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Footballer/ Entrepreneur / Motivator/ Philosopher/ Poet/ Author ✍️ https://linktr.ee/jatintyagi05
काल स्वयं मुझसे डरा है, मैं काल से नहीं। कालेपानी का कालकूट पीकर, काल से कराल स्तंभों को झकझोर कर।। मैं बार-बार लौट आया हूँ, और फिर भी मैं जीवित हूँ। हारी मृत्यु है, मैं नहीं।। - वीर सावरकर
“नींद से क्या शिकवा जो आती ही नहीं। कसूर तो उस चहेरे का है जो सोने ही नहीं देता।।”
दौलत का अभिमान है झूठा ये तो आनी जानी है राजा रंक हुए अनेक कितनो की कहानी है सुनी राम नाम प्रिय ही महामंत्र साथ तुम्हारे जाएगा निर्मल मन के दर्पण में वह राम के दर्शन पाएगा
भेंट अंतिम आज प्रियवर! जाइए, सिर मौर पाएँ। जब चढ़ें, वर रूप में रथ, पग न बिल्कुल डगमगाएँ। स्वस्तिमय शुभकामनाएँ! माँग की ऋजु-रेख भी जब, वक्र सी टेढ़ी लगेगी। सप्तपद की रीति संभवतः कहीं बेड़ी लगेगी। चंद्रिका से इस हृदय को 'दग्धता' मिलने लगेगी। या किसी अल्हड़ हँसी से क्षुब्धता मिलने लगेगी। संयमित रहना, वचन भरते, अधर यदि थरथराएँ। स्वस्तिमय शुभकामनाएँ। कीजिए निश्चित, कि उत्सव में नहीं बाधा रहेंगी! अब कभी, मेरी कहीं, सुधियां नहीं, नर्तन करेंगी। भूलकर मेरी 'दशा' अपनी दिशा पर ध्यान देना। और अपनी सहचरी को प्रेम देना, मान देना। अंजुरी थामे किसी के, कर न किंचित कँपकपाएँ। स्वस्तिमय शुभकामनाएँ। याद है जब, खग-युगल पर बाण हम ही छोड़ते थे। फिर भ्रमर की प्रिय कली को, क्रूरता से तोड़ते थे। इस कलुषता के कलश को एक दिन तो फूटना था, कर्म का फल भोगना था, साथ अपना छूटना था। त्याग मेरे 'प्राण' का भय, आप अपना 'प्रण' निभाएँ! स्वस्तिमय शुभकामनाएँ!
मैंने दीवार पे क्या लिख दिया ख़ुद को एक दिन। शाजिशें होने लगीं मुझको मिटाने के लिए।।
बहुत दिनो से स्कूटी का उपयोग नही होने से, विचार आया #Olx पे बेच दे.. कीमत Rs 30000/- डाल दी बहुत आफर आये 15 से 28 हजार तक। एक का 29 का प्रस्ताव आया। उसे भी waiting में रखा। कल सुबह काल आया, उसने कहा- "साहब नमस्कार 🙏 , आपकी गाडी का add देखा। पसंद भी आयी है। परंतु 30 जमाने का बहुत प्रयत्न किया, 24 ही इकठ्ठा कर पाया हूँ। बेटा #इंजिनियरिंग के अंतिम वर्ष में है। बहुत मेहनत किया है उसने। कभी पैदल, कभी सायकल, कभी बस, कभी किसी के साथ। सोचा अंतिम वर्ष तो वह अपनी गाडी से ही जाये। आप कृपया स्कूटी मुझे ही दिजीएगा। नयी गाडी मेरी हैसियत से बहुत ज्यादा है। थोडा समय दिजीए। मै पैसो का इंतजाम करता हूँ। मोबाइल बेच कर कुछ रुपये मिलेंगें। परंतु हाथ जोड़कर कर निवेदन है साहब,मुझे ही दिजीएगा।" मैने औपचारिकता में मात्र #Ok बोलकर फोन रख दिया। Uttam Gupta Ayodhya कुछ विचार मन में आये। वापस काल बैक किया और कहा "आप अपना #मोबाइल मत बेचिए, कल सुबह केवल 24 हजार लेकर आईए, गाडी आप ही ले जाईए वह भी मात्र 24 में ही" मेरे पास 29 हजार का प्रस्ताव होने पर भी 24 में किसी अपरिचित व्यक्ति को मै स्कूटी देने जा रहा था। सोचा उस परिवार में आज कितने आनंद का निर्माण हुआ होगा। कल उनके घर स्कूटीआएगी। और मुझे ज्यादा नुकसान भी नहीं हो रहा था। ईश्वर ने बहुत दिया है और सबसे बडा धन #समाधान है जो कूट-कूटकर दिया है। अगली सुबह उसने कम से कम 6-7 बार फोन किया "#साहब कितने बजे आऊ, आपका समय तो नही खराब होगा। पक्का लेने आऊं, बेटे को लेकर या अकेले आऊ। पर साहब गाडी किसी को और नही दिजीएगा।" वह 2000, 500, 200, 100, 50 के #नोटों का संग्रह लेकर आया, साथ में बेटा भी था। ऐसा लगा, पता नही कहा कहा से निकाल कर या मांग कर या इकठ्ठा कर यह पैसे लाया है। बेटा एकदम आतुरता और कृतज्ञता से 🛵 को देख रहा था। मैने उसे दोनो चाबियां दी, कागज दिये। बेटा गाडी पर विनम्रतापूर्वक हाथ फेर रहा था। रुमाल निकाल कर पोछ रहा था। उसनें पैसे गिनने कहा, मैने कहा आप गिनकर ही लाये है, कोई दिक्कत नहीं। जब जाने लगे, तो मैने उन्हे 500 का एक नोट वापस करते कहाँ, घर जाते #मिठाई लेते जाएगा। सोच यह थी कि कही तेल के पैसे है या नही। और यदि है तो मिठाई और तेल दोनो इसमें आ जायेंगे। आँखों में कृतज्ञता के आंसु लिये उसने हमसे विदा ली और अपनी 🛵 ले गया। जाते समय बहुत ही आतुरता और विनम्रता से झुककर अभिवादन किया। बार बार आभार व्यक्त किया। दोस्तो जीवन में कुछ व्यवहार करते समय #नफा नुकसान नहीं देखना चाहिए। अपने माध्यम से किसी को क्या सच में कुछ आनंद प्राप्त हुआ यह देखना भी होता है।
“Two ways of building character - cultivating the strength to challenge oppression, and tolerate the resultant hardships that give rise to courage and awareness."
“यूँ तो भूले है कई लोग, हमे पहले भी बोहोत से। पर तुम जितना उनमें से, कोई याद नहीं आया।।”
अभी उजाला दूर है शायद …. ———————————— दीवाली-दर-दीवाली , दीप जले, रंगोली दमके, फुलझड़ियों और कंदीलों से, गली-गली और आँगन चमके। लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी, और अधूरे हैं कुछ सपने, कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी, ताक रहे गलियारे अपने। खाली-खाली से कुछ घर हैं, कुछ चेहरों से नूर है गायब, अलसाई सी आँखें तकतीं, अभी उजाला दूर है शायद। थकी-थकी सी उन आँखों में, आओ थोड़ी खुशियाँ भर दें, कुछ मिठास उन तक पहुँचाकर, कुछ तो उनका दुखड़ा हर लें। कुछ खुशियाँ और कुछ मुस्कानें, पसरेंगी हर सूने घर में, मुस्कुराहटें-खिलखिलाहटें, मिल जाएँगी अपने स्वर में। तभी मिटेगा घना अँधेरा, तभी खिलेंगे वंचित चेहरे, रोशन होंगी तब सब आँखें, तभी खिलेंगे स्वप्न सुनहरे।
तन समर्पित, मन समर्पित मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं माँ तुम्हारा ॠण बहुत है, मैं अकिंचन किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन थाल में लाऊँ सजा कर भाल जब भी कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण गान अर्पित, प्राण अर्पित रक्त का कण कण समर्पित चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं मांज दो तलवार, लाओ न देरी बाँध दो कस कर क़मर पर ढाल मेरी भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी शीश पर आशीष की छाया घनेरी स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित आयु का क्षण क्षण समर्पित चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं तोड़ता हूँ मोह का बन्धन, क्षमा दो गांव मेरे, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो आज सीधे हाथ में तलवार दे दो और बायें हाथ में ध्वज को थमा दो यह सुमन लो, यह चमन लो नीड़ का त्रण त्रण समर्पित चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं,
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