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@harandhari


शीर्षक: समझाऊ (भाग-2)

बिन तुझको देखे
आराम कहाँ से लाऊँ मैं
बिन बादल
कैसे बरसात कराऊं मैं
बिन देख तुझे
अब ना जी पाउ मैं
रातों मे अब नींद
कहा से लाऊं मैं
ये बाते
ये बाते
अब किसे सुनाऊँ मैं
जो आँखों में है हर पल
उसे कैसे भुलाऊ मैं।
कैसे मैं समझाऊ खुद को।
कैसे यकीं दिलाऊ तुमको।।
अब तू ही बता
कैसे ?
खुद को संभाले हम
क्योंकी
मेरा होश नही ठिकाने
अब,
कैसे मैं समझाऊ खुद को।
कैसे यकीं दिलाऊ तुमको ।।

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कैसे मै समझाऊ खुद को,
कैसे यकीं दिलाऊ तुझको
तुम क्या जानो मेरे
अरमानो को
जबकि तुमको यकीं नहीं
इंसानो पर।
फिर भी बहुत बार पुकारा होगा
मैंने, तुमको
फिर भी तुम सुन न सकी मेरे
आवाज़ों को,
की
अब तुम ही ये बतलाओ हमको
की
कैसे यकीं दिलाऊ तुझको,
कैसे मै समझाऊ खुद को।

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