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संगठन मंत्री अखण्ड पत्रकार वेलफेयर एसोसियेशन उत्तर प्रदेश एवं संपादक सावन साहिल मासिक पत्रिका, न्यूज सावन साहिल वेव पोर्टल व लाइव टीवी चैनल |
मुझे मुझपर विश्वास कहाँ , तुम्हारा मुझपर विश्वास है | परख तुम्हारी, पारखी भी तुम !
दोस्तो मै आपसभी के प्यार और साथ की आभारी हूँ | अभी तक जहाँ भी मैने कदम रखा कभी खुद को अकेला नही पाया | मेरे प्रयासों की गति (सक्रियता मे) जरूर धीमी रही है | लेकिन आपसभी का साथ विश्वास भरपूर मिला है | इसी साथ और विश्वास के साथ मैने यूट्यूब पर चैनल का शुभारम्भ किया है | इस चैनल पर मेरी कविताए, विचार , प्रेम ,भक्ति , आध्यात्म, उत्साहवर्धक व अन्य विषयपरक सामग्री वीडियो के माध्यम से प्राप्त किये जा सकेंगे | भविष्य मे आपसभी के समक्ष रूबरूह प्रसतुति भी होगी अतः मेरे चैनल से जुड़कर मुझे गति प्रदान करें | https://youtube.com/channel/UCa4-Ev_vIUjlDisTDT088cQ
है सारे भाव तुमसे ही बँधना भाया है तुममे ही मिलो या मिलो नही | मगर ! न बाँधना कभी और कहीं | यही एक भय है मानो इच्छा भी | ........ प्रेम
हो विश्वास की जमीन या नाव संशय की बैठी तो तुम्हारी ही प्रतीक्षा मे | संशय बाहरी आवरण आँखों की पट्टी है , विश्वास की जमीन बंद आँखे हृदय ही है | तुम्हारा द्वार तो हृदय से ही खुलता है, बाहर मिलना तो तुम्हारी इच्छा है | ..... प्रेम
मैने कब कहा कि मुझमे कुछ था,है| मुझमे तुम हो तुमने बताया | क्यों थी यह नही जानती , तुमने क्या चाहा यह नही जानती| मैने किसे छुआ मुझे नही पता पर , वह वही है जो अनन्त है , यह सच नही तो फिर क्या ही सच होगा | कहाँ तक फैले नही हो तुम ,क्या संकुचित शून्य नही हो तुम ! बता दो जहाँ तुम नही हो ? उसी जगह मुझे दण्ड दो | जब भीतर तुम्हारा था , बाहर मेरा कैसे | जीने की चाह राह तुमतक ही सिमटी है , विचारो का आँचल गीला है प्रार्थनाओं से, चित्त चरणों से न डिगे | हो शरणागतदीनार्त ! क्या तुम भी बदल गये? अपने ही बनाये संसार मे तुम भी मिल गयें | कहा तो है ! और कैसे कहूँ ? जो तुम्हे भाये वैसी ही रहूँ | है पकड़ कमजोर मेरी भावना भी, जानती हूँ! आनभिज्ञ नही | पकड़ा ही कहाँ ? हाथ सौंपा है | अब छोड़ो गिराओ तुम्हारी ही गरिमा है | प्रेम
जो तुम्हारा है तुम्हारे पास है , जो नही है तो था ही नही | जो होगा उसे विधाता के अतिरिक्त कोई छीन नही सकता | और विधाता कभी छीनता नही | जो छीन ले तो तुम्हारा था क्या | यह "तुम्हारा" ही खेल है | यह "तुम्हारा" ही आभाव है यह आभाव ही दुःख है | चयन तुम्हारा तुम्हे क्या चुनना है |
जो हृदय मे हो उसे बताने की जरुरत नही , जो जानता हो उसे जताने की जरुरत नही || #विराम
हूँ खान अगनित ,अवगुन ! कोई तो अवगुन तुम्हे भाता होगा , मुझमे रखकर उसी से प्रेमकर लेना तुम ||
बावलापन नही गया अभी तक जो, हर बात खुद पर ले लेती हूँ जैसे जख्मों पर किसी ने हाथ रखा और जख्म मुस्कुरा उठे दर्द भूलकर अपनेपन के स्पर्श में |
सबकुछ कह चुकी जो बचा है, उसे सुनने वाला बाहर कहाँ | सोचती हूँ मौन हो जाऊँ अपने शोर को अन्तर मे दबाते हुए |
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