Lalaji Jaine Saheb in Hindi Short Stories by Devendra Kumar books and stories PDF | लालाजी जैनी साहेब

Featured Books
Categories
Share

लालाजी जैनी साहेब

लालाजी जैनी साहेब

लाला जी जैनी साहेब  हमारे शहर मुज़फ्फरनगर नगर के नई मंडी कहलाने वाले अमीर इलाके के जाने माने अमीर सेठ लोगों में से एक रह चुके हैंꟾ उनका नाम हरसुख राय जैन था पर लोग सम्मान से उन्हें लाला जी या जैनी साहेब या दोनों को मिला कर लाला जी जैनी साहेब के नाम से पुकारते थेꟾ जब वे बड़े अमीर बन चुके थे फिर भी बड़े विनम्र और अभिमान रहित थेꟾ वहां यह कहा जाता था कि जब छत्तीस जात धन पाने में घमंडी होती हैं बनिया विनम्र होता जाता हैꟾ नई मंडी में जब शुरू शुरू में प्लाट कटने शुरू हुए वे काफी साधारण स्थिति में थेꟾ शहर की पुराने रईस लोगों ने जब बड़े प्लाट खरीदे उन्होंने भी उन्ही के बराबर बड़ा प्लाट किश्तों में अलोट करवा कर किश्त देनी शुरू कर दी थीꟾ तब तक उनकी इतनी हैसियत कहाँ थी? तब कुछ रईसजादों ने फब्तियां कसी थी, ‘घोडे के सुम देख कर मेंढकी ने भी टांग उठाई’ और हरसुख राय ने उन्हें कुछ ही सालों में गलत साबित कर दिया और उनसे भी बढ़ कर आलिशान दुमंजिला “हरसुख निवास” कोठी उन्ही के बीच बना कर खड़ी कर दी थीꟾ 

 लाला जी का बेटा जिनेन्द्र मेरी कक्षा में था, काफी भला और अच्छा व नरम स्वभाव का था-काफी लडकियों जैसा स्वभाव में भी और शरीर में भीꟾ कुछ शैतान किस्म के बच्चे उसे ‘मुनीम का’ कह कर छेड़ते व चिडाया करतेꟾ इस फब्ती का कारण था कि जैनी साहेब भी सावलें थी और उनकी पत्नी भी सांवली थी, दोनों बडे भाई बहिन भी सांवले ही थे परन्तु जिनेन्द्र का रंग गौरा थाꟾ उनके मुनीम गज्जू का रंग भी गौरा थाꟾ बेचारा, बेचारा जिनेन्द्र बड़ा परेशान और शर्मिंदा होता था, उसे उन सहपाठियों पर गुस्सा भी खूब आता पर बेचारा क्या करे ना उनसे लड़ सकता था, न ही ऐसी शिकायत कर सकता था? खामौशी से बस सुन कर अनसुना कर देता था, लड़ना झगड़ना उसके स्वभाव में नहीं था, न ही उसमें इतनी ताकत थी कि वह उन शैतान बच्चों का मुकाबला कर सकेꟾ

खैर बात हम उसके पिता जैनी साहेब की करते हैं जो धीरे धीरे अपने व्यवसाय में उन्नति की तरफ चलते जा रहे थेꟾ

 जैनी साहेब ने अपने गांव पचेंडा से निकल कर बहुत अधिक मेहनत और मन लगा कर पहले एक अच्छे कामयाब व्यापारी की मुनीमगीरी की और बाद में उन्होंने स्वयं अपना गुड-खण्डसारी का काम भी शुरू कर लिया थाꟾ गाँव में जो उनकी बस पुश्तनी पुरानी परचून की दूकान थी उसे ठेके पर अपने चचेरे भाई को ठेके पर दे दी थी, शहर में मुनीमगीरी करते करते आडत के गुर सीख सीख कर उन्होंने अपनी खंडसारी की आड़त और खंडसारी का व्यापार शुरू कर दिया था, वहीँ से काम बढ़ने पर अपनी मदद के लिये एक नए लड़के गजानंद गोयल को अपना मुनीम रख लिया था जो उनकी दुकान और घर के कामों में पूरी सहायता करने लगा थाꟾ हरसुख तो दिनरात उन दिनों अपना काम बढाने मे  बेहद मशगूल रहने लगे थेꟾ  

गजानंद को लोग आम तौर पर गज्जू कहते थेꟾ बहुत शौक़ीन बंदा था, हरफन मौला था, पतंगबाज़ी, गिल्ली डंडा दोनों में भी दखल रखता था, उस के दो बेटे रामू शामू पूरे मोहल्ले में शैतानी और बदमाशी में सबसे अव्वल थेꟾ दिमाग तेज होने पर ठीक मार्ग दर्शन न मिले तो बच्चों का शैतान होना स्वाभाविक है जब पिता ही पतंगबाजी करता हो तथा खुले दिमाग का होꟾ कहावत है,“बाप पे पूत, नसल पे घोडा ज्यादा नहीं तो थोडा थोडाꟾ” कहते हैं कि मनुष्य संगति का असर छोड़ सकता है पर खून का असर नहीं, यही रामू शामू की बात थी वे गज्जू की तरह के ही थेꟾ

  गज्जू दुकान, और मकान, लालाजी और ललायन दोनों की मदद करता, उनके घर का सौदा सूत लाकर देता, हिसाब किताब रखताꟾ इस तरह वह उनकी पत्नी के और लालाजी के लिये अपरिहार्य हो गया था जिसके बिना काम नहीं चलता थाꟾ येन केन प्रकरेण उनका काम उनका दिया काम पूरा कर देता थाꟾ उसके होने से जैनी साहेब को अपने काम के लिये अधिक समय मिल पाता थाꟾ घर के कामों को भी उनकी पत्नी उससे करा लेती थीꟾ गजानंद का रंग गौरा थाꟾ इसी कनेक्शन के कारण ही तो शैतान बच्चे जितेन्द्र को ‘मुनीम का’ कहकर चिड़ातेꟾ जैसे कृष्ण को भी बलराम ‘मोल का लीना’ बता कर चिडाते थे और कहते ‘गोरे नन्द जसोदा गोरी, तू कत स्याम सरीर’ यही वाली बात जिनेन्द्र की थीꟾ बेचारा जिनेन्द्र सुन कर शर्म और बेईज्ज़ती से बेहाल हो जाता पर कुछ नहीं कर पाता थाꟾ जिनेन्द्र पढाई में ठीक ठाक था कम से कम अपने दोनों बड़े भाई बहन के मुकाबले, जो पढने में साधारण थेꟾ  जब बच्चे गली मोहल्ले में खेलते वह अपने पिता लालाजी की दुकानपर जाता तथा वहां का काम धाम देखता जिसमें उसे आनंद आता विशेष रूप से जब व्यापार स्थल पाटिये पर फ़ोन पर शोर मचा मचा कर गुड शक्कर दूर मंडियों में बेची जाती रेट बढ़ते घटतेꟾ कहते हैं न ‘पूत के पांव तो पालने में ही पता लग जाते हैंꟾ ऐसा ही जिनेन्द्र के साथ थाꟾ वह जहां ट्रेडिंग होती, बोली लगती, लाखों के वहां व्यारे न्यारे होते उसे देखता, सुनता और आनंदित होता रहताꟾ पिता भी जिनेन्द्र के व्यापार में रुझान से बड़ा खुश होते थेꟾ   

   लाला जी जैन समुदाय से थे, जो एक अमीर समुदाय है, मुश्किल से ही कोई जैन आपको गरीब मिलेगा, अगर नज़र दौडाई जाए तो पुराने समय से लगा कर अब तक जैन संप्रदाय में खूब जगत सेठ हुएꟾ महाराणा प्रताप के समय के भामा शाह से लगा कर अब तक के अड़ानी ग्रुप के गौतम अडाणी, या टाइम्स ग्रुप के साहू जैन परिवार सभी तो बेहद अमीर जैन हैं और साथ में बड़े विनम्र भीꟾ भारत में जैन समुदाय के लोगों की जनसंख्या केवल एक प्रतिशत है, पर साक्षरता और अमीरी में देश के औसत से बहुत आगे हैंꟾ एक खूबी यह है कि वे संप्रदाय में एक दूसरे की बेहद मदद करते हैं और कितने भी अमीर हो जायें खान पान में अपनी आदतें आसानी से नही खराब करते, न ही अपनी विनम्रता छोड़तेꟾ

मुझे ऐसे ही बेहद अमीर जैन सज्जन से अपनी अफ्रीका की विदेश पोस्टिंग में मिले थेꟾ उस समय मैं तंज़ानिया में दारेसलाम स्थित उच्चायोग ऑफिस में मैं नया नया फर्स्ट सेक्रेटरी बन कर पोस्टिंग पर गया थाꟾ उन्ही शुरुवात के दिनों मुझ से मिलने एक वृद्ध सज्जन चैम्बर के अन्दर आये, आयु होगी सत्तर के आस पास, अपना नाम गुलाबभाई शाह बताया, कुर्सी पर बैठ कर तुरंत ही उन्होंने तीन तंजानियां के पासपोर्ट दिए और कहा कि इनका वीसा जल्दी करा दीजिये, इन्हें ज़ल्दी गुजरात पहुंचना है, वहां इनके घर में गमी हो गयी है, इन्हें समय पर पहुंचना बहुत ज़रूरी हैꟾ

 मैंने कहा “अच्छा होता कि बाहर काउंटर पर पास-पोर्ट जमा कर दिया होता? सबको ही तो शाम चार से छः बजे तक वीसा लग कर मिल जाता हैꟾ”

 उन्होंने बताया, “बाहर काफी लम्बी लाइन है, दूसरे वीसा तुरंत ही मिल जाए तो ये लोग आज शाम की फ्लाइट में जा सकेंगे, बड़ी मेहरबानी होगीꟾ”

 उनकी उम्र का ख्याल करते हुए मैंने अपने पीए को बुला कर पासपोर्ट दे दिए, वह पांच मिनट में वीसा स्टाम्प और एंट्री आदि करा कर उनकी फीस भर कर ले आया, मैंने हस्ताक्षर कर उन्हें दे दिएꟾ बड़े प्रसन्न हो कर उन्होंने जाने वालों को बाहर निकल कर उनके पासपोर्ट  देकर वे दोबारा मेरे ऑफिस में बैठ आकर बैठ गएꟾ मैंने चाय मंगवा दी तथा उनसे उनके बारे में पूछा, “आप कितने वर्ष से यहाँ इस देश में रह रहे हो?”

 फिर जो लम्बी कहानी सुना कर जो बताया उसका सार था-‘उनका नाम गुलाब भाई शाह है,  वे गुजरात  से आये जैन हैं, उनका गांव वहां कच्छ में मोरवी के पास हैꟾ सन 1945, जब दुनिया में भारी मंदी का दौर चल रहां था,यहां आये थेꟾ तब वे जब लगभग 19-20 वर्ष के रहे होंगे, दुर्भाग्य से उनके पिता का इंतकाल हो गया था, घर में पहले से ही पैसे की काफी तंगी थी, अब तो भारी संकट आ गया थाꟾ  उनके बड़े भाई को उनके दोस्त ने बताया कि केन्या के मोबांसा के लिये एक धाओ( समुद्री बोट) मोरवी से नए लोगों को लेकर जाने वाली है, जहां उन्हें बहुत से कार्मिकों की ज़रूरत थी, दो साल में ही काफी पैसा बचा कर ला सकते हैंꟾ बड़े भाई के कहने पर गुलाब भाई जाने के लिये तैयार हो गए, मोबांसा केन्या का एक प्रमुख बंदरगाह है, जिसमें बहुत कच्छ से गए हुए गुजराती व्यापारी थेꟾ वे यहां कच्छ   से काफी स्टाफ लेकर जाते रहते थेꟾ इस तरह गुलाब भाई पानी के रास्ते धाओं में बैठ कर हिन्द महासागर पार कर मोबांसा आ गए थे, सोच कर आये थे कुछ पैसा कमा कर लौट जायेंगेꟾ उन्होंने वहां खूब मेहनत की, काम सीखा व्यापार को देखा-समझा, और जल्दी ही वहां के प्रमुख गुजराती व्यापारी के बड़े विश्वस्त सहायक बन गएꟾ उन दिनों वहां गुजराती ट्रेडिंग कर बहुत जल्दी बहुत पैसा कमा रहे थेꟾ वे भारत से आये सामान को 250-300 प्रतिशत लाभ पर बेचते थेꟾ इन्ही व्यापारी के पास नौकरी करते करते उनका इरादा था कि जब उनके पास पगार का दस हज़ार रूपया जमा हो जायेगा वे  वापिस लौट कर वहीँ गुजरात में अपना व्यापार धंधा करेंगे, सोच से कहीं पहले ही जल्दी से उनके पास 10 हज़ार रूपये हो गए, तब सोचा कि जब पचास हज़ार हो जाएगा तब जायेंगे फिर सीमा बढ़ा कर एक लाख हो जाएगा तब ज़रूर ज़रूर चले जायेंगेꟾ ऐसे ही निन्यानवे के फेर में पड कर आज तक वे नहीं गये, अब यहीं के होकर रह गए हैंꟾ उनका अपना ट्रेडिंग का काम इतना अच्छा चल निकला था कि एक लाख से अनेक लाख भी ज़ल्दी ही कमा लिये थेꟾ अब तो यही सोच है कि ‘उम्र तो सारी कटी इश्क-ऐ-बुतां में मोमिन आख़िरी वक़्त क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगेꟾ अब तो तंज़ानिया के हो गए हैं, अब तो वहां राख ही जायेगीꟾ

 आगे बताया, “गुजरात आता-जाता रहता हूँ, वहां धर्मशाला आदि भी उन्होंने बनवा दी हैं और भी दान दक्षिणा कई संस्थाओं व मंदिरों और धार्मिक कार्यों में को देता रहता हूं, जितना बन सकता है लोगों की मदद करता रहता हूंꟾ बस यहीं के हो गए हैं, यहीं का दाना पानी भाग्य में थाꟾ अब सब काम बेटे जयेश शाह को संभलवा दिया है अब सोशलवर्क  कर लेता हूंꟾ”

 फिर विनम्रता से अभिवादन कर चले गए, हां जाते समय कुछ पुराने गुजराती अखबार पढने के लिये ले गए थे जो हर सप्ताह डिप्लोमेटिक बेग से आया करते थेꟾ इतने साल से वे गुजरात से बाहर थे, अपने कच्छ से बाहर थे पर न कच्छ न गुजरात न देश उन के अन्दर से बाहर हुआ था, इसीलिये वे गुजराती अखबार के लिये हाई कमीशन में आते रहते और ज़रूरतमंदों की मदद के लिये हमेशा तत्पर रहते हैंꟾ

 उनके जाने के थोडी देर बाद उच्चायोग के सहयोगी व सेकंड सेक्रेटरी किसी काम से मेरे से मिलने आये तब मैंने उनसे गुलाब भाई के बारे में पूछा तो उनसे पता लगा कि गुलाब भाई बेहद अमीर हैं, जितना हम तुम सोच भी नहीं सकतेꟾ उनकी बहुत सारी इंडस्ट्रीज हैं, पूरे ईस्ट अफ्रीका में इनका व्यापार फैला हुआ हैꟾ उनके पास अपना निजी जेट है, इतने अमीर हैं कि जब तंज़ानिया आज़ाद हुआ और जूलियस न्येरेरे वहां के पहले राष्ट्रपति बने तब देश के बुनयादी कार्य कलाप चलाने के लिये भी तंज़ानिया सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं था, तब राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे ने अपने मित्र इन्ही गुलाब भाई शाह से आर्थिक सहायता ली थीꟾ उन्ही से आवश्यक धन लेकर नयी बनी सरकार ने शुरुवात की थीꟾ बाद में भी कई अवसर पर गुलाब भाई शाह ने नए नए स्वतंत्र देश तंज़ानिया की अपने धन से सहायता की थीꟾ इनका एक मकान तो राष्ट्रपति के निवास के बिलकुल बराबर में हैं, वर्तमान राष्ट्रपति बेंजामिन मकापा के भी ये बड़े घनिष्ट मित्र हैंꟾ”

 इतना अमीर और रसूखदार बंदा और इतना विनम्र स्वभाव यह देख कर उनके प्रति आदर बढ़ गया था, वे बाद में भी कई बार इसी तरह से ज़रूरतमंद लोगो की मदद करने के लिये, कभी अखबार पढने के लिये, कभी सिर्फ बात करने के लिये आते रहे थे, कोई फूफां नहींꟾ आयु अधिक होने पर उन्होंने ज्यादातर जिम्मेदारी अपने  पुत्र जयेश शाह को सौंप दी थी, परन्तु अभी भी नियमित रूप से अपने ऑफिस में कुछ समय के लिये जाते हैं, लोगों की सहायता करते हैं और बहुत सदा जीवन व्यतीत कर रहे थेꟾ खान पान तो जैनियों का हमेशा से बहुत सादा और सात्विक होता ही हैꟾ

 बिलकुल इसी तरह की ‘रेग से रिछ’ और मेहनत व नेक नीति से आगे बढ़ने की कहानी हमारे नगर जैनी साहेब की है कहानी के मुख्य पात्र दूसरे जैन हमारे नगर मुज़फ्फर नगर के जैनी साहेब भी है, यही दोनों अमीर जैनों की मिलती जुलती, उन्नति का कारण मेरे विचार से घर से निकल कर रिस्क लेना, पुरुषार्थ और भाग्य इन तीनों का मिश्रण हैꟾ बहुत पहले पढी कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार से थी-

‘भाग्य है लंगड़ा चल नहीं सकता, बिन पुरुषारथ किंचित भी, कभी ना मिलती राम को सीता भले ही रहता चिंतित भी,

तीन लोक में कुछ नहीं मिलता बिना भाग्य के इस जग में, पुरुषार्थ को भी चाहिए भाग्य का संबल पग पग में/’

हमारे जैनी साहेब का पूरा नाम था, हरसुख राय जैन वल्द मुसद्दी लाल जैन, जन्मस्थान ग्राम पचेंडाकलां, मुज़फ्फर नगर, उत्तर प्रदेशꟾ जैनी साहेब भी कम उम्र ही अपने गाँव की पुश्तैनी परचून की दुकान छोड़ छाड़ कर नगर में आ गए थे, यही रिस्की मामला भी था, मेहनत से काम सीख व पुरुषार्थ व भाग्य के बलबूते से हरसुख आगे बढे थेꟾ यह मुझे इस तरह भी पता लगा था कि एक दिन मैं उनके गाँव में गया था, वह मेरी बुआ की ससुराल थी, वही जाकर पता लगा था कि हमारे नगर के जैनी साहेब भी वहां के रहने वाले थे, उनके पिता मुसद्दी लाल की छोटी परचून की दुकान अभी भी गाँव के हिसाब से अच्छी खासी चल रही थी यहीं से निकल कर जैनी साहेब ने खूब तरक्की की थी जबकी गाँव तब तक वैसा ही बैकवर्ड का बैकवर्ड थाꟾ दुकान को तब उनके चचेरे भाई चलाते थे, गाँव के हिसाब से परिवार के गुजारे के लिये अच्छी चल रही थीꟾ       

 मुझे जैनी साहेब का ध्यान ऐसे ही अनायास नहीं आया था, अपने गोल्ड फ्रेम के चश्में में मुस्कराते जैनी के फोटो के साथ उनकी पुण्यतिथि का बड़ा विज्ञापन उस दिन के नवभारत टाइम्स में मेरे सामने खुला हुआ थाꟾ वह पेज जैसे ही मेरे सामने आया था तुरंत ही मैंने पहिचान लिया था और बाकी अखबार छोड़ छाड़ कर उसे ध्यान से पढ़ा थाꟾ उस एड के अनुसार उनका देहांत हुए एक दशक हो चुका था, उनको नेक, धर्मपरायण, दानवीर, उद्योगपति बताया गया था, विज्ञापन में नीचे हरसुख इंडस्ट्रीज ग्रुप की आधा दर्ज़न से ज्यादा कम्पनियों के नाम थेꟾ सब के मैनेजिंग डायरेक्टर लिखे गए  थे जिनेन्द्र कुमार जैनꟾ हमारे विद्यालय के सहपाठी जो अब तक काफी बड़ा उद्योगपति बन चुका थाꟾ  

 जिन्दगी में आप कहीं भी हों, वहां कितने ही वर्ष रह चुके हों, आप सिर्फ एक जगह के ही बने रहते  होꟾ दिल्ली में ज्यादातर जीवन यापन करते हुए अभी भी मन से वहीँ मुज़फ्फरनगर का वासी ही रहूंगाꟾ यही हाल हमारा था या जिनेन्द्र का भी थाꟾ दिल्ली आने पर शुरू में हम आपस में काफी मिलते जुलते रहते थे, मैं  सरकारी नौकरी करता सो सरकारी क्वार्टर में रहता था, वह एक बड़े प्राइवेट निवास में किराए परꟾ वह दिल्ली आ गया था पर हर हफ्ते अपने नगर ज़रूर भाग जाता था तथा होली व दिवाली पर अपने मुज़फ्फरनगर के कई अन्य साथियों और जानने वाले लोगों को  दिल्ली में अपने घर बुला कर खिलाता पिलाता व त्यौहार मनाया करता थाꟾ यह क्रम बहुत वर्षों तक बाद में धीरे धीरे घटता चला गया था ꟾ उसके पिता हरसुख राय ने गांव की छोटी पुश्तानी दुकान से शुरू कर अच्छा खासा सफल कारोबार खड़ा कर लिया था, बाद में जिनेन्द्र ने एक छोटी इंडस्ट्री से शुरू कर कोई आधे दर्जन से ज्यादा इंडस्ट्रीज बढ़ा ली थी और हजारों की संख्या में कर्मचारी और कामगार उनमें काम करते थेꟾ उसके दोनों भाई एक बड़े और एक छोटे ज्यादा कुछ नहीं कर पाए, पिता ने जितना दिया था उसमें उनका काम मजे से चल रहा थाꟾ दोनों के पास एक एक क्रेशर था जिनसे अच्छी खासी आमदनी थीꟾ

  एड वाले जैनी साहेब केवल मेरे नगरवासी, पडोसी व जानकर ही नहीं थे, वे मेरे मित्र व सहपाठी जिनेन्द्र जैन के आदरणीय पिता थे तथा मुझे भी अच्छी तरह से जानते थेꟾ बहुत साधारण से आरम्भ कर लगभग 25-30 वर्ष में उनकी गिनती नगर के प्रमुख धनियों में होने लगी थीꟾ उस दिन उन्हें स्वर्गवासी हुए 10 वर्ष हो गए थे यह एड से ही आज पता लगा, जिनेन्द्र ने ही अपनी तरफ से अखबार में दिया हुआ थाꟾ एड में जिनेन्द्र ने अपने आपको ‘हरसुख ग्रुप ऑफ़ कंपनीज का का चेयरमैन एवं सीꟾएमꟾडीꟾ लिखा हुआ था, फिर ग्रुप की कंपनीज के नाम दिए हुए थेꟾ हर कम्पनी ‘हरसुख’ नाम से थी जैसे हरसुख शुगर्स, हरसुख केमिकल्स, हरसुख ब्रेवरी आदि, यह इस बात का द्योतक भी था कि पिछले दो दशक में आधी दर्जन कंपनियां जिनेन्द्र ने खोल दी थीꟾ जिनमे से अपने नगर मुज़फ्फरनगर में केवल ही उद्योग था, बाकी उद्योग अलग अलग जगह स्थापित किये गए थेꟾ यहाँ की चीनी मिल को हरसुखराय ने ही चीनी बनाने वाले क्रेशर से शुरु किया था, अब वह विशाल हरसुख शुगर मिल हो गयी थीꟾ       

 पहले बड़े जैनी साहेब के बारे में बात कर लें जिनकी 10 वीं पुण्यतिथि का इश्तहार सामने खुला रखा है  हमारा नगर मुज़फ्फरनगर आरम्भ से ही एक बड़ा गन्ना उत्पादक क्षेत्र माना जाता रहा हैꟾ गुड, शक्कर, खांड, चीनी की देश में सबसे बड़ी मंडी यहीं पर मानी जाती रही हैꟾ गन्ने और खंडसारी उद्योगों की बदौलत किसी समय इसको पूरे देश में सबसे अधिक धनी-मानी जिला माना जाता थाꟾ कम से कम हमें तो यही बताया गया थाꟾ गुड शक्कर के आडती, शुगर एजेंट मंडी में भरे पड़े थे, यहीं से पूरे देश में यह सब आता यहाँ से जाता था, मंडी में सामान की आवक जावक चलती रहती थी, किसानों की बैल गाड़ियाँ, सामान से भरे ट्रक, मॉल भर कर माल गाड़ी के डिब्बे, सब आम कारवाई सीजन में चलते ही रहते थेꟾ रहने के मकानों में भी अगर फालतू कमरा हो तो वह सीजन में गौदाम बन जाता थाꟾ हर व्यापारी के यहाँ दर्ज़नों पल्लेदार हुआ करते थे, ज्यादातर राजस्थान से हुआ करते थेꟾ ट्रेडिंग में जहाँ खरीद फरोख्त की जोर जोर से बोलियाँ लगती थी उसे पाटिया कहते थेꟾ अच्छे मुनीमों और दलालों की हमेशा डिमांड रहती थीꟾ यही देख कर कम-उम्र के हरसुख राय जैन ने मुंडी हिंदी तथा मुनीमगिरी का गणित अच्छी तरह से सीखा और एक जैन आडती के यहाँ मुनीमगिरी से नौकरी शुरू की थीꟾ वे स्कूल की पढाई में तो थोडा कमज़ोर थे पर गणित में बड़े पक्के थे, सारे पहाड़े, पौने, सवाये, अढह्या उन्हें याद थे, कोइ भी गणना बहुत तेज़ी और बिलकुल सही करते थे, अतः दुकान पर हिसाब-किताब के बहीखाते उनकी जिम्मेदारी बन गयी थीꟾ जैन बनिया होने के कारण व्यापार में दिमाग उनके खून में था ही इसलिये कार्य व्यापार खूब अच्छा चलना स्वाभाविक सी बात थीꟾ अतः वहां चल रहे व्यापार की बारीकियां बड़ी जल्दी समझ आती गयी थीꟾ उन्होंने देखा था कि दलाल और आडती बहुत ज़ल्दी अमीर हो जाते हैं, तो हरसुख राय ने  बड़े आड़ती के सहायक का काम छोड़ अपनी खुद की आडत छोटे स्केल से शुरू कर दी और निरंतर बढाते चले गएꟾ

 हरसुख राय ने अपनी मेहनत और समझ से केवल चार पांच साल में ही अच्छा खासा धन व नाम कमा लिया थाꟾ इस बीच उनकी सजातीय जैन परिवार में भुल्लन सिंह जैन की बड़ी बेटी अरुणा जैन के साथ शादी हो गयी थी जिनका एक बड़ा क्रेशर भी था तथा गुड मंडी में खूब चलती दूकान दुकान भी थी जिससे उस परिवार की अच्छी आमदनी हो रही थीꟾ उनकी पत्नी अरुणा पढ़ी लिखी तो मात्र पांचवी क्लास थी पर अपने साथ अच्छा ख़ासा दहेज़ भी लाई थीꟾ

  छोटी शुरुवात से हरसुख राय ने तीन दशक में काफी बड़ा व्यापारिक साम्राज्य बना लिया था, बड़े  कमीशन एजेंट व तीन बड़े क्रेशर के स्वामी थे, बड़ी कोठी बना ली थे , पहले पैदल फिर रिक्शा और अब कार में चलते थेꟾ नाम में भी बढ़ोतरी होती गयी अब सम्मान के तौर पर उन्हें लालाजी जैनी साहेब कहा जाने लगा थाꟾ

 जो व्यापार उन्होंने इतना बढाया उनके उनके मझले बेटे जिनेन्द्र ने और भी बहुत ऊंचाई पर ला खड़ा किया थाꟾ उसकी इंडस्ट्रीज उत्तरप्रदेश के अलावा हिमाचलप्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, और गोवा में फैली हुई थीꟾ अब जिनेन्द्र भी छोटे जैनी साहेब कह्लाने लगे थेꟾ बड़े जैनी साहेब अपने जीवन काल में धार्मिक मामलों में खुल कर दान देते रहे थे, शहर के निकट गांव वहेलना के पुरातन दिगम्बर जैन मंदिर जो जीर्णावस्था में था, को शानदार बनाने में उन्होंने बहुत पैसा ही नहीं खर्च किया थाꟾ स्वयं वहां जा जाकर सुन्दर बनवाने में बहुत काम कराया जो अब एक बड़ा जैन तीर्थ स्थल बन गया हैꟾ लोग दूर दूर से वहां आते है, बड़े जैन मुनि वहां आते जाते प्रवचन करते और चौमासे में विश्राम करने लगे थेꟾ इस कदम की पूरे जैनसमाज ने भूरी भूरी प्रशंसा की थी, उनका सम्मान भी समय समय पर किया थाꟾ मुज़फ्फरनगर की नई मंडी की चौड़ी गली के जैन मंदिर के निर्माण और रखरखाव की बहुत वर्षों तक जिम्मेदारी जैनी साहेब हरसुख राय ने संभाली थीꟾ वे उसके प्रधान भी रहेꟾ वहां के मुख्य गेट पर लगी पत्थर दानवीरों की सूची इस बात की गवाह हैꟾ

जैनी साहेब ने अपने तीनों पुत्रों और अपनी दोनों बेटियों की शादी अच्छे जैन परिवारों में की थीꟾ शुरू में तो सब कुछ ठीक रहा, बड़े बेटे की शादी सहारनपुर से निकल कर मुम्बई सेटल हुए परिवार में हुई थी तथा जिनेन्द्र की मेरठ के एक उद्योगपति की बेटी से, छोटा बेटा पढने के लिये यूꟾकेꟾ भेज दिया थाꟾ शादी के बाद दोनों बहूएँ सास ससुर के यहाँ रही, पहले तो सब कुछ ठीक चला फिर बहुओं में आपस में मन भेद हुआ था बाद में बहुओं और सास के बीच कोल्ड वॉर का माहौल बनता चला गयाꟾ सास बहू के बीच मतभेद होना तो शाश्वत है, जेठानी देवरानी में भी अगर मतभेद और मनभेद हो तो घर का माहौल बिगड़ना निश्चित सा ही हो जाता हैꟾ जैनी साहेब ने स्थिति को समझ कर जिनेन्द्र का एक ऑफिस दिल्ली में खुलवा दिया तथा वह दिल्ली में ही डिफेन्स कॉलोनी में एक अच्छे इंडिपेंडेंट मकान में शिफ्ट हो गयाꟾ दिल्ली आकर जिनेन्द्र ने अपने क्रेशर के संचालन के अलावा दूसरे व्यापार की संभावनाओं के बारे में सोचना शुरू कर दिया था तथा कुछ धन पिता से, कुछ ससुर से उधार लेकर, और काफी  तत्कालीन उत्तर प्रदेश के उद्योग विभाग से ऋण लेकर इंडस्ट्री लगाईꟾ सरकार नए उद्यमियों को प्रोत्साहन के लिये यह रही थीꟾ इन राशियों से उसने नये केमिकल फील्ड में अपना पहिला सफल कदम रखाꟾ यह नया प्रोजेक्ट बड़ा ही कामयाब रहाꟾ इसके बाद उसने मुड कर नहीं देखा एक के बाद एक इंडस्ट्री लगाने में सफल रहा, दिल्ली का उसका ऑफिस भी ग्रुप कोर्पोरेट कार्यालय बन गया थाꟾ जैनी साहेब हरसुख राय जी अपने मझले बेटे की प्रगति पर बेहद खुश थे और उसे ही अपना असली अनुयायी मानते थेꟾ कहते थे कि यही उनका नाम रोशन करेगा, और यही सच भी सिद्ध हुआꟾ उसने अपनी हर इंडस्ट्री का नाम ‘हरसुख’ ही तो रखा हुआ था, पूरे ग्रुप का नाम भी ‘हरसुख ग्रुप इंडस्ट्रीज’ ही तो हैꟾ जिनेन्द्र का कारोबार और सुख साधन बढते गए, उसने हौजखास में एक आलिशान बंगला खरीद लिया उसको अपनी सुख सुविधा के अनुसार पूरा नवीनीकरण करा लिया, महरौली के पास एक फार्महाउस खरीद कर उसमें फल सब्जी, और अपने लिये दूध के लिये दो गाय पाल ली थीꟾ फार्म हाउस में भी ठहरने का, पार्टियाँ करने का उत्तम प्रबंध किया था, होली दिवाली और अन्य अवसरों पर वह बड़ी अच्छी पार्टियां करता तथा अपने जानने वाले मुज़फ्फरनगर के सभी साथियों को बुलाता रहता थाꟾ सभी उसकी बड़ी बडाई करतेꟾ कहते कितना अच्छा टेस्ट है रुचि है, कितना बढ़िया घर सजावट का चुनाव है, कितना बढ़िया फार्म हाउस है,  आदि आदिꟾ तीन लोक में प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती उसे भी लगती थीꟾ यही नहीं लोगबाग प्रशंसा में कहते पतिपत्नी कितना मिल कर रहते हैं, कितनी जल्दी और कुशलता से उन्होंने व्यापार और घर फार्म हाउस चमकाया है सही कहा है ‘सर्वे गुणाः कान्चानमाश्र्यंते’ उन दिनों भृतहरि की यह उक्ति जिनेन्द्र पर पूरी तरह से सत्य उतर रही थीꟾ उसकी पांचो ऊँगली घी में थीꟾ बड़े जैनी साहेब उसकी तरक्की से खुश थे, उसके दो कन्याएं जन्म ले चुकी थीꟾ   

दूसरी तरफ उसका बड़ा भाई अपने पिता की कमाई में वृद्धि नहीं कर रहा था, ऐश कर रहा थाꟾ जैनी साहेब ने अपनी पत्नी का निधन होने के बाद अपनी संपत्ति का बंटवारा तीनो बेटों में बराबर बाँट कर अपना सारा समय अपने वेह्लाना जैन मंदिर जिसे पार्श्वनाथ जैन अतिशय क्षेत्र कहा जाता था, के प्रबंधन, विकास और वहां की धार्मिक गतिविधियों में बिताना शुरू कर दिया थाꟾ वैसे भी वे अपने बड़े पुत्र व बड़ी बहू से प्रसन्न नहीं थे, वे बेहद खर्चीले थे तथा उसका ध्यान व्यापार में नहीं थाꟾ वह पोलटिक्स में घुसता जा रहा था, उस के पास घटिया लोग उठने-बैठने लगे थेꟾ जैनी साहेब ने उसे काफी समझाने कि कोशिश कि परन्तु बेकारꟾ कुछ महीनों के बाद जिला परिषद के चुनाव आने वाले थे आदिनाथ जैन ने उसके चेयरमैन पद के लिये परचा भर दिया, उसके पिछलग्गू दोस्तों ने उसके काफी पैसे खर्चे करवा दिए थे, उसे अँधेरे में रखा और नतीजा निकला काफी ख़राब, चौथे नंबर पर रहा, उसकी ज़मानत भी जब्त हुईꟾ जैनी साहेब को बड़ी तकलीफ हुई, उनके नाम भी किरकिरा हुआꟾ आदिनाथ ने इलेक्शन में काफी उधार ले लिया था, उसे आशा थी की वह निश्चित रूप से जीत जाएगा और उधार भी निबटा देगाꟾ ध्यान न देने का कारण उसके क्रेशर में भी लाभ की जगह नुक्सान हो गयाꟾ उसने अपने पिता से मांग की पर उन्होंने बता दिया की उनके पास देने के लिये नहीं बचा तथा उनकी बात उसने सुनी ही नहीं तो इस मुसीबत वह फंसता ही नहींꟾ जिनसे उसने उधार लिया उन्होंने अपने पैसों की वापसी के लिये तकादे भी करने शुरू कर दिए थेꟾ आदिनाथ जैन अब बुरे संकट में फंसा हुआ थाꟾ

  इलेक्शन के दौरान वह एक गैंगस्टर करीमभाई के संपर्क में आया थाꟾ ‘जब विनाश मनुज पर आता है, पहले विवेक मर जाता है’ को चरितार्थ करते हुए दोनों ने मिल कर मेरठ के एक बड़े सेठ के बेटे का स्कूल से घर आते समय अपहरण करवा दिया तथा एक मोटी फिरौती की मांग की, कई दिन उसे छिपा कर रखा फिर जब सेठ ने मांग स्वीकार कर ली तब दिए स्थान पर पैसे लेकर सेठ पहुँच गएꟾ सेठ ने पुलिस को भी सूचित किया हुआ थाꟾ जैसे ही धन देकर बच्चे को छुड़ाया गया सादे वेश में मौजूद पुलिस पार्टी ने गंगेस्टर व उसके दो साथियों को रंगे हाथों फिरौती की रकम के साथ कब्ज़े में ले लिया, गहन पूछताछ में इस षड्यंत्र में आदिनाथ के शामिल होना पाया गया और उसे भी उसके घर से गिरफ्तार कर बाकी अपराधियों के साथ जेल में डाल दिया गयाꟾ इस घटना से जैनी साहेब को बड़ा सदमा लगा और वे सदमें के कारण गंभीर रूप से अवसाद से पीड़ित हो गएꟾ जिनेन्द्र अपने पिता को दिल्ली में अपने घर ले आया और उनका इलाज कराने लगाꟾ जिनेन्द्र ने दुखी मन से अपने बड़े भाई से जेल में मुलाक़ात की, जो अपने आप को निर्दोष बताता रहा, पर वास्तव में वह शामिल था अपराधियों ने सब उगल दिया था, उन सब अपराधियों पर मुक़दमा चल रहा था, आदि नाथ से भी सच उगलवाने के लिये आम अपराधियों की तरह थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया गया थाꟾ इसके लिये जिनेन्द्र ने बड़े अफसरों से मिल कर यह व्यवस्था कराने की कोशिश की कम से कम उसके साथ मारपीट ना की  जाएꟾ न चाहते हुए भी जिनेन्द्र ने अच्छे वकीलों की व्यवस्था की और काफी पैसा खर्च कर उसने अपने बड़े भाई को किसी तरह से जमानत पर छुडवा लियाꟾ बड़े जैनी साहेब ने अपने बड़े बेटे से मिलने से भी इंकार कर दिया जिसने ऐसा घृणित काम कर उनके मुंह पर कालिख पुतवा दी थी, उनकी प्रतिष्ठा पर पानी फेर दिया थाꟾ

इसके कुछ महिनों बाद जैनी साहेब एक दिन रात को खा पीकर सबसे बातचीत कर आराम से सोये और अगले दिन सुबह नहीं उठे और 69 कि आयु में वे स्वर्ग सिधार गएꟾ उनके शरीर को अंतिम संस्कार के लिये दिल्ली से मुज़फ्फरनगर ले जाया गया थाꟾ जो उनकी कर्मस्थली थी जहाँ से गाँव से परचून की दुकान से इतना बड़ा व्यवसाय बनाया, बहुत से लोगों की मदद की, बहुत जगहों को खरीद कर डाल दिया था, जहां अब बड़ी-बडी फेक्ट्रियां उनके नाम से चल रही हैं, कितने स्कूलों, धर्मशालाओं, मंदिरों में उनके दानकर्ता लिस्ट में ऊंचे-उंचे  उनका नाम शोभा देता थाꟾ बहुत बड़ा जन सैलाब उनके अंतिम दर्शन और अंतिम संस्कार में शामिल हुआꟾ क्योंकि जीवन में जो भी उनसे मिल लेता था वह उनसे उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता थाꟾ स्वय अपनी इच्छा से इतना जन सैलाब उनके दर्शन और मुर्दघाट में बहुत ही कम बार हुआ अंतिम संस्कार के लिये आया होगाꟾ जाने वाले की जाते समय की शान से ही तो पता लगता है कि जाने वाला आदमी कितने लोगों के जीवन को छू कर गया होगाꟾ फैज़ अहमद फैज़ ने खूब लिखा है-

जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है,     

ये जान तो आनी जानी है ,इस जान की तो कोई बात ,नहींꟾ

हां,  अंतिम संस्कार में लोगबाग यह बात भी दबी जबान पर एक दूसरे कह रहे थे कि बड़े बेटे आदिनाथ की बेवकूफी और अपराध और जेल जाने का सदमा ही इन नेक और उदार जैनी साहेब को ले डूबा है जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर पाएꟾ उस दिन तीनों भाईयों ने मिल कर उनका अंतिम विधिवत संस्कार किया थाꟾ लोग यह भी कह रहे थे कि जैनी साहेब का बड़ा बेटा तो कुपूत निकला पर मझला जितेन्द्र ही उनका  अब असली उत्तराधिकारी हैꟾ अगर बड़े मियां हरसुख थे तो छोटे मियां सुभान अल्लाह जितेन्द्र ही हैꟾ एक शायर टाइप व्यक्ति कह रहे थे “भई  एक में मां बाप के बेटे अलग अलग तबियत हमेशा से के होते आये हैं व आते रहेंगे” कह कर यह शेर सुनाया -

 शैख़ साहेब के दो बेटे बाअदब पैदा हुए, एक हैं खुफिया पुलिस में, एक फांसी पा गए/” कह कर शायर साहेब ने चारों और गर्दन घुमाई यह देखने के लिये लोगों ने उनकी शायरी का कुछ रोब माना या नहीं?       

अंतिम संस्कार के बाद के जो भी सारे विधि विधान थे अच्छी तरह से पूरे किये गए थेꟾ हरसुख विहार कोठी के ड्राइंगरूम सामने की दीवार पर जैनी साहेब का एक बड़ा फोटो लगा दिया गया था जिसमें फूलों की माला चढ़ी हुई उनकी फोटो सबसे पहले दिखती थीꟾ यही फोटो अखबार में छपे उनके इश्तहार में थी जिसमें उनकी  दसवीं पुण्य तिथि पर इस तरह से याद किया गया थाꟾ

 पिछले दस वर्षों में उनके पुत्र जिनेन्द्र ने विरासत को कहीं बहुत आगे बढ़ा दिया था वह अब पश्चिमी उत्तरप्रदेश का प्रमुख उद्योग पति बन चुका था, जब से उसने ब्रेवरी में रम और व्हिस्की बनानी शुरू की तब से तो उसके लाभ का प्रतिशत बहुत अच्छा हो गया था, उसने अपनी दो बेटियों की शादी पांच सितारे होटल में की बड़ी संख्या में वीआईपी उनमें सम्मलित हुए हम नौकरी पेशे वाले उसके मुज़फ्फरनगर वाले सहपाठी वहां असहज सा महसूस कर रहे थे उनके मेह्मान बड़े बड़े तोहफे लेकर गए थे, धनिकों की बीवियां हीरे के बड़े बड़े सेट में अपनी सरमायेगिरी की घोषणा करती थी भले ही निठल्लेपन से उनके शरीर थुलथुले और बेडौल होꟾ जितेन्द्र ने दोनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाई थी दोनों ही को भी अपने साथ ऑफिस के संचालन का कार्य भी सिखाया ताकि ज़रूरत पड़ने में वे काम आसानी से संभाल सकेंꟾ उसकी सबसे छोटी बेटी चुलबुल जैन सबसे सुन्दर और सबसे अधिक पढाई में अच्छी थी, पर नाम के विपरीत गंभीर और समझदारꟾ दोनों बड़ी बेटी मिडिल क्लास के पढ़े लिखे योग्य परिवारों में गयी थी उनका काम ठीक चल रहा थाꟾ चुलबुल जैन की शादी के लिये जिनेन्द्र ने एक पुराने पान मसाले बनाने बेहद अमीर परिवार में इकलोते बेटे से तय कर दी थीꟾ यह पुरानी दिल्ली के पुराने रईस परिवार से थे  इस परिवार की हैसियत हमारे छोटे जैनी साहेब जिनेन्द्र से कई गुणा थीꟾ लड़का देखने भालने में अच्छा था, चुलबुल को अच्छा नहीं लगा था, उसके मन में अपना एक पुराना सहपाठी था उन दिनो मुंबई में एक ब्रिटिश बैंक में अच्छी सर्विस पर लगा था, वह जैन नहीं था शर्मा था और साधारण परिवार से थाꟾ उसने अपने मां और पिता को बता दिया था, उसकी बड़ी बहन भी चुलबुल से एक राय थी, मां को भी मना लिया था, पर जितेन्द्र ने नहीं माना उलटे उसे समझा बुझा कर मना लिया थाꟾ उसका मुख्य तर्क था, इतने अमीर व बड़े परिवार के इकलोते वारिस हैं तथा शादी तय होने के बाद तोड़ना अच्छा नहीं है, दूसरे गैर जैन से कैसे शादी उचित है? बेचारी मन मसोस कर रह गयी ही परिवार की इज्जत के लियेꟾऐसा करने वाली वह पहली बेटी नहीं थी, बहुत संख्या में बेटियाँ अपने परिवार के लिये अपने मान बाप के कहने पर बहुत कुछ सह जाती है अपनी खुशिया और इच्छाओं का गला घोट देती हैंꟾ अब चुलबुल और उनके परिवार के सदस्य इस बड़ी गलती को मानते हैंꟾ

शायद यहीं गलती खा गए थे हमारे छोटे जैनी साहेब जिनेन्द्रꟾ उसे शादी तय होने के बाद पर शादी से एक महीने पहले पता लग गया था कि लड़का थोडा बिगडैल है, पर उसने इस को ज्यादा सीरियस नहीं लिया थाꟾ उसने शादी भी गुरुग्राम के मशहूर रिसोर्ट ‘द उमराव’ में बेहद हाथ खोल कर बड़े लेवल पर कीꟾ हमारे पुराने मित्र लोग दिल्ली और हमारे नगर से आये और उस दिन की चकाचोंध से चकित थेꟾ इतने  बड़े स्केल पर आयोजन हो रहा थाꟾ ड्रोन द्वारा फोटोग्राफी हो रही थीꟾ श्रीमान दुल्हे ऐसी घोडा गाडी से आये जैसे कभी गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर आते थेꟾ उनकी घोडा गाडी के आगे दो विदेशी गौरी कन्यायें बिलकुल कम ड्रेस में डांस कर रही थी, दूल्हे के मित्र डांस भी कर रहे थे थे तथा दिखा दिखा कर दारु भी पीते डांस कम झूम ज्यादा रहे थेꟾ दूल्हा भी नशे में ही लग रहा था, जब वह बग्गी से निकल कर  आरते के लिये चला पैर भी थोडा डगमगा रहे थेꟾ महिलाएं फुसफुसा कर उसके नशे में होने की बात कर रही थी, कार्यक्रम अच्छा चला, जब स्टेज पर बेटी दूल्हे के साथ बैठी वह काफी असंयत और परेशान लग रही थी शायद होने वाले पति के नशे और उसके साथियों की बेहूदी हरकतें देख देख करꟾ उसकी दोनों बड़ी बहनें उसे थोडा समझा बुझा रही थी, गिफ्ट सेशन के बाद कुछ फ़िल्मी अंदाज़ से शादी के प्रोग्राम चले, भोजन की व्यवस्था बेहद शानदार थी, जिनेन्द्र ने हर तरह से बहुत ज़बरदस्त इंतजाम किया थाꟾ गाने बजाने के लिये भी अच्छे गायक और मशहूर आर्केस्ट्रा बुलवाया हुआ थाꟾ विदाई के लिये एक महंगी ऑडी कार फूलों से सजी खड़ी थी जो दहेज का हिस्सा थाꟾ रात के ग्यारह बज गए थे सो हम शादी से निकल गए, बाद में पता चला सुबह तक डांस गाना बजाना चलाꟾ पर जाते समय दुल्हन बहुत अधिक रो रही थी जैसे किसी गाय की बछिया को कसाई को सौंपा जा रहा होꟾ यह बातें पुराने मित्रों की पत्नियों में  मेरी पत्नी को बताई, मेरे नगर के मित्रों में बताया की शादी में जिनेन्द्र ने करोड़ों में खर्च किया होगाꟾ कई मित्रों को यह लग रहा था कि जिनेन्द्र के पास आकर अब वे अपने आप को छोटा महसूस करते हैं और उसके नए धनी उद्योगपतियों में वे अपने को मिसफिट लगते हैंꟾयह बात सही थी पर जिनेन्द्र हम सब के साथ वह अकेले में पुराने जैसा ही रहता हैꟾ       

इस विवाह को हुए कोई एक महीने बाद एक दिन शाम को जिनेन्द्र का फ़ोन आया और बोला “वह अपनी पत्नी के साथ यूरोप घूमने आया था, वह पुर्तगाल में है वहां दोनों लिस्बन में हैं और उन वापसी अगले दिन रात के समय की हैꟾ बाज़ार में एक उचक्का उसका पर्स झपट कर भग गया है, उसी में उसका पासपोर्ट भी था, फॉरेन करेंसी थीꟾ बड़ी मुसीबत आई हुई है, में क्या करूं?” मैंने उसे कहा, “ घबराओ मत वहां भारत की एम्बेसी जाकर वहां के कांसुलर ऑफिसर को अपनी परेशानी बताओ, मैं यहां से कुछ करता हूंꟾ” मैं रिटायर हो चुका था तथा जब बाहर एम्बेसी में था कई बार ऐसे कैसे आ जाते थे उन्हें टेम्पररी ट्रेवल डॉक्यूमेंट देकर एम्बेसी अपने देश भिजवा देती हैꟾ मैंने विदेश मंत्रालय में सीपीवी के एक अधिकारी जो पहले मेरे साथ मेरा सहयोगी रह चुका था जिसने लिस्बन के कांसुलर ऑफिसर को बता दिया जिसने जिनेन्द्र को आवश्यक कारवाई करवा कर उसको वापसी के लिये डॉक्यूमेंट दे दिया थाꟾ और श्रीमान छोटे जैनी साहेब वापिस आ गएꟾ आकर फ़ोन किया, “जान बची लाखों पाए लौट के बुद्धु वापिस आयेꟾ”

हमारे छोटे जैनी साहेब अभी भी बड़ी बड़ी पार्टियां करते ही रहते हैं सभी तरह से मौज है पर एक कसर उसे और उनकी पत्नी को तंग करती है वह है उसकी सबसे छोटी की स्थिति का जो अपने बिगड़े बड़े घर के शराबी और कबाबी पति की आदतों से तंग आकर अपने बच्चे को लेकर उस के पास आ गयी हैꟾ  जिनेन्द्र को दुःख है उसने अपनी पत्नी और बेटी की बात न मान कर उस फूल जैसी बेटी पर खूब हाथ भी उठाया और उसके घर में रहते कॉल गर्ल्स घर पर ले आता थाꟾ उसे लगता है उसका विवेक कहाँ चला गया था उसने उसके बाप की हैसियत का ख्याल किया और बिगडैल बेटे के बारे में कुछ जानकारी नहीं लीꟾ वह भी उसकी एक इंडस्ट्री की जिम्मेदारी बड़ी समझदारी से चला रही हैꟾ जिनेन्द्र के बड़े भाई भी  दुर्भाग्य से कोरोना की दूसरी लहर में में चल बसे थे उसके बच्चों की भी जिम्मेदारी जिनेन्द्र ने ही संभाली हुई है, पर वह भी कहता है ‘नानक दुखिया सब संसार’ कुछ न कुछ दुःख हर आदमी को हैꟾ

 निदा फ़ाज़ली साहेब ठीक फरमा गए हैं “कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं जमीं कहीं   आसमां नहीं मिलताꟾ”