Rakshavan - 3 in Hindi Anything by Mani Kala books and stories PDF | राक्षवन - 3

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राक्षवन - 3

धरती फट गई — और उस गहरी खाई से निकली वह काली परछाई अब पूरी तरह आकार ले चुकी थी। उसका कोई चेहरा नहीं था, सिर्फ़ भीतर का घना अंधकार और सैकड़ों सालों का कड़वाहट भरा गूँज. आवाज़ धीमी पर खून जमा देने वाली निकली —“अजय! तूने अपने हिस्से स्वीकार कर लिए… पर याद रहना — मैं वही अंधकार हूँ जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने दबा दिया था। अब तुझे असली युद्ध लड़ना होगा।”

अजय की हथेली में जो तलवार अब चमक रही थी, वह अब सिर्फ़ हथियार न रही — उस पर समय और सूर्य-चंद्र के निशान खुदे थे। पर तलवार कहाँ से आई थी, यह बात अब उसे यहीं समझ आई — तहख़ाने के चीर-फाड़ के समय, जब दीवारों पर पुराने चिन्ह चमके थे, वही चिन्ह मिट्टी के भीतर छिपी हुई एक पुरानी पूजा-स्थल की दीवार तक पहुँचे थे। उस दीवार के पीछे अपने गेलें हुए शिलालेख और पुरातन लोहे की पेटी थी — उसी पेटी के अंदर तलवार शाश्वत नीली लौ में लिपटी मिली थी।

यह तलवार उसके पूर्वजों ने बनाई थी — एक ऐसा अस्त्र जो समय के चक्र को बाँध सके। कभी-कभी लोग उत्सव में कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने वह शक्ति बनाई थी ताकि गांव को बुरी घटनाओं से बचाया जा सके। पर डर और संदेह ने उस शक्ति को छिपा दिया; और जिस दिन गांव वालों ने उस बच्चे को श्रापित कर दिया, उन्होंने तलवार को भी मिट्टी में दबा दिया ताकि कोई और उसके बल से डरकर उसे बर्बाद न कर दे। उस दबे हुए भय ने ही अँधेरे को जन्म दिया — श्राप की जड़ें वहीं गहरी हुईं।

अजय ने तलवार उठाई तो उसे पहली बार महसूस हुआ कि यह उसकी हिम्मत की परख करती है। जब वो डर कर भागता, तलवार भारी हो जाती; जब वो सहीं मंशा से आगे बढ़ता, तलवार हल्की होकर प्रकाश छोड़ती। यही वजह थी कि लड़ाई के बीच-बीच में तलवार ने अपने आप चमक दिखाई और समय धीरे-से उसके इशारों पर थमा।

अब अँधकार ने अंतिम रूप लेकर सामने आ खड़ा हुआ था — वह गुज़रती पीढ़ियों की चरों दिशाओं में जमा हुई कड़वाहट था। उसने एक बार पूरी ताक़त झोंकी और जमीन से विशाल दल निकल आए — वे परछाइयाँ, जो पहले अजय के विरोधी थीं, अब उसकी पहचान मांग रही थीं। अजय ने समझ लिया — इन्हें मारकर मिटा देना समाधान नहीं है; उन्हें अपनाकर समझना ही असली रास्ता है। इसलिए उसने तलवार को घुमाने के बजाय, उसे जमीन में गाड़कर ज़ोर से पुकारा — “मैं सच मानता हूँ! मैं अपने लोगों के किये गए गलत फैसलों की जिम्मेदारी लूँगा।”

तभी तलवार से एक तेज़ झिलमिलाहट निकली; वह प्रकाश की एक लहर बनकर उठी और उसी जड़—कुएँ के पास वाली चिंगारी तक पहुँची जहाँ पहली गलती हुई थी। अँधकार ने 마지막 जोर लगाया—पर परछाइयाँ, जो अब अजय के हिस्से बन चुकी थीं, उन्होंने एक-एक कर अपनी पहचान बताई: किसने डर में झूठ बोला, किसने किसी को गलत समझ लिया, किस रिश्ते में ईर्ष्या थी। हर सच सामने आया और हर सच से जुड़ा ग़लतफहमी का पर्दा उठ गया।

जब अँधकार ने देखा कि उसके पीछे छिपा कारण अब बाहर आ रहा है — सच्चाई, शिक्षा और समझदारी — वह कमज़ोर पड़ गया। उसके भीतर जो दर्द और गलत फ़ैसलों की आग थी, वह तलवार और सच्चाई की रोशनी में सिकुड़ने लगी। एक धमाके के साथ अँधकार की केंद्रीय परछाई छोटी-सी चिंगारी में समा गई — नष्ट नहीं हुई, पर नियंत्रित हो गई; उसका क्रोध और बदनामी अब उजागर हो चुकी थी, और अब उसे निगाहों में सीख बाँटी जाने लगी।

अजय गहरी साँस लेकर बैठ गया। उसका शरीर थका हुआ था, पर दिल हल्का था। उसके हाथ पर जो चिन्ह बने थे — वे अब तेज नीले से बदलकर हल्की सुनहरी धारियों में बदल गए थे। यह संकेत था कि श्राप का चक्र टूट नहीं गया, पर उसका रूप अब नियंत्रण में आ गया था। गाँव के लोग एक-एक कर जागे; जिन्होंने कभी झूठ बोला था, उन्हें अब अपनी गलती याद आई; जिन्होंने डर कर फैसला किया था, वे पछताने लगे। पर ये पछतावा निंदा नहीं था—बल्कि समझदारी और सुधार का आरम्भ था।

अकास में पहली बार ताजी हवा चली; पेड़ों की पत्तियाँ धीरे हिलने लगीं; और जो चारों ओर सन्नाटा था, वह अब जीवन की सामान्य आवाज़ों से भर गया। बुजुर्गों ने अजय को घेरे और कहा — “तुमने हमारे पुराने पापों का बोझ उठाया, बेटा। अब से हमें सच जानकर जीना होगा।”

अजय ने तलवार को धीरे से भुजा में समेटा और आँखें बंद कर के कहा — “मैं किसी का हक ले कर विजयी नहीं बनूँगा। मैं जो शक्ति मिली है, उसे दूसरों पर थोपा नहीं करूँगा। मैं समय का संतुलन बनाऊँगा — ताकि किसी और पीढ़ी को श्राप न झेलना पड़े।”

उसकी आवाज़ में अब जिम्मेदारी थी, पर नफरत नहीं। उसकी परछाई आईने में धीरे-सी मुस्कुरायी — कोई विजयी मुस्कान नहीं, बल्कि समझदारी की मुस्कान।

समाप्ति नहीं थी—सिर्फ़ नया आरम्भ था। अजय ने जाना कि तलवार उसे सिर्फ़ लड़ना नहीं सिखाती; वह उसे सच के साथ जीना सिखाती है। और वह लड़ाई जो उसने जीती थी, वह बाहरी शत्रु से नहीं, अपने परिवार की गलतफहमियों और डर से थी।

वह दिन गाँव के इतिहास में नया नाम लेकर गूंजा — “जिसने सच स्वीकार कर लिया।” लोग धीरे-धीरे एकजुट होकर पुराने दाग़ों को मिटाने में लगे। और अजय? वह अपने कमरे में लौटा, हाथ पर चिन्ह थामे — नायक तो बन चुका था पर वह जानता था कि असली परीक्षा अभी बाकी है: समय का संतुलन बनाए रखना, और हर बार सच के साथ खड़ा रहना।

और इस तरह — तलवार मिली, श्राप समझा गया, अँधकार का सामना हुआ, और गाँव ने एक नई सुबह देखी; पर अजय की जर्नी अभी जारी थी — अब वह एक छुपा-छुपा-सा सुपरहीरो था, जिसकी सच्ची ताक़त उसके साहस और ईमानदारी में निहित थी