भाग 2: सौदे की शर्त
पिछले भाग में वीर और अनायरा के बीच ज़बरदस्त टकराव हुआ था। अनायरा ने वीर के घमंड को ठुकराते हुए उसे अपने ऑफिस से जाने के लिए कह दिया था।
केबिन का सन्नाटा अभी भी वीर की आखिरी चुनौती की गूँज से भरा हुआ था: "मैं जो चाहता हूँ, उसे पाकर ही रहता हूँ। हर हाल में।"
अनायरा ने ठंडी साँस ली। उसे पता था कि वीर केवल धमकी नहीं दे रहा था। ‘वीर कंस्ट्रक्शन’ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि एशिया में सबसे बड़ा नाम था। इस प्रोजेक्ट को ठुकराना, मतलब जानबूझकर अपने करियर के सबसे बड़े अवसर को पैरों तले कुचलना।
पर क्या वह उस घमंडी आदमी के सामने झुक जाए?
"बिलकुल नहीं!" उसने खुद से कहा, आवाज़ में दृढ़ता थी।
तभी उसका फोन बजा। स्क्रीन पर एक अनजान नंबर था, लेकिन अनायरा को पहली झलक में ही लगा कि वह जानती है कौन है।
"हेलो?" अनायरा ने रूखेपन से कहा।
"मिस अनायरा, मुझे उम्मीद है कि आपका गुस्सा थोड़ा ठंडा हो गया होगा," दूसरी ओर से वीर की गहरी, आत्मविश्वास भरी आवाज़ आई।
अनायरा हँस पड़ी, एक तीखी हँसी। "मेरा गुस्सा? मिस्टर वीर, मैंने आपको एक unprofessional और अभिमानी क्लाइंट के तौर पर खारिज कर दिया है। हमारी बातचीत खत्म हो चुकी है।"
"नहीं हुई है," वीर की आवाज़ अब थोड़ी शांत और खतरनाक थी, "क्योंकि मुझे अभी भी आपका काम चाहिए। और आपको अभी भी मेरा प्रोजेक्ट चाहिए।"
"गलत! मुझे आपका प्रोजेक्ट नहीं चाहिए। मेरे पास खुद का आत्म-सम्मान है," अनायरा ने दृढ़ता से कहा।
कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई। फिर वीर की आवाज़ आई, अब पहले से कहीं ज़्यादा शांत, और खतरनाक।
"ठीक है। अगर आप प्रोजेक्ट नहीं चाहतीं, तो कोई बात नहीं। लेकिन अगले चौबीस घंटों में आपके क्लाइंट्स और बिज़नेस पार्टनर्स के पास एक ईमेल जाएगा। जिसमें यह साफ़ लिखा होगा कि 'Aanaira Designs' ने 'वीर कंस्ट्रक्शन' जैसे प्रतिष्ठित समूह के साथ काम करने का अवसर ठुकरा दिया, क्योंकि डिज़ाइनर में 'ज़िम्मेदारी और व्यावसायिकता' की कमी है।"
अनायरा का दिल एक पल के लिए रुक सा गया। यह सीधे, बेमेल और घातक कॉर्पोरेट ब्लैकमेल था।
"आप..." उसने दाँत भींचते हुए कहा, "आप यह नहीं कर सकते!"
"मैं कर सकता हूँ, और करूँगा," वीर की आवाज़ में अजीब सी विजय झलक रही थी। "लेकिन मेरे पास एक विकल्प है।"
अनायरा ने फोन कान पर दबाया। "क्या विकल्प?"
"आप मेरा प्रोजेक्ट करेंगी," वीर ने कहा, "लेकिन मेरी एक शर्त है।"
अनायरा को लगा जैसे किसी ने उसके चेहरे पर थप्पड़ मारा हो। "क्या...? यह हास्यास्पद है! मैं आपकी असिस्टेंट क्यों बनूँगी?"
"क्योंकि यह मेरा तरीका है यह जानने का कि आपका 'बेहतरीन' काम, मेरे 'परफेक्ट' मानकों पर खरा उतरता है या नहीं," वीर ने साफ़ कहा। "आप मेरे ऑफिस में होंगी, हर वक़्त मेरे साथ। मेरी हर ज़रूरत को पूरा करेंगी। मैं आपको परखूँगा, मिस अनायरा।"
उसने ज़ोर देकर कहा, "यह 'नफरत का सौदा' है। आप मेरी शर्तें मानती हैं, या अपना स्टूडियो बंद होते देखती हैं?"
अनायरा ने अपनी मुट्ठी भींच ली। यह प्रोजेक्ट उसके लिए सिर्फ़ पैसा नहीं था—यह उसकी पहचान थी। और वीर, उस पहचान को छीनने की धमकी दे रहा था।
"मुझे यह शर्त मंज़ूर नहीं है," अनायरा ने ठंडी आवाज़ में कहा।
"ठीक है," वीर ने कहा, "अगले तीन घंटे में ईमेल चला जाएगा..."
"रुकिए!" अनायरा चिल्लाई। उसने गहरी साँस ली, आँखों में ठंडी, सघन चमक थी।
"शर्त मुझे मंज़ूर है, मिस्टर वीर। मैं आपकी असिस्टेंट बनूँगी... लेकिन मेरी भी एक काउंटर-शर्त है।"
वीर की मुस्कान फ़ोन के उस पार तक महसूस हुई। "ओह? मुझे सुनने में दिलचस्पी है।"
"मैं आपकी असिस्टेंट बनूँगी," अनायरा ने कहा, "लेकिन जब मेरा डिज़ाइन पास हो जाएगा... तब एक हफ्ते के लिए, आप मेरे असिस्टेंट बनेंगे। आपकी हर बात मानूँगी, आपकी हर ज़रूरत पूरी करूँगी। तब आपको पता चलेगा कि एक 'ठीक-ठाक' डिज़ाइनर का काम क्या होता है।"
फोन के पार कुछ देर की चुप्पी रही। फिर वीर की हँसी गूँजी—पहले से ज़्यादा तेज़, ज़्यादा शक्तिशाली।
"डील! मिस अनायरा। मुझे यह खेल पसंद आया। कल सुबह नौ बजे, मेरे ऑफिस में मिलते हैं, मेरी शर्तों के तहत।"
फोन कट गया। अनायरा ने फोन मेज पर रखा और अपनी काँपती उँगलियों को देखा। उसने महसूस किया—वह ऐसे इंसान के सामने खड़ी थी, जिसे हारना मंज़ूर नहीं।
पर अनायरा ने भी ठान लिया था—यह जंग केवल काम की नहीं, उसके आत्म-सम्मान की लड़ाई होगी।
और तभी, दूर से एक हल्की गूँज सुनाई दी—कुछ ऐसा जो उसके भीतर बेचैनी और उत्सुकता दोनों जगा रहा था।
क्या वह कल सुबह, वीर के
ऑफिस में, अपनी काउंटर-शर्त के साथ उसका सामना कर पाएगी?
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