विशाल, अथाह समुद्र के बीचों-बीच एक आलीशान-सी क्रूज़ लहरों से जूझ रही थी। चारों ओर सिर्फ़ काला पानी, तेज़ हवा और इंजन की भारी-भरकम आवाज़। उसी क्रूज़ के एक कोने में तुलसी बिखरे बालों और काँपते शरीर के साथ दीवार से लगी खड़ी थी। उसकी आँखों में खौफ़ था, साँसें बेतरतीब और आवाज़ टूटती हुई—
“को… कोई है…?”
उसकी चीख समुद्र की लहरों में गुम हो जाती।
“कोई सुन रहा है मेरी बात… मुझे बचाओ… प्लीज़… कोई तो बचाओ…”
वह चीखते-चीखते रोने लगती। उसकी हथेलियाँ दीवार पर फिसलतीं, घुटनों में जान नहीं बचती, आँखों के सामने अँधेरा छाने लगता है, आख़िरी बार वह खुद को समेटने की कोशिश करती है… और फिर रोते-रोते उसका शरीर वहीं ढेर हो जाता है,
बेहोशी की खामोशी समुद्र की डरावनी गर्जना से भी ज़्यादा भारी लगती है..
दूसरी ओर…
शहर की सड़कों पर सन्नाटा नहीं, सायरनों का आतंक था।
हर चौराहे पर पुलिस, हर गली में नाकाबंदी, हर चेहरे पर तनाव। लाल-नीली बत्तियाँ दीवारों से टकराकर किसी अनहोनी का ऐलान कर रही थीं। लोग अपने घरों की खिड़कियों से झाँक रहे थे, जैसे शहर खुद किसी को ढूँढ रहा हो।
उसी शहर के सबसे पॉश इलाके में, एक विशाल और आलीशान बंगले के भीतर माहौल बिल्कुल अलग था ,लेकिन उतना ही बेचैन।
ड्रॉइंग रूम में भारी सोफे, महँगे पर्दे और दीवारों पर टँगी बेशकीमती पेंटिंग्स… और बीच में लंबी टेबल के चारों ओर बैठे पुलिस के सीनियर अधिकारी और कुछ रसूखदार राजनीतिक चेहरे , सबकी निगाहें बार-बार टेबल पर रखे मोबाइल फोन पर टिक जातीं। घंटी बजती… सब चौंकते… फिर निराशा।
एक अधिकारी घबराई आवाज़ में बोला,
“सर, अभी तक कोई ठोस सुराग नहीं मिला है… पूरे शहर में नाकाबंदी कर दी गई है।”
दूसरा अधिकारी कुर्सी पर बेचैनी से हिलता हुआ बोला,
“अगर हमें घटना की खबर तुरंत मिल जाती, तो शायद… शायद हालात कुछ और होते।”
कमरे में अचानक खामोशी छा गई..और
कमरे की हवा भारी थी… जैसे साँस लेना भी किसी इजाज़त का मोहताज हो।
देहरादून के सबसे आलीशान बंगले का ड्रॉइंग रूम उस वक़्त किसी दरबार से कम नहीं लग रहा था...तभी दरवाज़ा खुला और
काले सूट-बूट में एक उम्रदराज आदमी अंदर आया, उसके पीछे दो और लोग थे ,दोनों फॉर्मल कपड़ों में, चेहरे सख़्त और निगाहें पैनी थी उनके कदमों की आवाज़ ने माहौल को और बोझिल बना दिया,
सिंगल सोफे पर मोहित संधु सिंह बैठे .. पूरे ठाठ से, पूरे रौब के साथ,
अट्ठावन साल की उम्र… काले बालों में उभरती हल्की सफ़ेदी, माथे की सिलवटें जैसे सालों की सत्ता और संघर्ष की गवाह हों।
दाएँ हाथ की उँगलियों में जलती हुई सिगरेट थी। उन्होंने गहरी कश ली…
धुआँ धीरे-धीरे हवा में घुला और सामने बैठे अधिकारियों के चेहरों पर जा बैठा।
उन अफ़सरों की नज़र जैसे ही मोहित संधु सिंह पर पड़ी, उनके चेहरे उतर गए।
किसी की उँगलियाँ फ़ाइल के किनारे कस गईं, किसी का गला सूख गया।
एक ने साहस जुटाकर धीमे से कहा—
“सर…”
लेकिन उससे पहले ही ऊपर से सीढ़ियों पर जूतों की गूँज सुनाई दी।
ठक… ठक… ठक…
एक-एक कदम भारी, ठहरा हुआ,
जैसे हर सीढ़ी उसके रौब को और गाढ़ा कर रही हो, कमरे में मौजूद हर शख़्स की गर्दन अपने आप उस दिशा में मुड़ गई।
वह नीचे उतरता चला आया...
एक लंबा-चौड़ा कद… करीब अट्ठाईस साल की उम्र, कंधों तक हल्के घुँघराले बाल, घनी मूँछ और करीने से सजी दाढ़ी...
मोटे होंठ, बड़ी-बड़ी आँखें .. जिनमें अजीब-सा ठहराव भी था और सुलगती आग भी...घनी पलकें, मोटी भौंहें…
उसका पूरा व्यक्तित्व कमरे में किसी अनकहे राज़ की तरह फैल गया...
यह था... "नंदीश संधु सिंह।
इस शहर का नामी बिज़नेसमैन…
और उससे भी ज़्यादा ख़तरनाक नामी-गिरामी क्रिमिनल केस लड़ने वाला वकील..!!
उसने एक हाथ पैंट की जेब में डाला चलते हुए वह सीधे अधिकारियों के सामने आकर रुका...उन पर नज़र डाली , उसकी आँखों में सवाल नहीं था…हुक्म था...ठंडी मगर भीतर से काँपती हुई आवाज़ में उसने पूछा..
“मेरी पत्नी का कुछ पता चला…
या नहीं…??”उसके शब्द कमरे में नहीं… दीवारों में गूँज गए, एक पल के लिए ऐसा लगा मानो समय थम गया हो..
किसी के पास जवाब नहीं था,
सबकी निगाहें ज़मीन पर टिक गईं।
मोहित संधु सिंह ने सिगरेट ऐशट्रे में बुझाई ,
आँखें सिकोड़कर अपने बेटे को देखा,
उनकी आवाज़ में पिता की चिंता भी थी और एक कारोबारी की सख़्ती भी ...
“नंदीश… तुम्हारी शादी को पंद्रह दिन भी बमुश्किल हुए हैं ,आज बहू सुबह से घर पर थी फिर शाम आठ बजे पता चला कि वो आसपास कहीं नहीं है , और अब किडनैप की खबर आई है ,सोचो… याद करो…
कोई ऐसा आदमी…जिसे हमारी बहू तुलसी को किडनैप करने से फ़ायदा हुआ हो..??
नंदीश का चेहरा सख़्त था…
मगर उसकी आँखों के भीतर उथल-पुथल मची हुई थी, उसने बहुत गहराई से सोचा,
कौन हो सकता है जो उससे पंगा लेने की हिम्मत करे..?? किसी दुश्मन का नाम दिमाग़ में आता लेकिन उसकी बुज़दिली भी याद करता… और अगले ही पल मिट जाता,
उसका ज़हन जैसे बार-बार ब्लॉक हो रहा था..बस उसे उसके आंखों के सामने तुलसी थी ..तुलसी की भोली सूरत,
उसकी मासूम हँसी, शादी के बाद का उसका सहमा-सा अपनापन…
सब बार-बार आँखों के सामने घूम रहा था,
नंदीश के होंठ लड़खड़ाए..आवाज़ भारी हो गई..“डैड… मुझे याद नहीं आ रहा कि वो कौन हो सकता है…”
उसने एक पल रुककर साँस ली,
फिर आँखों में उबलते गुस्से के साथ बोला ..
“लेकिन क़सम भवानी की…
जिस समय सच मेरे सामने आया ना…
उस किडनैपर की ऐसी हालत करूँगा कि वो अपनी मौत माँगेगा ,
"कमरे में सन्नाटा और गहरा हो गया।
नंदीश की मुट्ठियाँ भींच गईं, उसकी आवाज़ अब काँप नहीं रही थी उसके खून खौल रहा था..“वो जो भी है…
मेरी इज़्ज़त पर हाथ डाला है…
मेरी पत्नी को मुझसे दूर किया है ,आख़िर में उसकी आँखें भर आईं, और पहली बार उसकी आवाज़ टूट गई,“बस भगवान से यही प्रार्थना है…मेरी तुलसी को , सही-सलामत रखे…”
कमरे में कोई कुछ नहीं बोला,
सिर्फ़ धुएँ की हल्की-सी लकीर ऊपर उठती रही…और नंदीश संधु सिंह की आँखों में जलती आग,अब बदले की कहानी लिख चुकी थी... पुलिस जिस तरह से काम कर रही है मुझे भरोसा बिल्कुल नहीं की मुझे मेरी बीवी से मिलवाएगा मैं नंदीश संधु सिंह तुलसी की खुद खोज करूंगा .. वो बोलकर उस हॉल से निकल गया...
क्रमशः