ने गिरीश को दीवार से धक्का मार दिया।
"झूठ! तेरा कहा एक एक शब्द झूठ है! तूने यही कहकर मेरी प्रिया को मुझसे दूर किया है न!"
गिरीश भी गरज उठा, "नहीं! प्रिया खुद समझदार थी। तुम सब की चालों को समझ गई थी। उसने तुम्हें नहीं छोड़ा, बल्कि उस दुनिया को छोड़ दिया जहाँ उसके साथ विश्वासघात हो रहा था!"
कुणाल पागलों की तरह चिल्लाने लगा —"प्रिया!! प्रिया!! बाहर आओ!! मुझे तुमसे मिलना है!!"
शोर सुनकर गिरीश के माता-पिता भी बाहर आ गए।
मोहित सिंघानिया ने सख्त लहजे में कहा —"प्रिया यहाँ नहीं है। आप जा सकते हैं, मिस्टर राठौड़।"
कुणाल थरथराता हुआ बाहर निकल गया। लेकिन अब एक बात उसके अंदर आग की तरह जल रही थी —
प्रिया से मिलना... अब उसके लिए सिर्फ मोहब्बत नहीं, एक ज़रूरत बन चुकी थी।
कुणाल के जाने के बाद मोहित ने गिरीश की तरफ देख कहा "कुणाल जा चुका है। अब तुम भी दिल्ली जाने की तैयारी करो। तुम्हे तीन दिन बाद दिल्ली के लिए निकलना है। "
गिरीश जाने को आगे बढ़ा तभी मोहित दोबारा बोला "प्रिया के परिवार को नैनीताल में ही घर और दुकान दिलाने में हमने मदद की। इससे ज्यादा की उम्मीद मत करना।
...
नैनीताल की शांत सड़क,
ठंडी हवा में अदरक वाली चाय की महक फैली थी।
सड़क किनारे के एक मामूली से चाय ठेले पर प्रिया, तमन्ना और विनोद बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। प्रिया की हँसी हवा में गूंज रही थी, लेकिन उसका चेहरा सड़क की ओर नहीं, भीड़ से दूरअपनी उलझनों की ओर था।
उसी पल, थोड़ी दूरी पर एक काली मर्सिडीज़ धीरे से आकर रूकी। कुणाल, सीट पर बैठा, अपनी उंगलियों को टटोलता हुआ, बाहर झांक रहा था — जैसे किसी अनदेखी तलाश में।
ड्राइवर ने पूछा, "सर, चाय लाऊं?"
कुणाल ने चुपचाप सामने देखा —तीन परछाइयाँ चाय के प्याले हाथ में लिए हँस रही थीं।
कुणाल ने कहा "नहीं".
ड्राइवर ने दोबारा कहा "अगर बुरा न मानें तो मैं एक कप पीकर.....?"
"ठीक है, पी आओ।"
ड्राइवर जब चाय के ठेले की ओर गया, प्रिया पीठ करके खड़ी थी,
उसका चेहरा छुपा हुआ था — ढीला-ढाला सूट, छोटा-सा बैग, कंधों तक बाल — कुणाल के लिए यह बस एक और अजनबी लड़की थी।
ड्राइवर ने कार आगे बढ़ाई ही थी कि कार के साइड मिरर से नज़र अचानक ठहरी — उस लड़की की मुस्कान पर।
दिल ने जोर से धड़कना शुरू किया। "ये... ये प्रिया?"
कुणाल ने तुरंत कार रुकवाई, दरवाज़ा खोलते ही बाहर झांका — लेकिन वहाँ अब कोई नहीं था। तीनों परछाइयाँ जैसे हवा में घुल चुकी थीं।
कुणाल कुछ पल वही खड़ा रहा, दिल और आंखों के बीच के भ्रम को समझने की कोशिश करता हुआ।
"शायद भ्रम था," उसने खुद से कहा, लेकिन दिल अब भी उसी दिशा में देख रहा था —
जहाँ एक लड़की, उसका अतीत लेकर, बस थोड़ी देर पहले मौजूद थी।
...
उधर, प्रिया को क्या पता था कि उसकी ज़िंदगी के पन्नों में से एक अधूरा नाम फिर से पलटने को तैयार था —कुणाल।
......
1. क्या सचमुच नैनीताल की उस भीड़ में कुणाल ने प्रिया को देखा था या यह सिर्फ उसकी तड़प का भ्रम था?
2. अगर कुणाल को प्रिया मिल भी गई—तो क्या वह गिरीश के लगाए आरोपों से खुद को आजाद कर पाएगा?
3. क्या प्रिया अपनी नई जिंदगी और परिवार की सुरक्षा के लिए कुणाल से हमेशा के लिए दूरी बनाए रखेगी… या किस्मत दोनों को दोबारा आमने-सामने ला देगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए प्यार और आत्मसम्मान की कहानी "ओ मेरे हमसफ़र".