Chitthi Ke Saye m in Hindi Love Stories by Naina Khan books and stories PDF | चिट्ठी के साये में

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चिट्ठी के साये में

🌸 चिट्ठी के साये में
✒️ लेखिका: नैना ख़ान
© 2025 Naina Khan. सर्वाधिकार सुरक्षित।
इस कहानी “चिट्ठी के साये में” का कोई भी अंश लेखिका की अनुमति के बिना पुनर्प्रकाशित, कॉपी या वितरित नहीं किया जा सकता।

भाग 1: पहली नज़र का वादा
सन 1960 का वह साल था — जब गाँव की गलियाँ अब भी मिट्टी से सजी थीं, और दिलों की राहें ख्वाबों से बनी थीं।
श्यामा, मास्टर रामनिवास की इकलौती बेटी — आँखों में सादगी, आवाज़ में मिठास, और स्वभाव में कोमलता।
विनोद, तहसील कार्यालय में नया-नया क्लर्क बना था — शहर से आया, पर गाँव की मिट्टी की खुशबू में घुलता चला गया।

एक दिन, हाट के मेले में जब श्यामा अपनी माँ के साथ सब्ज़ियाँ खरीद रही थी, तभी विनोद की नज़र उस पर पड़ी।
नज़रें मिलीं — और जैसे किसी पुरानी कविता ने फिर से साँस ले ली।
कुछ कहा नहीं गया, पर बहुत कुछ सुन लिया गया।
वो पहली नज़र एक वादा बन गई — बिना बोले, बिना छुए, बस महसूस में।

भाग 2: चिट्ठियों का सिलसिला
मिलना आसान नहीं था, पर लिखना मनाही भी नहीं थी।
श्यामा ने पहली चिट्ठी अपनी सहेली के ज़रिए भेजी —
सादा काग़ज़, नीली स्याही, और कुछ अनकही भावनाएँ।

“आपसे बात नहीं हो सकती, पर मन की बात तो उड़कर पहुँच सकती है…”
विनोद का जवाब आया —

“आपकी चिट्ठी आई थी जैसे सूखे खेत में पहली बारिश।”
उस दिन से हर हफ़्ते एक चिट्ठी जाती, एक आती।
कभी कविता, कभी शिकायत, कभी बस एक सूखा गुलाब।
उन चिट्ठियों में प्रेम था —
बिना आवाज़ का, बिना दिखावे का, पर बहुत गहरा और सच्चा।


भाग 3: छुप-छुप के मिलना
मंदिर के पीछे का पुराना पीपल का पेड़ उनका ठिकाना बन गया।
वहीं बैठकर वे एक-दूसरे की चिट्ठियाँ पढ़ते,
कभी मौन में बातें करते,
तो कभी सिर्फ़ एक-दूसरे को देखना ही काफी होता।

गाँव की नज़रों में ये रिश्ता एक खतरा था —
हर मुलाकात एक जुआ।

एक दिन श्यामा ने कहा —

“अगर ये दुनिया हमें समझती नहीं, तो क्या हम एक-दूसरे को छोड़ दें?”
विनोद ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —

“दुनिया की समझ से बड़ा है हमारा साथ।”


भाग 4: बिछड़ने की मजबूरी
विनोद का तबादला शहर में हो गया।
आख़िरी मुलाकात में उसने कहा —

“मैं लौटूंगा, तुम्हारे लिए।”
श्यामा ने आँसुओं में मुस्कुराते हुए उत्तर दिया —

“मैं इंतज़ार करूँगी, उम्र भर।”
कुछ महीनों तक चिट्ठियाँ आती रहीं,
फिर उनमें शहर की भीड़, नौकरी की थकान, और दूरी की धूल जमने लगी।

इधर गाँव में श्यामा की शादी की बातें चलने लगीं।
पिता ने कहा —

“अब बहुत हुआ, तुम्हें घर बसाना होगा।”
उस रात श्यामा ने आख़िरी चिट्ठी लिखी —

“अगर तुम लौटे, तो मैं तुम्हारी बनूँगी।
नहीं लौटे, तो तुम्हारी यादों से अपना जीवन सजाऊँगी।”

 

भाग 5: अधूरी मुलाकात
पाँच साल बाद, विनोद लौटा।
वही मंदिर, वही पीपल का पेड़ — पर अब वहाँ श्यामा नहीं थी।
उसकी शादी हो चुकी थी, किसी और गाँव में।

विनोद ने उसकी सहेली से पूछा —

“क्या वो खुश है?”
सहेली ने मुस्कुराते हुए कहा —

“वो हर शुक्रवार को तुम्हारी चिट्ठियाँ पढ़ती है... अब भी।”
विनोद ने अपनी डायरी उस पीपल के नीचे रख दी —
जहाँ कभी उनका प्रेम पनपा था — और फिर गाँव छोड़ दिया।

अंतिम दृश्य: चिट्ठी के साये में
कहते हैं, उस पीपल के नीचे आज भी एक पुरानी डायरी रखी है —
जिसके पन्नों में वो सब कुछ है जो कभी कहा नहीं गया,
जो अधूरा रह गया, पर मिटा नहीं।

कुछ प्रेम कहानियाँ मुकम्मल नहीं होतीं,
पर उनका अधूरापन ही उन्हें अमर बना देता है।





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