(रात के समय, जंगल के बीच एक टूटे-फूटे घर में बक्सीर अपने गैंग के साथ रघु के बंदी होने और बड़े सौदे की योजना में व्यस्त था। वहीं पुलिस इंस्पेक्टर ठाकुर रघु को पकड़ने पहुँचते हैं, लेकिन रघु जेल से भाग निकलता है। नित्या को रघु अपने साथ ले जाता है, लेकिन इंस्पेक्टर ठाकुर और पुलिस टीम समय रहते पहुँचकर नित्या को बचा लेते हैं और रघु को मार गिराते हैं। बक्सीर को पकड़ने की योजना भी बनती है। अंत में नित्या अपने घर सुरक्षित लौटती है और सभी स्थिति का सामना कर राहत महसूस करते हैं। अब आगे)
रिस्क और रिजल्ट
नम्रता ने इंस्पेक्टर ठाकुर और उनकी महिला कांस्टेबल की खूब आवभगत की। पूरे घरवालों ने उन्हें बार-बार धन्यवाद दिया। बार-बार मना करने के बावजूद दोनों को लगातार खाना-पीना दिया गया।
केशव ने थोड़ा चिंतित होकर पूछा,
—"नित्या के किडनैपर कौन थे?"
इंस्पेक्टर ठाकुर ने गंभीर होकर जवाब दिया,
—"आजकल कहीं भी सेफ नहीं है।"
थोड़ी देर बाद उन्होंने महसूस किया कि परिवार को सब कुछ सच बता देना चाहिए, लेकिन सबसे पहले नित्या का होश में आना जरूरी था। इसलिए उन्होंने बहाना बनाकर वहां से निकलने का फैसला किया।
कुछ समय बाद नम्रता नित्या के कमरे में आई। नित्या अब होश में थी, लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी डर साफ झलक रहा था। नम्रता ने उसे धीरे-धीरे खाना खिलाया और फिर सुला दिया। छाया को उसने सख्त हिदायत दी—"दीदी के साथ ही रहना।" सच में, छाया पूरी रात नित्या के बगल में ही रही।
थोड़ी देर बाद, जब दीदी सो गई, छाया खाना खाने आई। जतिन ने मुस्कुराकर कहा,—"सब मिलकर खाना खाते हैं।"
छाया ने झट से जवाब दिया,—"आप लोग आराम से खाना खाइए। मैं जल्दी खा लेती हूं। दीदी को मेरी जरूरत कभी भी पड़ सकती है।"
खाना जल्दी खत्म करने के बाद छाया अपने कमरे में लौट गई। वह नित्या के बगल में बैठ गई, उसका हाथ पकड़कर उसे सुकून देने लगी। लेकिन अचानक नित्या जोर-जोर से चीखने लगी——"नहीं! नहीं! मुझे मत मारो!"
छाया झट से उठी और उसके पास जाकर बोली,—"दीदी! मैं यहीं हूँ, डर मत।"
डर और थरथराहट में नित्या छाया के गले लग गई और फुसफुसाई,—"छाया! मुझे बचा ले, वो लोग मुझे मारना चाहते हैं।"
छाया हैरान रह गई,—"कौन मारना चाहता है आपको, दीदी?"
नित्या ने धीरे-धीरे पूरी घटना सुनाई। छाया ने उसे सहलाते हुए समझाया और शांत किया। अंततः नित्या बड़ी मुश्किल से सो पाई। उस पर पड़ी गोलियों की बौछारें उसे अब भी परेशान कर रही थीं। वह जानती थी कि यह सब उसके जीवन की सुरक्षा के लिए हुआ। फिर भी इंस्पेक्टर ठाकुर की आवाज़ और गोलियों की गड़गड़ाहट उसके दिल में डर बैठा गई थी। छाया ने नित्या को सुलाया और खुद भी धीरे-धीरे नींद में खो गई।
सुबह छाया अपनी मां के साथ किचन में मदद कर रही थी। तभी कहीं से काशी की मीठी आवाज़ आई,
—"गुड मॉर्निंग अंकल! गुड मॉर्निंग भैया!"
जतिन हैरान होकर बोले,
—"गुड मॉर्निंग बेटी! आज इतनी जल्दी?"
केशव भी मुस्कुराए और जवाब दिया। काशी ने उत्सुकता से कहा,
—"अंकल! आज हमारा रिजल्ट है, और कल से कालेज भी शुरू!"
छाया को याद आया,
—"अरे हां, आज तो रिजल्ट है!"
नम्रता मुस्कुराते हुए बोली,
—"जा जल्दी तैयार हो जा, मैं तुझे नाश्ता देती हूं।"
काशी ने झट से कहा,
—"आंटी! मुझे भी नाश्ता चाहिए।"
छाया ने हंसते हुए कहा,
—"तू घर से नाश्ता करके नहीं आई?"
काशी ने मुंह बनाकर कहा,
—"वो तो पच गया।"
सभी हंस पड़े। जल्दी से नाश्ता कर, दोनों बस स्टैंड की ओर बढ़ चलीं।
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जल्दी ही छाया और काशी अपने कालेज पहुँच गईं। नोटिस बोर्ड पर रिज़ल्ट चस्पा था। आसपास का माहौल मिली-जुली भावनाओं से भरा था—कहीं उत्साह की हलचल, तो कहीं निराशा की खामोशी।
दोनों जल्दी-जल्दी रिज़ल्ट देखने की ओर बढ़ीं। तभी उनके स्टडी ग्रुप के लोग दिखाई दिए। काशी जल्दी से दौड़ते हुए पूछ बैठी—"क्या हुआ?"
हितेश ने गंभीर होते हुए जवाब दिया—"विनय, दीक्षा, केतकी, रोबिन और फातिमा को 100% मार्क्स मिले हैं।"
छाया ने हैरानी से पूछा—"ये तो अच्छी खबर है, फिर सब उदास क्यों हैं?"
विनय ने धीरे से कहा—"बाकियों के अच्छे मार्क्स नहीं आए।"
यह सुनते ही दोनों के चेहरे उतर गए।
छाया और काशी दौड़कर नोटिस बोर्ड तक पहुँचीं। अपनी मार्क्स देखकर दोनों स्तब्ध रह गईं—काशी के 80%, और छाया के 78%। उनकी खुशी की झलकें कहीं गायब हो गई थीं। तभी विनय पास आया और सांत्वना देते हुए बोला—"कोई बात नहीं, अगली बार से सेशन की शुरुआत से पढ़ाई कर देना। मन छोटा मत करो।"
विशाल, जो खुद 100% मार्क्स लाकर खुश होने वाला था, छाया की उदास मुद्रा देखकर अंदर ही अंदर परेशान हो गया। छाया ने विनय से कहा—"हम अभी चलते हैं।" और काशी का हाथ पकड़ते हुए भीतर की ओर बढ़ गई।
फातिमा ने उदास होकर कहा—"दोनों हमारे सामने अपना दुख नहीं दिखाना चाहती।"
विनय ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया—"ठीक कह रही है, उन्हें थोड़ी देर अकेला छोड़ दो।"
लेकिन विशाल यह सब दूर से देख रहा था, और अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाया। वह पीछे-पीछे चला। आग्रह भी उसके साथ था। जब वे कक्षा तक पहुँचे, तो सीन बिल्कुल बदल चुका था—छाया और काशी खुशी से उछलते हुए, एक-दूसरे को गले लगाते हुए चिल्ला रही थीं।
काशी बोली—"यकीन नहीं होता! मेरे... मेरे 80% मार्क्स!"
छाया ने उछलते हुए कहा—"हां! तेरे 80%, और मेरे 78%! यह तो पार्टी वाली न्यूज है!"
फिर वह इधर-उधर देखती हुई बोली—"सुनो, कालेज में दुखी होने का नाटक करना है। असली पार्टी तो घर पर होगी।"
काशी झट से हां कर देती है। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाकर खुशी मनाई, फिर वापस ग्रुप में शामिल हो गईं।
विशाल और आग्रह दंग रह गए। आग्रह ने कहा—"अरे बाप रे! ये लड़कियां क्या हैं? इतनी सारी लड़कियां तुम्हें पसंद करती हैं, और तुम्हें सिर्फ छाया मिली! दोनों सहेलियां पागल है।"
विशाल हंसते हुए बोला—"चलो, चलो, सेलिब्रेट करते हैं।"
छाया और काशी ने घर जाकर खुशखबरी दी। मां ने कहा—"विनय और उसके दोस्तों की वजह से इतने अच्छे मार्क्स आए हैं, उन्हें धन्यवाद जरूर कहना।"
छाया बीच में ही बोली—"मां, हमारे मार्क्स से उन्हें खुश नहीं होना चाहिए।"
मां ने डांटते हुए कहा—"नालायक! एक अच्छी ट्रीट तो बनाओ। वरना शाम की पार्टी नहीं!"
छाया उदास होकर बोली—"ओके मां।"
काशी ने कान में फुसफुसाते हुए कुछ कहा और दोनों मुस्कुरा उठीं।"चलो, कालेज की कैंटीन में पार्टी करते हैं," काशी ने कहा।
"पर तुम्हारे 100% नहीं आए हैं, फिर पार्टी?" रॉबिन ने पूछा।
काशी ने हल्की उदासी में कहा—"हम मिलकर ग्रुप को ट्रीट देंगे, यह हमारी सजा है और सीख भी।"
कैंटीन में छाया ने सबकुछ व्यवस्थित कर दिया—समोसे, कोल्ड ड्रिंक, मिठाई।
अचानक विशाल वहां आ पहुँचा। छाया सतर्क हुई—"जल्दी आओ, यह मेरी और काशी की तरफ से..."
लेकिन विशाल ने उसके मुंह में लड्डू डालते हुए कहा—"78% मार्क्स, not bad, congratulations।"
छाया चौंक गई, समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहे।
इतना ही समय था कि काशी भी अपने साथ ग्रुप को लेकर आ गई। सभी ने मिलकर खाने का मज़ा लिया। छाया अभी भी विशाल की हरकतों को समझ नहीं पा रही थी, लेकिन चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।
.....
मिनी पार्टी का शोर-गुल अब धीरे-धीरे शांत होने लगा। छाया और काशी घर की ओर बढ़ीं। बस से उतरते ही छाया ने सिर पर हाथ रखकर थकान और हल्की चिंता के मिश्रित भाव के साथ कहा—"धत्त तेरे की…"
काशी ने हैरानी से पूछा—"क्या हुआ?"
छाया ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ कहा—"आज पार्टी में… इंस्पेक्टर ठाकुर को इन्वाइट करना भूल गई।"
काशी ने ऐंठकर कहा—"इंस्पेक्टर ठाकुर? उसको बुलाने की क्या जरूरत है?"
छाया ने मुस्कान के साथ कहा—"बाद में बताती हूं…" और पुलिस स्टेशन की तरफ़ बढ़ गई। केशव ने पहले ही उसे याद दिला दिया था कि इंस्पेक्टर ठाकुर को इन्वाइट करना जरूरी है।
......
पुलिस स्टेशन पर, इंस्पेक्टर ठाकुर अपनी टीम को कड़े स्वर में इंस्ट्रक्शन दे रहे थे। तभी सुलेमान फाइल लेकर आया, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ थे। उसे तुरंत कुछ और दस्तावेज़ लेने के लिए भेजा गया। एक कांस्टेबल ने जल्दबाजी में कुछ फाइलें दिखाई। इंस्पेक्टर ठाकुर ने माथा पकड़ते हुए जोर से चिल्लाया—
"हमारे पास कुछ सबूत हैं भी या नहीं? तुम सब कॉप्स हो या सिर्फ नाम के लिए?"
सुलेमान ने इधर-उधर नजर दौड़ाई और हिम्मत करके कहा—"सर! रघु ही एकलौता रास्ता था जिससे उस बक्सीर तक पहुंचा जा सकता था।"
इंस्पेक्टर ठाकुर ने उसे घूरते हुए फाइल को एक तरफ रखा और कहा—"हां… उससे तुम हिप्नोटाइज करके जानकारी निकालते।"
तभी एक महिला कांस्टेबल ने डरते हुए कहा—"सर! उस तक पहुंचने का एक ही रास्ता है…"
इंस्पेक्टर ठाकुर ने बिना सांस लिए पूछा—"क्या, मिहिका?"
मिहिका ने धीरे-धीरे कहा—"सर… नित्या।"
इंस्पेक्टर ठाकुर का पारा चढ़ गया, लेकिन उसने खुद को शांत किया और धीमी आवाज में कहा—"आगे बोलो।"
मिहिका ने ठंडी सांस भरी और कहा—"बक्सीर के बारे में एक बात मशहूर है—जो भी उसके पीछे पड़ता है, उसे नहीं छोड़ता…"
इंस्पेक्टर ठाकुर ने कुछ सोचते हुए कहा—"और अब उसकी नज़र नित्या पर है। नित्या के जरिए ही हम उस तक पहुँच सकते हैं। क्या कहती हो, कुछ सोचो…"
उसकी नजर मिहिका पर टिक गई, लेकिन पीछे मुड़कर उसने देखा—छाया वहाँ खड़ी थी, उसकी हर बात ध्यान से सुन रही थी।
छाया की आँखों में चिंता और जिज्ञासा की झलक थी। उसे समझ आ गया था कि यह मामला सिर्फ एक किडनैपिंग से कहीं बड़ा और खतरनाक था।
1. छाया ने इंस्पेक्टर ठाकुर की बातें सुन ली—क्या वह अब नित्या की सुरक्षा के लिए खुद कोई जोखिम उठाएगी, या सिर्फ देखती रहेगी?
2. इंस्पेक्टर ठाकुर बक्सीर तक पहुँच पाएंगे और नित्या की रक्षा कर पाएंगे, या कोई अप्रत्याशित खतरा उन्हें रोक देगा?
3. क्या छाया और विशाल की गलतफहमी दूर होगी, या यह उनके रिश्ते में नया सस्पेंस खड़ा कर देगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की".