The Love That Was Incomplete - Part 2 in Hindi Horror Stories by Ashish Dalal books and stories PDF | वो इश्क जो अधूरा था - भाग 2

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वो इश्क जो अधूरा था - भाग 2

“इस वक्त ऐसा मजाक मत करो यार । दिल जलता है ।” कहते हुए अपूर्व ने मुस्कुराने का प्रयास किया ।
“मैं मजाक नहीं कर रही हूँ । नासीर मेरा पहला और आखरी प्यार है ।”
अन्वेषा ने कहा तो अपूर्व की आँखों के आगे घर आते वक्त पुराने पीपल के पास खड़ी अन्वेषा का एक पल के लिए ठंडी से काँपना और फिर अचानक ही पसीने सेर तरबतर हो जाने वाली घटना तैर गई । वह अन्वेषा के मुँह से नासीर का नाम सुनकर एक अनजान भय को लेकर आशंकित हो उठा । उसने धीमे से उसके चेहरे को थपथपाया ।
“अन्वेषा, तुम होश में तो हो ? ये क्या बोल रही हो ?”
“मैं अन्वेषा नहीं हूँ । मैं मेरे नासीर की रुखसाना हूँ ।” अपूर्व की बात सुनकर अन्वेषा अचानक ही जोर से चीखी ।
“ऐसा मत बोलो अन्वेषा । आय लव यू !” अपूर्व ने अन्वेषा का हाथ अब अपने हाथ में ले लिया ।
अन्वेषा ने एक झटके के साथ अपूर्व की पकड़ से अपना हाथ छुड़ाया और जोर से बोली, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की ?”
अपूर्व ने अन्वेषा की आँखों में देखा । उसकी गोल पानीदार आँखें गुस्से से चौड़ी हो गई थी । अपूर्व ने हिम्मतकर अन्वेषा से धीमे से कहा, “अन्वेषा, होश में आओ । ये क्या हो गया है तुम्हें ?”
“मैं रुखसाना हूँ ।” अन्वेषा चीखी ।
“मैं इसी वजह से तुम्हें उस पुरानी मनहूस जगह से दूर रहने को कहता था । समझ नहीं आ रहा अब क्या करूँ ?” अपूर्व अन्वेषा की हालत देखकर अपना सिर पकड़कर बैठ गया ।
थोड़ी देर के बाद उसने फिर से अन्वेषा का हाथ छूना चाहा तो उसने उसे जोर से धक्का दे दिया । अपूर्व घबराता हुआ अन्वेषा को देख रहा था । तभी अन्वेषा जोर से हँसी और बोलने लगी, “तेरी वजह से मैं अपने नासीर को नहीं पा सकी थी लेकिन अब मुझे मेरे नासीर से मिलने से तू कभी नहीं रोक पाएगा आगाज खान ।”
अन्वेषा की भारी आवाज सुनकर अपूर्व बेहद घबराया हुआ था लेकिन नासीर इस वक्त कौन है ये जानने की जिज्ञासा वह रोक नहीं सका, “मैं .. मैं ... खुद तुम्हें नासीर से मिलवाने में मदद करूँगा लेकिन नासीर है कहाँ ये तो बताओ ।”
“आगाज खान, इस बार तेरी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आऊँगी मैं । मुझे पाने के लिए तूने उस वक्त तो मेरे मुँह से नासीर के बारें में सारी बातें निकलवाकर उसे पकड़कर मरवा डाला था लेकिन अब तुझे उसके बारें भनक तक नहीं पड़ने दूँगी ।” अपूर्व की बात सुनकर अन्वेषा ने कहा ।
“मेरा विश्वास करो । ।” अपूर्व बोला ।
“तो कसम खाकर कहो उस पुराने पीपल की, कि तुम मेरे नासीर को खरोंच तक नहीं पहुँचाओगे ।” अन्वेषा की आवाज में अचानक से प्यार झलकने लगा ।
“हाँ, मैं कसम खाकर कहता हूँ कि मैं तुम्हें तुम्हारे नासीर को तुम्हें सौंप दूँगा ।” अपूर्व ने आगे कुछ जानने की मंशा से कहा ।
“सच्ची ?”
“हाँ ।” अपूर्व ने अन्वेषा को विश्वास में लेते हुए कहा ।
“तो इस वक्त मुझे पुराने पीपल के पास ले चलो । नासीर वहाँ मेरा इन्तजार कर खड़ा है ।”
“इस वक्त ? कल सुबह चलते है । अभी तो रात बहुत हो गई है । वहाँ जाना इस वक्त ठीक न होगा ।” अन्वेषा के आग्रह करने पर अपूर्व ने उसे समझाते हुए कहा ।
“तो ठीक है । मैं अकेली ही चली जाती हूँ ।” कहते हुए अन्वेषा अपनी जगह से खड़ी होकर कमरे से बाहर जाने लगी तो अपूर्व ने उसका हाथ पकड़ लिया ।
“इस वक्त अकेला वहाँ जाना ठीक न होगा... मेरा विश्वास करो । कल सुबह तुम्हें मैं तुम्हारे नासीर के पास ले जाऊँगा ।”
अपूर्व के कहने पर अन्वेषा उसकी तरफ देखकर एक रहस्यमय हँसी हँस दी और बोली, “तो आज की रात तुम इस कमरे से बाहर जाकर सो जाओ । मुझे तुम पर भरोसा नहीं ।”
अन्वेषा के कहने पर घबराये हुए अपूर्व ने बेड से तकिया उठाया और चुपचाप कमरे से बाहर जाने लगा तभी अन्वेषा ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींच लिया ।
अपूर्व ने चौंककर अन्वेषा की तरफ देखा, वो अब जोर हस कर कह रही थी, 
“तुम यहाँ से जा नहीं सकते, आग़ाज़ खान। आज की रात मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगी।” 
अपूर्व के हाथ से तकिया गिर गया। वह डर के मारे पीछे हटने लगा, लेकिन तभी अन्वेषा ने फिर से उसे अपनी तरफ खींच लिया।
“अन्वेषा... प्लीज़... तुम ये सब मत करो। मैं सच में तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ,” अपूर्व ने काँपती आवाज़ में कहा।
अन्वेषा अब एक बार फिर से जोर से हस दी लेकिन उसकी इस हसी में शरारत छिपी हुई थी, और उसकी इस शरारत को अपूर्व ने पकड़ लिया ।
अपूर्व ने अन्वेषा की कलाई दबाते हुए कहा, “लुच्ची !!! बदमाश कहीं की ।”
अन्वेषा ने मुस्कुराते हुए अपूर्व की आँखों में देखते हुए कहा, “तो तुम सच में ही डर गए थे मिस्टर फिसड्डी !!”
अपूर्व बोला, “तुम अच्छी तरह से जानती हो मैं भूत प्रेत की बातों में बिलकुल भी विश्वास नहीं करता लेकिन भूत प्रेतों से मुझे डर लगता है ।” 
अन्वेषा ने कहा, “इसीलिए तो डरा रही थी तुम्हे आगाज खान !!”
अपूर्व ने अन्वेषा को अपनी बाहों में भरते हुए कहा, “खबरदार जो मुझे फिर से तुमने आगाज खान कहा तो ….”
अन्वेषा उसे कुछ और कहती इससे पहले वो उसे लेकर बैड पर गिर पड़ा और कुछ ही देर में दोनों एक दूसरे को सहलाते हुए प्रेम की चरम सीमा तक पहुँच गए । 
जैसे ही दोनों शांत होकर एक-दूसरे की बाहों में समा गए, कमरे की छत से एक परछाई उतरने लगी — और कुछ पलों बाद उसके होंठ हिले — 'अब मेरी बारी है।
…..क्या ये चेतावनी थी, बदला था या किसी अधूरी मुहब्बत की माँग?