Gunahon Ki Saja - Part - 20 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | गुनाहों की सजा - भाग 20

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गुनाहों की सजा - भाग 20

अपनी माँ को रोता देख नताशा भी रोने लगी। उसने रोते हुए कहा, "मुझे नहीं मालूम था कि वरुण ऐसा इंसान निकलेगा। मेरी तो इसने ज़िंदगी ही बर्बाद कर दी।"

रीतेश भारी मन से पेन उठा कर उस फाइल पर दस्तखत करने लगा। इस समय उसका चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था। यदि वरुण पुलिस वाली बात न कहता, तब तो यहाँ के हालात को संभालना मुश्किल हो जाता। जिस प्रॉपर्टी के लिए उसने इतने पापड़ बेले थे, वह प्रॉपर्टी आज उसके हाथ में आते ही छूट रही थी। तब तक दोबारा बेल बजी और बेल बजते ही रीतेश ने दस्तखत कर दिए।

तभी माही ने रसोई से आकर दरवाज़ा खोला तो सच में पुलिस की वर्दी में आईजी, तेजस दरवाजे के बाहर खड़ा था। उसे देखते ही वरुण लपका और दोनों एक-दूसरे के गले मिले।

तब वरुण ने पूछा, "तेजस, मैंने कुछ भेजा था, मिला क्या?"

"हाँ, मिल गया, इसीलिए तो आया हूँ, बस तेरे आदेश की देर है।"

"नहीं-नहीं, तेजस, शायद उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। घी सीधी ऊँगली से निकल रहा है, तो फिजूल में उसे टेढ़ी क्यों करना है, आ बैठ ना।"

तेजस ने बैठते हुए कहा, "अरे, तेरी पत्नी से नहीं मिलवाएगा क्या? शादी के समय मैं यहाँ नहीं था, इसलिए आ नहीं पाया। यह देख, भाभी जी के लिए एक छोटा-सा तोहफ़ा लेकर आया हूँ।"

तब तक नताशा वहाँ आ गई, उसने तेजस से कहा, "हैलो।"

तेजस ने भी हैलो कहते हुए वह तोहफ़ा नताशा के हाथों में दे दिया।

अब वरुण ने सब का परिचय करवाना अपना कर्तव्य समझते हुए तेजस को सबसे मिलवाते हुए कहा, "यह है मेरा साला रीतेश, यह मेरी सासू माँ शोभा जी और यह हैं मेरे ससुर जी विनय कुमार। सबसे ख़ास, जिससे मैं तुम्हारा परिचय करवाना चाहता हूँ, उसे तुमने बचपन में ज़रूर देखा होगा।"

तेजस ने पूछा, "अरे, कौन है यार, वह जल्दी मिलवा।"

सब अचरज भरी नजरों से वरुण को देखने लगे कि वरुण यह क्या कह रहा है।

नताशा ने बीच में ही टोकते हुए पूछा, "वरुण, यह क्या कह रहे हो तुम?"

"वही जो आप सब ने सुना।"

वरुण ने तेजस की तरफ़ देखते हुए कहा, "हाँ तो तेजस, मैं बुलाता हूँ उसे, वह रसोई में खाना बना रही है।"

इसके बाद वरुण ने बड़े ही इत्मीनान से आवाज़ लगाई, "माही ... माही मेरी प्यारी बहन, जल्दी बाहर आओ।"

यह वाक्य सुनकर किसी को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, पर जो सुना वही बोला गया था। माही बाहर आ रही थी, बाक़ी सब के चेहरे स्तब्ध थे, काटो तो खून न निकले, मानो बर्फ की शिला में सब के सब तब्दील हो चुके थे।

नताशा होश में आई और वरुण के गाल पर तमाचा लगाने के लिए जैसे ही उसने हाथ उठाया; वरुण ने उसके हाथ को आधे रास्ते में ही रोकते हुए कहा, "सोचना भी मत।"

"कौन हो तुम वरुण और उसे कैसे जानते हो?"

"नताशा, माही मेरी बहन है, मेरी छोटी बहन।"

"क्या ... क्या ... क्या...? वरुण, तुम यह क्या कह रहे हो?"

"हाँ, नताशा, माही के लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ।"

"पर तुम अचानक कहाँ से आ गए? शादी में तो तुम कहीं नज़र नहीं आए थे।"

"अच्छा ही हुआ, नताशा, जो मैं नज़र नहीं आया; वरना यह सब मैं नहीं कर पाता।"

नताशा का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था। रीतेश, शोभा और विनय के मुंह खुले के खुले रह गए।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः