🌑 एपिसोड 1: खामोश पेंटिंग की पहली साँस
पुरानी गली की वह कला-दुकान हमेशा की तरह उस शाम भी आधी अँधेरे में डूबी हुई थी। बाहर बारिश की हल्की बूँदें पत्थरों से टकरा रही थीं और अंदर हवा में पुरानी लकड़ी, धूल और बीते वक़्त की गंध घुली हुई थी।
आरव ने जैसे ही दुकान में कदम रखा, उसे लगा जैसे समय अचानक धीमा हो गया हो।
वह एक युवा कलाकार था—आँखों में अधूरी ख्वाहिशें, उँगलियों में रंगों का जुनून और दिल में एक अजीब-सा खालीपन।
उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था, बस सुकून नहीं।
“कुछ ख़ास ढूँढ रहे हैं?”
दुकानदार की भारी आवाज़ ने उसे वर्तमान में खींच लिया।
आरव ने सिर हिलाया।
“नहीं… बस देख रहा हूँ।”
वह यूँ ही पेंटिंग्स के बीच घूम रहा था कि अचानक उसकी नज़र एक कोने पर टिकी रह गई।
एक पुरानी पेंटिंग।
लकड़ी का भारी फ्रेम, किनारों पर महीन नक्काशी और बीच में—
एक युवती।
उसके चेहरे पर अजीब-सी उदासी थी, आँखों में जैसे हज़ार कहानियाँ क़ैद हों। उसने हल्के बैंगनी रंग का गाउन पहना था, बाल कंधों पर बिखरे हुए और होंठ… जैसे कुछ कहना चाहते हों, लेकिन सदियों से चुप हों।
आरव का दिल ज़ोर से धड़क उठा।
“इसे मैं ले लूँ?”
उसके मुँह से शब्द अपने आप निकल गए।
दुकानदार ने पल भर को पेंटिंग की ओर देखा। उसकी आँखों में एक अनजाना डर झलका।
“यह… बहुत पुरानी है। लोग इसे ज़्यादा दिन अपने पास नहीं रखते।”
“क्यों?” आरव ने पूछा।
“बस… बेचैनी होती है।”
दुकानदार ने कीमत बताई—हैरानी की बात थी, बहुत कम।
आरव मुस्कुरा दिया।
शायद उसे भी बेचैनी से ही दोस्ती थी।
---
उस रात, जब पेंटिंग उसके छोटे-से घर की दीवार पर टँगी, तो कमरा पहले से ज़्यादा ठंडा लगने लगा।
मोमबत्ती की लौ हौले-हौले काँप रही थी।
आरव ने स्केचबुक खोली और पेंटिंग की नकल उतारने लगा।
लेकिन जितनी बार वह उस लड़की की आँखें बनाता, उतनी बार हाथ काँप जाते।
“अजीब है…”
उसने बुदबुदाया।
“जैसे कोई मुझे देख रहा हो।”
घड़ी ने रात के बारह बजाए।
तभी—
हवा तेज़ हो गई।
मोमबत्ती बुझ गई।
कमरे में अँधेरा छा गया।
आरव उठ खड़ा हुआ।
“कौन है?”
उसकी आवाज़ में डर साफ़ था।
और तभी…
पेंटिंग से एक हल्की-सी नीली रोशनी फूटी।
आरव की साँस रुक गई।
वह लड़की—
धीरे-धीरे पेंटिंग से बाहर निकल रही थी।
उसका शरीर पारदर्शी था, जैसे चाँदनी में घुला हुआ। पैरों ने ज़मीन को छुआ ही नहीं—वह हवा में तैर रही थी।
“नहीं…”
आरव पीछे हट गया।
“यह… यह क्या है?”
उसकी आँखों के सामने कोई सपना नहीं था।
यह हक़ीक़त थी।
लड़की की आँखें खुलीं।
उनमें डर नहीं… थकान थी।
“तुम…”
उसकी आवाज़ हवा जैसी थी।
“तुम मुझे देख सकते हो?”
आरव कुछ बोल नहीं पाया।
उसके हाथ से पेंसिल गिर गई।
लड़की एक पल के लिए चौंकी, फिर उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
“तो मैं अब अकेली नहीं हूँ…”
अचानक कमरे का तापमान और गिर गया।
दीवारों पर साये हिलने लगे।
आरव ने हिम्मत जुटाई।
“त… तुम कौन हो?”
लड़की ने सिर झुकाया।
“मैं… एक भूल हूँ। एक सज़ा। और एक कहानी… जो कभी पूरी नहीं हुई।”
उसकी आँखों से चमकते हुए आँसू हवा में बिखर गए।
“डरो मत,” उसने धीरे से कहा।
“मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी। डर तो मुझे लगता है… हर दिन।”
आरव का दिल कस गया।
डर अब भी था, लेकिन उसके साथ एक अजीब-सा अपनापन भी जन्म ले चुका था।
“तुम यहाँ क्यों हो?” उसने पूछा।
लड़की ने पेंटिंग की ओर देखा।
“क्योंकि मेरी रूह… उसमें क़ैद है। और तुमने…”
उसकी निगाहें आरव से मिलीं।
“मुझे आज़ाद किया है।”
आरव कुछ समझ नहीं पा रहा था।
लेकिन एक बात साफ़ थी—
यह मुलाक़ात यूँ ही नहीं थी।
बाहर बारिश और तेज़ हो गई।
और अंदर, दो अधूरी आत्माएँ—
एक इंसान, एक रूह—
पहली बार एक-दूसरे को महसूस कर रही थीं।
और उस खामोश कमरे में,
किसी अनदेखे रिश्ते ने
धीरे-धीरे साँस लेना शुरू कर दिया…
---
🌒 हुक लाइन (एपिसोड का अंत)
उसे नहीं पता था कि जिस पेंटिंग को उसने खरीदा है, वही उसकी ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत और सबसे दर्दनाक कहानी बनने वाली है…