(कहानी में भावनाओं और सस्पेंस का मिश्रण है। छाया और विशाल के रिश्ते में गलतफहमियाँ गहराती हैं, वहीं गुप्ता परिवार में ताऊजी-ताईजी के जाने से नित्या भावुक हो उठती है। पार्क में छाया और नित्या की मुलाकात रोमिला से होती है, जो नम्रता की पुरानी सहेली निकलती है। घर में सब मिलकर खुशियाँ बाँटते हैं, पर रात ढलते ही कहानी अंधेरे मोड़ पर पहुँचती है।
जंगल के टूटे-फूटे घर में खतरनाक अपराधी बक्सीर डील की योजना बनाता है। पुलिस रघु से सच उगलवाना चाहती है, लेकिन बक्सीर के कब्जे में रघु का परिवार है। साजिशें और खतरे अब और गहराने वाले हैं। अब आगे)
ठाकुर की दिलेरी
विनोद नगर का सन्नाटा
रात के सन्नाटे को चीरती हुई पुलिस की जीप एक पुरानी बिल्डिंग के सामने आकर रुकी। इंस्पेक्टर ठाकुर ने गहरी सांस लेते हुए अपनी टीम को आदेश दिया। कुछ जवान लिफ्ट की तरफ दौड़े और खुद ठाकुर बाकी अफसरों के साथ सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। तीसरी मंजिल पर 319 नंबर फ्लैट के सामने रुककर उसने घंटी दबाई। भीतर कोई हलचल नहीं।
एक महिला ऑफिसर ने औजार से लॉक तोड़ा और जैसे ही दरवाजा खुला, सबके सामने बिखरी हुई चीज़ों का ढेर था—मानो कोई तूफान गुजर गया हो। ठाकुर ने तेज नज़र घुमाई, इशारा किया—कुछ लोग घर खंगालने लगे, बाकी आस-पड़ोस से पूछताछ करने।
तभी ठाकुर का मोबाइल बज उठा। स्क्रीन पर पुलिस स्टेशन चमक रहा था। उसने रिसीव किया ही था कि उधर से कांस्टेबल कुंदन की हड़बड़ाई आवाज़ गूँजी—
“सर! गजब हो गया… रघु जेल से भाग गया!”
ठाकुर की आंखें फैल गईं। शब्द निकले—“व्हाट…? ये कैसे हो सकता है? कंट्रोल रूम को तुरंत खबर दो।”
गुस्से और हैरानी में उसने दीवार पर जोर से मुक्का मारा। हथेली से खून रिसने लगा, पर उसे परवाह नहीं थी। कांस्टेबल ने आगे बढ़कर उनका हाथ थामा और जीप की ओर ले गया।
दो अफसरों को मौके पर जांच के लिए छोड़, बाकी टीम तुरंत जीप में सवार हो गई। इंजन गरजा और गाड़ी अंधेरे में दौड़ पड़ी—शिकार और शिकारी दोनों अब खुली सड़क पर थे।
प्रगति कॉलेज
कक्षाओं की चहल-पहल थम चुकी थी। लंबी गलियों में सिर्फ पंखों की घरघराहट और कभी-कभार गूंजती आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। उसी खाली क्लासरूम में नित्या, अपनी कॉपी और किताबों के बीच झुकी हुई, किंजल को पढ़ा रही थी। बोर्ड पर लिखे आख़िरी शब्द मिटाते हुए उसने गंभीर स्वर में कहा—“आज जो भी पढ़ा है, कल ज़रूर दोहराना।”
किंजल ने शरारती मुस्कान के साथ जवाब दिया—“ठीक है, गुरु दीदी।”
दोनों हंस पड़े। सामान समेटकर वे कक्षा से बाहर निकले। कॉलेज का मैदान अब लगभग सुनसान था, पेड़ों की परछाइयाँ लंबी होकर ज़मीन पर फैली थीं।
नित्या गेट तक पहुंची और हाथ हिलाकर किंजल से विदा ली। किताबों का बैग संभालते हुए वह सड़क की ओर बढ़ी। सामने बस-स्टैंड पर हल्की भीड़ थी, लेकिन नित्या का ध्यान कहीं और ही था। उसे पता नहीं था कि दूर खड़ा कोई शख्स उसकी हर हरकत पर नज़र गड़ाए हुए है।
गली का मोड़ आते ही नित्या ने बैग कसकर कंधे पर टिका लिया। तभी अचानक पीछे से एक ताक़तवर हाथ ने उसे पकड़ लिया। उसके होंठों पर सख़्ती से हथेली रख दी गई।
“म्म्म…” नित्या की चीख गले में ही घुट गई।
वह आदमी उसे घसीटते हुए सड़क किनारे खड़ी काली कार तक ले गया। दरवाज़ा खुलते ही भीतर बैठे दो नकाबपोश झपट पड़े। उन्होंने नित्या को इतनी ताक़त से जकड़ लिया कि उसका शरीर कांप उठा।
कुछ ही पलों में उसके मुंह पर पट्टी कस दी गई। नित्या की आंखों से आँसू बह निकले, पर अपहरणकर्ताओं के चेहरे पर शैतानी हंसी नाच रही थी।
डरी हुई नित्या मन ही मन बुदबुदाई—"प्रमोद… फिर से? अभी तक नहीं सुधरा?
लेकिन अगले ही क्षण उसकी निगाह ड्राइविंग सीट पर गई। स्टीयरिंग पकड़ने वाले हाथों को उसने पहचाना। वह ठिठक गई। “रघु…!” उसका दिल जैसे धड़कना ही भूल गया।
.....
लंबी सफ़र के बाद कार एक वीरान मैदान के बीचोंबीच रुकी। चारों तरफ़ घना अंधेरा और डरावनी ख़ामोशी पसरी थी। कार से बाहर घसीटी गई नित्या का रो-रोकर बुरा हाल था। उसकी आंखों से आंसुओं की धार थमने का नाम ही नहीं ले रही थी।
तभी अचानक धूल उड़ाती एक काली SUV उनके सामने आकर रुकी। दरवाज़ा खुला और बाहर उतरा—इंस्पेक्टर ठाकुर।
रघु ने ठहाका लगाया, उसकी आवाज़ अंधेरे में गूंज उठी।“देख ठाकुर! मेरे एक बुलावे पर चला आया। तेरे हाथों की मार, तेरी वर्दी की अकड़… सबका बदला आज चुकाऊँगा। पहले तेरी ये लड़की—फिर तू।”
रघु ने नित्या को जोर से जकड़ लिया। उसके गुर्गे ने चाकू नित्या की गर्दन पर रख दिया। नित्या का शरीर कांपने लगा, उसके होंठों से सिर्फ़ सिसकियाँ निकल रही थीं।
अचानक ठाकुर दहाड़ा—“शूट!”
क्षण भर में SUV से उतरे कमांडो जैसी वर्दी में तीन-चार पुलिस वाले दनादन फायरिंग करने लगे। गोलियों की गूंज सुनकर रघु का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी पकड़ ढीली होते ही नित्या ज़मीन पर गिर पड़ी और डर के मारे बेहोश हो गई।
मिहिका महिला कांस्टेबल ने नित्या को अपनी बांहों में ले गई। बाकी पुलिस वालों ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए गुंडो को ढेर कर दिया।
धुआँ और बारूद की गंध फैल चुकी थी।
मैदान में अब सिर्फ़ एक ही ज़िंदा बचा था—रघु। उसकी आंखों में गुस्सा, डर और बदले की आग जल रही थी।
इंस्पेक्टर ठाकुर भारी कदमों से रघु की ओर बढ़ा।
रघु ने होंठों पर वह सड़ा हुआ ठहाका लगाया—
“आ जा ठाकुर! मुझे अरेस्ट कर ले। वैसे भी, जेल मेरी पुरानी महफिल है। मैं फिर भाग जाऊँगा… और तेरे कानून को फिर चकमा दूँगा।”
ठाकुर की आंखों में अंगार जल उठे। अगले ही पल—
धड़ाक! धड़ाक! धड़ाक!
उसके माथे पर गोलियों की बौछार हुई और रघु वहीं ढेर हो गया।
मौके पर खामोशी छा गई। चारों तरफ़ सिर्फ़ धुआँ और बारूद की गंध तैर रही थी। पुलिस टीम हैरान रह गई। सबकी आंखों में वही सवाल था—“कानून हाथ में क्यों लिया?”
लेकिन ठाकुर खुद ही गरज उठा—“जब तक ये सांस लेता, हमारी सोसायटी पर मौत का साया बना रहता। आज इंसाफ हुआ है।”
टीम चुप रही, पर हवा में तनाव साफ़ महसूस हो रहा था। तभी मिहिका की आवाज़ गूंजी—“और सर… बक्सीर?”
ठाकुर की आंखें खून जैसी लाल हो उठीं। उसने दांत पीसते हुए कहा— “उसे तो पाताल से भी निकालकर लाऊँगा। चाहे जान चली जाए… बक्सीर अब बच नहीं सकता।”
पास खड़ी नित्या कांप रही थी, उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। मिहिका ने उसे सहारा दिया।
एंबुलेंस बुलाकर लाशें उठवाई गईं। टीम एंबुलेंस में सवार हो गई।
ठाकुर ने मिहिका और नित्या को अपनी SUV में बिठाया। इंजन की गड़गड़ाहट के साथ कार अंधेरे को चीरती आगे बढ़ी—और ठाकुर की आंखों में सिर्फ़ एक नाम जल रहा था—“बक्सीर।”
जल्दी ही तीनों नित्या के घर पहुँच गए। दरवाज़ा खुलते ही जतिन और नम्रता अपनी बेटी को इस हालत में देखकर घबरा उठे। नम्रता के चेहरे का रंग उड़ गया और वह लड़खड़ाते कदमों से नित्या की ओर बढ़ी। तभी महिला कांस्टेबल ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए शांत स्वर में कहा –“चिंता मत कीजिए… वह अब सुरक्षित है।”
केशव ने झट से नित्या दीदी को अपनी बाहों में उठाया और अंदर कमरे की ओर चला गया। उसके पीछे छाया भी दौड़कर चली गई। थोड़ी देर बाद केशव बाहर आया और बोला –“छाया दीदी के पास ही है, आप लोग निश्चिंत रहें।”
जतिन की आँखों में सवाल थे। उसने इंस्पेक्टर ठाकुर की ओर देखा। केशव ने धीमे स्वर में कहा –
“सर… आखिर हुआ क्या था?”
सभी की निगाहें इंस्पेक्टर ठाकुर पर टिक गईं। कुछ पल चुप रहने के बाद उसने भारी आवाज़ में पूरी घटना बयान कर दी। हर शब्द सुनते हुए जतिन और नम्रता की साँसें थम-सी गईं।
इतने तनाव के बीच नम्रता किसी तरह खुद को संभालते हुए रसोई में गई और सबके लिए चाय ले आई। जब उसने कप सबके सामने रखे तो उसके हाथ अब भी हल्के-हल्के काँप रहे थे। कमरे का माहौल सन्नाटे से भरा हुआ था, पर चाय की भाप के बीच सभी के दिलों में एक ही बात गूँज रही थी—
“अब आगे क्या होगा?”
1. क्या बक्सीर सचमुच ठाकुर के हाथ लग पाएगा, या उसकी नई चालें पुलिस को फिर उलझा देंगी?
2. छाया और विशाल के बीच की गलतफहमियाँ इस माहौल में और गहरी होंगी, या नित्या की हालत देखकर उनके रिश्ते में कोई नया मोड़ आएगा?
3. नम्रता की पुरानी सहेली रोमिला, जो अचानक कहानी में आई है—क्या वह सचमुच भरोसेमंद है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की"