# 💔 अधूरा इश्क़ — हिस्सा 1
### *जब दिल ने पहली बार धड़कना सीखा*
**लेखिका: नैना ख़ान**
वो एक पुरानी, तीन मंज़िला इमारत थी — शहर के शोर से कुछ दूर, जहाँ दीवारों पर समय के निशान उभर आए थे।
इमारत की दरारों में पुराने नोट्स की स्याही अब भी महकती थी, जैसे हर दीवार किसी अधूरी कहानी की गवाह हो।
यही था “रहीम कोचिंग सेंटर” — जहाँ हर रोज़ सैकड़ों सपने पन्नों में सिमटते और कुछ दिल धड़कना सीखते थे।
क्लास के कोने वाली सीट पर बैठी थी *समा* — एक संजीदा लड़की, जो हमेशा अपनी कॉपी के किनारों पर फूल बनाती थी।
उसकी आँखों में सुकून था, लहजे में नर्मी और चेहरे पर वो मासूमियत जो हर नज़र को थमा देती थी।
उसके लिए पढ़ाई सिर्फ़ ज़रूरत नहीं, एक इबादत थी।
उसी क्लास में *यूसुफ बशीर* भी बैठता था — एक ख़ामोश लड़का, जिसकी आँखों में गहराई थी और मुस्कान में दर्द।
वो दूसरों की तरह बातूनी नहीं था। ज़्यादातर वक्त किताबों या नोट्स में डूबा रहता।
मगर उसकी ख़ामोशी में कुछ ऐसा था जो खींचता था — जैसे किसी अनकही कहानी का इशारा।
### 🌿 पहली मुलाक़ात
एक दिन मैथ्स के लेक्चर के दौरान समा की पेन नीचे गिर गई।
वो झुकने ही वाली थी कि यूसुफ ने आगे बढ़कर पेन उठाया और चुपचाप उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“थैंक यू,” समा ने मुस्कुराकर कहा।
उस मुस्कान में कुछ था — एक ऐसी रोशनी जो यूसुफ के दिल तक उतर गई।
उस दिन के बाद से, हर क्लास में वो दोनों अनजाने में एक-दूसरे के आस-पास बैठने लगे।
कभी नोट्स शेयर होते, कभी किताबें।
धीरे-धीरे एक ऐसी खामोश दोस्ती पनपने लगी जिसे किसी नाम की ज़रूरत नहीं थी।
यूसुफ का दिल अब हर दिन उस एक मुलाक़ात का इंतज़ार करने लगा।
वो वक्त से पहले आता, सिर्फ़ इसलिए कि जब समा क्लास में दाख़िल हो, तो उसकी पहली नज़र उसी पर पड़े।
समा भी अब उसकी उपस्थिति को महसूस करने लगी थी —
वो जानती थी कि यूसुफ की निगाहें हमेशा उस पर टिकी होती हैं, मगर उसमें कोई बेअदबी नहीं थी।
वो निगाहें इज़्ज़त भरी थीं… मोहब्बत से लबरेज़।
### 📖 नोट्स के बहाने
एक दिन समा ने यूसुफ से कहा,
“तुम्हारे नोट्स बहुत साफ़ हैं, मुझे मिल सकते हैं?”
यूसुफ मुस्कुराया, “तुम चाहो तो पूरी कॉपी ले लो।”
वो दिन उनके रिश्ते की पहली डोर थी।
अब रोज़ाना किताबों के बहाने बातें होतीं।
कभी वो सवाल पूछती, कभी बहस करती — और यूसुफ हर बार उसकी बातों में खो जाता।
क्लास की खिड़की से आती धूप, हवा में उड़ते पन्ने, और उन पन्नों के बीच झलकता एक नाम — *समा।*
यूसुफ की कॉपी के हर कोने में अब वही नाम उतर आया था।
### 🌧️ बारिश और इकरार की चुप्पी
एक दिन बारिश हो रही थी। क्लास खत्म हो चुकी थी और बाकी सब बच्चे जा चुके थे।
समा अपनी छतरी घर पर भूल गई थी। यूसुफ ने आगे बढ़कर कहा —
“अगर बुरा न मानो तो... मैं साथ छोड़ दूँ, मेरी छतरी बड़ी है।”
समा थोड़ी झिझकी, फिर मुस्कुरा कर बोली —
“ठीक है, लेकिन रास्ता तुम बताओगे, मैं भटक जाऊँ तो ज़िम्मेदार तुम।”
दोनों एक ही छतरी के नीचे चले —
बारिश की बूंदें गिरतीं, हवा में मिट्टी की ख़ुशबू घुली थी।
समा अपने बालों को सँभालते हुए बोली, “मुझे बारिश पसंद है, लेकिन भीगना नहीं।”
यूसुफ ने हल्के से कहा, “कुछ लोग बारिश में भीग कर नहीं, उसमें याद बनकर रह जाते हैं।”
समा ने उसकी तरफ देखा — उसकी आँखों में कुछ था, जो दिल में उतर गया।
वो पल दोनों के बीच खामोश इकरार बन गया।
कुछ कहा नहीं गया, मगर सब समझ में आ गया।
### 🌙 मोहब्बत का एहसास
अब यूसुफ के दिन की शुरुआत समा की मुस्कान से होती और रात उसका नाम सोचते बीतती।
वो उसके लिए छोटी-छोटी चीज़ें याद रखता —
कौन-सी पेन यूज़ करती है, कौन-सा रंग पसंद है, चाय या कॉफी —
हर बात उसकी यादों का हिस्सा बन चुकी थी।
समा भी अब खुद को रोक नहीं पाती थी।
जब यूसुफ नहीं आता, तो उसे बेचैनी होती।
वो चाहती थी कि वो हर वक़्त उसके आस-पास रहे, मगर खुद को समझाती,
“ये सिर्फ़ दोस्ती है… बस दोस्ती।”
मगर दिल कहाँ मानता है?
### 🔥 समाज की दीवारें
एक दिन कोचिंग के बाहर कुछ लड़कियाँ समा से बोलीं,
“समा, वो यूसुफ तो तुम्हारे साथ रोज़ बैठता है, कुछ चल रहा है क्या?”
समा ने हँस कर टाल दिया, “नहीं, वो सिर्फ़ क्लासमेट है।”
लेकिन उनके सवाल ने उसके अंदर डर भर दिया।
वो जानती थी — यूसुफ की जात, उसका परिवार, और उसकी अपनी दुनिया — सब अलग थे।
उसके अब्बू कभी इस रिश्ते को मंज़ूर नहीं करेंगे।
वो पूरी रात जागती रही।
उसने खुद से पूछा — “क्या मैं गलत हूँ?”
फिर जवाब आया — “नहीं, लेकिन ये रास्ता गलत है।”
अगले दिन वो कोचिंग नहीं आई।
यूसुफ इंतज़ार करता रहा — पहले क्लास में, फिर गेट के बाहर।
हर दिन उम्मीद से जाता, हर शाम टूटे दिल के साथ लौटता।
दिन हफ़्तों में बदले, और हफ़्ते महीनों में।
समा जैसे उसकी ज़िंदगी से मिट चुकी थी।
### 💔 खामोश अलविदा
एक शाम यूसुफ उसी बेंच पर बैठा था, जहाँ कभी समा उसके साथ बैठती थी।
उसने अपनी किताब खोली —
बीच के पन्ने में वही फूल बने थे जो समा बनाती थी।
पन्ने पर हल्के से लिखा था —
*"हर रिश्ता मुकम्मल नहीं होता, कुछ मोहब्बतें बस याद बन जाती हैं।"*
यूसुफ की आँखों से आँसू गिर पड़े।
वो समझ गया — समा जा चुकी है, और अब लौटकर नहीं आएगी।
मगर उसका दिल आज भी उसी इमारत में कहीं अटका था।
वो हर रोज़ उन दीवारों से सवाल करता,
*"कहाँ चली गई वो?"*
मगर जवाब कभी नहीं मिला।
### 🕊️ अधूरी मगर ज़िंदा मोहब्बत
वक़्त गुज़र गया, कोचिंग सेंटर भी बदल गया,
मगर यूसुफ की यादें वहीं ठहरी रहीं।
हर किताब में समा की आवाज़ गूंजती,
हर नोट में उसका नाम छुपा होता।
उसने कभी किसी और से इज़हार नहीं किया,
क्योंकि उसके लिए मोहब्बत एक ही बार होती है —
और वो पहले ही हो चुकी थी।
*"वो जब मुस्कुराती थी, तो लगता था जैसे मेरी दुनिया रोशन हो जाती है।"*
यूसुफ अक्सर यही बात खुद से कहता,
और फिर मुस्कुराता — जैसे किसी अधूरे सपने से समझौता कर लिया हो।
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कुछ मोहब्बतें इज़हार नहीं मांगतीं,
वो बस दिल में रहती हैं — ख़ामोश, मगर ज़िंदा।
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*(समाप्त — हिस्सा 1)*
**आगे पढ़ें: हिस्सा 2 — “जुदाई की चुप्पी”** 🌙
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