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ज्योतिष विज्ञान वह विज्ञान है , जिसके माध्यम से हम यह पता लगा सकते है की आकाश मै मौजुद ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति क्या है। जब कोई मानव/जीव इस पृथ्वी पर जन्म लेता है तो इसी के आधार पर उसकी भविष्यवाणी कर सकते हैं।
इसका मतलब यह हुआ की हम आकाश मै मौजूद ग्रहों व नक्षत्र के आधार पर किसी भी मानव के सम्पुर्ण जीवन काल की रूपरेखा तैयार कर सकते है, और इसी का प्रयोग करके मानव का जन्म कुंडली बनाया जाता है।
ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति व्यक्ति के जन्म के समय और उसके पूरे जीवन में उसकी प्रकृति, भाग्य और भविष्य पर प्रभाव डालती है। सांसारिक घटनाओं, जैसे कि मौसम, प्राकृतिक आपदाएं, और राजनीतिक बदलावों के बारे मै भी पता करने के लिए ज्योतिष विज्ञान का ही प्रयोग होता आ रहा है। मानव के जीवन में जितना प्रमुख शरीर के अंग होते है (चाहे शरीर का कोई भी अंग हो) ठीक उसी तरह ज्योतिष में घरों (भाव) का अपना एक अलग महत्व है। ज्योतिष विज्ञान में घरों की कुल संख्या 12 है। काल पुरुष के अनुसार ये घर (भाव) क्रमशः ऐसे है :
मेष : पहला
वृषभ : दूसरा
मिथुन : तीसरा
कर्क: चौथा
सिंह : पांचवॉ
कन्या: छठा
तुला: सातवां
वृश्चिक: आठवां
धनु: नौवां
मकर: दसवॉ
कुम्भ: गयारहवॉ
मीन: बारहवॉ
इनको घर/भाव/लग्न/राशि के नामो से जाना जाता है। प्राय: आपलोगो में से बहुत लोग सुने भी होंगे।
हमारे खगोल शास्त्र में ग्रहों की संख्या 9 है। पर पहले 7 ही ग्रह थे पर समुन्द्र मंथन से जो अमृत प्राप्त हुआ था उसमे देवताओ की कतार में बैठ कर एक राक्षस भी अमृत पी लिया था, तब विष्णु जी ने अपने सुदर्शन से उस राक्षस को दो भागो में काट दिया ऊपर का भाग राहु के नाम से तथा गर्दन से नीचे का भाग केतु के नाम से जाना जाता है , तब से ग्रहों की संख्या 9 हो गई।
ग्रहों के नाम:
सूर्य
चंद्र
मंगल
बुध
गुरु/वृहस्पति
शुक्र
शनि
राहु
केतु।

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ओम् नमः शंकराय ओम् 🙏
- Prabhat

शीर्षक : नज़र
मेरी नज़रो ने देखा जब उनको
बड़ी अजीब सी उनकी कहानी थी
फिर भी इस दिल ने उनपे ही
मर मिटने की ठानी थी।
एक बात अलग थी उनमें
जो ,
मैंने
ऐसा करने की ठानी थी ।
मेरी नज़रो ने देखा जब उनको
बड़ी अजीब सी उनकी कहानी थी ।।
आखिर में उनकी नज़रे भी
मेरे नज़रो से टकराई
ना जाने कैसा दर्द हुआ
मैं कह न सका जमाने से
उनका तो,
वो ही जाने
हमने तो ज़िद ये ठानी थी।
मेरी नज़रो ने देखा जब उनको
बड़ी अजीब सी उनकी कहानी थी। ।

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शीर्षक : परिचित

दो जिस्म मगर
इक जान थे वो,
इक दूजे के स्वाभिमान
थे वो।
ना जाने कैसे
बंधन टूटा,
जो पड़ा गाठ
फिर ना सुलझा।
दोनों ने नाता तोड़ लिया।
इक दूजे से मुंह मोड़ लिया।
ना जाने किस की
नज़र लगी,
मानो जैसे
कोई बिजली गिरी।
जब तक होता ये एहसास ।
तब तक छुट चुका था साथ।।

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शीर्षक: समझाऊ (भाग-2)

बिन तुझको देखे
आराम कहाँ से लाऊँ मैं
बिन बादल
कैसे बरसात कराऊं मैं
बिन देख तुझे
अब ना जी पाउ मैं
रातों मे अब नींद
कहा से लाऊं मैं
ये बाते
ये बाते
अब किसे सुनाऊँ मैं
जो आँखों में है हर पल
उसे कैसे भुलाऊ मैं।
कैसे मैं समझाऊ खुद को।
कैसे यकीं दिलाऊ तुमको।।
अब तू ही बता
कैसे ?
खुद को संभाले हम
क्योंकी
मेरा होश नही ठिकाने
अब,
कैसे मैं समझाऊ खुद को।
कैसे यकीं दिलाऊ तुमको ।।

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कैसे मै समझाऊ खुद को,
कैसे यकीं दिलाऊ तुझको
तुम क्या जानो मेरे
अरमानो को
जबकि तुमको यकीं नहीं
इंसानो पर।
फिर भी बहुत बार पुकारा होगा
मैंने, तुमको
फिर भी तुम सुन न सकी मेरे
आवाज़ों को,
की
अब तुम ही ये बतलाओ हमको
की
कैसे यकीं दिलाऊ तुझको,
कैसे मै समझाऊ खुद को।

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