पिछली कहानी में हमने पढा था की प्रीत आयांशी को उसके मामाजी से मिलवाती है पर बाद में पता चलता है कि वो तो आयांशी के पापा के बचपन के दोस्त हैं।
अब आगे..................
सम्राट जब अभिमन्यु को आयांशी का हाथ पकड़े देखता है तो गुस्सा हो जाता है और पास वाली टेबल पर अपना हाथ मारता है जिससे सबका ध्यान उसकी तरफ जाता है। प्रीत जल्दी से सम्राट के पास जाती है और देखती है कि सम्राट के हाथ से खून निकल रहा होता है। विजय जल्दी से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आता है और प्रीत को दे देता है। प्रीत सम्राट के हाथ पर लगे खून को साफ करती है और उसके हाथ में लगे कांच भी हटाती है। पर सम्राट को तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था वो तो बस अभिमन्यु को गुस्से से घूरे जा रहा था। सम्राट प्रीत के पकड़ से अपना हाथ छुड़ा कर ऊपर कमरे में चला जाता है।प्रीत सम्राट के पीछे जाने लगती है तभी नैना जी प्रीत को रोक देती हैं।थोड़ी देर बाद सारे मेहमान चले जाते है बस अभी वहां घर के सदस्य, आयांशी और मामाजी का परिवार ही होता हैं।सब लोग अभी हॉल में बैठे होते हैं कि तभी सम्राट भी नीचे आ जाता है।
तभी Mr. राजपूत सम्राट से बोलते हैं- क्या हम ये जान सकते हैं Mr.सम्राट की आज आपने किस बात के लिए मेहमानों के बीच में ऐसा तमाशा किया था?
सम्राट कुछ नहीं बोलता हैं बस आयांशी को ही गुस्से से घूरे जा रहा था।
तब नैना जी Mr. राजपूत को टोक कर बात ताल देती है।
Mr. राजपूत बिना कुछ बोले अपने कमरे में चले जाते है तब नैना जी भी चली जाती हैं। सम्राट अभी भी आयांशी को गुस्से से घूरे जा रहा था।
सम्राट को ऐसे देख आयांशी थोड़ी डरने लगती हैं और प्रीत से बोलती हैं- प्रीत, अब मैं भी जाती हूं। काफी लेट हो गया है। और वो जल्दी से वह से निकल जाती हैं। सम्राट आयांशी को जाते देखता रहता हैं।
कुछ दिन बाद
सुबह के 9 बजे.....
आयांशी की गाड़ी राजपूत विला के बाहर आकर रुकती है तब बाहर खड़े बॉडीगार्ड विला का गेट खोल देते है और गाड़ी को अंदर लाने का इशारा करते हैं। आयांशी का ड्राइवर गाड़ी अन्दर लेता हैं और विला के सामने खड़ी देता हैं तभी आगे वाली सीट से एक बॉडीगार्ड बाहर आता हैं। और गाड़ी का पीछे वाला गेट ओपन करता हैं। आयांशी कार से बाहर आती हैं और विला को देखने लगती हैं। आयांशी के मन में अभी भी सम्राट को लेकर काफी डर था वो अंदर जाना नहीं चाहती थी पर उसकी भी मजबूरी थी। आयांशी राजपूत विला के अन्दर जाती हैं।
वहां पर काम कर रहे एक सर्वेंट से पूछती हैं- क्या Mr. सम्राट घर पर हैं क्या??
तभी वो सर्वेंट बोलता हैं- पता नहीं मैम सर इस समय कभी घर पर होते तो कभी नहीं। हमें उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
तभी व्यांशी नीचे आती है और आयांशी को देखती हैं।
व्यांशी- हाय आयांशी, तुम आज इतनी सुबह सुबह यहां?
आयांशी- हाय व्यांशी, वो मैं अंकल से कुछ काम था इसलिए आई थी।
व्यांशी- पर डैड तो आज जल्दी ऑफिस चले गए।
आयांशी कुछ सोचती हैं और बोलती हैं- अच्छा, ठीक हैं कोई नी। मैं शाम को आ जाऊंगी। और वो जाने लगती हैं।
तभी व्यांशी उसे रोकते हुए बोलती हैं- अरे रुको तो, पहले मेरी पूरी बात सुन तो लो तुम। डैड 1 हफ्ते के लिए बैंगलोर से ही बाहर जा रहे हैं।
ये सुनकर अय्याशी कुछ सोचने लगती हैं तभी व्यांशी उससे बोलती हैं- अगर तुम्हे कोई जरूरी काम हैं तो तुम मुझे बोल दो मैं बाद में डैड को बता दूंगी।
आयांशी- एक्चुअली मुझे अंकल से कुछ ऑफिस के पेपर्स के बारे में बात करनी हैं जो डैड ने भिजवाए हैं।
तभी व्यांशी को याद आता हैं कि सम्राट ने प्रीत से बोलकर अय्याशी के पापा से कुछ ऑफिस के जरूरी पेपर्स तैयार करवाए थे जो आज उनकी मीटिंग के लिए चाहिए थे।
तब व्यांशी बोलती हैं- अरे, वो पेपर्स डैड ने नहीं सम्राट भाईसाहब ने मंगवाए हैं। ये पेपर्स तुम सम्राट भाईसाहब को जाकर देदो।
ये सुनकर आयांशी थोडी़ घबरा जाती हैं।
तभी व्यांशी- क्या हुआ, जाओ ना। तब आयांशी हामी में सिर हिलाती है और ड़रती हुई सीढियों की तरफ बढने लगती हैं।।।।