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आज एक बारिश की बूंद कानों के पास होती हुई गालों पर ठहर गई। मैंने पूछा — कौन हो तुम? हँस कर बोली — मुझे नहीं पहचानती? इस सृष्टि का सृजन हूं मैं, नन्हें बीज में पल रहा प्राण हूं मैं, नदियों में बहता जीवन हूं मैं। समय के पहिए पर घूमती नई चेतना हूं मैं, मिट्टी के भीतर छिपी अनगिनत कहानियों की गवाह हूं मैं। मैं शून्य से जन्मा आरंभ हूं, और अंत के बाद भी लौट आने वाला पुनर्जन्म हूं। इंसान के माथे का ठंडा स्पर्श हूं मैं उसकी थकी आत्मा की तृप्ति हूं मैं। जब दुनिया थक कर निराश होती है, तो मैं धरती की हथेलियों पर गिरकर कहती हूं — “अभी सब खत्म नहीं हुआ...... हर विराम के बाद एक नई शुरुआत हूं मैं।” उम्मीद की नन्ही लौ हूं मैं जीवन की अविच्छिन्न धड़कन हूं मैं हर मृत्यु के बाद की सुबह हूं मैं। सृजन की वह अनवरत गाथा हूं मैं, जो देती है जन्म हर विप्लव के बाद एक नई सृष्टि को मैंने चकित होकर पूछा तो फिर ये विध्वंस कौन है? क्यों तुम्हारे कारण आया ये विप्लव है? क्यों धरती खफ़ा, मन विचलित है? बूँद मुस्काई… कहा, विध्वंस नहीं, आईना हूं मैं धरती का आक्रोश, परमात्मा की चेतावनी, प्रकृति की टूटी सहनशक्ति हूं मैं। जब इंसान सीमा भूल जाता है, तो प्रलय बनकर लौटती हूं मैं जब सृष्टि का संतुलन बिखरता है तब आसमान के आँसुओं की बूंद हूं मैं। मैं जीवन का स्पंदन हूं,पर जब तुम मेरी धारा को रोककर लोभ की दीवारें खड़ी करते हो धरती की साँसें घोंटकर जंगलों को उजाड़ देते हो तो प्रकृति के धैर्य से फूटा बवंडर हूं मैं। सुनो… मेरा जन्म रचने के लिए है, नष्ट करने के लिए नहीं। विध्वंस मेरा चेहरा नहीं, बल्कि तुम्हारे कर्मों का प्रतिबिंब है। ArUu ✍️
चरित्रहीन कितना कठोर शब्द है...कितना कुंठित विकल करने वाला पर कितने ही सहज रूप में ये शब्द स्त्री के लिए रोज उपयोग किया जाता है और उपयुक्त भी लगता है। इस दाग को मिटाने के लिए स्त्री सदियों से कोशिश कर रही , अग्नि परीक्षा दे रही...पर जाने कितने पक्के रंगों से बना है कि मिटता ही नहीं। पुरुष कितनी आसानी से कह देता है चरित्रहीन उन स्त्रियों को जो उसकी बनाई परिधि से बाहर झांकती है...शातिर पुरुष कहता है चरित्रहीन हर उस स्त्री को जो अपने मत, ख्वाब और परिभाषाएं बुनती है। शायद डरता है वो इन चरित्रहीन स्त्रियों से...ये उसे अपने अस्तित्व के लिए थोड़ा खतरा जान पड़ती है क्योंकि "चरित्रहीन" कहना दरअसल उसकी घबराहट का दूसरा नाम है। जिस स्त्री को वह बाँधना चाहता है, वह जब उसके घेरे को लांघ देती है, तो उसकी सत्ता डगमगा जाती है। ये वही स्त्रियां हैं जो सदियों की बेड़ियाँ तोड़कर अपने लिए आकाश खोज लेती हैं। वो स्त्रियां जो सवाल करती हैं, जो हर अपमान को सहकर भी मुस्कान बो देती है। जो अपने दुख को कविता और अपने साहस को क्रांति बना देती हैं जो बंद दरवाज़ों को तोड़ती है, जो अपने आँसुओं से ख्वाब सींचती है, जो टूटे आईनों में भी अपना चेहरा ढूंढ लेती है जो अपनी चुप्पियों को बगावत बना देती है। वो स्त्रियां...जिनके कदमों की आहट से सदियाँ काँप जाती हैं, जिनके सपनों से नई दुनियाएँ जन्म लेती हैं इतिहास गवाह है, कि हर "चरित्रहीन" कही गई स्त्री ने दुनिया को नया रास्ता दिया है। ArUu ✍️
पुरुष द्वारा स्थापित इस समाज में सबसे कठिन है स्त्री का चरित्रवान बने रहना। ArUu ✍️ - ArUu
बचपन में जब मैं छोटी सी थी न एक दम मासूम सी प्यारी सी ... तब मेरे पास एक एक बोतल हुआ करती थी केटली जैसी ब्राउन क्रीम कलर की । बहुत प्यारी थी मुझे वो...इतनी प्यारी की मैं उस बोटल से किसी को भी पानी नहीं पीने देती थी। स्कूल में साथ लेकर जाती और घर पर भी बड़े ख्याल से उसे खोल कर मटकी के पास सूखने के लिए रख देती थी । कई बार उसे साबुन से धोया करती...एक दम से चमक सी जाया करती थी वो...उसकी चमक मेरे चेहरे पर विचित्र सी खुशी और चमक बिखेर दिया करती थी। उस वक्त जब मुझसे कोई पूछा करता मुझे इस दुनियां में सबसे प्यार क्या है तो मैं हमेशा यही कहती थी कि ये बोतल। मैने तो घर वालों से भी कह रखा था कि जब में मर जाऊ तो ये बोतल मेरे साथ रखना...चाहे जला दो चाहे दफना दो। कमाल का लगाव था मुझे उस बोटल से। अब कभी दिवाली की साफ सफाई में वो बोतल सामने आ जाती हैं तो बस उसे छू कर वापस रख देती हूं उन्हीं पुराने सामान के बीच और बीते वो खूबसूरत पल याद आ जाते है जब वो मेरे लिए सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट थी...मुझे सबसे ज्यादा लगाव था...पर वक्त के साथ हमेशा कुछ न कुछ बदल जाता है। जो चीज हमें इस वक्त बहुत प्यारी है वो जिंदगी के हर मोड पर ही हमारे लिए जरूरी हो...ये तो जिंदगी नहीं है। वक्त बदलता है और हमारे लिए प्राथमिकताएं बदल जाती है।कई चीजे, कई लोग और कई रिश्ते जो हमें इस वक्त बहुत जरूरी लग रहे है , हो सकता है आने वाले वक्त में वो बस एक याद बन कर रह जाए , एक धुंधली सी याद और यादें हमेशा ही सुखद हो ये तो जरूरी नहीं। हो सकता है आज जो अजीज हो वो कल हो न हो...इसलिए खुद को प्राथमिकता दें क्योंकि जब तक जीवित हो तब तक तो ये देह आपका साथ देगी ही भले लोग न दे और मर भी जाओगे तो भी देह एक सुखद याद ही रहेगी । ArUu ✍️
एक रूह ...सुंदर...मेरी यादों में घुली है जैसे धमनियों में बहता लहू है अंतरिक्ष का सबसे सुंदर तारा है वो थोड़ा दूर है मुझसे पर जमाने के ग़म से भर कर मैं उन दुरियों को पार कर उनसे मिलना चाहती हु वो मेरी किस्मत की किताब में लिखा एक अधूरा सा किस्सा है जिसे मैं रोज़ अतीत के पन्नो पर ढूंढती हूं वो किस्सा…जो हर रात मेरी पलकों के बीच आधी नींद, आधे ख्व़ाब में सजता है। शायद वो मेरी दुआओं का अनसुना जवाब है, या शायद वो वही रोशनी है जिसे तारे सदियों से मेरे नाम लिखते आए हैं।" वो रोशनी…जो मेरी तन्हाई के अंधेरों में एक अदृश्य चिराग जलाती है। कभी लगता है उस तारे की रोशनी मेरे आँसुओं में घुलकर मुझे ही सांत्वना देती है। मैं जानती हूँ — हम दोनों की साँसें सदा एक ही आकाश में गूंजती रहेंगी। और मैं… जब भी आँखें मूँदूँगी, तो उसी अनंत तारे में उसकी सुखद रौशनी पाऊँगी। ArUu ✍️
लोग खो जाते है कुछ पुरानी चिट्ठियों की तहों में, कुछ मोबाइल की स्क्रीन में हर पल, हर टच पर खोखले हो जाते हैं। कुछ खो जाते हैं "क्या कहेंगे लोग?" की जंजीर में, कुछ अपनी ही आवाज़ दबा देते हैं सिर्फ़ चुप रहने की तमीज़ में। कुछ खो जाते हैं दूसरों को खुश करते-करते, और खुद से इतने दूर हो जाते हैं — कि लौटने का रास्ता भी भूल जाते हैं। लोग खो जाते है... कुछ इश्क के उन्माद में कुछ शक के गर्म झोंको में कुछ नौकरी की ख्वाहिश में कुछ अल्हड़पन में कुछ जिम्मेदारियों में कुछ खो जाते हैं धर्म के नाम पर, कुछ परंपराओं की परतों में, और कुछ रिवाजों के उस घेरे में जहां सोच दम तोड़ देती है। कुछ प्रकृति में कुछ पतझड़ के बेरंग में कुछ अंतरिक्ष के अनगिनत तारों में कुछ हर बार मज़बूत दिखने के बोझ में, और फिर टूटते भी हैं तो मुस्कुराते हुए जैसे कोई खूबसूरत तारा... कुछ खो जाते हैं बचपन के उस एक मोड़ पर, जहां वो आखिरी बार खुलकर हंसे थे "कुछ खो जाते हैं खुद को साबित करने की होड़ में, और साबित कर भी दें, तो अपने होने का यकीन खो बैठते हैं।" "कुछ खो जाते हैं दूसरों की परछाइयों में, इतना कि खुद की पहचान धुंधली पड़ जाए। "कुछ खो जाते हैं अधूरे सवालों के जवाब ढूंढते-ढूंढते, और जवाब मिलते ही खुद एक सवाल बन जाते हैं।" कुछ खो जाते हैं वक़्त की रफ़्तार में, जैसे कोई पुराना पन्ना जो हवा में उड़कर कहीं गुम हो गया। "लोग खो जाते हैं..." कभी चुपचाप, कभी चीख़ते हुए अंदर ही अंदर, कभी सामने होते हुए भी इतने गुम जैसे कोई धड़कन जिसे सुनने वाला कोई नहीं। और कुछ तो बस इसलिए खो जाते हैं... क्योंकि किसी ने उन्हें कभी ढूंढा ही नहीं। ArUu ✍️
मेरे लिए एक्सीडेंट एक मजेदार अहसास है क्योंकि इसके बाद मुझे काफी चीज़ें सीखने को मिली और लाइफ का पहला अनचाहा ओर अनजाना moment भी हां इसका मतलब ये नहीं कि ये बार बार होता रहे ऐसा मैं चाहती हूं...पर ये मेरे लिए अनोखा किस्सा बन गया है जिसे लिखने का अहसास भी काफी अनोखा होता है...कुछ मज़ेदार किस्सों के साथ एक्सिडेंट के दौरान युद्ध छिड़ गया था तो back to duty मजबूरी बन गया और घर वालों को बार बार परेशान करना पड़ा क्योंकि दो पहिया गाड़ी चलाना मेरे वश में नहीं था और अब 4 महीने के बाद भी मैने अपनी प्यारी प्रिंसेस (एक्टिवा) को हाथ नहीं लगाया है खैर उस वक्त कार से पापा या भाई पाली से भाद्राजून तक छोड़ने आते थे पर बार बार उनको परेशान करना भी अच्छा नहीं लगता तो सोचा अब से बस में आना जाना शुरू करु ... तो तय रहा कि अब अगली बार बस में जाऊंगी फिर क्या पूरी रात आंखे बंद करते ही बस आंखों के सामने घुम रही थी क्योंकि क्लेविकल बोन सेंसिटिव होती है और उस वक्त तक बोन इतनी strong नहीं हुई थी तो मेंटली में इतनी प्रिपेयर्ड नहीं थी बस के सफर के लिए.. ऐसे में रात भर मुझे बस चलती हुई नहीं बल्कि हवा में उड़ती या पानी में गोते लगाते हुए दिखाई दी...मेरे लिए रात भर सोना काफी मुश्किल सा रहा । दूसरे दिन जब मैने बस में सफर किया तो ये मेरी उम्मीदों से कही ज्यादा आसान था...थोड़ा दर्द ओर uncomfortable था पर इतना नहीं जितना ज्यादा मैने सोच लिया था और उसके बाद मैने कई दफा बस का सफर किया जो मेरे लिए पहले से ज्यादा आसान होता गया हां पहली यात्रा थोड़ी मुश्किल रही.. कई बार जिंदगी में हम कई परिस्थितियों को पहाड़ जितना मुश्किल समझ लेते है पर वो इतनी मुश्किल नहीं होता... इसका अहसास हमें उस परिस्थिति का सामना करने और बार बार efforts और प्रैक्टिस करने पर होता है। जिंदगी में बहुत मुश्किल परिस्थितिया आती है पर वो कभी बिना सिखाए नहीं जाती...तोहफे में कुछ कीमती निधि हमेशा दे जाती है और देखो आज 4 महीने बाद बस के सफर के दौरान ये किस्सा मैं लिख रही हूं...हल्की सी मुस्कान और पहले से ज्यादा मजबूती के साथ हैं न जिंदगी आसान और रोमांचक ArUu ✍️
मुश्किल होता है उन्मुक्त स्त्री बन जाना उससे भी कठिन होता है एक स्त्री के लिए ये स्वीकार कर लेना कि वो खुद के लिए जी सकती है जब उन्मुक्त गगन में विचरण करती वो पतंग की भांति धरा से दूर ...बहुत दूर मुक्त गोते लगा रही होती है तो दूर ही दूर धरा पर कोई उसकी डोर थामे रखता है...पर जाने क्यों जब वो अपनी उच्चतम बुलंदी पर होती है तो डोर थामे इंसान को खुद पर संशय हो जाता है...उसे लगता है जैसे वो अब और देर तक उस पतंग की उड़ान नहीं देख पाएगा... या शायद पतंग के आत्मविश्वास के आगे उसका आत्मबल कुछ क्षिण हो जाता है या शायद उसे लगता है कि उस पतंग को थामे रखना उसके लिए कुछ कठिन हो गया है। इसी डर से छोड़ देता है वो पतंग की डोर को कई पतंगे साहसी होती है , वो जा ठहरती है किसी अज्ञात ऊंचाई पर और कुछ पतंगे आ गिरती है पुनः उसी धरा पर ...उन्हीं कदमों को चूमती जिनसे संभाली न गई एक नाजुक सी डोर भी... ArUu ✍️
कुछ चीजें जिंदगी में कमाल का सबक दे देती है। मेरे एक्सिडेंट को लगभग 3 महीने हो गए... क्लेविकल बोन में फ्रैक्चर था तो अभी भी मेरे राइट हैंड में मूवमेंट नहीं लौटा है...वो मुझे अपने लेफ्ट हैंड से कुछ वजनी लगने लगा है...उससे कुछ भी काम नहीं हो पा रहा अगर थोड़ा सा हाथ इधर उधर करना हो तो भी दूसरे हाथ का सहारा लेके या दूसरे हाथ से पकड़ कर उसमें कुछ मूवमेंट हो पाता है...जो हाथ मेरे लिए इतना इंपॉर्टेंट था बचपन से लेके अभी 3 महीने पहले तक जिस हाथ की तारीफ करते मैं नहीं थकती थी वो हाथ अब बोझ सा लगने लगा है...क्योंकि राइट हैंड मेरे लिए अवेलेबल नहीं है तो मैंने लेफ्ट वाले से सारे काम करना सिख लिया है...3 महीने हो गए मैने राइट हैंड से खाना नहीं खाया और भी छोटे मोटे काम में लेफ्ट वाले से कर लेती हूं...हां लिखने के लिए मुझे अभी भी राइट हैंड की ही जरूरत पड़ती है... बस यही फर्क है...जिंदगी में बस इतना ही समझ आया कि हमारे लिए हर चीज बस तब तक जरूरी है जब तक वो हमारे काम आ रही है वरना हम दूसरे ऑप्शन ढूंढ लेते है... और काम खत्म होते ही चीज़ें बोझ बन जाया करती है...बस राइट हैंड जितना वैल्यूएबल बनना है ताकि हर हाल में लिखने के लिए तो उसकी जरूरत पड़े ही पड़े।।।😌
आज मैंने टटोला खुद को, मुझे महसूस हुआ — मैं अब पहले जैसी नहीं रही। करुण, संवेदनशील, नाज़ुक, मासूम,निश्चल, स्निग्ध मन... शायद वो सब मैं कहीं किसी धुंधले मोड़ पर छोड़ आई हूं। जब मैं बार-बार रोई, गिड़गिड़ाई, बेबस ,मौन में भीगी रही हर बार मैंने अपने भीतर की स्त्री को मृदुता की कब्र में धकेला। कितनी दफा मैंने खुद को कोसा — क्यों हूं मैं इतनी संवेदनशील? क्यों हूं मैं इतनी करुण? क्यों मेरी आंखें इतनी अश्रु-बोझिल हैं कि हर बात में बह जाना जानती हैं? क्यों हूं मैं इतनी नाज़ुक कि मुझे बार-बार तोड़ा जाता है? मेरी ओर से हर दफा पाषाण सा रुख मोड़ा जाता है। और मैंने जाना — मेरे भीतर की वही कोमल स्त्री मेरे लिए सबसे घातक है। मैंने उसे अनजाने, कई बार, बिन बोले, बिन देखे, अपनी ही कठोर हथेलियों से दफ़ना दिया। अब मैं शिलाखंड सी हो गई हूं। मेरा कुछ स्त्रीत्व मुझसे छूट गया है — या शायद वो मर चुका है, हो चुका है किसी बंजर आत्मा का अवशेष, या शायद अब भी किसी कोने में, बिन हरकत, बिन स्पंदन, कोमलता के श्मशान में निस्पंद पड़ा है। कभी सोचती हूं — क्या सच में मर जाती है वो? या बस बेजान छाया बनकर मेरी परछाइयों में पलती रहती है? शायद वो अब भी किसी पाषाण की भीतरी दरार में सिहरती सांसों की तरह है, शायद वो अब भी मेरी करुणा की दरकती दीवारों में दबी हुई है। कभी रात की खामोशी में जब मैं अपनी हथेलियों को देखती हूं, तो लगता है — शायद मेरी उंगलियों में अब भी थोड़ा सा स्पर्श बचा है, शायद मेरी जर्जर आत्मा में अब भी कोई दबा हुआ विलाप बाकी है। शायद मेरी भीतर की स्त्री मरी नहीं है, शायद वो थकी है, चुप है, सिहरती है, और मैं — शायद अब उसे फिर से छूने की हिम्मत नहीं रखती। ArUu ✍️
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