Quotes by shalini Gupta in Bitesapp read free

shalini Gupta

shalini Gupta

@shalinigupta


कुछ कथन दबे रह जाते हैं
शब्द तैयारी में कहां रहते हैं
पर जो कहा गया
ना जाने वो कहां गया
कुछ सुना भी होगा
पर समझा कुछ और ही
जो कहा न जा सका
वो मन में ही रह गया
या मौक़ा ही ना मिला
जो पहले कुछ कहा था
वो भी कहां कुछ याद रहा
मेरे कहने ,उनके सुनने
कुछ और समझने के
बीच इतना समझ आया
कुछ कहने से बेहतर
मौन हो जाना है,
वो कभी पढ़ ना सके
जो कि लिखना चाहा था
जो कभी साथ चाहे ही नहीं
लाख सफाई पे भी न माने
निजात चाहिए था उन्हें
तो समझने की जगह
सब खतम कर चले गए !

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ये नींद के किस्से भी अजीब होते हैं,
छुप जाते हैं कभी कभी
एक जिद्दी बच्चे की तरह,
जिद पूरी न हो तो आते ही नहीं,
काश मेरी भी जिद पूरी होती
जो बात अधूरी उनसे ना रहती
बस वो अपनी बात कह गए,
मुझे हजार दोष,सलाह साथ दे गए,
मैनें जो चाहा कुछ कहना ,
वो नींद में चाहे जाना,
खुद रोए,खुद ही मान गए
अपनी ही अतरंगी स्थितियों से
हंसते रह गए हम खुद पे,
कुछ वक्त और रुक जाते ,
अच्छी नींद मुझे भी आ जाती,
उनके वजह से कम से कम...
आधी रात को शब्दों से ना खेलती
थोड़ा सा वो मुझे भी सुन लेते काश
बेपरवाह की नींद हमें भी मिल जाते आज...

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लोगों की बौद्धिक चेतना से
हमारे अंतःमन को साझा
करना पड़ता है
जो नियति में लिखा है
वो होके ही रहेगा
ये पाठ पढ़ाकर हमें
अंतर्मन को समझा
लेने कहा जाता है,
और जीवन पर्यन्त
मन , मस्तिष्क और
नियति के बीच
इसी असमंजस में
व्यतीत हो जाता है कि
क्या यही नियती थी
या फिर अंतः मन की
सुनती और इच्छा को
जीवित रखती तो
नियती कुछ और होती
अंततः सही गलत की
नासमझी के बीच वो
सहन करना पड़ता है
जो कभी कल्पनाओं में
भी आसहनीय हुआ
करता था...

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एक जंगली पौधा सा है "उम्मीदें"...
बिना देखभाल के जी जाते हैं
बिना सहारे के तने रहते हैं
तेज़ हवाओ से भी टूटते नहीं
उगते वहीं जहाँ रोपा नहीं गया ,
खिले वहीं जहाँ कुछ न मिला,
किसी के कर्कश बातों से आहत होके,
सुख गए शब्द,आंसू और भाव मन के,
बची रह जाती है तो बस "उम्मीद"
ये स्मृतियों के जल से सींची जा रही,
तभी, ना चाहें तो भी बढ़ती जा रही

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