Ansh, Kartik, Aryan – 5 in Hindi Crime Stories by Renu Chaurasiya books and stories PDF | अंश, कार्तिक, आर्यन - 5

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 5

भीड़-भाड़ भरी कैंटीन में, कार्तिक एक कोने की खिड़की के पास बैठा था।उसकी नीली गहरी आँखें किताब के पन्नों पर टिकी हुई थीं, पर ध्यान कहीं और था।थोड़ी दूरी पर आर्यन और उसके दोस्त, ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए बातें कर रहे थे।कभी-कभी उनकी निगाहें चुपके से कार्तिक की ओर उठ जातीं… और वहीँ ठहर जातीं।कार्तिक ने पन्ना पलटा, होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आई।वो सब कुछ देख रहा था, सब कुछ सुन रहा था…लेकिन उसके हावभाव में ज़रा भी बेचैनी नहीं थी।जैसे किसी शतरंज के खिलाड़ी को पता हो,कि सामने वाला कौन-सा मोहरा चलने वाला है—और उसने पहले ही उसके जवाब की योजना बना रखी हो।आर्यन की नज़र अनायास कार्तिक से टकराई।कार्तिक ने बस एक पल के लिए सिर उठाया,गहरी आँखों से उसकी ओर देखा—और फिर ऐसे किताब में खो गया जैसे वो वहाँ मौजूद ही न हो।आर्यन की मुट्ठियाँ अनजाने में भींच गईं।“ये लड़का… कुछ ज़्यादा ही शांत है।”उसके दिल में एक अजीब-सी चुभन उठी।रात के सन्नाटे में कार्तिक अपने कमरे में अकेला बैठा था।सामने खुली हुई थी अंश की आख़िरी डायरी।आख़िरी पन्ने पर वही शब्द चमक रहे थे—“कार्तिक… मुझे माफ़ करना।मैं हमारा वादा नहीं निभा पाया।मैंने हर रोज़ तुम्हारा इंतज़ार किया…और तुम्हें प्यार किया…जब तक कि मैं हार नहीं गया।”------------------------------------------कार्तिक का घर कभी भी ,गर्म और सपनों से भरा नहीं था। पिता राजीव एक हाई-प्रोफ़ाइल व्यक्ति थे — हमेशा दूर प्रोजेक्ट्स में व्यस्त रहते बे अक्सर रातों को घर लौटते और चुपके से सो जाते। माँ मीरा ने घर को संभालने की कोशिश की, पर अक्सर थकान उसकी आंखों में  दिखती थी। घर में प्यार कम और उम्मीदें ज़्यादा थीं — जैसे कि बच्चे को बड़ी दुनिया में भेजकर कुछ ‘ठीक’ कर दिया जाएगा।बचपन में कार्तिक  जब अकेला और उदास था ।तब उसे एक बच्चा मिला  अंश। उसने न सिर्फ उसको हंसाता,बल्कि  उसको जीना भी सिखाया।अंश की हँसी, उसकी बेफिक्री, उसकी छोटी-छोटी खुशियाँ — यही कार्तिक की एकमात्र सुकून की जगह बनीं गई। पर घर में अक्सर सन्नाटा ही मिलता ।वह अक्सर अंश के घर ही रुकता ,वो जब उन पिता पुत्र को एक साथ देखता तो, उसके मन के एक कोने में एक छोटी सी कसक उठती।काश अंश के पिता उसके पिता होते ।और यही बजा थी शायद की वो अंश के इतना करीब आने लगा।अक्सर घर में मिली तन्हाई ने उसे जल्दी से आत्मनिर्भर और सतर्क बना दिया उसने सीखा कि दुनिया सुरक्षित नहीं, तो खुद को मजबूत बनाना होगा।जब अपने माता-पिता के ट्रांसफर के कारण कार्तिक बचपन में ही ,  लंदन चला गया। वहाँ बहुता में भी अकेलापन गहरा गया। स्कूल में उस पर कभी-कभी चमक दिखी — पर भीतर से  कुछ टूटता रहा उसने पढ़ाई अच्छी की, पर दिल में अक्सर खालीपन रहता था। विदेश की चमक-दमक ने उसे outward-perfect बनाया — अच्छे कपड़े,पहना डेट करता दोस्तो के साथ घूमता — पर दिल के अंदर वही पुराना दर्द बना रहा।माँ-पिता का रिश्ता और उम्मीदों का बोझ अक्सर उसे तोड़ देते ।पिता की लगातार गैर-मौजूदगी और माँ की थकी हुई दयालुता ने कार्तिक को हमेशा “खुद को छिपाने” की आदत दे दी। जब भी घर में कोई बातचीत हुई, वह सुनता रहा—बातें भविष्य के फैसलों, करियर, सुरक्षित रिश्तों की। पर कभी भी किसी को कुछ नहीं कहा । और किसीने भी  उसके दिल के टुकड़े नहीं देखे।तब  उसने सीखा कि भावनाओं को दिखाना कमजोरी है; इसलिए उसने उन्हें अंदर दबा लिया।अंश उसके लिए सिर्फ़ दोस्त नहीं था — उसका सहारा, उसकी मासूम उम्मीदें, उसकी एक छोटी दुनिया था। कार्तिक ने वादा किया था कि वह लौट कर आएगा, सब ठीक करेगा। पर लौटने पर अंश को गायब पाया गया। उस खोये हुए वादे ने कार्तिक के अंदर कुछ हिलाकर रख दिया — ग़म और   क्रोध एक में बदलने लगा और बदले लेने की ठान ली।विदेश की पढ़ाई—खासकर behavioral studies और arts—ने उसे लोगों की सूक्ष्म भाषा पढ़ना सिखाया। loneliness ने उसे दिमागी तौर पर पनपाया — कैसे पहचान छुपानी है, कैसे अपनी छवि perfect रखनी है, कैसे किसी का भरोसा कम शब्दों में जीतना है। यही कौशल अब वह आर्यन पर प्रयोग करेगा। पर हर चाल के पीछे एक टूटे हुए दिल की पीड़ा रहेगी — उसके दिल में जो भी अच्छाई है,  वह उसे अंश के लिए दबा देता है।उनका प्यार मासूम था…अंश और कार्तिक की आँखों में कभी सिर्फ़ वही लिखा था।बचपन की वो दोस्ती, जो धीरे-धीरे पहली मोहब्बत में बदल गई।एक ऐसा रिश्ता, जिसके बारे में उन्होंने किसी से नहीं कहा —बस एक-दूसरे की आँखों में छुपाकर रखा।लेकिन किस्मत बेरहम थी।अंश की ज़िंदगी छीन ली गई…और पीछे रह गया कार्तिक — टूटा हुआ, पर जिंदा।उसके आँसू सूख चुके थे।अब उसकी रगों में सिर्फ़ बदले का ज़हर बह रहा था।उसकी हर साँस अंश के नाम पर थी,हर धड़कन उसी वादे की गूँज थी —“मैं तेरी मौत को बेकार नहीं जाने दूँगा।”---आर्यन…वो लड़का जिसने कभी हार देखी ही नहीं थी।पैसा, ताक़त और दोस्तों की भीड़ —सब कुछ उसके इशारों पर चलता था।उसकी ज़िंदगी एक खेल थी,और लोग उसके शिकार।लेकिन उसे क्या पता था,उसके अगले शिकार के रूप में सामने खड़ा कार्तिक,वो शिकार नहीं…बल्कि शिकारी था।कार्तिक की आँखों से आँसू गिरते रहे, पर उसके चेहरे पर आग जल रही थी।उसने बुदबुदाया—“अंश… अब मे तुझसे किया वादा पूरा करेगा।तेरी मौत बेकार नहीं जाएगी।”में तुझे इंसाफ दिलाऊंगा इसके लिए चाहे मुझे मारता भी पड़े या किसी को मारना पड़े में सन कुछ करूंगा __________________________________उधर, दूसरी तरफ़ आर्यन अपने कमरे में बेचैन बैठा था।उसके दोस्त सो चुके थे, पर उसका मन बार-बार उसी नए लड़के पर अटक रहा था।“इतना परफ़ेक्ट कोई कैसे हो सकता है?उसकी मुस्कान, उसकी आँखें… और वो अजीब-सी शांति।ये सब नकली है। इसमें ज़रूर कोई रहस्य छुपा है।मुझे पता लगाना होगा।”वो रात थी जब तीन नाम—अंश, कार्तिक, और आर्यन—एक ही धागे में बंध गए थे।एक की मौत,दूसरे का प्यार और बदला,और तीसरे का शक और जुनून…अब ये कहानी सिर्फ़ प्यार की नहीं,बल्कि प्यार, अपराध और बदले की थी।यूनिवर्सिटी का गार्डन शाम की धूप में डूबा हुआ था।छात्र इधर-उधर फैले हुए थे, कुछ किताबों में डूबे, कुछ दोस्तों के साथ हँसते हुए।पर आर्यन अकेला एक बेंच पर बैठा था — दिखने में तो आराम से, पर भीतर कहीं बेचैन।तभी सामने से कार्तिक आया।उसकी चाल धीमी, आँखें नीली गहराई लिए हुए, और होठों पर हल्की-सी मासूम मुस्कान।उसने सीधे आर्यन की ओर देखा और बिना झिझक उसके पास बैठ गया।कार्तिक (धीमे स्वर में):“तुम अक्सर अकेले बैठते हो… तुम्हें कभी-कभी देखकर लगता है कि शायद तुम भीड़ में भी तन्हा हो।”आर्यन थोड़ा चौका, पर मुस्कान दबाकर बोला—“और तुम क्या मेरे बारे में इतना सोचते रहते हो?”कार्तिक ने उसकी आँखों में सीधा देखा, जैसे कोई अंदर तक झाँक रहा हो।“नहीं… मैं बस महसूस करता हूँ। कभी-कभी लोग बहुत कुछ छुपाते हैं, और मैं शायद उन बातों को देख लेता हूँ जिन्हें कोई और नहीं देख पाता।”आर्यन का दिल अचानक धड़क उठा।वो खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश करता रहा, पर उसकी आँखें कार्तिक की गहराई में अटक गईं।कार्तिक ने जानबूझकर अपनी उँगलियाँ किताब पर रखीं, और एक पल के लिए इतनी नज़दीकी बना दी कि आर्यन को उसकी साँसों की गर्माहट महसूस हुई।फिर उसने मुस्कुराते हुए किताब आगे बढ़ाई—“ये किताब तुम्हें सूट करेगी। शायद तुम इसमें अपने सवालों के जवाब ढूँढ पाओ।”आर्यन ने किताब थामी, पर उसकी पकड़ थोड़ी काँपी।वो अंदर ही अंदर सोच रहा था—“क्या ये वाकई मुझे समझ रहा है… या मुझे फँसा रहा है?”कार्तिक ने धीरे से सिर झुकाया और उठ खड़ा हुआ।उसकी नीली आँखों में वही रहस्य था।“कभी-कभी… सही जवाब हमें वहीं मिलता है जहाँ हम ढूँढते ही नहीं।”ये कहकर वो चला गया।आर्यन उस बेंच पर अकेला बैठा रह गया।किताब उसकी मुट्ठियों में थी, पर उसके मन में अब सिर्फ़ एक नाम था—कार्तिक।क्लास का घंटी बज चुकी थी।स्टूडेंट्स बाहर निकल रहे थे, शोर और हँसी से गलियारा गूंज रहा था।आर्यन अपने दोस्तों के साथ खड़ा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था।तभी उसने देखा—कार्तिक अकेला क्लास से बाहर निकला, हाथों में किताबें, आँखों में वही रहस्यमयी शांति।आर्यन की निगाहें अनायास उसकी तरफ़ उठीं।जैसे ही कार्तिक पास आया, उसने हल्की-सी मुस्कान दी और रुक गया।“हाय… मैं सोच रहा था, हम दोनों एक ही क्लास में हैं,इतना वक्त साथ बिताते हैं,पर अब तक अच्छे से बात ही नहीं हुई।”आर्यन ने भौंहें उठाईं।“तो?”कार्तिक मुस्कुराया, हाथ आगे बढ़ाया।“तो क्यों न दोस्त बन जाएँ? आखिर है सहपाठी है।उसकी आवाज़ इतनी सीधी और सच्ची लगी कि आर्यन कुछ पल को चुप रह गया।उसने सोचा— “शायद यही मौका है… मैं इसे और करीब से देख पाऊँगा।”धीरे-धीरे उसने कार्तिक का हाथ थामा।दोनों की हथेलियाँ मिलीं…आर्यन ने भीतर हल्की-सी सनसनी महसूस की,पर उसने अपने चेहरे पर वही ठंडा, अकड़ा हुआ भाव रखा।आर्यन (धीमे स्वर में):“ठीक है। दोस्त।”यूनिवर्सिटी का कैंपस में अँधेरा हो चुका था।छात्र हॉस्टल लौट चुके थे।आर्यन और उसके दोस्त, सिगरेट का धुआँ उड़ाते हुए, कार्तिक को घेरकर खड़े थे।आर्यन (मुस्कुराकर):“तो दोस्ती करनी है ना?दोस्ती इतनी आसान नहीं होती, कार्तिक।हमारे ग्रुप में आने के लिए कुछ ‘टेस्ट’ पास करने पड़ते है।”कार्तिक ने नीली आँखों से उसकी ओर देखा।चेहरे पर वही रहस्यमयी मासूम मुस्कान।“किस तरह का टेस्ट?”दोस्तों में से एक (रघु) आगे बढ़ा, आँखों में चमक थी।“तुम्हें आज रात पुराना हॉस्टल बिल्डिंग में जाना होगा।वहाँ चौकीदार भी डरकर नहीं जाता।कहते हैं वहाँ एक स्टूडेंट की लाश मिली थी।अगर तुम सचमुच हिम्मत रखते हो… तो जाओ।वहाँ से एक टूटा हुआ मेज़ का टुकड़ा लाकर दिखाओ। तब मानेंगे कि तुम हमारे दोस्त बनने लायक हो।”बाकी सब ज़ोर से हँस पड़े।उन्हें यक़ीन था — कार्तिक कभी मान नहीं पाएगा।पर कार्तिक बस चुप रहा।उसकी आँखों में एक अजीब चमक उभरी।उसने धीरे से सिर हिलाया।कार्तिक:“ठीक है। अगर यही शर्त है… तो मैं पूरी करूँगा।”रात गहरी हो चुकी थी।कैंपस की लाइटें बुझ चुकी थीं और सड़कें वीरान थीं।तब कार्तिक वो लकड़ी का टुकड़ा लाया ।आर्यन और उसके चारों दोस्त कार्तिक को बीच में खड़ा किए हुए थे।रघु (हँसते हुए):“आज तेरा असली इम्तिहान है, कार्तिक।आँखों पर पट्टी बाँधो… और जहाँ हम ले चलें, वहाँ बिना सवाल किए चलना होगा।”आर्यन ने आगे बढ़कर खुद उसकी आँखों पर काली पट्टी बाँध दी।उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी।“अब पता चलेगा तेरी असली औकात।”कार्तिक खामोश खड़ा रहा।न कोई विरोध, न कोई डर।बस एक धीमी-सी साँस, और फिर उसने कहा—“ठीक है… जहाँ ले जाना है, ले चलो।”दोस्तों ने उसे पकड़कर रास्तों से घसीटा।कभी बाईं ओर मोड़ते, कभी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ाते,कभी जानबूझकर ठोकर लगवाते।उनकी हँसी पूरे रास्ते गूंजती रही।आख़िरकार, उन्होंने उसे एक सुनसान, जर्जर-सी इमारत में पहुँचाया।दीवारों पर दरारें, फर्श पर टूटी बोतलें, और छत से लटकता एक पुराना पंखा।यह वही जगह थी जहाँ  वे अक्सर लड़कियों और नए छात्रों को डराने का खेल खेलतें थे।पट्टी उतारी गई।कार्तिक की आँखें धीरे-धीरे रोशनी में खुलीं।वो चारों तरफ़ देख रहा था —जैसे उसे पहले से सब पता हो कि कहाँ क्या है।आर्यन (ताने में):“तो कार्तिक…अब बता, डर लगा?”कार्तिक ने उसकी आँखों में सीधा देखा।उसके चेहरे पर हल्की-सी रहस्यमयी मुस्कान थी।“डर…?नहीं।क्योंकि इंसान को  डर तो तब लगता है जब उसके पास खोने के लिए कुछ बचा हो।”मेरे पस तो कुछ भी नहीं हैआर्यन का दिल एक पल को काँप उठा।बाकी दोस्त भी चुप हो गए।जैसे उनके सामने खड़ा लड़का किसी खेल का शिकार नहीं,बल्कि खुद खेल का मालिक हो।शहर की सबसे ऊँची अधूरी बिल्डिंग पर रात का सन्नाटा पसरा था।चाँद बादलों के पीछे छुप-छुप कर झाँक रहा था।आर्यन और उसके दोस्त कार्तिक को छत तक ले आए।नीचे गहराई इतनी थी कि देखते ही पैर काँप जाएं।हवा ठंडी थी, और तेज़ झोंके छत पर खड़े हर इंसान को हिला रहे थे।रघु (हँसते हुए):“अगर सच में हमारी दोस्ती चाहिए, तो कूद कर दिखाओ यहाँ से!हम नहीं चाहते कोई डरपोक हमारे साथ चले।”बाकी सब ज़ोर से हँसे।उन्हें पूरा यक़ीन था कि अब कार्तिक की हिम्मत टूट जाएगी।वो गिड़गिड़ाएगा, डर से काँपेगा, और आखिरकार उनकी शर्त मानकर उनका गुलाम बन जाएगा।पर कार्तिक बस चुप रहा।उसकी नीली आँखें नीचे गहराई की ओर देख रही थीं।कुछ पल बाद उसने हल्की-सी मुस्कान दी।कार्तिक (शांत स्वर में):“अगर यही चाहिए तो ठीक है।”कहकर वो छत के बिल्कुल किनारे तक चला गया।हवा उसके बालों को उड़ा रही थी।उसके चेहरे पर न डर था, न घबराहट — बस ठंडी दृढ़ता।आर्यन और उसके दोस्त अवाक रह गए।“ये पागल सच में कूद जाएगा…?”आर्यन ने झटके से आवाज़ लगाई—“रुको!”सन्नाटा छा गया।सबकी साँसें अटक गईं।आर्यन कुछ पल तक उसे घूरता रहा, फिर हल्का-सा हँस पड़ा।“कमाल है कार्तिक… तुझमें हिम्मत है।ऐसे लोग ही हमारे काम आते हैं। तू हमारे गैंग का हिस्सा बनेगा।”दोस्तों ने उसकी पीठ थपथपाई, और सबने मिलकर उसका स्वागत किया।अब कार्तिक आधिकारिक रूप से उनके ग्रुप का हिस्सा था।रात के 11 बज रहे थे।यूनिवर्सिटी कैंपस से थोड़ी दूर, सुनसान सड़क पर आर्यन और उसका गैंग कार में बैठे थे।सड़क के दोनों ओर ऊँचे पेड़ थे, अंधेरे में सिर्फ़ हेडलाइट्स की रोशनी चमक रही थी।आर्यन ने कार्तिक की ओर देखा“आज से तू हमारे साथ है।हमेशा याद रखना — एक बार इस रास्ते पर आ गया, तो लौटने का कोई रास्ता नहीं होता।”कार्तिक ने शांत चेहरा बनाए रखा।उसकी नीली आँखों में हल्की-सी चमक थी।“ठीक है। बताओ क्या करना है।”---आज का टारगेट था —रात ठहरी-सी थी, आसमान में मोटे बादल उभरे हुए थे।कैंपस के पीछे वाली तंग गली में एक फीकी गलियों की रोशनी कम-बेश दिखाई दे रही थी।कार की हेडलाइट्स ने कुछ क्षणों के लिए अँधेरे को चीर दिया, फिर सब गुट में उतर आए—हवा में उनके सांसों की खनक थी, और चेहरे पर बेतहाशा आत्मविश्वास।टारगेट — एक लड़का जो पिछले हफ्ते आर्यन के गैंग को टकरा गया था; उसने किसी बात से   उन लोगों को नाराज कर दिया थागैंग के लिए यह सिर्फ़ हिसाब बराबर करने जैसा मामला था — और आज सबको दिखाना था कि उन्होंने किस किस्म का डर फैलाया है।लड़का एक कोने में सिमटा सा बैठा था , आँखों में थकान और कुछ  लालिमा सी नमी थी । उसने कार की लाइट देखी तो घबरा कर उठने की कोशिश की, पर रास्ता छोटा था — भागने की गुंजाइश मिट्टी की तरह दब गई थी।आर्यन ने आगे बढ़कर कहा, आवाज़ में तेज़ ठसक थी:“तुमने  हमसे टकराकर गलती की । तुम्हें सबक सिखना होगा।”शुरू में बातें कर रहे —फिर अचानक माहौल बदल गया।और लड़के को  सभी मिलकर मरने लगे   । एक ने चाकू निकला और उसको मारने के लिए दौड़ा ।तभी  आर्यन की आवाज हंसते हुए आई ।अरे रुको ये कम कार्तिक है ,उसे ही करने दो देखते है उसके हाथ कंपनगे या नहीं। कार्तिक खड़ा था, आँखों में अजीब सा सूना पन लिए  ।एक पल के लिए उसे होश ही नहीं रहा कि लोग उसे घूर रहे है ।वो तो बस अपने ही दर्द से घिरा हुआ, उसे लग रहा था कि इन लोगों ने ऐसे ही अंश"के साथ किया होगा।उसने देखा कि किसीने उसके हाथ में क्या दिया है — उसकी हथेली में अब धातु की  गहरी ठंडक , और दिल में बेचैनी  वो जानता था — यह वही मौका है जब वह गैंग के दिल में घुस सकता है।पर उसके लिए उसे किसी मासूम को मारना होगा।क्या अंश " मुझे माफ करेगा ,अगर  उसने मुझसे पूछा तो  क्या बताऊंगा।में उसके पास जाकर  उसे ,अपना मुंह कैसे दिखा पाऊंगा।में क्या कहूंगा जब वो पूछेगा कि मुझमें ओर उन दरिंदो में क्या फर्क है।मेरे हाथ पैर सुन्न  हो गए थे,   — मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया ।मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, कि क्या करूं।मेरी आंखे अनायास ही बंद हो गई ।और उस पल एक रोशनी दिखी ।जैसे मेरे अंदर से सारी कशमकश दूर जा रही हो।मैने आंखे खोली तो देखा ।मैं उनके पास गया। लड़के की आँखों में डर और एक तरह की अचंभित उम्मीद दोनों थे। मैं उसके कान के पास झुका और इतना ही कहा — इतनी धीरे कि शायद सिर्फ़ उसका कान ही सुन पाए —“मुझे माफ़ कर देना, दोस्त। मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचाना चाहता। पर अब मेरे पास और कोई चारा नहीं है।”यह शब्द मैंने इसलिए कहे कि मैं खुद से झूठ न बोलूं। मैं उसे मारना नहीं चाहता था; मैं उसे खत्म भी नहीं करना चाहता था। पर मैं अपने इरादों की उस सच्चाई को छिपा भी नहीं सकता था ।जिसने मुझे यहाँ खड़ा कर दिया था।मैंने उसे शांत करने की कोशिश की, उसे बेहोश किया — कोई तमाशा नहीं, कोई शो नहीं — बस एक क्षण जिसमें उसकी आँखें मंद पड़ गईं और साँसों की लय धीमी हो गई । और  वह गिरा। उसके शरीर पर मिट्टी और सूखी लाली का निशान और भी ज्यादा स्पष्ट हो गया। गैंग एक पल के लिए सन्नाटे में डूब गई; उनकी निगाहें मेरी हर हरकत पर टिकी थीं।मेरी हथेलियाँ और भी कस कर बंद हो गईं। मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं, दिमाग़ सुन्न-सा; पर मेरे अंदर एक सनक भी थी।यह पक्का इरादा कि मैं जो कर रहा हूँ, वह सिर्फ़ आज़ के लिये नहीं, अंश के लिए था, उसके हर दिन की बेबसी की करतूतों के बदले में।जब मैंने उस लड़के के पास से कदम वापस खींचे, मैंने उसके कान में धीरे से कहा — “मैं तुम्हें मारना नहीं चाहता, मैं तुम्हें कुछ देर के लिए चुप कर रहा हूँ — और फिर मैं तुम्हें बचा लूंगा।” ये वाक्य बाहर सुनने में दयालुता जैसा लग सकता था, पर मेरे अंदर यह घोषणा किसी साज़िश की तरह गूँज रही थी: एक वादा और एक जिम्मेदारी।लोगों ने देखा, रघु ने हँसा, आर्यन मुस्कुराया— उन्हें लगा कि उन्होंने एक नया साथी पा लिया है। पर मैं जानता था कि मैंने एक कड़ी पार कर दी है। मैं उस लड़के को क्षणिक नींद दे कर उसे छोड़ आया — पर मेरी आत्मा में हर कदम पर एक शोक था, एक भार था। मैंने अपना चेहरा उससे मोड़ कर रोशनी की ओर देखा — और उस रोशनी में,कार्तिक ने वहीं खड़ा होकर देखा — उसने हर पल ध्यान से देखा कि किसने कब मारा, किसके हाथ कांपे, किसने ज्यादा क्रूरता दिखाई। उसकी आँखों में कोई उत्सह नहीं था — सिर्फ़ एक ठंडी गणना।हवा में अभी भी धूल की खुशबू तैर रही थी। बारिश नहीं हुई थी, पर ज़मीन पर गीली मिट्टी की गंध थी — मानो रात ने कुछ गवाही दे दी हो। कार्तिक ने उस बेहोश पड़े हुए लड़के को अपने सीने से लगा लिया।उसका शरीर ठंडा था, साँसें बहुत धीमी। उसकी कलाई पर उसने धीरे से अपनी उँगलियाँ रखीं न किसी तकनीक का हिसाब, न किसी नृशंसता की तमन्ना । बस एक बेचैनी और ज़िम्मेदारी, जिसे वह अब और आगे नहीं टाल सकता था।गैंग का चिल्लाना और आर्यन की ठंडी हँसी पीछे रह गई थी। वे सब अब पीछे हट गए थे , जैसे किसी उत्सव के बाद का सन्नाटा। पर कार्तिक को सन्नाटा नहीं चाहिए था,उसे काम चाहिए था एक कार्य, एक ठिकाना जहाँ वह उस लड़के को छिपाकर रख सके, जहाँ उसके  जख्मों का इलाज हो सके ,और जहाँ किसी के कानों तक यह बात न पहुँचे।उसने लड़के को उठाया। वह भार भले हल्का रहे, पर उसकी उँगलियाँ अंदर तक काँप रही थीं। सिर्फ़ थकान से ही नहीं, किसी अंदरूनी विद्रोह से। सीढ़ियों पर नीचे उतरते हुए हर कदम पर उसका दिमाग़ एक ही बात दोहरा रहा था  “मैंने वादा किया था।” वादा, जो अंश के नाम पर था, अब उसकी हड्डियों में कस कर बैठ चुका था।नज़दीकी गली में एक पुरानी क्लीनिक थी  किसी समय की दफ़्ती, अब कुछ सालों से बंद पड़ी। लेकिन कार्तिक वहाँ गया क्योंकि उसे उम्मीद थी कि वहाँ का एक नाम होगा डॉ. विजय, जो पहले भी उसकी, की देखभाल कर चुका था। कार्तिक ने उसकी खिड़की पर हल्की-सी दस्तक मारी। कुछ पल की देर के बाद लोहे की जालियों के पीछे से एक थकी-सी परछाई आई यह वही बुजुर्ग डॉक्टर था, जिसकी आँखों में मानवीय नमी अब भी बची थी।कार्तिक ने बिना प्रस्थान का समय गवाएँ, लड़के को डॉ. विजय के सामने रखा। डॉक्टर ने जल्दी से उसका चेहरा देखा, जख्मों का अंदाज़ लगाया और फिर जा कर कुछ पुरानी दवाइयाँ निकाली। उसकी चाल धीमी थी, पर हाथ अनुभवी। उसने कहा ।“यह कोई मामूली मामला नहीं है, पर जिन्हें बचाना है, उन्हें बचाया जा सकता है। तुम किसके साथ हो, बेटा?”कार्तिक ने सिर झुकाकर कहा । “मैं… बस इसे सुरक्षित रखना चाहता हूँ। फिर उसे ठीक करवा दूँगा।” उसकी आवाज़ सूनी और पक्की थी। डॉक्टर ने आँखें टिमटिमाईं, पर उसने कोई सवाल नहीं किया।उसे कार्तिक के हालात पता थे ।वो अंश "के पिता का दोस्त था।उसने बस हाथों में दस्ताने पहने और काम शुरू कर दिया जैसे किसी ने उसे फिर से ज़िम्मेदारी सौंपी हो।लड़का जब बेहोशी से बाहर आया तो उसकी आँखों में पहला डर था, फिर चौंक, और फिर एक क्षण के लिये recognition। कार्तिक ने उसे ध्यान से देखा चेहरा मिट्टी-धूँए से गंदा था, पर आँखों के उसी कोने में एक पुरानी चमक थी। उस चमक ने कार्तिक के भीतर की आँच को और तेज़ कर दिया: “तूम ठीक  हो।”डॉक्टर ने धीरे-धीरे पूछताछ की । कैसे, कहाँ से, किसने , पर कार्तिक ने केवल उतना बताया जितना बचाने के लिये ज़रूरी था। उसके शब्द छोटे और नियंत्रित रहे। उसने चाहा कि कोई साक्ष्य न छोड़े, कि कोई शोर न हो। डॉक्टर ने चुपचाप सिर हिलाया और कहा —“ठीक है। मैं इसे कुछ दिन यहाँ रखूँगा। पर फिर… तुम्हें एक योजना चाहिए होगी। ये लोग दया नहीं जानते ,वे शैतान है ।किसी को  तो  आगे आना होगा।में हमेशा तुमरे साथ हु मेरे बच्चे।कार्तिक की आंखें नम हो गई ।लेकर चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखाई दी। उसने कहा— “मैं जानता हूँ। इसलिए मैं यहाँ आया हूँ। और "मैं उन्हें कभी चेन से नहीं जीने दूंगा ।जो उन्होंने अंश के साथ किया। मैं उन्हें वो किसी ओर के साथ नहीं करने दूंगा।” उसकी आवाज़ में जो ठंडक थी, वह अब बदले की शिद्दत बन चुकी थी ।पर इसमें एक अलग किस्म की दया भी थी, जो सिर्फ़ पीड़ित के लिये थी।डॉक्टर ने बस इतना कहा— “तुमने बड़ा कदम उठाया है। पर ध्यान रहे, रास्ता खतरनाक है। कानून से खिलवाड़ मत करना।और सैयांम  से काम लेना।”कार्तिक ने सिर हिलाया। बाहर, रात अब और गहरी हो चुकी थी। शहर की गाड़ी की रोशनी दूर कहीं चमक रही थी। पर उसकी आँखों में अब केवल आग  थी: अंश की झुलसी-सी स्मृति, और उन लोगों के चेहरे।वो कुछ दिन क्लीनिक में रुका। हर रात जब वह लड़के की नाज़ुक साँसों को सुनता, तो अंदर एक योजना पल रही थी। उसे पता था कि अकेला सच सब कुछ बदल सकता है वह सबूत इकट्ठा करेगा, गवाहों को संगठित करेगा, और एक-एक कर के उन लोगों की दीवारें तोड़ेगा।    (क्या तुम मुझे माफ करोगे?)रात की ठंडी हवा में वह अकेला खड़ा था।आसमान धुंधला था — जैसे उसमें भी किसी की राख मिली हो।कार्तिक की साँसें काँप रहीं थीं, आँखें सूखी थीं, पर भीतर अब भी तूफ़ान था।वह सिर झुकाए हुए था, मानो धरती पर गिरा कोई टूटा हुआ वादा हो।धीरे-धीरे उसने ऊपर देखा —उसकी आँखों में आसमान के तारे नहीं, सिर्फ़ अंश की परछाईं थी।“अंश…”आवाज़ इतनी धीमी थी कि हवा भी थम गई।“तुम सुन रहे हो न? मैंने ठान लिया है।अब मैं किसी और को तुम्हारी तरह मरने नहीं दूँगा…किसी और को तुम्हारी तरह चीखने नहीं दूँगा।”उसकी उँगलियाँ काँप रहीं थीं, दिल भीतर से फटता जा रहा था।“पर क्या तुम मुझे माफ़ करोगे?”उसने आसमान से पूछा — जैसे वो जानता हो कि जवाब नहीं आएगा, फिर भी उसने पूछा।“अब मैं उसी आर्यन के साथ रहूँगा…जिसने तुम्हें तोड़ा, तुम्हें लूटा, तुम्हारी साँसें छीनीं।मुझे उसी के साथ बैठना है, उसी की आँखों में देखकर  झूठ बोलना है,उसी के हाथों को पकड़कर मुस्कुराना है।”वह हँसा — एक टूटी हुई हँसी, जिसमें आँसू की आवाज़ घुल गई थी।“क्या तुम मुझे माफ़ करोगे?”“क्योंकि मुझे उसे प्यार दिखाना होगा,वो झूठा प्यार जो हर दिन मेरी रूह को जला देगा।”उसने हाथ अपने दिल पर रखा —“अगर उसने मुझे छुआ…”आवाज़ टूट गई, साँसें थम सी गईं थी ।“अगर उसने मुझे छुआ तो मैं बस एक लाश की तरह  बन जाऊंगा । मेरी रग रग जलेगी पर में सब सहूंगा।मेरा दिल, मेरा वजूद, वो सिर्फ़ तुम्हारा है।सिर्फ़ तुम्हारा रहेगा।”आँसू अब उसके गालों पर नहीं थे — वो भीतर बह चुके थे,दिल के हर कोने में जमी राख बन गए थे।“ये तन अब किसी काम का नहीं रहा…मैं इसे जला दूँगा फिर भी  तुम्हें इंसाफ़ दिलाऊंगा।मैं इसकी हर साँस की आहूति दूँगा,पर तुम्हें तुम्हारा हक़ दिलाऊँगा।कसम है मुझे तुम्हारी हर चीख़ की।”उसने दोनों हाथ आसमान की ओर फैलाए —जैसे किसी अनदेखे हाथ को पकड़ना चाहता हो।“क्या तुम मुझे माफ़ करोगे…?”वह फुसफुसाया,और आवाज़ धीरे-धीरे उस काली रात में गुम हो गई —बस हवा रह गई, जो उसकी टूटी हुई साँसों की तरह काँप रही थी। कमरे में घुप्प अंधेरा था।दीवारों पर नमी टपक रही थी, फर्श से सड़ी गंध उठ रही थी।उस अंधेरे को बस एक टूटे बल्ब की मद्धम-सी रोशनी चीर रही थी,जो हर कुछ सेकंड बाद टिमटिमाकर कमरे को और भी भयावह बना देती थी।बिस्तर पर एक इंसान पड़ा था—हाथ-पाँव मोटी जंजीरों से बंधे हुए।धातु की ठंडी सलाखें उसकी कलाई और टखनों को चीर चुकी थीं,खून सूखकर काले धब्बों में बदल चुका था।उसके शरीर पर कपड़े थे तो सही,पर इतने पुराने और फटे हुए कि अब कपड़े नहीं,सिर्फ़ चिथड़े रह गए थे।पसीने और मिट्टी से लथपथ,उसकी हालत देख कर लगता था जैसे सदियों से वहीं कैद हो।उसका चेहरा सूख चुका था,गाल धँस गए थे,होठों पर दरारें पड़ी थीं।आँखें लाल और बेजान-सी,लेकिन उनमें अब भी एक सवाल जिंदा था—“क्यों? आखिर मुझे क्यों इस हाल में रखा गया है?”वो कराहने की कोशिश करता,पर गले से सिर्फ़ टूटी-फूटी आवाज़ें निकलतीं।उसका हर साँस लेना ऐसा लगता था मानोजिंदगी और मौत के बीच रस्साकशी चल रही हो।कमरे की खामोशी उसके दर्द को और बढ़ा रही थी।हर कराह की आवाज़ गूँजती,और फिर उसी अंधेरे में गुम हो जाती।वो बस लेटा रहा,आँखों से बहते आँसू मिट्टी में मिलते रहे।जंजीरों की ठंडी धातु ने उसके सपनों को भी कैद कर लिया था।