कुछ कथन दबे रह जाते हैं
शब्द तैयारी में कहां रहते हैं
पर जो कहा गया
ना जाने वो कहां गया
कुछ सुना भी होगा
पर समझा कुछ और ही
जो कहा न जा सका
वो मन में ही रह गया
या मौक़ा ही ना मिला
जो पहले कुछ कहा था
वो भी कहां कुछ याद रहा
मेरे कहने ,उनके सुनने
कुछ और समझने के
बीच इतना समझ आया
कुछ कहने से बेहतर
मौन हो जाना है,
वो कभी पढ़ ना सके
जो कि लिखना चाहा था
जो कभी साथ चाहे ही नहीं
लाख सफाई पे भी न माने
निजात चाहिए था उन्हें
तो समझने की जगह
सब खतम कर चले गए !