RAKASHVAN - 1 in Hindi Anything by Mani Kala books and stories PDF | राक्षवन - 1

Featured Books
Categories
Share

राक्षवन - 1

अजय रात के ग्यारह बजे अपनी मेज पर बैठा पढाई कर रहे था बाहर पूरी गली में सनाटा पसरा हुआ था तभी उसे खिड़की के पास से हल्की-सी फुसफुसाहाट सुनाई दी अजय अजय ...अजय डर के मारे खिड़की की ओर झाँका लेकिन गली पूरी तरह से खाली थी उसने खुद से कहा शायद थकान होगी जैसे ही वह अपनी किताब की ओर लौटा उसने देखा कि किताब के पन्ने अपने आप पलट रहे हैं एक पन्ना रुक कर ठहर गया जिस पर लिखा था सावधान आधी रात से पहले तहखाने का दरवाजा मत खोलना अजय हैरानीमें पन्ना घुरता रहा वह जानता था कि उसके घर में कोई तहखाना नहीं था फिर भी शब्दों ने उसके मन में जिज्ञासा पैदा कर दी सुबह होने पर अजय ने अपने घर की तलाशी शुरु की सीढ़ियों के नीचे की दीवार में उसने हल्की-सी दरारें देखी उसने हाथ से दबाया और देखा कि लोहे का हैंडल छुपा हुआ था डर और उत्सुकता दोनों के बीच उसने हैंडल घुमाया फर्श खिसक गया और दरवाजा खुल गया नीचे उतरते ही अजय को ठंडी हवा लगीं मोबाइल की टार्च जलाकर देखा कि सीढ़ियाँ नीचे गहरी अंधेरी सुरंग में जा रहीं थीं जैसे ही उसने पहला कदम रखा स्क्रीन पर वही शब्द उभर आया जो किताब में थे "सावधान !आँधी रात से पहले तहखाने का दरवाजा मत खोलना"अजय ने अपनी जेब से घड़ी निकाली सुबह के दस बजे थे लेकिन मोबाइल पर समय 11:59 दिखा रहा था वह डर और उलझन में पड गया जैसे ही वह आगे बढ़ा एक फुसफुसाहट फिर सुनाई दी अजय तु पहले भी यहा आ चुका है अजय को याद आया की उसने कल रात वही सपना देखा था उसका मन हिल रहा था क्या वो सच में तहखाने में है या सब उसका सपना है ?अचानक मोबाइल की टार्च अपने आप बुझ गयी अंधेरे में सिर्फ एक चमकता हुआ दरवाजा दिखाई दीया उस पर लिखा था "अगर सच जानना है तो प्रवेश करो बाहर लौटनेका रास्ता नहीं है" अजय ने कांपते हुए दरवाजा खोला उसे लगा जैसे पूरी दुनिया किसी और समय में फिसल गई हो तेज़ रोशनी के बाद उसने खुद को अपने ही गांव में पाया पर सब कुछ बदला हुआ था गांव सुनसान पेड़ स्थिर और आसमान में सूरज की रोशनी नीली थी फुसफुसाहट गूँजी अजय ये तुम्हारा भविष्य है  उसने मोबाइल देखा तारीख थी 18 सितम्बर 2050 तभी धुंध से बनी एक  आकृति बनी उसने कहा तहखाना समय का  दरवाजा है जो इसे खोलता है वो अतीत या भविष्य में फस जाता है अजय घबराया मै वापस कैसे जाऊं ? आकृति हंसीं -कीमत चुकानी होगी तेरे परिवार की अधूरी गुत्थियां अभी बाकी हैं । गली में परछाई उसकी और बढने लगी अजय समझ गया अब यह सिर्फ रहस्य नहीं बल्कि उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा है  अजय ने देखा कि हर परछाई के चेहरे पर उसका ही अक्स था कहीं बच्चा कहीं जवान कहीं बूढ़ा वह कांप उठा क्या ये उसके अलग अलग समय के रुप है?परछाईयां फुसफुसा रही थी  अगर सच से भागेगा तो अधंकार तुझे निगल जायेंगे ।