पिछली बार:
अनिरुद्ध ने पहली बार अपने असली शत्रु — छाया का स्वामी का सामना किया।
उसने जाना कि उसका पूरा जीवन, उसकी तकलीफ़ें, यहाँ तक कि उसके भीतर की शक्ति भी… सब छाया की योजना का हिस्सा थे।
अब युद्ध अवश्यंभावी था।
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युद्धभूमि का रूप
किला काँपने लगा।
दीवारों से काली लहरें उठीं और पूरा कक्ष एक अंधेरी भूलभुलैया में बदल गया।
छाया का स्वामी गरजा,
"अनिरुद्ध! ये तेरी कब्र बनेगी।
तेरी आत्मा मेरी शक्ति को अनंत बना देगी।"
अनिरुद्ध ने सुनहरी तलवार उठाई।
उसकी आँखों में डर की जगह एक अजीब-सी चमक थी।
"तेरी छाया कितनी भी गहरी हो…
मैं रोशनी की चिंगारी हूँ।
और चिंगारी ही आग भड़काने के लिए काफी होती है।"
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पहला वार
छाया ने हाथ फैलाए।
अंधकार की हजारों धारियाँ साँपों की तरह अनिरुद्ध पर टूट पड़ीं।
उसने तलवार घुमाई, सुनहरी लपटों का घेरा बनाया और उन्हें रोक लिया।
लेकिन अचानक ज़मीन उसके पैरों के नीचे फट गई।
काले पंजे निकलकर उसकी टाँगें पकड़ने लगे।
अद्रिका ने मंत्र पढ़ा और अपने हाथों से नीली लौ छोड़ी।
जकड़न टूट गई।
"अनिरुद्ध! ध्यान बँटाना मत, ये तुझसे डर रहा है, तभी चालें चल रहा है!"
अनिरुद्ध ने आँखें बंद कीं, गहरी साँस ली, और पूरी ताक़त से छलाँग लगाई।
उसकी तलवार सीधी छाया के स्वामी पर गिरी।
लेकिन जैसे ही वार हुआ, छाया हज़ारों टुकड़ों में बँटकर चारों तरफ़ फैल गई।
अब चार—नहीं, आठ—नहीं, पूरा दर्जनभर छाया-स्वामी उसके चारों ओर खड़े थे।
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भ्रम या सच?
अनिरुद्ध पसीने में डूब गया।
"ये… ये असली कौन है?"
हर छाया-स्वामी एक साथ बोले,
"हम सब असली हैं।
तू चाहे जितना भी वार कर, तेरे सामने सिर्फ़ हार है।"
अनिरुद्ध ने वार किया। एक को काटा, वो धुएँ में बदल गया।
दूसरे पर वार किया, वो राख बन गया।
लेकिन जितना वो काटता, उतने ही और खड़े हो जाते।
अद्रिका ने कहा,
"ये तेरी ताक़त नहीं, तेरे धैर्य की परीक्षा है।
अगर तू इनसे लड़ता रहा, तो कभी असली तक नहीं पहुँच पाएगा।
ध्यान लगा, अनिरुद्ध! सुन, किसकी साँस असली है… किसकी धड़कन ज़िंदा है।"
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सुनहरी दृष्टि
अनिरुद्ध ने आँखें बंद कीं।
सुनहरी आभा उसके चारों ओर फैल गई।
उसने अपनी शक्ति से देखना शुरू किया —
और अचानक उसे एहसास हुआ।
सभी छायाओं में से सिर्फ़ एक की धड़कन थी।
बाकी सब धोखे थे।
उसने तुरंत आँखें खोलीं और पूरी ताक़त से वार किया।
तलवार की सुनहरी लपटें सीधा असली छाया-स्वामी पर गिरीं।
धमाका इतना भयानक था कि पूरा किला हिल गया।
दीवारें दरक गईं, छत से पत्थर गिरने लगे।
छाया-स्वामी दर्द से तड़प उठा, लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
"शाबाश… यही तो चाहिए था।
अब तू मेरे जाल में पूरा फँस चुका है।"
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छुपा हुआ जाल
अनिरुद्ध चौंक गया।
उसने देखा कि उसका वार सफल हुआ, लेकिन साथ ही उसकी सुनहरी शक्ति मानो छाया-स्वामी के शरीर में समा गई।
छाया ने ठहाका लगाया,
"क्या तुझे सच में लगा कि तू मुझे तलवार से हरा देगा?
नहीं, अनिरुद्ध।
तेरी शक्ति ही मेरा आहार है।
हर वार के साथ तू मुझे और मज़बूत कर रहा है।"
अद्रिका का चेहरा पीला पड़ गया।
"नहीं! अनिरुद्ध, ये तुझे इस्तेमाल कर रहा है।
रुको… वरना तेरा पूरा अस्तित्व इसकी छाया में खो जाएगा!"
अनिरुद्ध ने तलवार पीछे खींची, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
उसके हाथ से सुनहरी रोशनी धीरे-धीरे काली होने लगी।
Hook:
अनिरुद्ध का हर वार छाया-स्वामी को कमज़ोर नहीं कर रहा था, बल्कि उसे और शक्तिशाली बना रहा था।
उसकी सुनहरी आग अब काले धुएँ में बदल रही थी।
👉 क्या अनिरुद्ध अपनी ही शक्ति का शिकार बन जाएगा?
👉 या वो वो रास्ता खोज पाएगा, जिससे छाया-स्वामी को हराया जा सके — बिना खुद को खोए?